कोरबा: देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को लागू हुए 31 साल पूरे हो चुके हैं. 24 अप्रैल 1992 में 73वां संविधान संशोधन कर पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया था. यह व्यवस्था शक्ति के विकेंद्रीकरण को ध्यान में रखते हुए की गई थी. खास तौर पर कोरबा जैसे जिला, जो कि आदिवासी जिले के तौर पर पहचान रखता हैं और संविधान की पांचवी अनुसूची में दर्ज हैं. यहां सरपंचों का पद पूरी तरह से आदिवासी वर्ग के लिए ही आरक्षित होता है. लेकिन फिर भी सवाल उठता है कि यहां पंचायती राज व्यवस्था कितनी सफल है ?
स्थानीय जनप्रतिनिधि व जानकारों की मानें तो पंचायती राज अधिनियम के तहत पंचायतों को सुदृढ़ करने का प्रयास तो किया गया, कागजों में उन्हें अधिकार संपन्न भी बनाए गए लेकिन धरातल पर अब तक नहीं उतर सके हैं.
National Panchayat Award: छत्तीसगढ़ के दो पंचायतों नागम और सांकरा को राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार
गांव में ही बननी चाहिए ग्राम विकास की योजना : ग्राम सभा को बेहद ताकतवर बनाया गया है. इसके तहत बिना ग्रामसभा की अनुमति के ना तो गांव में कोई विकास के काम होंगे, ना ही गांव की जमीन का कोई अधिग्रहण कर सकेगा. सरपंचों को कई अधिकार दिए गए हैं. इसी तरह ग्राम पंचायत के बाद जनपद पंचायत और फिर जिला पंचायत सदस्य को भी क्षेत्रवार अधिकार दिए गए हैं.
जिला पंचायत में 7 से 8 स्थायी समितियां होती हैं. इनमें कृषि, महिला एवं बाल विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित समितियां होती हैं. जिनकी जिम्मेदारी एक सदस्य को दी जाती है. अलग अलग सदस्य विभिन्न समितियों के अध्यक्ष का दायित्व निभाते हैं. जबकि अलग-अलग विभागों के जिला अधिकारी इन समितियों के पदेन सचिव होते हैं. इन समितियों की बैठक भी होती हैं, योजनाएं बनती हैं और इन्हीं योजना के तहत गांव में विकास कार्य होने चाहिए. लेकिन अक्सर गांव के जनप्रतिनिधि शिकायत करते हैं कि उन्हें पता ही नहीं चलता और अधिकारी कागजों में सारा काम करवा लेते हैं.
पंचायती राज का हो रहा दुरुपयोग : प्रदेश के सीनियर आदिवासी लीडर और वर्तमान में रामपुर विधायक ननकीराम कंवर का इस विषय में स्पष्ट अभिमत है. ननकी का मानना है कि छत्तीसगढ़ में पंचायती राज अधिनियम का पूरी तरह से दुरुपयोग हो रहा है. सरकार तोड़ मरोड़कर अपने फायदे के लिए इसका इस्तेमाल करती है. ननकी का कहना है कि केंद्र सरकार से वित्त आयोग, मूलभूत और रोजगार गारंटी का पैसा मिलता है. लेकिन इसका दुरुपयोग कर गौठान का निर्माण कर दिया गया. जहां एक भी गाय नहीं दिखती. पंचायतों के संवैधानिक अधिकार को खत्म किया जा रहा है. ननकी कहते हैं कि " मैंने इस विषय में राज्यपाल को भी पत्र लिखा था और चिंता व्यक्त की थी. तब उनका जवाब आया था कि आप इस पत्र को सरपंचों से लिखवा कर भेजिए."
पंच और सरपंच सिर्फ कठपुतली: छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान का नारा लेकर प्रदेश में झंडा ऊंचा करने वाले छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के जिलाध्यक्ष अतुल दास महंत पंच और सरपंचों को सिर्फ कठपुतली मानते हैं. उनका कहना है कि पंचायती राज अधिनियम का कहीं से भी पालन नहीं हो रहा है. कोरबा पांचवी अनुसूची में शामिल आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. लेकिन यहां पेसा कानून के तहत कोई काम नहीं होते. अतुल का कहना है कि "पंच और सरपंच जैसे पदों पर बैठे जनप्रतिनिधि महज कठपुतली बन कर रह जाते हैं. बाहर से ठेकेदार आते हैं, वह अपने मजदूर भी लेकर आते हैं. ना तो ग्रामीणों का जीवन स्तर सुधर रहा है. ना ही ग्रामों का समग्र विकास हो रहा है. जिसे बदलने की जरूरत है. "