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निजी बस संचालकों पर कोरोना संकट की मार, आर्थिक तंगी का कर रहे सामना - Bus operators upset due to Corona crisis

लॉकडाउन के बाद से बस मालिक मायूस हैं. हजारों बस कर्मचारी परेशान हैं. बस मालिकों के साथ ही हजारों की संख्या में बस सर्विस से जुड़े कर्मचारियों का काम-काज भी प्रभावित है. लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने वाले बस के पहिए इस संकट काल में थमे हुए हैं. सभी सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं.

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लॉकडाउन से थमें निजी बसों के पहिए
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Published : Jun 21, 2020, 6:13 PM IST

कोरबा: लॉकडाउन ने लगभग हर क्षेत्र को प्रभावित किया है. कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिन्हें राज्य सरकार के रियायतों के बावजूद अब भी राहत का इंतजार है. प्रदेश में बस परिवहन अब तक प्रभावित है. लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने वाली बस के पहिए इस संकट काल में थमे हुए हैं. ऐसे में बस मालिक मायूस हैं. लेकिन दूसरी तरफ सिटी बस को मजदूरों को दूसरे जगहों से लाने का काम सौंपा गया है. जिससे निजी बस संचालक नाराज हैं.

लॉकडाउन से थमे निजी बसों के पहिए

बस मालिकों के साथ ही हजारों की संख्या में बस सर्विस से जुड़े कर्मचारियों के काम-काज भी प्रभावित हैं. 3 महीने से पैसे नहीं मिले हैं. हजारों बस कर्मचारी परेशान हैं. कुछ लोग नए रोजगार की तलाश में जुट गए हैं. इसके अलावा लॉकडाउन में फंसे लोग भी निजी बस सर्विस के बंद होने से परेशानी झेल रहे हैं. कई इलाकों के लिए परिवहन पूरी तरह से थम चुका है. ऐसे में लोगों को अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ रही है.

कर्ज तले दबे बस मालिक

बस मालिकों की माने तो तीन महीने से ठप बस सेवा ने उन्हें कर्ज तले दबा दिया है. इनकी स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है. कई बार गुहार लगाने के बाद सरकार ने 2 महीने का टैक्स माफ किया लेकिन, वो भी पूरी तरह से अपडेट नहीं है. ऐसे में सभी मालिकों को इसका फायदा भी नहीं मिल सका है. बता दें अधिकतर बस मालिकों को बसों के इंश्योरेंस और लोन की किस्त चुकानी है लेकिन पैसों के अभाव ने उन्हें कर्ज में दबा दिया है. 3 महीने से बंद पड़े काम से उनकी हालत खराब है.

पढ़ें: कांकेर: वन विभाग के रेंजर पर निलंबित महिला वनपाल से छेड़छाड़ का आरोप

बस मालिकों के अलावा कई निजी बस सर्विस संघ से जुड़ें लोगों ने भी सरकार से रियायतों की मांग की थी. लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया.सरकार ने 2 महीने का टैक्स माफ किया था. जिसमें से एक महीने का टैक्स कई बस मालिकों ने पटा दिया था. ऐसे में उन्हें इसका फायदा भी नहीं मिल सका है. बस मालिकों का कहना है की सरकार उनके साथ सौतेला व्यवहार कर रही है.

यात्री भी हलाकान
कोरबा जिले के नया बस स्टैंड से 80 से 90 बसों का परिचालन प्रतिदिन होता था. जिससे न सिर्फ बस मालिक बल्कि ड्राइवर, खलासी, मैकेनिक और आसपास के ठेले, खोमचे, होटल वालों की आजीविका चलती थी. लोग बस स्टैंड तक नहीं पहुंच रहे हैं. कई यात्री भटक कर बस स्टैंड तक पहुंच रहे हैं, लेकिन यहां से भी उन्हें कोई सुविधा नहीं मिल पा रही है. ऐसे में बस मालिकों के साथ ही यात्री भी हलाकान हो रहे हैं.

भेदभाव का आरोप

बस मालिकों ने बताया कि कोरोना काल में सार्वजनिक यात्री सेवा पूरी तरह से बंद है. लेकिन प्रवासी मजदूरों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने का काम सरकार कर रही है. ऐसे में अंतरराज्यीय परिवहन और अंतरजिला परिवहन दोनों हो रहा है. लेकिन ये काम उनकी बसों से नहीं लिया जा रहा है. बल्कि सिटी बस या फिर स्कूल बसों को अधिग्रहित कर सेवा ली जा रही है. राज्य सरकार को सिटी बसों के साथ ही निजी बसों की सेवा शुरू करने की ओर ध्यान देने की जरूरत है. ताकि सैकड़ों बस मालिकों के साथ ही हजारों कर्मचारियों का जीवन पटरी पर आ सके.

कोरबा: लॉकडाउन ने लगभग हर क्षेत्र को प्रभावित किया है. कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिन्हें राज्य सरकार के रियायतों के बावजूद अब भी राहत का इंतजार है. प्रदेश में बस परिवहन अब तक प्रभावित है. लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने वाली बस के पहिए इस संकट काल में थमे हुए हैं. ऐसे में बस मालिक मायूस हैं. लेकिन दूसरी तरफ सिटी बस को मजदूरों को दूसरे जगहों से लाने का काम सौंपा गया है. जिससे निजी बस संचालक नाराज हैं.

लॉकडाउन से थमे निजी बसों के पहिए

बस मालिकों के साथ ही हजारों की संख्या में बस सर्विस से जुड़े कर्मचारियों के काम-काज भी प्रभावित हैं. 3 महीने से पैसे नहीं मिले हैं. हजारों बस कर्मचारी परेशान हैं. कुछ लोग नए रोजगार की तलाश में जुट गए हैं. इसके अलावा लॉकडाउन में फंसे लोग भी निजी बस सर्विस के बंद होने से परेशानी झेल रहे हैं. कई इलाकों के लिए परिवहन पूरी तरह से थम चुका है. ऐसे में लोगों को अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ रही है.

कर्ज तले दबे बस मालिक

बस मालिकों की माने तो तीन महीने से ठप बस सेवा ने उन्हें कर्ज तले दबा दिया है. इनकी स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है. कई बार गुहार लगाने के बाद सरकार ने 2 महीने का टैक्स माफ किया लेकिन, वो भी पूरी तरह से अपडेट नहीं है. ऐसे में सभी मालिकों को इसका फायदा भी नहीं मिल सका है. बता दें अधिकतर बस मालिकों को बसों के इंश्योरेंस और लोन की किस्त चुकानी है लेकिन पैसों के अभाव ने उन्हें कर्ज में दबा दिया है. 3 महीने से बंद पड़े काम से उनकी हालत खराब है.

पढ़ें: कांकेर: वन विभाग के रेंजर पर निलंबित महिला वनपाल से छेड़छाड़ का आरोप

बस मालिकों के अलावा कई निजी बस सर्विस संघ से जुड़ें लोगों ने भी सरकार से रियायतों की मांग की थी. लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया.सरकार ने 2 महीने का टैक्स माफ किया था. जिसमें से एक महीने का टैक्स कई बस मालिकों ने पटा दिया था. ऐसे में उन्हें इसका फायदा भी नहीं मिल सका है. बस मालिकों का कहना है की सरकार उनके साथ सौतेला व्यवहार कर रही है.

यात्री भी हलाकान
कोरबा जिले के नया बस स्टैंड से 80 से 90 बसों का परिचालन प्रतिदिन होता था. जिससे न सिर्फ बस मालिक बल्कि ड्राइवर, खलासी, मैकेनिक और आसपास के ठेले, खोमचे, होटल वालों की आजीविका चलती थी. लोग बस स्टैंड तक नहीं पहुंच रहे हैं. कई यात्री भटक कर बस स्टैंड तक पहुंच रहे हैं, लेकिन यहां से भी उन्हें कोई सुविधा नहीं मिल पा रही है. ऐसे में बस मालिकों के साथ ही यात्री भी हलाकान हो रहे हैं.

भेदभाव का आरोप

बस मालिकों ने बताया कि कोरोना काल में सार्वजनिक यात्री सेवा पूरी तरह से बंद है. लेकिन प्रवासी मजदूरों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने का काम सरकार कर रही है. ऐसे में अंतरराज्यीय परिवहन और अंतरजिला परिवहन दोनों हो रहा है. लेकिन ये काम उनकी बसों से नहीं लिया जा रहा है. बल्कि सिटी बस या फिर स्कूल बसों को अधिग्रहित कर सेवा ली जा रही है. राज्य सरकार को सिटी बसों के साथ ही निजी बसों की सेवा शुरू करने की ओर ध्यान देने की जरूरत है. ताकि सैकड़ों बस मालिकों के साथ ही हजारों कर्मचारियों का जीवन पटरी पर आ सके.

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