कोरबा: देश के 10 श्रम संगठनों ने केंद्र सरकार के जनविरोधी और मजदूर विरोधी नितियों के खिलाफ 26 नवंबर को कोयला उद्योग समेत अन्य उपक्रमों में एक दिवसीय देशव्यापी हड़ताल का एलान किया है. जिले की सभी कोयला खदान इससे प्रभावित होंगी. प्रबंधन ने भी हड़ताल को विफल करने के लिए अपने प्रयास शुरू कर दिए हैं, लेकिन श्रमिक संगठन हर हाल पर हड़ताल को सफल बनाने की रणनीति तैयार कर रहे हैं.
कोल इंडिया के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक प्रमोद अग्रवाल ने इस हड़ताल को अवैध घोषित करते हुए कोयला मजदूरों को हड़ताल में न जाने की चेतावनी दी है. उन्होंने कहा कि हड़ताल करने वाले कर्मचारियों पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने 'काम नहीं तो वेतन नहीं' की बात कही है.
हड़ताली कर्मियों की सैलरी काटना हास्यास्पद
इस संबंध मे एटक के दीपेश मिश्रा ने कहा कि कोल इंडिया के चेयरमेन का हड़ताल को अवैध घोषित करना एक गैरजरूरी बयान है. उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान के 125 साल के इतिहास मे आज तक तमाम वैधानिक प्रक्रिया अपनाने के बावजूद किसी भी हड़ताल को वैध घोषित नहीं किया गया है. इसी तरह हड़ताली कर्मियों का वेतन कटौती की बात कहना भी हास्यास्पद है. श्रम बाजार मे श्रमिक अपना श्रम बेचता है उसके एवज मे उसे भुगतान होता है. 26 नवंबर के हड़ताल में कर्मी स्वेच्छा से अपना श्रम नहीं बेचेगा तो वेतन कटौती का सवाल ही पैदा नहीं होता है.
पढ़ें: मोदी सरकार के खिलाफ 10 ट्रेड यूनियनों की 26 नवंबर को देशव्यापी हड़ताल
'सिर्फ उद्योगपतियों को फायदा पहुंचा रही सरकार'
मिश्रा सहित वरिष्ठ श्रमिक नेताओं का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार कुछ चुनिंदा उद्योग घरानों के फायदा पहुंचाने के लिए काम कर रही है. बीते दिन श्रम मंत्रालय ने संसद में श्रमिकों के 8 घंटे कार्य दिवस को बढ़ा कर अधिकतम 12 घंटे प्रतिदिन करने का प्रस्ताव दिया है. इसमें श्रम मंत्रालय ने यह तर्क दिया है कि "यह भारत की विषम जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए किया गया है,जहां काम पूरे दिन बंटा हुआ होता है. इससे श्रमिकों को ओवरटाइम भत्ता के माध्यम से अधिक कमाई करने की सुविधा मिलेगी. 26 नवंबर के हड़ताल मे देश के सभी श्रम संगठनों के साथ-साथ किसान संगठन भी शामिल रहेंगे.