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जानें, बरहाझरिया और हाथामाड़ा शैलाश्रय को छत्तीसगढ़ सरकार ने क्यों दिया पुरातात्विक संरक्षण

कोरबा के बरहाझरिया और हाथामाड़ा में मिले प्राचीन शैलाश्रयों/शैलचित्र (पत्थर पर उकेरी गई कलाकृतियां) को छत्तीसगढ़ प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल तथा अवशेष अधिनियम 1964 के तहत संरक्षित स्थल घोषित किया गया है. जल्द ही इन स्थानों के संरक्षित करने की दिशा में काम होगा.

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पुरातात्विक संरक्षण
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Published : Aug 26, 2021, 7:34 PM IST

कोरबा : कोरबा जिला बिजली उत्पादन और कोयला खदानों के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन अब यह ऐतिहासिक प्रमाणों के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बनाने जा रहा है. कोरबा के क्षेत्रफल का कुल 40 फीसदी भाग हरे-भरे घने वनों से घिरा हुआ है और यहां अब आदिमानव के प्रमाण मिल रहे हैं.

पुरातात्विक संरक्षण

हाल में जिले के 2 स्थान बरहाझरिया और हाथामाड़ा में मिले प्राचीन शैलाश्रयों/शैलचित्र (पत्थर पर उकेरी गई कलाकृतियां) को छत्तीसगढ़ प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल तथा अवशेष अधिनियम 1964 के तहत संरक्षित स्थल घोषित किया गया है. जल्द ही छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक महत्व वाले स्थानों में इन्हें भी शुमार करने की दिशा में प्रयास होंगे. जिससे इन दुर्गम इलाकों का विकास भी हो पाएगा.

छातीबहार के बाद दो नालों को पार करने पर दिखेंगे शैलचित्र

बरहाझरिया एक साल भर बहने वाला एक बरसाती नाला (नदी का छोटा स्वरूप) है. इसके समीप स्थित एक पहाड़ पर चढ़ाई करने के बाद पहाड़ के ऊपर ही एक समतल स्थान से लगभग 25 फीट की ऊंचाई पर शैलचित्र देखने को मिलते हैं. इस स्थान का नामकरण बरसाती नाले के नाम पर ही बरहाझरिया रखा गया है. इसके अलावा बरहाझरिया तक पहुंचने के लिए कोरबा मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर लेमरू रोड पर छातीबहार गांव के भीतर प्रवेश कर घने वनों के अंदर जाना होता है. जहां मानघोगजर नाला और बरहाझरिया का संगम है. इन दोनों ही नालों को पार करते हुए 3 किलोमीटर के दुर्गम रास्तों के बाद जो पहाड़ दिखते हैं, उनमें शैलचित्रों को उकेरा गया है. हालांकि यहां पहुंचना स्थानीय और आदिवासी ग्रामीणों के बिना संभव नहीं है.

कोरबा की पहाड़ियों पर जिस स्थान पर शैलचित्र पाए गए हैं. उसके 300 मीटर की परिधि को संरक्षित स्थल घोषित किया गया है, लेकिन इस स्थान तक व्यवस्थाएं दुरुस्त करना और दुर्गम रास्तों को पर्यटकों के लिए सुगम बनाना स्थानीय प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है.

रामानुजगंज में क्या है ऐसा जो पर्यटकों को कर रहा अपनी ओर आकर्षित?

छातीबहार से आगे बढ़ने पर लेमरू रोड में ही लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर अरेतरा गांव स्थित है. यहां भी इसी तरह कठिन और दुर्गम रास्तों को पार करते हुए हाथामाड़ा पहुंचा जा सकता है. हाथामाड़ा वह दूसरा स्थान है, जहां के शैलचित्रों को राज्य शासन ने संरक्षित स्थल घोषित किया है. दोनों ही स्थान पर मिले शैलचित्रों को आदिमानव के प्रमाण के तौर पर देखा जा रहा है. पुरातत्व के दृष्टिकोण से यह जितने महत्वपूर्ण हैं, पहुंच मार्ग के लिहाज से यह दोनों स्थान उतने ही कठिन और दुर्गम भी हैं.

क्या है इन शैल चित्रों में

हाथामाड़ा में जो शैल चित्र मिले हैं वह आदिमानवों के पंजों के निशान माने जा रहे हैं. हाथ के पंजे के निशान होने के कारण ही इस स्थान का नाम हाथामाड़ा रखा गया है. ऐसी मान्यता है कि आदिमानव जहां कहीं जाते थे, पंजों के निशान बनाते थे. यह एक तरह से उनका हस्ताक्षर होता था. वह किसी स्थान पर इस तरह से अपना आधिपत्य जमा कर दूसरे आदिमानव को संदेश देते थे. बरहाझरिया में भी इसी तरह के पंजों के निशान हैं. हैरानी वाली बात यह भी है कि पहाड़ के ऊपरी स्थान से लगभग 25-30 फीट की ऊंचाई पर पंजों के निशान उकेरे गए हैं. ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि इतनी ऊंचाई पर पंजों के निशान आखिर कैसे हो सकते हैं.

बरहाझरिया में पंजों के निशान के अलावा एक पूछ वाले जानवर का एक शैल चित्र मौजूद है. यह एक अजीब तरह का जानवर है. इस तरह के जानवरों के शैल चित्र कोरबा में और भी कई स्थानों पर मौजूद है. हालांकि यह कौन सा जानवर है, इसकी पहचान अभी नहीं हो सकी है. इसके अलावा पत्थरों पर घास के साथ ही कई तरह के कलाकृतियां हैं. हिरणों के चित्र हैं, हिरण का झुंड दिखाया गया है जो कि दौड़ते हुए पहाड़ के ऊपर पूर्व दिशा की ओर चढ़ाई कर रहे हैं.

आसपास कई गुफाएं, आदिमानवों के नगर के प्रमाण

यहां शैलचित्रों के साथ ही इन स्थानों को ढूंढने में जिले में पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक हरि सिंह की बड़ी भूमिका है. इन शैलचित्रों को हरि सिंह ने ही सबसे पहले हैं ढूंढा था. हरि सिंह के मुताबिक, कोरबा और रायगढ़ की सीमा से जो लगा हुआ बेल्ट है, यह आदि मानव का एक बड़ा नगर था. खासतौर पर बरहाझरिया में शैल चित्रों के अलावा कई छोटी-छोटी गुफाएं हैं. इन्हीं गुफाओं में आदिमानव निवास करते थे. वह अपने परिवार के साथ इन गुफाओं में ठहरते थे. ऊंचाई पर होने के कारण जानवरों का डर नहीं होता था.

स्थानीय आदिवासी फागूराम ने इन क्षेत्रों के विषय में एक और प्रमाण दिया. फागूराम का कहना है कि वह जब से पैदा हुए हैं, तब से इसी क्षेत्र में निवास करते हैं. जंगल ही उनका घर है. उनकी उम्र वर्तमान में लगभग 60 वर्ष के करीब है. जब तक उनके पिता जीवित थे, तब तक उनसे यही जानकारी मिली कि यहां पर पहाड़ों के ऊपर कुछ कलाकृतियां हैं, जो काफी पुरानी हैं. फागूराम कहते हैं कि उनके पिता को भी यह बात उनके पूर्वजों ने बताई थी. फागूराम कलाकृतियों के विषय में कहते हैं कि पता नहीं यह शैलचित्र कितने पुराने हैं.

अब संरक्षित स्थलों की संख्या बढ़कर होगी 6

अब तक कोरबा जिले में पुरातत्व की दृष्टि से संरक्षित स्थलों की संख्या 4 थी. बरहाझरिया और हाथामाड़ा को संरक्षित स्थल घोषित करने के बाद अकेले कोरबा में संरक्षित स्थलों की संख्या बढ़कर अब 6 हो जाएगी.

कोरबा : कोरबा जिला बिजली उत्पादन और कोयला खदानों के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन अब यह ऐतिहासिक प्रमाणों के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बनाने जा रहा है. कोरबा के क्षेत्रफल का कुल 40 फीसदी भाग हरे-भरे घने वनों से घिरा हुआ है और यहां अब आदिमानव के प्रमाण मिल रहे हैं.

पुरातात्विक संरक्षण

हाल में जिले के 2 स्थान बरहाझरिया और हाथामाड़ा में मिले प्राचीन शैलाश्रयों/शैलचित्र (पत्थर पर उकेरी गई कलाकृतियां) को छत्तीसगढ़ प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल तथा अवशेष अधिनियम 1964 के तहत संरक्षित स्थल घोषित किया गया है. जल्द ही छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक महत्व वाले स्थानों में इन्हें भी शुमार करने की दिशा में प्रयास होंगे. जिससे इन दुर्गम इलाकों का विकास भी हो पाएगा.

छातीबहार के बाद दो नालों को पार करने पर दिखेंगे शैलचित्र

बरहाझरिया एक साल भर बहने वाला एक बरसाती नाला (नदी का छोटा स्वरूप) है. इसके समीप स्थित एक पहाड़ पर चढ़ाई करने के बाद पहाड़ के ऊपर ही एक समतल स्थान से लगभग 25 फीट की ऊंचाई पर शैलचित्र देखने को मिलते हैं. इस स्थान का नामकरण बरसाती नाले के नाम पर ही बरहाझरिया रखा गया है. इसके अलावा बरहाझरिया तक पहुंचने के लिए कोरबा मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर लेमरू रोड पर छातीबहार गांव के भीतर प्रवेश कर घने वनों के अंदर जाना होता है. जहां मानघोगजर नाला और बरहाझरिया का संगम है. इन दोनों ही नालों को पार करते हुए 3 किलोमीटर के दुर्गम रास्तों के बाद जो पहाड़ दिखते हैं, उनमें शैलचित्रों को उकेरा गया है. हालांकि यहां पहुंचना स्थानीय और आदिवासी ग्रामीणों के बिना संभव नहीं है.

कोरबा की पहाड़ियों पर जिस स्थान पर शैलचित्र पाए गए हैं. उसके 300 मीटर की परिधि को संरक्षित स्थल घोषित किया गया है, लेकिन इस स्थान तक व्यवस्थाएं दुरुस्त करना और दुर्गम रास्तों को पर्यटकों के लिए सुगम बनाना स्थानीय प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है.

रामानुजगंज में क्या है ऐसा जो पर्यटकों को कर रहा अपनी ओर आकर्षित?

छातीबहार से आगे बढ़ने पर लेमरू रोड में ही लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर अरेतरा गांव स्थित है. यहां भी इसी तरह कठिन और दुर्गम रास्तों को पार करते हुए हाथामाड़ा पहुंचा जा सकता है. हाथामाड़ा वह दूसरा स्थान है, जहां के शैलचित्रों को राज्य शासन ने संरक्षित स्थल घोषित किया है. दोनों ही स्थान पर मिले शैलचित्रों को आदिमानव के प्रमाण के तौर पर देखा जा रहा है. पुरातत्व के दृष्टिकोण से यह जितने महत्वपूर्ण हैं, पहुंच मार्ग के लिहाज से यह दोनों स्थान उतने ही कठिन और दुर्गम भी हैं.

क्या है इन शैल चित्रों में

हाथामाड़ा में जो शैल चित्र मिले हैं वह आदिमानवों के पंजों के निशान माने जा रहे हैं. हाथ के पंजे के निशान होने के कारण ही इस स्थान का नाम हाथामाड़ा रखा गया है. ऐसी मान्यता है कि आदिमानव जहां कहीं जाते थे, पंजों के निशान बनाते थे. यह एक तरह से उनका हस्ताक्षर होता था. वह किसी स्थान पर इस तरह से अपना आधिपत्य जमा कर दूसरे आदिमानव को संदेश देते थे. बरहाझरिया में भी इसी तरह के पंजों के निशान हैं. हैरानी वाली बात यह भी है कि पहाड़ के ऊपरी स्थान से लगभग 25-30 फीट की ऊंचाई पर पंजों के निशान उकेरे गए हैं. ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि इतनी ऊंचाई पर पंजों के निशान आखिर कैसे हो सकते हैं.

बरहाझरिया में पंजों के निशान के अलावा एक पूछ वाले जानवर का एक शैल चित्र मौजूद है. यह एक अजीब तरह का जानवर है. इस तरह के जानवरों के शैल चित्र कोरबा में और भी कई स्थानों पर मौजूद है. हालांकि यह कौन सा जानवर है, इसकी पहचान अभी नहीं हो सकी है. इसके अलावा पत्थरों पर घास के साथ ही कई तरह के कलाकृतियां हैं. हिरणों के चित्र हैं, हिरण का झुंड दिखाया गया है जो कि दौड़ते हुए पहाड़ के ऊपर पूर्व दिशा की ओर चढ़ाई कर रहे हैं.

आसपास कई गुफाएं, आदिमानवों के नगर के प्रमाण

यहां शैलचित्रों के साथ ही इन स्थानों को ढूंढने में जिले में पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक हरि सिंह की बड़ी भूमिका है. इन शैलचित्रों को हरि सिंह ने ही सबसे पहले हैं ढूंढा था. हरि सिंह के मुताबिक, कोरबा और रायगढ़ की सीमा से जो लगा हुआ बेल्ट है, यह आदि मानव का एक बड़ा नगर था. खासतौर पर बरहाझरिया में शैल चित्रों के अलावा कई छोटी-छोटी गुफाएं हैं. इन्हीं गुफाओं में आदिमानव निवास करते थे. वह अपने परिवार के साथ इन गुफाओं में ठहरते थे. ऊंचाई पर होने के कारण जानवरों का डर नहीं होता था.

स्थानीय आदिवासी फागूराम ने इन क्षेत्रों के विषय में एक और प्रमाण दिया. फागूराम का कहना है कि वह जब से पैदा हुए हैं, तब से इसी क्षेत्र में निवास करते हैं. जंगल ही उनका घर है. उनकी उम्र वर्तमान में लगभग 60 वर्ष के करीब है. जब तक उनके पिता जीवित थे, तब तक उनसे यही जानकारी मिली कि यहां पर पहाड़ों के ऊपर कुछ कलाकृतियां हैं, जो काफी पुरानी हैं. फागूराम कहते हैं कि उनके पिता को भी यह बात उनके पूर्वजों ने बताई थी. फागूराम कलाकृतियों के विषय में कहते हैं कि पता नहीं यह शैलचित्र कितने पुराने हैं.

अब संरक्षित स्थलों की संख्या बढ़कर होगी 6

अब तक कोरबा जिले में पुरातत्व की दृष्टि से संरक्षित स्थलों की संख्या 4 थी. बरहाझरिया और हाथामाड़ा को संरक्षित स्थल घोषित करने के बाद अकेले कोरबा में संरक्षित स्थलों की संख्या बढ़कर अब 6 हो जाएगी.

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