कोरबा: कोरोना मरीजों के इलाज के लिए बनाए गए नियम ही अब उनकी जान पर संकट पैदा कर रहे हैं. कोरबा में संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. कोरबा में लॉकडाउन होने के बाद भी हर दिन औसतन 800 से 1 हजार मरीज सामने आ रहे हैं. कुछ मरीज ऐसे भी हैं जिनकी रिपोर्ट निगेटिव है, लेकिन लक्षण शत प्रतिशत पॉजिटिव होते हैं. ऐसे में जब वह सांस की तकलीफ होने पर अस्पताल पहुंचते हैं, तब उन्हें भर्ती कर तत्काल इलाज शुरू करने की बजाए अस्पताल प्रबंधन कोरोना संक्रमित होने की पॉजिटिव रिपोर्ट मांग रहा है. सरकारी हो या निजी दोनों कोविड 19 अस्पतालों में यही हालत है. जिससे मरीजों की जान खतरे में है.
शहर के सर्वमंगला नगर निवासी अन्नू कुमार पटेल अपनी 39 वर्षीय चाची को गंभीर अवस्था में लेकर मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचे थे. सांस लेने में तकलीफ होने के बावजूद मरीज को अस्पताल प्रबंधन ने भर्ती नहीं किया. क्योंकि उनके पास कोरोना की पॉजिटिव रिपोर्ट नहीं थी.
अस्पताल में मांगी गई पॉजिटिव रिपोर्ट
अन्नू कहते हैं कि अस्पताल प्रबंधन कोरोना संक्रमित होने की पॉजिटिव रिपोर्ट की मांग कर रहा है. जबकि चाची की रिपोर्ट हमारे गांव में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में किए गए रैपिड एंटीजन टेस्ट में निगेटिव आई है. जिसकी पर्ची भी है. अब एक सरकारी स्वास्थ्य केंद्र की पर्ची को ही यहां नामंजूर किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि ऐसी पर्ची तो कोई भी दे सकता है. या तो आप मोबाइल का SMS दिखाइए या फिर पॉजिटिव होने की रिपोर्ट लाइए.
रिपोर्ट से जुड़ा SMS होना जरूरी
शहर की स्वास्थ्य सुविधाओं का जिम्मा संभालने वाले स्वास्थ्य विभाग के सिटी प्रोग्राम मैनेजर अशोक सिंह को ETV भारत ने इस विषय में जानकारी दी. उनका कहना था कि ऐसी लिखी हुई पर्ची कि ज्यादा मान्यता नहीं है. रिपोर्ट ICMR (Indian council of medical research) के पोर्टल पर तभी चढ़ती है जब मोबाइल में मैसेज जनरेट हो जाए. लेकिन यदि मरीज की स्थिति गंभीर है तो उसका इलाज किया जाना चाहिए. इस विषय में अस्पताल प्रबंधन ही ज्यादा जानकारी दे सकते हैं.
कोरबा में अस्पताल के बाहर 4 घंटे तड़पने वाले कोरोना संक्रमित मरीज की अगली सुबह मौत
पहले भी हो चुकी है मौत
एक ऐसे ही केस में जिले के शासकीय बालाजी ट्रामा कोविड हॉस्पिटल में दीपका क्षेत्र के मरीज की मौत हो गई थी. परिजन 4 घंटे अस्पताल के बाहर इंतजार करते रहे, गंभीर अवस्था में मरीज को सिपेट में शिफ्ट किया गया. बाद में कलेक्टर के कहने पर वापस ट्रामा सेंटर लाया गया. जिसके बाद अगली सुबह मरीज की जान चली गई. तब भी यह बात सामने आई थी कि अस्पताल प्रबंधन ने मरीज के पॉजिटिव होने की रिपोर्ट मांगी थी.
रिपोर्ट आने में लग रहा हफ्ते भर का समय
जिले में RTPCR टेस्ट की सुविधा फिलहाल उपलब्ध नहीं है. सैंपलों को कोरबा से कलेक्ट करके रायगढ़ के मेडिकल कॉलेज अस्पताल भेजा जाता है. जहां से रिपोर्ट वापस आने में करीब हफ्ते भर का समय लग जाता है. इतने दिनों में कई मरीजों की स्थिति गंभीर बन जाती है. जब मरीज के परिजन उसे लेकर अस्पताल पहुंचते हैं तब पॉजिटिव रिपोर्ट की मांग की जाती है. विडंबना ये है कि जिस रिपोर्ट को सरकार की एक संस्था समय पर नहीं दे पा रही है, उसे ही दूसरी सरकारी संस्था दिखाने को कहती है. व्यवस्थागत उत्पन्न परिस्थितियां इन दिनों गंभीर अवस्था में पहुंच चुके मरीजों की जान की दुश्मन बनी हुई है.
30 प्रतिशत रिपोर्ट सही नहीं होती: डॉक्टर
जानकारों की मानें तो RTPCR टेस्ट की 30% रिपोर्ट सही नहीं होती. मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोरबा के डीन वाईडी बड़गैया भी कहते हैं कि RTPCR टेस्ट में 30% मरीज कोरोना संक्रमित होंगे लेकिन उनकी रिपोर्ट निगेटिव आएगी. ऐसे में इन मरीजों को भर्ती कर उन्हें कोरोना का इलाज देना बेहद जरूरी हो जाता है. शुरुआती 7 दिन बेहद अहम होते हैं. इस दौरान मरीज को ट्रीटमेंट दिया जाना जरूरी हो जाता है. यदि समय बीत गया तो फिर मौजूदा हालातों में मरीज की जान बचाना बेहद मुश्किल हो जाता है. नियमों में संशोधन की जरूरत है. डीन ने कहा कि गंभीर अवस्था वाले हर मरीज को भर्ती कर उसे कोरोना का इलाज दिया जाएगा.