कोरबाः कहते हैं कि हर नाम के पीछे कोई ना कोई रहस्य छिपा रहता है. किसी स्थान, वस्तु का नाम, उसके गुण-दोष के आधार पर रखे जाते हैं. इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे, जब किसी का नामकरण उसके गुण-दोष के आधार पर किए गए हैं. कोरबा जिले में भी कई ऐसे गांव मिल जाएंगे. इनके नाम बेहद अजीबो-गरीब हैं. कुछ तो जानवरों के नाम पर हैं, तो कुछ गांव के नाम दूल्हा-दुल्हन और चट्टानों के नाम पर रखे गए हैं. ईटीवी भारत ने जिले के ऐसे कुछ गांव के नाम के पीछे की कहानी को तलाशने का प्रयास किया है. पेश हैं जिले के 10 ऐसे गांव जो अपने नामकरण से ही आपका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करेंगे.
बाघमाड़ा
जिले के रजगामार के साथ ही गढ़कटरा में दो स्थानों पर गांव का नाम बाघमाड़ा है. बाघ का अर्थ तो सभी जानते हैं और माड़ा का अर्थ होता है गुफा. तो इन दोनों ही शब्दों से मिलकर गांव का नाम बाघ माड़ा बन गया. जिसके विषय में ऐसी कहानियां मशहूर हैं कि यहां बाघ आराम करने और पानी पीने आया करते थे. गढ़ कटरा में कुछ टूटी फूटी गुफाएं भी मौजूद हैं. इन्हीं कहानियों के आधार पर इन स्थानों का नाम बाघ माड़ा रखा गया है.
भालूसटका
भालू से सभी भलीभांति परिचित हैं. कोरबा जिला अब भी 40 फीसदी वनों से अच्छादित है और यहां जंगली जानवरों की बहुलता है. गांव भालूसटका शहर के करीब है. छत्तीसगढ़ी शब्द सटकना या सटका का अर्थ किसी स्थान पर फंस जाना होता है.भालूसटका के विषय में ऐसी कहानी है कि यहां की गुफा में एक भालू फंस गया था, इसलिए गांव का नाम भालूसटका पड़ गया.
देवपहरी
देवपहरी जिले का मशहूर पर्यटन स्थल है. जहां गोविंद झुंझा जलप्रपात स्थित है. यहां मानव पदचिन्ह आज भी मौजूद हैं. लोग इसकी पूजा-अर्चना करते हैं. ऐसी मान्यता है कि वनवास के दौरान प्रभु श्रीराम यहां आए थे और उनके पद चिन्ह आज भी यहां अंकित हैं. यही कारण है कि गांव का नाम देवपहरी रख दिया गया. इसका अर्थ है, ऐसा स्थान जहां देव के पैर पड़े हों.
धसकनटुकू
देवपहरी के समीप ही एक गांव है, जिसका बेहद अजीबो-गरीब नाम रखा गया है. नाम है धसकनटुकु. दरअसल इस गांव के पास कुछ ऐसे चट्टान हैं, जो कभी भी धसक(टूट) सकते हैं. टुकू का अर्थ चट्टान भी होता है. ऐसे चट्टान जो कभी भी धंस यानी धराशायी हो सकते हैं और खतरनाक हैं. इन्हीं चट्टानों के नाम पर गांव का नाम धसकनटुकु रख दिया गया है.
नरसिंह-गंगा
नरसिंह गंगा जिले के पाली विकासखंड में चैतमा के करीब है. यहां पर एक प्राकृतिक जल का स्त्रोत है और शिवलिंग भी बना हुआ है. इसी जल स्त्रोत से शिवलिंग का प्राकृतिक रूप से जलाभिषेक होने के कारण इस स्थान को गंगा का उप-नाम मिला. इसी स्थान के समीप कलाकृति है. इसकी तुलना भगवान नरसिंह से की जाती है. जिसके कारण दोनों ही नामों को मिला कर इस स्थान का नाम नरसिंह-गंगा पड़ गया. नरसिंह-गंगा भी एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है.
कोसगई
कोष का अर्थ राजस्व या खजाने से है. कोसगई का मतलब है खजाने का घर. कहा जाता है छत्तीसगढ़ राज्य में सबसे लंबे समय तक राज करने वाला कलचुरी राजवंश राज परिवार की राजधानी कोसगई हुआ करती थी. ऐसा इतिहास में भी उल्लेख है. जिनकी आज तक ठीक तरह से खोज नहीं हुई है. यहां कई प्राचीन गुफाएं हैं, छोटे-छोटे गुफा के दरवाजे भी बंद हैं. रास्ते भी बेहद दुर्गम हैं. कोसगई के बारे में कहानियां मशहूर हैं कि राजा महाराजा यहां अपना खजाना छुपा कर रखते थे.
नेवराटिकरा
जिले में एक और अजीब नाम वाला गांव है, जिसका नाम नेवराटिकरा है. टिकरा का अर्थ होता है एक ऊंचा स्थान नेवरा का अर्थ है नगाड़ा. ऐसी कहानी है कि यहां मौजूद ऊंचे स्थान से नगाड़ा बजा कर लोगों को कोई संदेश दिया जाता था. लोगों को इकट्ठा किया जाता था. आज भी वह नगाड़े नेवारटिकरा में मौजूद हैं. हालांकि वह बेहद जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं, लेकिन उन्हें देखकर नगाड़ा होने की बात का जरूर पता चल जाता है.
गढ़कटरा
गढ़ कटरा को शंकरगढ़ भी कहा जाता है. यहां पर काफी जंगली क्षेत्र है. कटकटाया जंगल भी कहा जाता है. कटकटाया का अर्थ होता है बेहद घना जंगल. तो गढ़ किसी पहाड़ से लिया गया है और कटकटाया जंगल या घने जंगलों से कटरा शब्द लेकर गढ़ कटरा बना है. गांव के पुराने लोग बताते हैं कि घने जंगल और पहाड़ की वजह से गांव का नाम रखा गया है.
लोधझरिया
जिले के मशहूर पर्यटन स्थल रानीझरिया के विषय में रानी के स्नान करने का उल्लेख है, तो लोधझरिया में राजा लोधी के स्नान करने की कहानियां मशहूर हैं. लोधझरिया और रानीझरिया दोनों ही आस पास ही मौजूद हैं. अजगर बहार के समीप यह दोनों झरने स्थित हैं, जो कि हाल-फिलहाल में पर्यटकों के बीच काफी मशहूर हुए हैं.
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सूअरलोट या दूल्हा-दुल्हिन पहाड़
जिले के करतला क्षेत्र में गांव का नाम सूअरलोट है. यहीं पर दूल्हा-दुल्हिन पहाड़ भी स्थित है. दूल्हा-दुल्हिन पहाड़ को प्राचीन दृष्टिकोण से भी देखा जाता है. यहां दो मानव के चित्र पत्थरों पर अंकित हैं. जिनके हाथ ऊपर की तरफ हैं. शैल चित्रों के कारण ही इस पहाड़ का नाम दूल्हा-दुल्हिन पहाड़ पड़ा. गांव में जब भी कोई विवाह होता है, तब दूल्हा और दुल्हन दोनों इस पहाड़ को निमंत्रण समर्पित करते हैं. इसके बाद ही मंगल काम शुरू किए जाते हैं. यह पहाड़ गांव सुअरलोट में है. इसी पहाड़ के उपर समतल स्थान पर जंगली सूअर लोटते थे. यह कहानी भी गांव में प्रख्यात है, जिसके कारण गांव का नाम ही सूअरलोट रख दिया गया.