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SPECIAL: सांपों को मारें नहीं बचाएं, 'पर्यावरण को संतुलित रखने में है इनका अहम योगदान'

कोरबा में स्नेक कैचर के नाम से मशहूर जितेंद्र सारथी ना सिर्फ सांपों को बचाते हैं, बल्कि उन्हें सुरक्षित जंगल में भी छोड़ते हैं. सारथी की मानें तो सांप पर्यावरण संतुलन की भूमिका में अहम योगदान देते हैं.

snake catcher jitendra sarathi
जितेंद्र सारथी
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Published : Jul 25, 2020, 9:23 AM IST

कोरबा: इस नाग पंचमी पर ETV भारत आपको कोरबा शहर के कुछ ऐसे युवाओं से मिला रहा है, जो जहरीले सांपों को रेस्क्यू करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं. सूचना मिलते ही वह लोगों के घर पहुंचते हैं और सांप के साथ ही लोगों की जान भी बचाते हैं. स्नेक कैचर जितेंद्र सारथी और उनकी टीम लोगों को सांपों के प्रति जागरूक भी करती है.

सांपों के रखवाले

पढ़ें: SPECIAL: सांपों के संरक्षण के लिए दिया पूरा जीवन, जानिए महासमुंद के संजय की कहानी उन्हीं की जुबानी

स्नेक रेस्क्यू टीम कर रही सांपों की सुरक्षा

सांप, जिसका नाम सुनते ही जेहन में डर समा जाता है. सांप सामने हो तो अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाते हैं. सांप भले ही जहरीला ना हो, लेकिन उसे देखते ही मन में डर बैठ जाता है. कुछ सांप ऐसे भी होते हैं, जिनका थोड़ा सा जहर भी किसी की जान लेने के लिए काफी है.

बरसात के मौसम में घर में सांपों का आना और सांप दिखना एक सामान्य घटना है, लेकिन जब किसी के घर में सांप घुस आए, तब इससे छुटकारा पाने का एक ही रास्ता लोगों को दिखता है कि उसकी जान ले ली जाए. ऐसे में कोरबा के जितेंद्र सारथी और उनकी टीम लोगों की काफी मदद कर रही है. अब तो स्थिति ये है कि वन और पुलिस विभाग भी स्नेक कैचर जितेंद्र और उनकी टीम के सदस्यों की मदद ले रहे हैं. कहीं भी सांप निकलने की सूचना मिलने पर वह लोगों के घर जाकर सांपों का रेस्क्यू करते हैं. रेस्क्यू करने के बाद इस टीम के सदस्य लोगों को सांपों के बारे में जागरूक भी करते हैं और बताते हैं कि सांप पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए कितने अहम हैं. टीम के सदस्य सांपों को रेस्क्यू करके इन्हें सुरक्षित तरीके से जंगल में छोड़ आते हैं.

snake catcher jitendra sarathi
सांपों के रखवाले

पढ़ें: अबूझमाड़ को मलेरिया मुक्त करने का संकल्प, नदी पार कर गांव में पहुंचे स्वास्थ्यकर्मी


कई दुर्लभ प्रजाति के मिल चुके हैं सांप

सांपों के लिहाज से कोरबा जिला छत्तीसगढ़ प्रदेश में बेहद संवेदनशील है. हाल ही में लेमरू के जंगलों में दुर्लभ प्रजाति का सांप भी पाया गया था. नियमित अंतराल पर जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में सांपों की कई दुर्लभ प्रजातियों के मिलने के बारे में भी पता चलता है. इसका एक कारण कोरबा जिले में वनों का बेहतर विस्तार और यहां की आबोहवा भी है. बरसात के मौसम में जब सांप के बिल में पानी भर जाता है, तब यह भोजन की तलाश में घरों की ओर रुख करते हैं. अनजाने में वह घनी बस्तियों और आबादी में घुस आते हैं और लोग सांपों से घबरा जाते हैं. सांप से बचने के लिए ज्यादातर लोग इन्हें मार डालते हैं.

snake catcher jitendra sarathi
सांपों को मारें नहीं बचाएं

पढ़ें: विशेष : इस 'गांधी' ने झाबुआ के 700 गांवों का दूर किया जल संकट


24 घंटे में आते हैं 20 से 25 कॉल्स

स्नेक रेस्क्यू टीम का गठन करने वाले जितेंद्र सारथी बताते हैं कि बरसात के मौसम में लगभग पूरा दिन सांपों के रेस्क्यू में ही बीत जाता है. कई दिन तो ऐसे रहते हैं, जब 24 घंटे में 20 से 25 कॉल भी उन्हें आते हैं. जैसे ही वह सुबह सोकर उठते हैं कॉल आने शुरू हो जाते हैं. ज्यादातर कॉल देर रात के होते हैं. जितेंद्र कहते हैं कि जब फोन आता है तब उनका प्रयास रहता है कि जल्द से जल्द मौके पर पहुंचा जाए. कई बार लोग सांपों को मार भी देते हैं, तो कुछ ऐसे भी मामले सामने आते हैं जब सांप वहां से गायब हो चुके होते हैं. कोरबा जिले में सांप मिलने की घटना बेहद सामान्य है. ऐसे में प्रयास रहता है कि सांपों को जल्द से जल्द सुरक्षित तरीके से जंगल में छोड़ दिया जाए. जिससे सांपों के साथ लोगों की भी जान को खतरा ना हो. वैसे तो जितेन्द्र निजी कंपनी में मार्केटिंग विभाग में काम करते हैं, जबकि सांप पकड़ने और उन्हें रेस्क्यू करने का काम वह शौकिया तौर पर करते हैं. जितेंद्र के साथ उनकी पूरी टीम यह काम कर रही है.

snake catcher jitendra sarathi
सांपों के रखवाले

पढ़ें: SPECIAL: बहनों के लिए मददगार बना डाक विभाग, रक्षा बंधन पर सूनी नहीं रहेगी भाइयों की कलाइयां


कोरबा में कई तरह के सांप

कोरबा में सामान्य तौर पर मिलने वाले धमना के साथ ही कोबरा, अजगर, डोमी, करैत के साथ ही कुछ दुर्लभ प्रजाति के सांप भी पाए जाते हैं. इसकी सूचना वन विभाग को भी है, हालांकि सांपों के संरक्षण के लिए उस तरह के प्रशासनिक प्रयास नहीं हो पा रहे हैं, जैसा कि जिले में सांपों की संख्या को देखते हुए जरूरत है.

snake catcher jitendra sarathi
स्नेक कैचर



स्नेक पार्क की भी उठ रही मांग

जितेंद्र कहते हैं कि जिले में जितनी तादाद में अलग-अलग प्रजातियों के सांप मिल रहे हैं, उससे यहां एक अच्छा स्नेक पार्क बन सकता है. जिस तरह के सांप देखने के लिए लोग अन्य राज्यों का रुख करते हैं, वैसा एक पार्क जिले में भी बनाया जा सकता है, जहां इन सांपों को बेहतर तरीके से संरक्षण मिल सकता है.

कोरबा: इस नाग पंचमी पर ETV भारत आपको कोरबा शहर के कुछ ऐसे युवाओं से मिला रहा है, जो जहरीले सांपों को रेस्क्यू करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं. सूचना मिलते ही वह लोगों के घर पहुंचते हैं और सांप के साथ ही लोगों की जान भी बचाते हैं. स्नेक कैचर जितेंद्र सारथी और उनकी टीम लोगों को सांपों के प्रति जागरूक भी करती है.

सांपों के रखवाले

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स्नेक रेस्क्यू टीम कर रही सांपों की सुरक्षा

सांप, जिसका नाम सुनते ही जेहन में डर समा जाता है. सांप सामने हो तो अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाते हैं. सांप भले ही जहरीला ना हो, लेकिन उसे देखते ही मन में डर बैठ जाता है. कुछ सांप ऐसे भी होते हैं, जिनका थोड़ा सा जहर भी किसी की जान लेने के लिए काफी है.

बरसात के मौसम में घर में सांपों का आना और सांप दिखना एक सामान्य घटना है, लेकिन जब किसी के घर में सांप घुस आए, तब इससे छुटकारा पाने का एक ही रास्ता लोगों को दिखता है कि उसकी जान ले ली जाए. ऐसे में कोरबा के जितेंद्र सारथी और उनकी टीम लोगों की काफी मदद कर रही है. अब तो स्थिति ये है कि वन और पुलिस विभाग भी स्नेक कैचर जितेंद्र और उनकी टीम के सदस्यों की मदद ले रहे हैं. कहीं भी सांप निकलने की सूचना मिलने पर वह लोगों के घर जाकर सांपों का रेस्क्यू करते हैं. रेस्क्यू करने के बाद इस टीम के सदस्य लोगों को सांपों के बारे में जागरूक भी करते हैं और बताते हैं कि सांप पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए कितने अहम हैं. टीम के सदस्य सांपों को रेस्क्यू करके इन्हें सुरक्षित तरीके से जंगल में छोड़ आते हैं.

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सांपों के रखवाले

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कई दुर्लभ प्रजाति के मिल चुके हैं सांप

सांपों के लिहाज से कोरबा जिला छत्तीसगढ़ प्रदेश में बेहद संवेदनशील है. हाल ही में लेमरू के जंगलों में दुर्लभ प्रजाति का सांप भी पाया गया था. नियमित अंतराल पर जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में सांपों की कई दुर्लभ प्रजातियों के मिलने के बारे में भी पता चलता है. इसका एक कारण कोरबा जिले में वनों का बेहतर विस्तार और यहां की आबोहवा भी है. बरसात के मौसम में जब सांप के बिल में पानी भर जाता है, तब यह भोजन की तलाश में घरों की ओर रुख करते हैं. अनजाने में वह घनी बस्तियों और आबादी में घुस आते हैं और लोग सांपों से घबरा जाते हैं. सांप से बचने के लिए ज्यादातर लोग इन्हें मार डालते हैं.

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सांपों को मारें नहीं बचाएं

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24 घंटे में आते हैं 20 से 25 कॉल्स

स्नेक रेस्क्यू टीम का गठन करने वाले जितेंद्र सारथी बताते हैं कि बरसात के मौसम में लगभग पूरा दिन सांपों के रेस्क्यू में ही बीत जाता है. कई दिन तो ऐसे रहते हैं, जब 24 घंटे में 20 से 25 कॉल भी उन्हें आते हैं. जैसे ही वह सुबह सोकर उठते हैं कॉल आने शुरू हो जाते हैं. ज्यादातर कॉल देर रात के होते हैं. जितेंद्र कहते हैं कि जब फोन आता है तब उनका प्रयास रहता है कि जल्द से जल्द मौके पर पहुंचा जाए. कई बार लोग सांपों को मार भी देते हैं, तो कुछ ऐसे भी मामले सामने आते हैं जब सांप वहां से गायब हो चुके होते हैं. कोरबा जिले में सांप मिलने की घटना बेहद सामान्य है. ऐसे में प्रयास रहता है कि सांपों को जल्द से जल्द सुरक्षित तरीके से जंगल में छोड़ दिया जाए. जिससे सांपों के साथ लोगों की भी जान को खतरा ना हो. वैसे तो जितेन्द्र निजी कंपनी में मार्केटिंग विभाग में काम करते हैं, जबकि सांप पकड़ने और उन्हें रेस्क्यू करने का काम वह शौकिया तौर पर करते हैं. जितेंद्र के साथ उनकी पूरी टीम यह काम कर रही है.

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सांपों के रखवाले

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कोरबा में कई तरह के सांप

कोरबा में सामान्य तौर पर मिलने वाले धमना के साथ ही कोबरा, अजगर, डोमी, करैत के साथ ही कुछ दुर्लभ प्रजाति के सांप भी पाए जाते हैं. इसकी सूचना वन विभाग को भी है, हालांकि सांपों के संरक्षण के लिए उस तरह के प्रशासनिक प्रयास नहीं हो पा रहे हैं, जैसा कि जिले में सांपों की संख्या को देखते हुए जरूरत है.

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स्नेक कैचर



स्नेक पार्क की भी उठ रही मांग

जितेंद्र कहते हैं कि जिले में जितनी तादाद में अलग-अलग प्रजातियों के सांप मिल रहे हैं, उससे यहां एक अच्छा स्नेक पार्क बन सकता है. जिस तरह के सांप देखने के लिए लोग अन्य राज्यों का रुख करते हैं, वैसा एक पार्क जिले में भी बनाया जा सकता है, जहां इन सांपों को बेहतर तरीके से संरक्षण मिल सकता है.

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