कोरबा: जिला अस्पताल जो कि अब मेडिकल कॉलेज अस्पताल में तब्दील हो चुका है. यहां रेफरल रैकेट की बलि राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र समुदाय के पहाड़ी कोरवा आदिवासी महिला चढ़ी और आखिरकार उसकी जान चली गई. महिला के परिजन निजी अस्पताल गीता देवी मेमोरियल पर इलाज में लापरवाही करने का आरोप लगा (negligence of health department in Korba ) रहे हैं. हाथ में फ्रैक्चर के इलाज के लिए मृत महिला 9 फरवरी को जिला अस्पताल पहुंची थी.
तीन दिनों तक भूखी रही महिला
परिजनों का कहना है कि मृत महिला को यहां से कुछ दलाल उन्हें बकायदा गाड़ी में बिठा कर निजी अस्पताल गीता देवी मेमोरियल ले आए. जिसके बाद अस्पताल प्रबंधन ने ऑपरेशन की बात कही लेकिन ऑपरेशन हुआ नहीं. ऑपरेशन की तिथि को लगातार आगे बढ़ाया गया. इस दरम्यां महिला को 3 दिनों तक भूखे-प्यासे रखा गया. आखिरकार शुक्रवार और शनिवार की दरम्यानी रात लगभग 1 बजे महिला ने दम तोड़ दिया.
दलालों ने जिला अस्पताल से भेजा गीता देवी मेमोरियल
ग्राम पंचायत सतरेंगा के आश्रित मोहल्ला कोराईपारा निवासी सुनीबाई कोरवा (50) 9 फरवरी दोपहर इलाज के लिये अपने बेटे के साथ जिला अस्पताल (Hill Korwa tribal woman died due to negligence of health department in Korba) पहुंची. परिजनों ने बताया कि महिला के हाथ में फ्रैक्चर था क्योंकि जिला अस्पताल में सस्ता इलाज मिलता है. वे डॉक्टर से मिले लेकिन वह जिला अस्पताल में एडमिट होते इसके पहले ही एक शुभम नाम का युवक उनके संपर्क में आया, जिसने कहा कि गीता देवी मेमोरियल में अच्छा इलाज मिलेगा. 2 दिन में छुट्टी भी मिल जाएगी. इतने में गीता देवी मेमोरियल के ही दो-तीन लोग वाहन लेकर जिला अस्पताल पहुंच गए. महिला मरीज को बकायदा जिला अस्पताल से गीता देवी मेमोरियल में दोपहर के लगभग 2:00 बजे शिफ्ट कर दिया गया.
ऑपरेशन के नाम पर 3 दिनों तक रखा भूखा-प्यासा
अस्पताल पहुंचने के बाद गीता देवी मेमोरियल के चिकित्सक (Negligence of Geeta Devi Memorial Hospital) ने परिजनों को बताया कि सभी टेस्ट हो गए हैं. खून की आवश्यकता है. इसके बाद ऑपरेशन किया जाएगा. सामाजिक कार्यकर्ता सरफराज पहाड़ी कोरवा आदिवासियों के मदद कर रहे थे. जिनके माध्यम से दो यूनिट खून का इंतजाम रात को ही कर दिया गया. लेकिन अस्पताल प्रबंधन द्वारा ऑपरेशन नहीं किया. 9 फरवरी को एडमिट होने के बाद 10 और 11 फरवरी को भी ऑपरेशन नहीं हो सका. ऑपरेशन के पहले महिला को भूखे रहने को कहा गया था. लगभग 3 दिन तक पहाड़ी कोरवा महिला अस्पताल में भूखे-प्यासे पड़ी रही. परिजनों को भी ठीक तरह से मिलने नहीं दिया गया. ऑपरेशन न होने के बाद महिला 11 फरवरी की रात को ही क्रिटिकल कंडीशन में आ गई. अस्पताल प्रबंधन ने तब परिजनों को महिला को कहीं और ले जाने को कहा. जिस दौरान देर रात महिला की मौत हो गई.
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चिकित्सक ने स्वीकारा संसाधन की कमी के कारण नहीं हुआ ऑपरेशन
मामले में हद तो तब हो गई जब गीता देवी मेमोरियल अस्पताल के मुख्य चिकित्सक बृजलाल कवाची ने खुद इस बात को स्वीकार किया कि महिला की मौत संसाधनों की कमी के कारण हुई. महिला का ऑपरेशन न होने की वजह संसाधन की कमी है. कवाची ने कहा कि 9 फरवरी को महिला एडमिट हुई थी. इसके बाद खून की कमी के कारण ऑपरेशन नहीं किया गया. परिजनों ने खून का इंतजाम कर दिया लेकिन ऑपरेशन के पहले दो और केस आ गये. जिनका तत्काल इलाज करना जरूरी था. उस ऑपरेशन में 4 घंटे लग गए. अगले दिन जब महिला के ऑपरेशन की तैयारी की गई. तब और कुछ जरूरी केस आ गए, जिसके कारण महिला का ऑपरेशन नहीं हो सका. इस बीच महिला क्रिटिकल कंडीशन में आ गयी. संभवत: जो हड्डी टूटी थी. उसके इंफेक्शन की वजह से या हार्ट अटैक के कारण महिला की मौत हुई होगी. डॉक्टर के इस कथन से यह बात साफ है कि अस्पताल में एक साथ दो ऑपरेशन करने के लिए ना तो चिकित्सक मौजूद हैं ना ही उनके पास पर्याप्त संसाधन है. बावजूद इसके महिला को सिर्फ पैसे ऐंठने के लिए 3 दिन तक रोककर रखा गया. इस दौरान भूखे-प्यासे रहने के कारण महिला की स्थिति गंभीर हो गई. जिसके कारण उसकी मौत हो गई.
मृतका के पति ने बयां किया दर्द
मृतिका के पति सुख सिंह पहाड़ी कोरवा का अस्पताल प्रबंधन पर सीधा-सीधा आरोप है कि चिकित्सकों ने लापरवाही पूर्वक इलाज करते हुए उनके पत्नी की हत्या की है. सुखसिंह कहते हैं कि हाथ में फ्रैक्चर के इलाज के लिए बच्चों के साथ पत्नी को जिला अस्पताल भेजा गया था. यहां कुछ दलाल अच्छे इलाज की बात कहकर गीता देवी मेमोरियल अस्पताल ले गए. यहां 3 दिन तक मेरी पत्नी को भूखे-प्यासे रखा गया. यहां तक कि किसी से मिलने भी नहीं दिया गया. आखिरकार उसकी मौत हो गई. मेरे घर में खुशियां आने वाली थी. बच्चों की शादी तय कर दी गई थी. अस्पताल प्रबंधन के इस गंदे खेल ने मेरी पत्नी की जान ले ली है. मैं राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र हूं अंत तक लडूंगा. मैं अस्पताल प्रबंधन पर ठोस कार्रवाई चाहता हूं. बिना कार्रवाई के मैं पीछे नहीं हटूंगा.
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रेफरल रैकेट की पुष्टि, सरकारी चिकित्सक भी संदेह के दायरे में
जिला अस्पताल में आमतौर पर निचले तबके के मरीज आते हैं लेकिन सरकारी इलाज कई बार समय पर नहीं मिल पाता. निजी अस्पतालों के लिए संभावनाएं पैदा होती हैं. लंबे समय से रेफरल रैकेट (referral racket in korba ) की बात होती है. लेकिन इस मामले ने एक बार फिर रेफरल रैकेट की चर्चा को गर्म कर दिया है. बिना सरकारी जिला अस्पताल के चिकित्सकों की संलिप्तता के मरीज की जानकारी निजी अस्पतालों को नहीं मिल सकती. सरकारी चिकित्सक ही निजी अस्पताल के लिए काम करने वाले दलालों को मरीजों की जानकारी देते हैं. इस रैकेट में काम करने वाले सभी का कमीशन फिक्स होता है. ऐसे में निजी अस्पताल प्रबंधन के साथ ही सरकारी अस्पताल के चिकित्सक भी संदेह के दायरे में है. यह एक जांच का विषय हो सकता है.
इसी अस्पताल पर स्वास्थ्य विभाग ने लगाया था जुर्माना
बीते दिसंबर माह के अंत में गीता देवी मेमोरियल अस्पताल की स्वास्थ विभाग को शिकायत मिली थी. आयुष्मान कार्ड योजना के तहत गड़बड़ी करने और कार्ड से इलाज के बावजूद मरीजों से नगद पैसे लेने की शिकायत पर स्वास्थ विभाग ने गीता देवी मेमोरियल अस्पताल का आयुष्मान कार्ड का लाइसेंस कैंसिल कर दिया था. अस्पताल पर 2 लाख 40 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था.