कोरबा: छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के नगर निगम क्षेत्र (Municipal area) अंतर्गत शहर के स्लम बस्तियों (Slum settlements) में निवास करने वाले बीपीएल (BPL) वर्ग से आने वाले हितग्राहियों के लिए 23 करोड़ 80 लाख (23 crore 80 lakh) रुपए खर्च कर रिहायशी कालोनियों(Residential colonies) की तर्ज पर कुल 481 पीएम आवास (481 PM Awas) का निर्माण कराया गया है. बताया जा रहा है कि यहां बिजली, पानी जैसी मूलभूत व्यवस्थायें की गई है.
सरकार की मानें तो इन आवासों में हर तरह की सुविधायें मुहैया की गई है. हालांकि अब जब आवास बनकर तैयार है और हितग्राहियों को इन आवासों का आवंटन कर दिया गया है. तो वे वहां रहना नहीं चाह रहे, जिससे प्रशासन की चिंता और भी बढ़ गई है.
481 आवास में सिर्फ 19 हितग्राही
बताया जा रहा है कि 481 आवास में महज 19 हितग्राही ही यहां रहने पहुंचे हैं. जिससे करोड़ों की इस योजना पर अब प्रश्न चिन्ह लग गया है.
तीन स्थानों पर बने पीएम आवास
नगर निगम के मुड़ापार, रामनगर और लाटा में अलग-अलग ब्लॉकवार पीएम आवास का निर्माण (Block wise PM Awas Construction) किया गया है. सभी आवास फ्लैट सिस्टम की तर्ज पर बनाए गए हैं. दूर से इनका नजारा किसी रिहायशी कॉलोनियों की तरह दिखता है. जब इनका निर्माण प्रारंभ हुआ था, तभी हितग्राहियों का चयन कर लिया गया था. बावजूद इसके हितग्राही यहां निवास करने से कतरा रहे हैं. जिसका कारण प्रशासन को नहीं समझ में आ रहा.
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महज 19 लोग आए रहने
नगर निगम की मानें तो आवास के निर्माण के बाद यहां बिजली, पानी जैसी तमाम मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा कर लिया गया है. आवंटन की प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी है. सभी 481 आवासों को हितग्राहियों को आवंटित कर दिया गया है, लेकिन फिलहाल सिर्फ 19 हितग्राहियों ने ही इन आवासों में रहना शुरू किया है. इसके अलावा सभी आवास खाली पड़े हुए हैं. जिनमें कोई भी हितग्राही निवास करने नहीं आया है.
लिखकर दें तभी आवंटन होगा निरस्त
हितग्राहियों के आवासों में नहीं रहने के सवाल पर निगम प्रशासन का कहना है कि हितग्राहियों को लगातार आवास में निवास करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. जिनके नाम पर आवास आवंटित है, यदि वह लिखकर दें कि वह इनमें निवास नहीं करना चाहते हैं. तब उनका आवंटन निरस्त कर अन्य हितग्राहियों को आवास आवंटित किया जा सकता है. लेकिन फिलहाल प्रयास यही है कि जिनके नाम पर आवास आवंटित है, उन्हें प्रेरित कर यहां निवास करवाया जाए.
स्लम बस्तियों से ही लगाव
बताया जा रहा है कि नगर निगम क्षेत्र में स्लम बस्तियों की भरमार है. कई अवैध बस्तियां भी है. अब लोग यहां से निकलना नहीं चाहते है, जो कि इनके न जाने का कारण हो सकता है. साथ ही एक तथ्य यह भी है कि जिन जरूरतमंद लोगों को आवास की आवश्यकता थी. उन्हें आवंटन नहीं हुआ है. जबकि जिन्हें आवास मिला है. वह इनमें निवास नहीं करना चाहते हैं. लेकिन वह अपने नाम पर आवंटित आवासों का आवंटन निरस्त भी नहीं करवाना चाहते.
इस कारण फंसा हुआ है पेंच
इधर, बड़ी तादाद में आवास खाली पड़े हुए हैं, यही हाल नगर निगम के पहले से निर्मित अटल आवासों का भी हुआ था. कई स्थानों पर नगर निगम के अटल आवास जर्जर अवस्था में हैं. इधर, निगम के अधिकारियों को अब इसका भय सता रहा है कि पीएम आवास का हाल भी पहले में निर्मित अटल आवास की तरह ही न हो जाए.