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छत्तीसगढ़ में जल्द बंद हो सकती है मिड डे मील योजना !

Chhattisgarh Mid Day Meal छत्तीसगढ़ में मिड डे मील योजना की दयनीय स्थिति है.पोषणयुक्त आहार देने की बात करने वाले सरकारी स्कूलों में बच्चों को परोसा जाने वाला खाना देखकर आप भी हैरान हो जाएंगे. Korba News

Mid day meal
छत्तीसगढ़ में मिड डे मील की दयनीय हालत
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Dec 21, 2023, 10:06 AM IST

Updated : Dec 22, 2023, 9:35 AM IST

छत्तीसगढ़ में मिड डे मील की दयनीय हालत

कोरबा: छत्तीसगढ़ के सरकारी मिडिल और प्राइमरी स्कूलों में मिड डे मील की व्यवस्था चरमरा गई है. एक तरफ बच्चों को देने वाले आहार के लिए पैसे नहीं आ रहे हैं तो दूसरी तरफ बच्चों को खाना बना कर देने वाले समूहों और रसोइयों को भी 4 महीने से मानदेय नहीं मिला है. इससे ग्रामीण क्षेत्र में कई स्कूलों में मिड डे मील नहीं मिलने की सूचना है. जिन स्कूलों में बच्चों को मिड डे मील दिया जा रहा है वहां या प्रधान पाठक अपने जेब से पैसे लग रहे हैं या फिर महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं दुकानों से उधार सामान लेकर बच्चों के लिए स्कूल में खाना बना रही है.

सूत्रों की माने तो केंद्र सरकार से ही भुगतान जारी नहीं हुआ है. इसके कारण समूहों को पैसे जारी नहीं हुए हैं. समूह के अधीन काम करने वाले रसोइयों को मानदेय के रूप में हर महीने 1500 रुपये दिए जाते हैं. लेकिन बताया जा रहा है कि पिछले कुछ महीनों से वो पैसे भी नहीं दिए गए हैं. जिसके कारण कुछ स्कूलों में सिर्फ दाल, चावल, अचार या चावल और सब्जी देकर बच्चों को मिड डे मील खिलाया जा रहा है.भुगतान जारी नहीं होने के पीछे कारण चाहे जो भी हो, फिलहाल स्कूलों में मिड डे मील की हालत बेहद चिंताजनक है.

महंगाई के दौर में ₹8 और ₹5 प्रति छात्र : महंगाई के इस दौर में मिड डे मील का मैनू बना हुआ है. जिसके अनुसार मिड डे मील में समूह के द्वारा बच्चों को दाल, चावल, हरी सब्जी, सलाद, पापड़ और अचार देने का नियम है. हर दिन का अलग अलग मैनू तय है. लेकिन इसके लिए प्रति छात्र के हिसाब से जो राशि मिलती है वह इस महंगाई के दौर में काफी कम है. मिडिल स्कूल में प्रति छात्र 8.17 रुपये और प्राइमरी में 5.67 रुपये प्रतिदिन प्रति छात्र के हिसाब से मिलती हैं. अब यह भुगतान भी महीने से रुका हुआ है. भुगतान नहीं होने के कारण बच्चों को चावल और आलू और सोया बड़ी की सब्जी दी जा रही है. लेकिन सब्जी के नाम पर वो भी मजाक ही है.

उधार मांग कर चला रहे व्यवस्था :प्राथमिक स्कूल दादर खुर्द में मिड डे मील की व्यवस्था संभालने वाली महिला सहायता समूह की सदस्य फूलबती बेहद नाराज दिखीं. फूलबती का कहना है कि पिछले 4 महीने से हमें भुगतान नहीं दिया गया है. चावल दाल तक खरीदने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं. दुकानदार से उधार मांगकर किसी तरह व्यवस्था चल रहे हैं. अब दुकानदार भी हमें ताने दे रहा है. घर से पैसे लगाने पड़ रहे हैं. जिससे आर्थिक तंगी है. काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

कोई पार्षद देखने भी नहीं आते हैं. दुकान से हम सामान खरीद कर बना रहे हैं -फूलबती, सदस्य, महिला सहायता समूह

मानदेय बढ़ाने की बात हुई थी 1500 ही नहीं मिले :मिड डे मील योजना के अंतर्गत रसोईया का काम करने वाले अमृता मरावी का कहना है कि पिछले 4 महीने से हमें मानदेय नहीं मिला है. सरकार ने हमारा मानदेय 1500 से 1800 और फिर 2500 तक देने के बाद कही थी. लेकिन अब हमें ₹1500 ही नहीं मिले हैं. 1500 रुपये में आजकल घर की सब्जी भाजी तक नहीं आती.

जुलाई अगस्त का मानदेय मिला है, उसके बाद से मिला ही नहीं है.ऐसे में हम घर कैसे चलाएं और काम कैसे करें, ना हम इस काम को छोड़ सकते हैं, और न कर पा रहे हैं. -अमृता मरावी, रसोईया, मिड डे मील

समूहों से निवेदन कर चला रहे व्यवस्था :मिडिल स्कूल बेलगारी नाला के प्रधान पाठक तरुण राठौर का कहना है कि कोरबा में मिड डे मील की हालत काफी दयनीय हो चुकी है. किसी तरह रो धोकर मिल डे मील चल रहा है. स्थिति यह है कि अब समूह वाले प्रधान पाठकों से उधार पैसे मांग रहे हैं. 4 महीने से पैसे नहीं आने के कारण व्यवस्था संचालित करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश हैं कि एक दिन भी मिड डे मील बंद हुई तो स्कूल को प्रधान पाठकों पर एक्शन होगा. हम किसी तरह समूह से निवेदन कर व्यवस्था संचालित करवा रहे हैं.- तरुण राठौर, प्रधान पाठक, मिडिल स्कूल बेलगारी नाला

छत्तीसगढ़ में मिड डे मील : छत्तीसगढ़ की पूर्व कांग्रेस सरकार में शिक्षा मंत्री प्रेय साय सिंह टेकाम ने विधानसभा में यह जानकारी दी थी कि छत्तीसगढ़ के प्राथमिक स्कूल में 16 लाख 94 हजार 548 बच्चे हैं. जबकि मिडिल स्कूल में 3 लाख 56 हजार 774 स्टूडेंट्स हैं. मिड डे मील की व्यवस्था सरकारी प्राइमरी और मिडिल स्कूल में ही होती है. हाई और हायर सेकेंडरी के बच्चों को मिड डे मील नहीं दिया जाता.


छत्तीसगढ़ में मिड डे मील की दयनीय हालत

कोरबा: छत्तीसगढ़ के सरकारी मिडिल और प्राइमरी स्कूलों में मिड डे मील की व्यवस्था चरमरा गई है. एक तरफ बच्चों को देने वाले आहार के लिए पैसे नहीं आ रहे हैं तो दूसरी तरफ बच्चों को खाना बना कर देने वाले समूहों और रसोइयों को भी 4 महीने से मानदेय नहीं मिला है. इससे ग्रामीण क्षेत्र में कई स्कूलों में मिड डे मील नहीं मिलने की सूचना है. जिन स्कूलों में बच्चों को मिड डे मील दिया जा रहा है वहां या प्रधान पाठक अपने जेब से पैसे लग रहे हैं या फिर महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं दुकानों से उधार सामान लेकर बच्चों के लिए स्कूल में खाना बना रही है.

सूत्रों की माने तो केंद्र सरकार से ही भुगतान जारी नहीं हुआ है. इसके कारण समूहों को पैसे जारी नहीं हुए हैं. समूह के अधीन काम करने वाले रसोइयों को मानदेय के रूप में हर महीने 1500 रुपये दिए जाते हैं. लेकिन बताया जा रहा है कि पिछले कुछ महीनों से वो पैसे भी नहीं दिए गए हैं. जिसके कारण कुछ स्कूलों में सिर्फ दाल, चावल, अचार या चावल और सब्जी देकर बच्चों को मिड डे मील खिलाया जा रहा है.भुगतान जारी नहीं होने के पीछे कारण चाहे जो भी हो, फिलहाल स्कूलों में मिड डे मील की हालत बेहद चिंताजनक है.

महंगाई के दौर में ₹8 और ₹5 प्रति छात्र : महंगाई के इस दौर में मिड डे मील का मैनू बना हुआ है. जिसके अनुसार मिड डे मील में समूह के द्वारा बच्चों को दाल, चावल, हरी सब्जी, सलाद, पापड़ और अचार देने का नियम है. हर दिन का अलग अलग मैनू तय है. लेकिन इसके लिए प्रति छात्र के हिसाब से जो राशि मिलती है वह इस महंगाई के दौर में काफी कम है. मिडिल स्कूल में प्रति छात्र 8.17 रुपये और प्राइमरी में 5.67 रुपये प्रतिदिन प्रति छात्र के हिसाब से मिलती हैं. अब यह भुगतान भी महीने से रुका हुआ है. भुगतान नहीं होने के कारण बच्चों को चावल और आलू और सोया बड़ी की सब्जी दी जा रही है. लेकिन सब्जी के नाम पर वो भी मजाक ही है.

उधार मांग कर चला रहे व्यवस्था :प्राथमिक स्कूल दादर खुर्द में मिड डे मील की व्यवस्था संभालने वाली महिला सहायता समूह की सदस्य फूलबती बेहद नाराज दिखीं. फूलबती का कहना है कि पिछले 4 महीने से हमें भुगतान नहीं दिया गया है. चावल दाल तक खरीदने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं. दुकानदार से उधार मांगकर किसी तरह व्यवस्था चल रहे हैं. अब दुकानदार भी हमें ताने दे रहा है. घर से पैसे लगाने पड़ रहे हैं. जिससे आर्थिक तंगी है. काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

कोई पार्षद देखने भी नहीं आते हैं. दुकान से हम सामान खरीद कर बना रहे हैं -फूलबती, सदस्य, महिला सहायता समूह

मानदेय बढ़ाने की बात हुई थी 1500 ही नहीं मिले :मिड डे मील योजना के अंतर्गत रसोईया का काम करने वाले अमृता मरावी का कहना है कि पिछले 4 महीने से हमें मानदेय नहीं मिला है. सरकार ने हमारा मानदेय 1500 से 1800 और फिर 2500 तक देने के बाद कही थी. लेकिन अब हमें ₹1500 ही नहीं मिले हैं. 1500 रुपये में आजकल घर की सब्जी भाजी तक नहीं आती.

जुलाई अगस्त का मानदेय मिला है, उसके बाद से मिला ही नहीं है.ऐसे में हम घर कैसे चलाएं और काम कैसे करें, ना हम इस काम को छोड़ सकते हैं, और न कर पा रहे हैं. -अमृता मरावी, रसोईया, मिड डे मील

समूहों से निवेदन कर चला रहे व्यवस्था :मिडिल स्कूल बेलगारी नाला के प्रधान पाठक तरुण राठौर का कहना है कि कोरबा में मिड डे मील की हालत काफी दयनीय हो चुकी है. किसी तरह रो धोकर मिल डे मील चल रहा है. स्थिति यह है कि अब समूह वाले प्रधान पाठकों से उधार पैसे मांग रहे हैं. 4 महीने से पैसे नहीं आने के कारण व्यवस्था संचालित करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश हैं कि एक दिन भी मिड डे मील बंद हुई तो स्कूल को प्रधान पाठकों पर एक्शन होगा. हम किसी तरह समूह से निवेदन कर व्यवस्था संचालित करवा रहे हैं.- तरुण राठौर, प्रधान पाठक, मिडिल स्कूल बेलगारी नाला

छत्तीसगढ़ में मिड डे मील : छत्तीसगढ़ की पूर्व कांग्रेस सरकार में शिक्षा मंत्री प्रेय साय सिंह टेकाम ने विधानसभा में यह जानकारी दी थी कि छत्तीसगढ़ के प्राथमिक स्कूल में 16 लाख 94 हजार 548 बच्चे हैं. जबकि मिडिल स्कूल में 3 लाख 56 हजार 774 स्टूडेंट्स हैं. मिड डे मील की व्यवस्था सरकारी प्राइमरी और मिडिल स्कूल में ही होती है. हाई और हायर सेकेंडरी के बच्चों को मिड डे मील नहीं दिया जाता.


Last Updated : Dec 22, 2023, 9:35 AM IST
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