कोरबा: लगभग 27 वर्ष पहले 1994-95 में साउथ कोरिया की कंपनी देवू ने कोरबा जिले के गांव रिस्दी और आसपास के जमीन का अधिग्रहण कर 1000 मेगावाट का पावर प्लांट लगाने के लिए तत्कालीन मध्यप्रदेश की दिग्विजय सरकार से करार किया था. लेकिन 27 साल बाद भी यहां ना तो पावर प्लांट लग पाया ना ही ग्रामीणों को तय शर्तों के अनुसार नौकरी मिली. अब अचानक शनिवार को जिले का राजस्व अमला ग्रामीणों को बिना किसी सूचना दिए लॉकडाउन में फिर से जमीन का सीमांकन करने पहुंच गया. ग्रामीणों को जब इसकी सूचना मिली तो वह मौके पर पहुंचे और फिर मौके पर जमकर बवाल हुआ.
पुलिस की मौजूदगी में एक्सीलेटर से खोदाई
शनिवार को राजस्व आमले ने पूर्व में अधिग्रहित भूमि के चार एक्सीलेटर से खुदाई शुरू कर दी. जिसके विरोध में ग्रामीण मौके पर एकत्र हो गए. विवाद इतना बढ़ गया कि राजस्व अमले को चार पांच थानों से पुलिस बल को बुलाना पड़ा. इस बीच मौके पर मौजूद तहसीलदार सुरेश साहू भी तमतमा गए. किसी तरह बाद में ग्रामीणों को समझाइश दी गई. राजस्व अमले ने ग्रामीणों को यह बताया कि देबू कंपनी के आवेदन पर सीमांकन किया जा रहा है जिन्हें हाईकोर्ट में इस जमीन की स्टेटस रिपोर्ट जमा करनी है.
100 करोड़ रुपए की गारंटी मनी का विवाद वकील
दरअसल 27 वर्ष पहले देवू ने 1000 मेगावाट पावर प्लांट के लिए रिस्दी की 260 एकड़ सहित रिस्दा, पंडरीपानी और कुरूडी को मिलाकर बड़े पैमाने पर जमीनों का अधिग्रहण किया था. 250-250 एकड़ अलग-अलग सरकारी जमीन भी प्लांट के लिए चयनित की गई थीय. तब देवू ने 3 लाख रुपए प्रति एकड़ के भाव से ग्रामीणों को मुआवजा दिया था. कंपनी ने वादा किया था कि प्लांट लगते ही ग्रामीणों को नौकरी, स्कूल अस्पताल जैसी सुविधाएं मिलेगी. लेकिन यह सब आज पर्यंत तक नहीं हुआ. अब देवू के वकील डीडी दासगुप्ता ने बताया कि जब प्लांट के लिए करार हुआ था दिग्विजय सिंह सरकार के कार्यकाल में एमपीईबी ने बिजली खरीदने का अनुबंध किया था. तब देवू ने 100 करोड़ रुपए गारंटी मनी के रूप में जमा किए थे. लेकिन बाद में देवू कंपनी दिवालिया हो गई. प्लांट लगा नहीं. अब वह अपनी 100 करोड रुपए की राशि वापस पाना चाहता है.
मामला बिलासपुर हाईकोर्ट में फिलहाल विचाराधीन
इसके लिए तब जबलपुर हाईकोर्ट में वाद दाखिल किया गया था. इस बीच छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ और यह मामला बिलासपुर हाईकोर्ट में फिलहाल विचाराधीन है. इसी मामले में देवू कंपनी को स्टेटस रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल करनी है. जिसके लिए उन्हें जमीन की सीमांकन रिपोर्ट प्राप्त करनी है. बता दें कि देवू के आवेदन पर ही राजस्व आमला लॉकडाउन में सीमांकन करने मौके पर पहुंचा था. जबकि आम लोगों के लिए लॉकडाउन में सरकारी कार्यालयों के द्वार बंद हैं. इस तरह की किसी भी सुविधा आम लोगों को नहीं मिल रही है.
ग्रामीणों ने खाली जमीन पर फिर से शुरू कर दी थी खेती
राजस्व अमला देवू द्वारा 27 साल पहले अधिग्रहित जमीन का सीमांकन करने पहुंचा, तब ग्रामीण आक्रोशित हो गए. वह कहने लगे कि बाउंड्री वॉल बनाने के लिए कंपनी के इशारे पर लॉकडाउन में ही प्रशासन ने सीमांकन शुरू कर दिया है. एक्सीवेटर से जमीन को खोदा जा रहा है. जिसमें हमारी निजी जमीन पर भी एक्सीवेटर चला है. कंपनी ने हमें पुरानी दर से मुआवजा दिया था. आज जमीन के भाव बढ़ चुके हैं. कंपनी ने अपने वादे पूरे नहीं किए. पहले कंपनी अपने वादे पूरे करे इसके बाद ही यहां कोई प्रोजेक्ट लगना चाहिए.
इतने सालों तक देवू कंपनी को याद नहीं आई और आज जब हम ग्रामीण यहां खेती कर अपनी आजीविका चला रहे हैं. तब फिर से जमीन का सीमांकन किया जा रहा है. जो कि बेहद आपत्तिजनक है. ग्रामीणों ने बस्तर के लोहंडीगुड़ा में ग्रामीणों को जमीन वापसी का उदाहरण देकर कहा कि सरकार लोहंडीगुड़ा की तरह इस भूमि को भी हमें वापस करें. क्योंकि यहां आज पर्यंत तक कोई भी प्रोजेक्ट स्थापित नहीं हो सका है.
देवू के वकील ने दिया था आवेदन
तहसीलदार सुरेश साहू ने कहा कि देवू की ओर से उनके वकील ने जमीन सीमांकन के लिए आवेदन लगाया था. इसके आधार पर हम सीमांकन कर रहे हैं. ग्रामीणों को कुछ गलतफहमी हुई है जिसकी वजह से वह विवाद कर रहे हैं. उन्हें समझाइश दे दी गई है. सीमांकन का काम शुरू कर दिया गया है. लॉकडाउन में भी कुछ सरकारी कार्यों को पूरा करना होता है. प्रोटोकॉल का पालन करते हुए हम सीमांकन कर रहे हैं.