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कोरबा: प्रसूता को खाट की डोली के सहारे पहुंचाया गया एंबुलेंस तक, रास्ते में बच्चे का हुआ जन्म

कोरबा के सुनाईपुर गांव में सड़क नहीं है. यहां गर्भवती महिला को डोली के सहारे 5 किलोमीटर दूर खड़े महतारी एक्सप्रेस तक पहुंचाया गया. इस दौरान गर्भवती ने रास्ते में बच्चे को जन्म दिया.

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खाट की डोली के सहारे पहुंचाया गया ऐंबुलेंस तक
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Published : Aug 14, 2020, 5:40 AM IST

कोरबा: पाली ब्लॉक के सुनाईपुर गांव से शासन की व्यवस्थाओं पर सवाल खड़ा करने वाला मामला सामने आया है. ब्लॉक मुख्यालय से गांव की सड़क इतनी जर्जर है कि यहां किसी वाहन का पहुंच पाना लगभग नामुमकिन है. गुरुवार की सुबह एक 9 महीने की गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा हुई. गर्भवती सुशीला बाई को प्रसव पीड़ा होने पर खाट के जरिए उठाकर ग्रामीण 5 किलोमीटर तक पैदल चले. जिसके बाद अस्पताल जाते वक्त रास्ते में ही महिला ने बच्चे को जन्म दिया. 300 आबादी वाले इस गांव में धनुहार आदिवासियों के 100 परिवार रहते हैं. गर्भवती महिलाओं को समय पर अस्पताल पहुंचाने के लिए आज भी खाट की डोली बनाई जाती है. दो लोग इसे कंधे पर उठाकर पदयात्रा करते हुए पहाड़ी रास्ते से पोटापानी तक पहुंचते हैं.

प्रसूता को खाट की डोली के सहारे पहुंचाया गया एंबुलेंस तक

डिलीवरी हो जाने के बाद मां की हालत गंभीर हो गई थी. आनन-फानन में महतारी एक्सप्रेस 102 से संपर्क साधने की कोशिश की गई. लेकिन कोई संपर्क नहीं हो पाया. इसके बाद 112 को फोन लगाया गया. बड़ी मशक्कत के बाद सूचना देकर एंबुलेंस महतारी एक्सप्रेस बुलाई गई. एंबुलेंस तो पोटपानी पहुंच गई, लेकिन पोटापानी से सोनईपुर तक जाने का रास्ता ऐसा नहीं है, जिस पर चारपहिया वाहन गुजर सके. सुशीला बाई को उसके पति ने एक अन्य ग्रामीण की मदद से खाट पर लेटाकर किसी तरह पोटापानी तक पहुंचाया. यहां खड़ी महतारी एक्सप्रेस से सुशीला बाई को पाली प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया गया. ग्रामीणों की माने तो गांव में जब भी कोई बीमार होता है, तो इसी तरह खाट की एंबुलेंस बनाकर मरीज को अस्पताल पहुंचाया जाता है. कई बार उपचार में देरी की वजह से रास्ते में ही मरीज दम भी तोड़ देते हैं.

पढ़ें: महतारी एंबुलेंस 102 के कर्मचारियों ने ड्यूटी के साथ निभाया मानवता का फर्ज

आजादी 72 साल बाद भी वनांचल में बसे सुनाईपुर गांव के लोगों को मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल पाई है. बेहतर स्वास्थ्य सुविधा को लेकर शासन-प्रशासन भले ही लाख दावे कर रही हो, लेकिन ऐसी घटनाएं दावों की पोल खोल रही है. पोटापानी से सोनईपुर के बीच के पांच किलोमीटर की सड़क वर्षों बाद भी दुरुस्त नहीं हो सका है. सोनईपुर तक पहुंचने का एकमात्र साधन पदयात्रा ही है. यहां के पथरीले रास्ते पर बाइक चलना भी मुश्किल है.

पढ़ें: स्वास्थ्य मंत्री के क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं की कमी, कांवड़ के सहारे प्रसूता को पहुंचाया गया अस्पताल

व्यवस्थाओं पर सवाल

प्रसूती और नवजात को खतरे से बचाने के लिए शासन की ओर से ‘जननी सुरक्षा योजना’ का संचालन किया जा रहा है. इसके तहत प्रसूती का सहज ढंग से अस्पतालों में लाकर प्रसव कराने वाली बाई और अन्य को प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है. गर्भवती महिलाओं को अस्पताल तक लाने में शासन ने महतारी एक्सप्रेस का संचालन शुरू किया है. बावजूद इसके गांवों तक पहुंचने का मार्ग दुरुस्त नहीं होने के कारण इन सुविधाओं से कई क्षेत्र के लोग वंचित हैं. ऐसे में सरकार की व्यवस्थाओं पर सवाल उठ रहे हैं.

अन्य मामले

कोंडागांव के मोहन बेड़ापारा ग्राम में 9 महीने की गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा हुई, जिसके बाद एंबुलेंस को बुलाया गया. लेकिन गांव में सड़क के हालात ऐसे हैं कि गांव तक एंबुलेंस पहुंच ही नहीं सकी. जिसके बाद महिला को 3 किलोमीटर तक बांस की बल्ली और डाले में बिठाकर एंबुलेंस तक पहुंचाया था. इसके अलावा मैनपाट विकासखंड मुख्यालय से लगे कदनई गांव में एक प्रसूता को गंभीर हालत में कांवड़ पर बैठाकर नदी पार कराया गया था.

कोरबा: पाली ब्लॉक के सुनाईपुर गांव से शासन की व्यवस्थाओं पर सवाल खड़ा करने वाला मामला सामने आया है. ब्लॉक मुख्यालय से गांव की सड़क इतनी जर्जर है कि यहां किसी वाहन का पहुंच पाना लगभग नामुमकिन है. गुरुवार की सुबह एक 9 महीने की गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा हुई. गर्भवती सुशीला बाई को प्रसव पीड़ा होने पर खाट के जरिए उठाकर ग्रामीण 5 किलोमीटर तक पैदल चले. जिसके बाद अस्पताल जाते वक्त रास्ते में ही महिला ने बच्चे को जन्म दिया. 300 आबादी वाले इस गांव में धनुहार आदिवासियों के 100 परिवार रहते हैं. गर्भवती महिलाओं को समय पर अस्पताल पहुंचाने के लिए आज भी खाट की डोली बनाई जाती है. दो लोग इसे कंधे पर उठाकर पदयात्रा करते हुए पहाड़ी रास्ते से पोटापानी तक पहुंचते हैं.

प्रसूता को खाट की डोली के सहारे पहुंचाया गया एंबुलेंस तक

डिलीवरी हो जाने के बाद मां की हालत गंभीर हो गई थी. आनन-फानन में महतारी एक्सप्रेस 102 से संपर्क साधने की कोशिश की गई. लेकिन कोई संपर्क नहीं हो पाया. इसके बाद 112 को फोन लगाया गया. बड़ी मशक्कत के बाद सूचना देकर एंबुलेंस महतारी एक्सप्रेस बुलाई गई. एंबुलेंस तो पोटपानी पहुंच गई, लेकिन पोटापानी से सोनईपुर तक जाने का रास्ता ऐसा नहीं है, जिस पर चारपहिया वाहन गुजर सके. सुशीला बाई को उसके पति ने एक अन्य ग्रामीण की मदद से खाट पर लेटाकर किसी तरह पोटापानी तक पहुंचाया. यहां खड़ी महतारी एक्सप्रेस से सुशीला बाई को पाली प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया गया. ग्रामीणों की माने तो गांव में जब भी कोई बीमार होता है, तो इसी तरह खाट की एंबुलेंस बनाकर मरीज को अस्पताल पहुंचाया जाता है. कई बार उपचार में देरी की वजह से रास्ते में ही मरीज दम भी तोड़ देते हैं.

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आजादी 72 साल बाद भी वनांचल में बसे सुनाईपुर गांव के लोगों को मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल पाई है. बेहतर स्वास्थ्य सुविधा को लेकर शासन-प्रशासन भले ही लाख दावे कर रही हो, लेकिन ऐसी घटनाएं दावों की पोल खोल रही है. पोटापानी से सोनईपुर के बीच के पांच किलोमीटर की सड़क वर्षों बाद भी दुरुस्त नहीं हो सका है. सोनईपुर तक पहुंचने का एकमात्र साधन पदयात्रा ही है. यहां के पथरीले रास्ते पर बाइक चलना भी मुश्किल है.

पढ़ें: स्वास्थ्य मंत्री के क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं की कमी, कांवड़ के सहारे प्रसूता को पहुंचाया गया अस्पताल

व्यवस्थाओं पर सवाल

प्रसूती और नवजात को खतरे से बचाने के लिए शासन की ओर से ‘जननी सुरक्षा योजना’ का संचालन किया जा रहा है. इसके तहत प्रसूती का सहज ढंग से अस्पतालों में लाकर प्रसव कराने वाली बाई और अन्य को प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है. गर्भवती महिलाओं को अस्पताल तक लाने में शासन ने महतारी एक्सप्रेस का संचालन शुरू किया है. बावजूद इसके गांवों तक पहुंचने का मार्ग दुरुस्त नहीं होने के कारण इन सुविधाओं से कई क्षेत्र के लोग वंचित हैं. ऐसे में सरकार की व्यवस्थाओं पर सवाल उठ रहे हैं.

अन्य मामले

कोंडागांव के मोहन बेड़ापारा ग्राम में 9 महीने की गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा हुई, जिसके बाद एंबुलेंस को बुलाया गया. लेकिन गांव में सड़क के हालात ऐसे हैं कि गांव तक एंबुलेंस पहुंच ही नहीं सकी. जिसके बाद महिला को 3 किलोमीटर तक बांस की बल्ली और डाले में बिठाकर एंबुलेंस तक पहुंचाया था. इसके अलावा मैनपाट विकासखंड मुख्यालय से लगे कदनई गांव में एक प्रसूता को गंभीर हालत में कांवड़ पर बैठाकर नदी पार कराया गया था.

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