कोरबा: रेलवे स्टेशन कोरबा में निर्माणाधीन पिटलाइन 12 सालों से अधूरा है, जो यात्री ट्रेनों के संचालन में सबसे बड़ी बाधा है. साल 2009 में 5 करोड़ रुपये की लागत से इस परियोजना की शुरुआत की गई थी, लेकिन बाद में इसका बजट बढ़कर 24 करोड़ हो गया. रेलवे प्रशासन धीरे-धारे इस राशि का भुगतान कर रहा है, लेकिन इस लाइन का काम अब भी जोर नहीं पकड़ सका है.
पिटलाइन एक विशेष तरह की मरम्मत के लिए बिछाई गिर रेल लाइन होती है, जिसके बीच में नाली का निर्माण किया जाता है. यदि किसी रेलवे स्टेशन में पिट लाइन मौजूद ना हो तो वहां से यात्री ट्रेनों के संचालन में रेलवे रुचि नहीं लेता. पिट लाइन जैसे आवश्यक संसाधन का मौजूद नहीं होने का सीधा-सीधा मतलब है कि उस रेलवे स्टेशन से यात्री ट्रेनों का संचालन असंभव है.
रेलवे को मिल जाता है बहाना
कोरबा रेलवे स्टेशन से लाखों टन कोयला देश के अलग-अलग हिस्सों में निर्यात किया जाता है, लेकिन यात्री सुविधाएं बेहद कम हैं. जब भी किसी नये यात्री ट्रेन के संचालन के बात होती है, तब रेलवे के अफसर संसाधन की कमी होने का बहाना बनाकर प्रस्ताव को टाल देते हैं.
नहीं मिल रही राशि
एक तरफ कोरबा से करोड़ों का राजस्व रेलवे मंत्रालय को प्राप्त होता है तो वहीं दूसरी तरफ कोरबा को ही आवश्यक संसाधन विकसित करने के लिए राशि नहीं मिल रही है. पिटलाइन का काम अब से 12 साल पहले 2009 में शुरू हुआ था. इसे पूरा करने के लिए रेलवे ने मंत्रालय से 24 करोड़ रुपए की मांग की है. राशि धीरे-धीरे जारी हो रही है, जिसके कारण परियोजना अब भी अधूरा है.