ETV Bharat / state

जिनकी जमीन से रोशन कोयला पावर प्लांट, भूमिपुत्रों का जीवन अंधकारमय? नौकरी के इंतजार में जवानी कटी - कुसमुंडा खदान कोरबा

कोरबा की गेवरा कोल इंडिया (Gevra Coal India) बल्कि एशिया के सबसे बड़े ओपन कास्ट कोल माइन्स है. अकेले कोरबा से देशभर के लगभग 20% कोयले का उत्खनन होता है. लेकिन जिन किसानों ने कोयले के उत्खनन के लिए जमीन दी थी आज वो दर दर की ठोकर खा रहे हैं. उन्हें ना तो मुआवजा मिल रहा है. ना ही नौकरी मिल रही है. ऐसे में उनके पास बस धरना प्रदर्शन की एक मात्र रास्ता बचा है. जिसे पीड़ित लोग आजमा रहे हैं.

affected farmers of Kusmunda mine are struggling for rehabilitation and compensation
कुसमुंडा खदान के प्रभावित किसान पुनर्वास और मुआवजे के लिए कर रहे संघर्ष
author img

By

Published : Dec 31, 2021, 1:37 PM IST

Updated : Jan 4, 2022, 1:50 PM IST

कोरबा: कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited) की 8 कंपनियों में एसईसीएल सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण कंपनी है. एसईसीएल की 3 सबसे बड़े मेगा प्रोजेक्ट कोरबा के गेवरा, दीपका और कुसमुंडा में संचालित हैं. गेवरा कोल इंडिया बल्कि एशिया के सबसे बड़े ओपन कास्ट कोल माइन्स है. अकेले कोरबा से देशभर के लगभग 20% कोयले का उत्खनन होता है. जिससे देशभर की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जाता है. अनेक पॉवर प्लांट चलते हैं. जिनसे घर-घर बिजली पहुंचाई जाती है. लेकिन जिन किसानों की जमीन का अधिग्रहण कर कोयला खदानों का संचालन शुरू किया जा रहा है. आज उनका जीवन स्तर क्या है? यह बड़ा सवाल है.

भूमिपुत्रों का जीवन अंधकारमय

कुसमुंडा खदान (Kusmunda Mine) के प्रभावित किसान जिन्होंने 80 के दशक में अपनी जमीन एसईसीएल को दी थी. अब वह विस्थापित कहलाते हैं. सच्चाई यह है कि जिनके जमीनों का अधिग्रहण कर कीर्तिमान गढ़े गए. जिनके दम पर एसईसीएल को मेरठ में कंपनी होने का गौरव मिला. उन भूमिपुत्रों का जीवन अंधकारमय है. भू-स्थापित नौकरी, पुनर्वास और मुआवजे के लिए दशकों से संघर्ष कर रहे हैं. इस संघर्ष में उनकी जवानी कट चुकी है. पिता के बाद आप दूसरी पीढ़ी भी अधेड़ उम्र में पहुंचकर बुढ़ापे के करीब है. लेकिन शिकायतों और समस्याओं का समाधान तब भी नहीं हुआ है.

Mega Project के विस्तार में रोड़े, अधिक उत्पादन का बढ़ा दबाव, टारगेट से पिछड़ा एसईसीएल तो अफसर हैं चिंतित

50 दिनों से चल रहा आंदोलन

एसईसीएल के रवैया से आक्रोशित और नाउम्मीद हो चुके भू विस्थापित, अब कुसमुंडा खदान के महाप्रबंधक कार्यालय के सामने धरने पर बैठे हैं. उन्हें थोड़ी बहुत कुछ उम्मीदें हैं वो बस इस धरना प्रदर्शन से हैं. तंबू लगाकर 12 गांव के ऐसे ग्रामीण जिनके जमीनों का अधिग्रहण कर कुसमुंडा कोयला खदान ने मूर्त रूप लिया था आज वह आंदोलन कर रहे हैं.

आंदोलन करने वालों में अधिगृहित गांव खम्हरिया, जरहाजेल, दुरपा, बरपाली, दुल्लापुर, जटराज सोनपुरी, मनगांव, बरमपुर बरकुटा, भैंसाखार और गेवरा के भू विस्थापित ग्रामीण शामिल हैं. इन सभी की जमीनों का अधिग्रहण 80 के दशक में हुआ था. लेकिन समस्याओं का समाधान 30 साल बाद आज भी नहीं हो पाया है. जिन नियमों का हवाला देकर तब जमीन अधिग्रहित किए गए थे. उन नियमों का पालन आज तक नहीं होने का आरोप विस्थापित, एसईसीएल प्रबंधन पर दशकों से लगाते आ रहे हैं.

  • केस- 1

राज्य सरकार कहती है अधिग्रहण हुआ, एसईसीएल ने कहा हमने नहीं ली जमीन

जरहाजेल गांव के दामोदर श्यामसिंह कहते हैं कि राज्य सरकार ने मुझे लिखित में दिया था कि आपकी जमीन का अधिग्रहण हुआ है. एसईसीएल ने 1983 में किया था. लेकिन एसईसीएल ने जवाब दिया है कि आपकी जमीन का अधिग्रहण किया ही नहीं गया है. जबकि जरहाजेल गांव का अस्तित्व समाप्त हो चुका है. वहां पर एसईसीएल की कुसमुंडा खदान है. जहां से कोयले का उत्खनन होता है. हमारी लड़ाई सन 1983 से ही चल रही है. परिवार में 10 सदस्य हैं. किसी तरह गुजर बसर हो रहा है. कहते हैं कि उनकी उम्र 36 वर्ष हो चुकी है. लेकिन संघर्ष समाप्त नहीं हो रहा है. दामोदर का आरोप है कि जमीन खदान में चले जाने के बाद इतने सालों में न तो उन्हें नौकरी मिली ना ही किसी तरह का मुआवजा या पुनर्वास की व्यवस्था की गई है.

कोल इंडिया के डेढ़ लाख कर्मचारी रिटायर, आईटीआई अप्रेंटिस संघ कर रहा स्थाई नियुक्ति की मांग

  • केस- 2

अधिकारियों ने कहा जमीन के बदले नौकरी दे दी गई, इसलिए आंदोलन के लिए विवश

कुसमुंडा खदान में ही गांव मनगांव की जमीनों का अधिग्रहण किया गया है. जहां रहने वाले मोहनलाल कौशिक कहते हैं कि हमारी जमीनों के बदौलत ही एसईसीएल ने कीर्तिमान खड़े किये हैं. इन्हें कोयले उत्खनन की चिंता है और हमारी जमीन से निकलने वाले कोयले के बदौलत ही लाखों घर रोशन हो रहे हैं. लेकिन हमारा जीवन अंधकार में है. इसकी चिंता अधिकारियों को नहीं है.

अधिकारी सब झूठ कहते हैं. मेरी जमीन का अधिग्रहण 80 के दशक हो चुका था. राज्य शासन ने मुझे नौकरी के लिए पात्र ठहराया है और मुझे लिखित में जवाब दिया था कि आप नौकरी के लिए पात्र हैं. लेकिन एसईसीएल के अफसर कहते हैं कि आपके खाते में नौकरी दी जा चुकी है. ऐसा उन्होंने मौखिक कहा है. अधिकारी यह नहीं बता पा रहे हैं कि नौकरी किसे दी है? मेरे परिवार में किसी को भी जमीन के बदले नौकरी नहीं मिली है. एसईसीएल के अफसर साफ झूठ बोल रहे हैं. मेरे पास इसका दस्तावेजी प्रमाण मौजूद है. यदि नौकरी दी गई होती तो मैं आज 38 उम्र में आंदोलन नहीं कर रहा होता.

  • केस- 3

HC के आदेश के बाद भी नहीं मिली नौकरी

नौकरी पुनर्वास और मुआवजा के लिए ही भटक रहे राम प्रसाद साहू के आरोप और भी संगीन हैं. उनका कहना है कि जमीन का अधिग्रहण हो जाने के बाद वह लगातार एसईसीएल के समक्ष उन दस्तावेजों की जमा करते आ रहे हैं. जिनकी आवश्यकता नौकरी के लिए होती है. साल दर साल उन्होंने नामांकन सहित नौकरी के लिए पात्र होने के सभी दस्तावेज प्रस्तुत कर दिए हैं.

डीजल का विकल्प होगा LNG, पर्यावरण सुधार के साथ डीजल चोरी पर लगेगी रोक

रामप्रसाद के पास दस्तावेजों का पुलिंदा सदैव मौजूद रहता है. जिसे दिखाते हुए वह कहते हैं कि जब नौकरी नहीं मिली तो मैंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. मेरी लड़ाई भी 25 साल से ज्यादा समय से चल रही है. 2019 में मेरे मामले में हाईकोर्ट में निर्णय दे दिया था. कोर्ट ने नौकरी के लिए पात्र ठहराया, लेकिन इसके बाद भी मुझे नौकरी नहीं दी गई. मैंने इसकी शिकायत पीएमओ में भी की है. 2020 में एसईसीएल ने पीएमओ को बताया कि मामला हाईकोर्ट में लंबित है. जबकि निर्णय 2019 में ही आ चुका है. एसईसीएल के अधिकारियों ने पीएमओ को भी गलत जानकारी देकर गुमराह किया है. रामप्रसाद एसईसीएल के अधिकारियों पर सीधे-सीधे बेईमान होने का आरोप लगाते हैं.

पात्रता अनुसार दी जाती है नौकरियां

इस संबंध में एसईसीएल के पीआरओ सनिश चंद्र का कहना है कि कुसमुंडा खदान हो या अन्य खदान दस्तावेजों के परीक्षण और पात्रता के आधार पर ही नौकरियां, मुआवजा और पुनर्वास की व्यवस्था की जाती है. हमारी पुनर्वास पॉलिसी सबसे बेहतर है. जिन मामलों की बात आप कह रहे हैं, उस विषय में भी जानकारी लेनी होगी. उसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है. हालांकि नौकरी, पुनर्वासन संबंधित प्रकरणों का प्राथमिकता से निराकरण किया जाता है.

कोरबा: कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited) की 8 कंपनियों में एसईसीएल सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण कंपनी है. एसईसीएल की 3 सबसे बड़े मेगा प्रोजेक्ट कोरबा के गेवरा, दीपका और कुसमुंडा में संचालित हैं. गेवरा कोल इंडिया बल्कि एशिया के सबसे बड़े ओपन कास्ट कोल माइन्स है. अकेले कोरबा से देशभर के लगभग 20% कोयले का उत्खनन होता है. जिससे देशभर की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जाता है. अनेक पॉवर प्लांट चलते हैं. जिनसे घर-घर बिजली पहुंचाई जाती है. लेकिन जिन किसानों की जमीन का अधिग्रहण कर कोयला खदानों का संचालन शुरू किया जा रहा है. आज उनका जीवन स्तर क्या है? यह बड़ा सवाल है.

भूमिपुत्रों का जीवन अंधकारमय

कुसमुंडा खदान (Kusmunda Mine) के प्रभावित किसान जिन्होंने 80 के दशक में अपनी जमीन एसईसीएल को दी थी. अब वह विस्थापित कहलाते हैं. सच्चाई यह है कि जिनके जमीनों का अधिग्रहण कर कीर्तिमान गढ़े गए. जिनके दम पर एसईसीएल को मेरठ में कंपनी होने का गौरव मिला. उन भूमिपुत्रों का जीवन अंधकारमय है. भू-स्थापित नौकरी, पुनर्वास और मुआवजे के लिए दशकों से संघर्ष कर रहे हैं. इस संघर्ष में उनकी जवानी कट चुकी है. पिता के बाद आप दूसरी पीढ़ी भी अधेड़ उम्र में पहुंचकर बुढ़ापे के करीब है. लेकिन शिकायतों और समस्याओं का समाधान तब भी नहीं हुआ है.

Mega Project के विस्तार में रोड़े, अधिक उत्पादन का बढ़ा दबाव, टारगेट से पिछड़ा एसईसीएल तो अफसर हैं चिंतित

50 दिनों से चल रहा आंदोलन

एसईसीएल के रवैया से आक्रोशित और नाउम्मीद हो चुके भू विस्थापित, अब कुसमुंडा खदान के महाप्रबंधक कार्यालय के सामने धरने पर बैठे हैं. उन्हें थोड़ी बहुत कुछ उम्मीदें हैं वो बस इस धरना प्रदर्शन से हैं. तंबू लगाकर 12 गांव के ऐसे ग्रामीण जिनके जमीनों का अधिग्रहण कर कुसमुंडा कोयला खदान ने मूर्त रूप लिया था आज वह आंदोलन कर रहे हैं.

आंदोलन करने वालों में अधिगृहित गांव खम्हरिया, जरहाजेल, दुरपा, बरपाली, दुल्लापुर, जटराज सोनपुरी, मनगांव, बरमपुर बरकुटा, भैंसाखार और गेवरा के भू विस्थापित ग्रामीण शामिल हैं. इन सभी की जमीनों का अधिग्रहण 80 के दशक में हुआ था. लेकिन समस्याओं का समाधान 30 साल बाद आज भी नहीं हो पाया है. जिन नियमों का हवाला देकर तब जमीन अधिग्रहित किए गए थे. उन नियमों का पालन आज तक नहीं होने का आरोप विस्थापित, एसईसीएल प्रबंधन पर दशकों से लगाते आ रहे हैं.

  • केस- 1

राज्य सरकार कहती है अधिग्रहण हुआ, एसईसीएल ने कहा हमने नहीं ली जमीन

जरहाजेल गांव के दामोदर श्यामसिंह कहते हैं कि राज्य सरकार ने मुझे लिखित में दिया था कि आपकी जमीन का अधिग्रहण हुआ है. एसईसीएल ने 1983 में किया था. लेकिन एसईसीएल ने जवाब दिया है कि आपकी जमीन का अधिग्रहण किया ही नहीं गया है. जबकि जरहाजेल गांव का अस्तित्व समाप्त हो चुका है. वहां पर एसईसीएल की कुसमुंडा खदान है. जहां से कोयले का उत्खनन होता है. हमारी लड़ाई सन 1983 से ही चल रही है. परिवार में 10 सदस्य हैं. किसी तरह गुजर बसर हो रहा है. कहते हैं कि उनकी उम्र 36 वर्ष हो चुकी है. लेकिन संघर्ष समाप्त नहीं हो रहा है. दामोदर का आरोप है कि जमीन खदान में चले जाने के बाद इतने सालों में न तो उन्हें नौकरी मिली ना ही किसी तरह का मुआवजा या पुनर्वास की व्यवस्था की गई है.

कोल इंडिया के डेढ़ लाख कर्मचारी रिटायर, आईटीआई अप्रेंटिस संघ कर रहा स्थाई नियुक्ति की मांग

  • केस- 2

अधिकारियों ने कहा जमीन के बदले नौकरी दे दी गई, इसलिए आंदोलन के लिए विवश

कुसमुंडा खदान में ही गांव मनगांव की जमीनों का अधिग्रहण किया गया है. जहां रहने वाले मोहनलाल कौशिक कहते हैं कि हमारी जमीनों के बदौलत ही एसईसीएल ने कीर्तिमान खड़े किये हैं. इन्हें कोयले उत्खनन की चिंता है और हमारी जमीन से निकलने वाले कोयले के बदौलत ही लाखों घर रोशन हो रहे हैं. लेकिन हमारा जीवन अंधकार में है. इसकी चिंता अधिकारियों को नहीं है.

अधिकारी सब झूठ कहते हैं. मेरी जमीन का अधिग्रहण 80 के दशक हो चुका था. राज्य शासन ने मुझे नौकरी के लिए पात्र ठहराया है और मुझे लिखित में जवाब दिया था कि आप नौकरी के लिए पात्र हैं. लेकिन एसईसीएल के अफसर कहते हैं कि आपके खाते में नौकरी दी जा चुकी है. ऐसा उन्होंने मौखिक कहा है. अधिकारी यह नहीं बता पा रहे हैं कि नौकरी किसे दी है? मेरे परिवार में किसी को भी जमीन के बदले नौकरी नहीं मिली है. एसईसीएल के अफसर साफ झूठ बोल रहे हैं. मेरे पास इसका दस्तावेजी प्रमाण मौजूद है. यदि नौकरी दी गई होती तो मैं आज 38 उम्र में आंदोलन नहीं कर रहा होता.

  • केस- 3

HC के आदेश के बाद भी नहीं मिली नौकरी

नौकरी पुनर्वास और मुआवजा के लिए ही भटक रहे राम प्रसाद साहू के आरोप और भी संगीन हैं. उनका कहना है कि जमीन का अधिग्रहण हो जाने के बाद वह लगातार एसईसीएल के समक्ष उन दस्तावेजों की जमा करते आ रहे हैं. जिनकी आवश्यकता नौकरी के लिए होती है. साल दर साल उन्होंने नामांकन सहित नौकरी के लिए पात्र होने के सभी दस्तावेज प्रस्तुत कर दिए हैं.

डीजल का विकल्प होगा LNG, पर्यावरण सुधार के साथ डीजल चोरी पर लगेगी रोक

रामप्रसाद के पास दस्तावेजों का पुलिंदा सदैव मौजूद रहता है. जिसे दिखाते हुए वह कहते हैं कि जब नौकरी नहीं मिली तो मैंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. मेरी लड़ाई भी 25 साल से ज्यादा समय से चल रही है. 2019 में मेरे मामले में हाईकोर्ट में निर्णय दे दिया था. कोर्ट ने नौकरी के लिए पात्र ठहराया, लेकिन इसके बाद भी मुझे नौकरी नहीं दी गई. मैंने इसकी शिकायत पीएमओ में भी की है. 2020 में एसईसीएल ने पीएमओ को बताया कि मामला हाईकोर्ट में लंबित है. जबकि निर्णय 2019 में ही आ चुका है. एसईसीएल के अधिकारियों ने पीएमओ को भी गलत जानकारी देकर गुमराह किया है. रामप्रसाद एसईसीएल के अधिकारियों पर सीधे-सीधे बेईमान होने का आरोप लगाते हैं.

पात्रता अनुसार दी जाती है नौकरियां

इस संबंध में एसईसीएल के पीआरओ सनिश चंद्र का कहना है कि कुसमुंडा खदान हो या अन्य खदान दस्तावेजों के परीक्षण और पात्रता के आधार पर ही नौकरियां, मुआवजा और पुनर्वास की व्यवस्था की जाती है. हमारी पुनर्वास पॉलिसी सबसे बेहतर है. जिन मामलों की बात आप कह रहे हैं, उस विषय में भी जानकारी लेनी होगी. उसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है. हालांकि नौकरी, पुनर्वासन संबंधित प्रकरणों का प्राथमिकता से निराकरण किया जाता है.

Last Updated : Jan 4, 2022, 1:50 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.