कोरबा: कुसमुंडा खदान के भू-विस्थापित किसान लगातार यह मांग कर रहे हैं कि जमीन के बदले में इन्हें नौकरी, मुआवजा और पुनर्वास संबंधी वादा एसईसीएल ने किया था. उस वादे को पूरा किया जाए. जब तक वादे अधूरे रहेंगे, आंदोलन चलता रहेगा.
मार्च से खदान बंद करने की दी चेतावनी
कुसमुंडा महाप्रबंधक कार्यालय के सामने लगातार आंदोलन कर रहे किसान अब आक्रोशित हो चुके हैं. मंगलवार को आंदोलन स्थल पर ही जन आक्रोश सभा का आयोजन किया गया. इसके बाद कोयला मंत्री का पुतला जलाया गया. विस्थापितों का कहना है कि फरवरी में विस्थापित किसानों को नौकरी देने की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी तो वह मार्च में कुसमुंडा, गेवरा, दीपका और कोरबा सभी एरिया के विस्थापितों को एकत्रित करेंगे और कुसमुंडा खदान को पूरी तरह से बंद कर देंगे. किसी भी हाल में कुसमुंडा का कोयला यहां से बाहर नहीं निकलने देंगे.
कुसमुंडा क्षेत्र के भू-विस्थापित किसान 31 अक्टूबर को 12 घंटे कुसमुंडा खदान को पूर्ण रूप से बंद करने के बाद रोजगार की मांग को लेकर एसईसीएल के कुसमुंडा मुख्यालय के सामने अनिश्चितकालीन धरने पर रोजगार एकता संघ के बेनर तले बैठे हैं. आंदोलन की शुरुआत से ही किसान सभा के कार्यकर्ता हर दिन आंदोलन स्थल पहुंच कर भू-विस्थापितों का हौसला बढ़ाने का काम कर रहे हैं. भारी ठंड और बरसात में भी लगातार 100 दिनों से रोजगार की मांग को लेकर भू-विस्थापित आंदोलनरत हैं. इस बीच तीन बार खदान बंद की गई और आंदोलन के समय 16 प्रदर्शनकारियों को जेल भी भेजा गया लेकिन भू-विस्थापित बिना रोजगार मिले आंदोलन से हटने के लिए तैयार नहीं हैं.
दरअसल एसईसीएल कुसमुंडा,गेवरा, दीपका,कोरबा परियोजना के लिए अधिग्रहित गांवों के ग्रामीण वर्षों से रोजगार की राह तक रहे हैं. वे कार्यालयों का चक्कर लगाकर थक चुके हैं. अब उनके सब्र का बांध टूट चुका है. भू-विस्थापितों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है.
SECL ने दिया ये तर्क
आंदोलन को लेकर एसईसीएल का कहना है कि विस्थापित किसानों की समस्या का समाधान हो चुका है. उनकी समस्याओं का समाधान प्राथमिकता है. रही बात नौकरी की तो जितने भी पात्र किसान थे, उन सभी को नौकरी दी जा चुकी है. एसईसीएल प्रबंधन की ओर से हमेशा यही जवाब दिया जाता रहा है।