कोरबा: हसदेव अरण्य क्षेत्र के जंगल को बचाने यहां के ग्रामीण एक दशक से संघर्ष कर रहे हैं. लेकिन इनके संघर्ष का कोई नतीजा नहीं निकल पा रहा है. ग्राम सभाओं की अनुमति के बिना ही कोयला खदानों के लिए भूमि अधिग्रहण कर लिया गया है. जिसका ग्रामीण विरोध कर रहे हैं. हसदेव अरण्य क्षेत्र के लिए संघर्षरत ग्रामीणों का मानना है कि कोल ब्लॉक के लिए भूमि अधिग्रहण नियम विरुद्ध तरीके से किया गया है. छत्तीसगढ़ के कोल ब्लॉक का आवंटन (Allotment of coal block of Chhattisgarh) कमर्शियल माइनिंग के तहत केंद्र सरकार ने राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को किया है.
हसदेव अरण्य क्षेत्र (Hasdeo forest area ) में प्रस्तावित 20 कोयला खदानों में कुछ कोरबा तो कुछ सरगुजा जिले में मौजूद हैं. हाल ही में सरगुजा जिले के 2 खदानों के लिए जन सुनवाई की तिथि तय कर दी गई है. लेकिन कोरबा जिले के पोड़ी उपरोड़ा विकासखंड के मदनपुर साउथ और पतुरिया डांड और गिधमुड़ी की कोयला खदानों के लिए जन सुनवाई की तिथि फिलहाल तय नहीं है. जिसे लेकर ग्रामीण विरोध कर रहे हैं.
इसी क्षेत्र में प्रस्तावित है हाथी रिजर्व
हसदेव अरण्य क्षेत्र के जिन इलाकों में केंद्र सरकार ने खनन के लिए भूमि अधिग्रहण (land acquisition for mining) किया है. उसी क्षेत्र में राज्य सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट लेमरू हाथी रिजर्व भी प्रस्तावित है. इस बात को लेकर पेंच भी फंसा हुआ है. यदि पूरी जमीन कोल ब्लॉक के लिए दे दी जाए तो हाथी रिजर्व का क्षेत्रफल घट सकता है. राज्य सरकार ने पहले तो खदानों का विरोध किया था, लेकिन वर्तमान स्थिति इससे जुदा है.
पर्यावरण संरक्षण बोर्ड ने दी अनुमति
ग्रामीणों में इस बात को लेकर भी गुस्सा है कि जिन कोल ब्लॉक के लिए ग्राम सभा का आयोजन तक नहीं हुआ. उन्हें छत्तीसगढ़ राज्य पर्यावरण संरक्षण मंडल ने खनन की अनुमति दे दी है. पर्यावरण संरक्षण मंडल ने पहले परसा ओपन कास्ट कोल माइंस में खनन की अनुमति के लिए आदेश जारी किया था. लेकिन बाद में केते एक्सटेंशन की जनसुनवाई के लिए भी आदेश जारी कर दिया गया. जिसमे कहा गया है कि इसके लिए जनसुनवाई आयोजित की जाएगी.
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14 जुलाई को केते एक्सटेंशन की जनसुनवाई
हसदेव अरण्य क्षेत्र में स्थित केते एक्सटेंसन ओपन कास्ट कोल माइन्स एंड इंटीग्रेटेड वाशरी प्रोजेक्ट की अधिकतम क्षमता 11 MTPA (million tonnes per annum) है. पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए जन सुनवाई 14 जुलाई को आयोजित की जा रही है. ये कोल ब्लॉक सरगुजा में स्थित है. इस ब्लॉक का कुल क्षेत्रफल 1760 हेक्टेयर है. जिसका ज्यादातर हिस्सा जंगल है. जानकार इसे जंगल के विनाश की तैयारी बता रहे हैं. इसके अलावा परसा ओपन कास्ट कोल माइन की क्षमता 5 MTPA (million tonnes per annum) है. जिसका क्षेत्रफल 12 से 52.447 हेक्टेयर है.
हसदेव को बचाने की जारी रहेगी लड़ाई
हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति (Hasdeo Aranya Bachao Sangharsh Samiti) के संयोजक और पतुरिया डांड के सरपंच उमेश्वर आर्मो का कहना है कि सरकार नियम विरुद्ध भूमि का अधिग्रहण कर क्षेत्र के घने वन वाले इलाकों को बर्बाद करना चाहती है. नियम विरुद्ध तरीके से यहां के जमीनों का अधिग्रहण किया गया है. पेसा कानून की अवहेलना की गई है. आर्मों का कहना है कि राज्य सरकार ने पहले तो विरोध किया लेकिन अब वह केंद्र सरकार के साथ खड़ी दिखाई दे रही है. उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार पर निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने का भी आरोप लगाया. आर्मो ने हसदेव क्षेत्र को बचाने के लिए लगातार लड़ाई जारी रखने की बात कही.
'ग्राम सभा का नहीं हुआ आयोजन'
पोड़ी उपरोड़ा के SDM संजय मरकाम ने बताया कि मदनपुर साउथ और मदनपुर नॉर्थ दो कोल ब्लॉक आवंटन है. उनमें केंद्र सरकार की कार्रवाई की जा रही है. ग्रामीणों ने इसका विरोध किया है. मरकाम ने भी माना कि किसी तरह की ग्राम सभा का आयोजन नहीं किया गया है. हालांकि उन्होंने कहा कि आगामी समय में ग्राम सभा का आयोजन किया जाएगा.
कानून एक लेकिन 2 तरह की व्याख्या
हाल ही में SECL ने रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ के 7 गांवों ( दुर्गापुर, बायसी, शाहपुर, तराईमार, बायसी कॉलोनी, धरमजयगढ़ कॉलोनी, धरमजयगढ़ ) में दुर्गापुर में खुली खदान के लिये जनप्रतिनिधियों की बैठक ली. जमीन अधिग्रहण की तैयारी के लिए SECL ने एक आदेश पर जारी किया था. इस आदेश के बाद से ही एक कानून की दो तरह की व्याख्या करने की बात सामने आ रही है. जानकारों की माने तो ऐसा इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि धरमजयगढ़ में भूमि अधिग्रहण सरकार की कंपनी SECL कर रही है. जबकि हसदेव क्षेत्र में निजी कंपनी का हाथ है.
दोनों स्थानों पर कोल बेयरिंग एक्ट 1957 के तहत भूमि अधिग्रहण किया गया है. लेकिन हसदेव अरण्य क्षेत्र में निजी कंपनी के लिए परसा, केते एक्सटेंसन के लिए मदनपुर साउथ कोल ब्लॉक की भूमि अधिग्रहण के पहले ग्रामसभा से सहमति नहीं ली गई. जबकि पेसा कानून के तहत ऐसा किया जाना अनिवार्य है. जबकि इसी कानून के तहत SECL धरमजयगढ़ में जमीन अधिग्रहण के पहले ग्रामसभा के आयोजन की बात कह रही है.
पांचवी अनुसूची से प्राप्त है विशेष अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 244 (1) में अनुसूचित क्षेत्रों में आने वाले इलाकों को कई विशेष अधिकार दिए गए हैं. इन्हें पांचवी अनुसूची (fifth schedule) में शामिल कर यहां पेसा एक्ट (PESA Act) लागू किया गया है. जिसे 1996 में लागू किया गया था. ताकि आदिवासियों की सभ्यता को सुरक्षित रखा जा सके. पांचवीं अनुसूची में आने वाले क्षेत्र में ग्राम सभा ही सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए योजनाओं, कार्यक्रमों और परियोजनाओं को मंजूरी देती है. ग्राम सभा को विशेष अधिकार प्राप्त है. बिना ग्राम सभा में अनुमोदन के वहां की भूमि को अधिग्रहित नहीं किया जा सकता. देश में पांचवी अनुसूची के क्षेत्र वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना शामिल हैं.
पेसा कानून (PESA ACT)
पेसा कानून ग्राम सभा को कई तरह की विशेष शक्तियां प्रदान करता है. जैसे लोगों की परंपराओं. रिवाजों और उनकी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखना है.