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कोरबा में अस्पताल के बाहर 4 घंटे तड़पने के बाद कोरोना संक्रमित की मौत - ट्रामा सेंटर

कोरबा के ट्रामा सेंटर स्थित कोविड 19 अस्पताल में एक मरीज की मौत हो गई है. मरीज को इलाज के लिए करीब 4 घंटे इंतजार करना पड़ा. इलाज में देरी होने की वजह से मरीज ने दम तोड़ दिया.

corona positive patient died outside hospital in korba
इलाज में देरी के चलते मरीज की मौत
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Published : Apr 20, 2021, 9:42 PM IST

Updated : Apr 21, 2021, 1:21 AM IST

कोरबा: जिले के ट्रामा सेंटर स्थित कोविड 19 अस्पताल के बाहर 4 घंटे तक इलाज के लिए तड़पने वाले मरीज की मंगलवार सुबह इलाज के दौरान मौत हो गई. परिजन इसके लिए सीधे तौर पर अस्पताल प्रबंधन और जिले की चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को दोषी मान रहे हैं.

देर शाम शुरू हुआ था इलाज

दीपका क्षेत्र के 30 वर्षीय ठेका श्रमिक रविंद्र यादव की जान मंगलवार को चली गई. मृतक रविंद्र यादव, रमेश के बहनोई हैं. रमेश ही वह व्यक्ति हैं जिन्होंने अवस्थाओं का वीडियो बनाकर वायरल किया. जिसके बाद पता चला कि ट्रामा सेंटर स्थित कोविड अस्पताल में मरीज को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है. रमेश ने ETV भारत से फोन पर चर्चा करते हुए बताया कि रविंद्र की तबीयत बिगड़ने पर उसे दीपका के एनसीएच अस्पताल में लेकर गए थे. जहां टेस्ट करने पर पता चला कि वह कोरोना पॉजिटिव हैं. जिसके बाद रविंद्र की हालत स्थिर थी. कमजोरी होने के कारण बेहतर इलाज के लिए सोमवार की सुबह 10 बजे वे कोविड अस्पताल पहुंच गए थे. लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने इलाज शुरू करने की बजाए कई तरह की बहानेबाजी की.

ऑक्सीजन नहीं होने का बहाना

पहले बताया गया कि ऑक्सीजन नहीं है, फिर कहा गया अस्पताल में जगह नहीं है. डॉक्टर का इंतजार करने को कहा गया. अंत में इलाज नहीं मिला और वहां से जाना पड़ा. पीड़ित मरीज को वहां से स्याहीमुड़ी स्थित सिपेट कोविड केयर सेंटर में भेजा गया. जहां पहुंचने पर ये कहा गया कि यहां केवल ऑक्सीजन की व्यवस्था है. इंजेक्शन और अन्य दवाएं नहीं है. इस बीच रमेश के मोबाइल पर कलेक्टर के पीए का फोन आया. उन्होंने कहा कि आपके लिए ट्रामा सेंटर में फोन कर व्यवस्था कर दी गई है. आप वापस चले जाइए.

बस्तर में बिना कोरोना टेस्ट के नहीं मिलेगी बाहर वालों को एंट्री, जवान भी होंगे क्वॉरंटाइन

फिर पहुंचे ट्रामा सेंटर

जिसके बाद रमेश फिर ट्रामा सेंटर पहुंचे. लेकिन इन सब में काफी देर हो चुकी थी. शाम करीब 4 बजे रविंद्र को ट्रामा सेंटर में एडमिट कराया गया. तब बताया गया कि स्थिति ठीक है और इलाज जारी है. लेकिन मंगलवार की सुबह रमेश के ही मोबाइल पर डॉक्टर का फोन आया और कहा गया कि हालत बिगड़ रही है. आप अस्पताल पहुंच जाइए. अस्पताल जाने पर पता चला कि रविंद्र ने दम तोड़ दिया है. चूंकि कोविड के इलाज के दौरान परिजनों को अस्पताल में ठहरने की अनुमति नहीं रहती. इसलिए रमेश वापस लौट आए थे. लेकिन अगली सुबह 7 बजे रविंद्र की मौत हो चुकी थी.

अचानक कैसे बन गई जगह ?

ट्रामा सेंटर में जगह नहीं होने पर भी जिद पर अड़े रहने के सवाल पर रमेश का कहना है कि जब ट्रामा सेंटर स्थित कोविड अस्पताल में जगह नहीं थी, तब कलेक्टर के फोन आने के बाद वापस जगह कैसे बन गई ? यह पूरी तरह से स्थानीय प्रशासन और अस्पताल की लापरवाही है. जिसके कारण 30 वर्षीय रविंद्र की जान चली गई. जिले में कोरोना के इलाज से जुड़ी व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की जरुरत है. ताकि आगे किसी के साथ ऐसा न हो.

व्यवस्थाओं को करना होगा जरूर

मृतक रविंद्र के परिजनों के मुताबिक वे सुबह ही अस्पताल पहुंच गए थे. लेकिन अस्पताल में भी क्षमता से ज्यादा मरीज पहले ही भर्ती थे. इसलिए उन्हें कहीं और जाने को कहा गया था. लेकिन परिजन भी बेहतर इलाज चाहते थे. इसलिए वह ट्रामा सेंटर में ही भर्ती पर अड़े रहे. लेकिन यदि जिले में और भी बेहतर संसाधन मौजूद होते तो आज यह नौबत आती ही नहीं. मरीजों की बढ़ती तादात के मुताबिक कोविड के इलाज के लिए जिले में न ही पर्याप्त संसाधन हैं, न व्यवस्था. जिसके कारण अब व्यवस्था बिगड़ने लगी है.

कोरबा: जिले के ट्रामा सेंटर स्थित कोविड 19 अस्पताल के बाहर 4 घंटे तक इलाज के लिए तड़पने वाले मरीज की मंगलवार सुबह इलाज के दौरान मौत हो गई. परिजन इसके लिए सीधे तौर पर अस्पताल प्रबंधन और जिले की चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को दोषी मान रहे हैं.

देर शाम शुरू हुआ था इलाज

दीपका क्षेत्र के 30 वर्षीय ठेका श्रमिक रविंद्र यादव की जान मंगलवार को चली गई. मृतक रविंद्र यादव, रमेश के बहनोई हैं. रमेश ही वह व्यक्ति हैं जिन्होंने अवस्थाओं का वीडियो बनाकर वायरल किया. जिसके बाद पता चला कि ट्रामा सेंटर स्थित कोविड अस्पताल में मरीज को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है. रमेश ने ETV भारत से फोन पर चर्चा करते हुए बताया कि रविंद्र की तबीयत बिगड़ने पर उसे दीपका के एनसीएच अस्पताल में लेकर गए थे. जहां टेस्ट करने पर पता चला कि वह कोरोना पॉजिटिव हैं. जिसके बाद रविंद्र की हालत स्थिर थी. कमजोरी होने के कारण बेहतर इलाज के लिए सोमवार की सुबह 10 बजे वे कोविड अस्पताल पहुंच गए थे. लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने इलाज शुरू करने की बजाए कई तरह की बहानेबाजी की.

ऑक्सीजन नहीं होने का बहाना

पहले बताया गया कि ऑक्सीजन नहीं है, फिर कहा गया अस्पताल में जगह नहीं है. डॉक्टर का इंतजार करने को कहा गया. अंत में इलाज नहीं मिला और वहां से जाना पड़ा. पीड़ित मरीज को वहां से स्याहीमुड़ी स्थित सिपेट कोविड केयर सेंटर में भेजा गया. जहां पहुंचने पर ये कहा गया कि यहां केवल ऑक्सीजन की व्यवस्था है. इंजेक्शन और अन्य दवाएं नहीं है. इस बीच रमेश के मोबाइल पर कलेक्टर के पीए का फोन आया. उन्होंने कहा कि आपके लिए ट्रामा सेंटर में फोन कर व्यवस्था कर दी गई है. आप वापस चले जाइए.

बस्तर में बिना कोरोना टेस्ट के नहीं मिलेगी बाहर वालों को एंट्री, जवान भी होंगे क्वॉरंटाइन

फिर पहुंचे ट्रामा सेंटर

जिसके बाद रमेश फिर ट्रामा सेंटर पहुंचे. लेकिन इन सब में काफी देर हो चुकी थी. शाम करीब 4 बजे रविंद्र को ट्रामा सेंटर में एडमिट कराया गया. तब बताया गया कि स्थिति ठीक है और इलाज जारी है. लेकिन मंगलवार की सुबह रमेश के ही मोबाइल पर डॉक्टर का फोन आया और कहा गया कि हालत बिगड़ रही है. आप अस्पताल पहुंच जाइए. अस्पताल जाने पर पता चला कि रविंद्र ने दम तोड़ दिया है. चूंकि कोविड के इलाज के दौरान परिजनों को अस्पताल में ठहरने की अनुमति नहीं रहती. इसलिए रमेश वापस लौट आए थे. लेकिन अगली सुबह 7 बजे रविंद्र की मौत हो चुकी थी.

अचानक कैसे बन गई जगह ?

ट्रामा सेंटर में जगह नहीं होने पर भी जिद पर अड़े रहने के सवाल पर रमेश का कहना है कि जब ट्रामा सेंटर स्थित कोविड अस्पताल में जगह नहीं थी, तब कलेक्टर के फोन आने के बाद वापस जगह कैसे बन गई ? यह पूरी तरह से स्थानीय प्रशासन और अस्पताल की लापरवाही है. जिसके कारण 30 वर्षीय रविंद्र की जान चली गई. जिले में कोरोना के इलाज से जुड़ी व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की जरुरत है. ताकि आगे किसी के साथ ऐसा न हो.

व्यवस्थाओं को करना होगा जरूर

मृतक रविंद्र के परिजनों के मुताबिक वे सुबह ही अस्पताल पहुंच गए थे. लेकिन अस्पताल में भी क्षमता से ज्यादा मरीज पहले ही भर्ती थे. इसलिए उन्हें कहीं और जाने को कहा गया था. लेकिन परिजन भी बेहतर इलाज चाहते थे. इसलिए वह ट्रामा सेंटर में ही भर्ती पर अड़े रहे. लेकिन यदि जिले में और भी बेहतर संसाधन मौजूद होते तो आज यह नौबत आती ही नहीं. मरीजों की बढ़ती तादात के मुताबिक कोविड के इलाज के लिए जिले में न ही पर्याप्त संसाधन हैं, न व्यवस्था. जिसके कारण अब व्यवस्था बिगड़ने लगी है.

Last Updated : Apr 21, 2021, 1:21 AM IST
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