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Sanjivani Center On Contract: 65 प्रकार के वनोपज खरीदने का दावा, इधर ठेके पर कोरबा का संजीवनी केंद्र

छत्तीसगढ़ में सरकार 65 प्रकार के वनोपज खरीदने का दावा करती है. इन्हें प्रोसेस और पैक करके संजीवनी केंद्रों के जरिए बेचा जाता है, जिसका संचालन कर वन विभाग सरकार को अच्छा मुनाफा दिलाता था. दो साल पहले कोरबा में संजीवनी केंद्र को ठेके पर दिया गया, जिसके बाद से शुरू बदइंतजामी ने इसे बंद होने की कगार पर पहुंचा दिया है.

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Published : Jun 14, 2023, 8:28 PM IST

Updated : Jun 14, 2023, 9:00 PM IST

Sanjivani Center on contract in Korba
ठेके पर कोरबा का संजीवनी केंद्र
ठेके पर कोरबा का संजीवनी केंद्र

कोरबा: वनोपज खरीदी के मामले में छत्तीसगढ़ देश भर में अव्वल है. इसके बाद भी इससे जुड़े केंद्रों के संचालन में लापरवाही देखने को मिलती है. 65 प्रकार के वनोपज खरीदने का दावा तो किया जाता है, लेकिन इससे बनने वाली वनौषधि और हर्बल उत्पादों बेचने का केंद्र हाशिए पर है. वनौषधि और हर्बल उत्पादों को बेचने के लिए शहर के कोसाबाड़ी चौक में स्थापित संजीवनी केंद्र को ठेके पर दे दिया गया. पिछले 6 महीने से इस केंद्र की बत्ती भी गुल है. यहां एक वैद्य की भी व्यवस्था है, जो नाड़ी देखकर इलाज करने में माहिर हैं, लेकिन बदइंतजामी से जूझ रहे संजीवनी केंद्र में अब गिनती के मरीज ही पहुंच रहे हैं.

Sanjivani Center on contract in Korba
नाड़ी देखकर इलाज

लाखों का बिल इसलिए 6 माह से बत्ती गुल: संजीवनी केंद्र में तैनात वैद्य लोमस बच्छ ने बताया कि "वनौषधियों को बेचने के लिए संजीवनी केंद्र पहले तो सीधे वन विभाग के कंट्रोल में था. लेकिन बीते 2 सालों से इसे अवनी नाम की संस्था को दे दिया गया है. अब बीते 6 महीने से यहां की बिजली नहीं है. बिजली बिल एक लाख से ज्यादा है, जिसे चुकता नहीं होने के कारण यहां की बिजली काट दी गई है. यहि यह केंद्र हमारे अधीन होता या वनोपज यूनियन की ओर से संचालित किया जाता, तो हम इसका निराकरण भी कर सकते थे. लेकिन अब इसे निजी संस्था को दे दिया गया है."

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प्रोसेस होने के बाद संजीवनी केंद्र से बेचे जाते हैं वनोपज: संजीवनी में वनोपेज से बनने वाली वन औषधियों को बेचा जाता है. छत्तीसगढ़ में दो से तीन स्थानों पर वनोपज की प्रोसेसिंग की जाती है. प्रोसेस और पैकिंग के बाद संजीवनी केंद्रों से वनोपज बेचे जाते हैं.

Sanjivani Center on contract in Korba
वनौषधि और हर्बल उत्पाद

ठेके पर देते ही चरमराई व्यवस्था : पहले संजीवनी केंद्र का संचालन सीधा वन विभाग करता था और लघु वनोपज यूनियन पर व्यवस्थाएं दुरुस्त रखने का जिम्मा होता था. लोमस बच्छ के मुताबिक संजीवनी केंद्र को 2 साल पहले ठेके पर दिया गया, जिसके बाद से ही यहां की व्यवस्था चरमरा गई. संजीवनी केंद्र में वनौषधियों की बिक्री तो अब भी हो रही है, लेकिन पहले की तरह न तो यहां स्टाॅक मेंटेन रहता है और न ही पर्याप्त संख्या में स्टाफ ही हैं. कोरबा के संजीवनी केंद्र में वैद्य लोमस बच्छ की तैनाती 2009 से है. नाड़ी देखकर लोगों का इलाज करने वाले लोमस बच्छ मरीजों कम होती संख्या को लेकर चिंता में हैं. जो मरीज आते भी हैं, उन्हें बिजली पानी के अभाव का सामना करना पड़ रहा है.


इस तरह के उत्पादों की होती है बिक्री: संजीवनी केंद्र में बेल, गोदा, महुआ लड्डू, अश्वगंधा, प्राकृतिक शहद, मालकांगनी, कालमेघ, आंवला, वन जीरा, सतावर जड़, नागरमोथा, माहुल पत्ता, हर्रा, बहेड़ा, गिलोय जैसे कई दुर्लभ वनोपज मिलते हैं.

ठेके पर कोरबा का संजीवनी केंद्र

कोरबा: वनोपज खरीदी के मामले में छत्तीसगढ़ देश भर में अव्वल है. इसके बाद भी इससे जुड़े केंद्रों के संचालन में लापरवाही देखने को मिलती है. 65 प्रकार के वनोपज खरीदने का दावा तो किया जाता है, लेकिन इससे बनने वाली वनौषधि और हर्बल उत्पादों बेचने का केंद्र हाशिए पर है. वनौषधि और हर्बल उत्पादों को बेचने के लिए शहर के कोसाबाड़ी चौक में स्थापित संजीवनी केंद्र को ठेके पर दे दिया गया. पिछले 6 महीने से इस केंद्र की बत्ती भी गुल है. यहां एक वैद्य की भी व्यवस्था है, जो नाड़ी देखकर इलाज करने में माहिर हैं, लेकिन बदइंतजामी से जूझ रहे संजीवनी केंद्र में अब गिनती के मरीज ही पहुंच रहे हैं.

Sanjivani Center on contract in Korba
नाड़ी देखकर इलाज

लाखों का बिल इसलिए 6 माह से बत्ती गुल: संजीवनी केंद्र में तैनात वैद्य लोमस बच्छ ने बताया कि "वनौषधियों को बेचने के लिए संजीवनी केंद्र पहले तो सीधे वन विभाग के कंट्रोल में था. लेकिन बीते 2 सालों से इसे अवनी नाम की संस्था को दे दिया गया है. अब बीते 6 महीने से यहां की बिजली नहीं है. बिजली बिल एक लाख से ज्यादा है, जिसे चुकता नहीं होने के कारण यहां की बिजली काट दी गई है. यहि यह केंद्र हमारे अधीन होता या वनोपज यूनियन की ओर से संचालित किया जाता, तो हम इसका निराकरण भी कर सकते थे. लेकिन अब इसे निजी संस्था को दे दिया गया है."

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प्रोसेस होने के बाद संजीवनी केंद्र से बेचे जाते हैं वनोपज: संजीवनी में वनोपेज से बनने वाली वन औषधियों को बेचा जाता है. छत्तीसगढ़ में दो से तीन स्थानों पर वनोपज की प्रोसेसिंग की जाती है. प्रोसेस और पैकिंग के बाद संजीवनी केंद्रों से वनोपज बेचे जाते हैं.

Sanjivani Center on contract in Korba
वनौषधि और हर्बल उत्पाद

ठेके पर देते ही चरमराई व्यवस्था : पहले संजीवनी केंद्र का संचालन सीधा वन विभाग करता था और लघु वनोपज यूनियन पर व्यवस्थाएं दुरुस्त रखने का जिम्मा होता था. लोमस बच्छ के मुताबिक संजीवनी केंद्र को 2 साल पहले ठेके पर दिया गया, जिसके बाद से ही यहां की व्यवस्था चरमरा गई. संजीवनी केंद्र में वनौषधियों की बिक्री तो अब भी हो रही है, लेकिन पहले की तरह न तो यहां स्टाॅक मेंटेन रहता है और न ही पर्याप्त संख्या में स्टाफ ही हैं. कोरबा के संजीवनी केंद्र में वैद्य लोमस बच्छ की तैनाती 2009 से है. नाड़ी देखकर लोगों का इलाज करने वाले लोमस बच्छ मरीजों कम होती संख्या को लेकर चिंता में हैं. जो मरीज आते भी हैं, उन्हें बिजली पानी के अभाव का सामना करना पड़ रहा है.


इस तरह के उत्पादों की होती है बिक्री: संजीवनी केंद्र में बेल, गोदा, महुआ लड्डू, अश्वगंधा, प्राकृतिक शहद, मालकांगनी, कालमेघ, आंवला, वन जीरा, सतावर जड़, नागरमोथा, माहुल पत्ता, हर्रा, बहेड़ा, गिलोय जैसे कई दुर्लभ वनोपज मिलते हैं.

Last Updated : Jun 14, 2023, 9:00 PM IST
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