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कोरबा बना गैस चैंबर, प्रदूषण स्तर हुआ दिल्ली जैसा खतरनाक ! - increasing pollution in korba

pollution in korba प्रदेश की उर्जाधानी कोरबा का एयर क्वालिटी इंडेक्स अब खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है. हाल ही में कोरबा के हवा में प्रदूषण के स्तर को दिल्ली जैसा होने का दावा किया गया है. कोरबा जिले में 8400 मेगावाट विद्युत का उत्पादन होता है. जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचा है. आम जनता भी कई तरह की समस्याएं झेल रही है.

Korba air reached dangerous level
कोरबा की हवा हुई जहरीली
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Published : Nov 25, 2022, 9:06 PM IST

कोरबा: pollution in korba कोरबा जिले में प्रदूषण का बढ़ा हुआ स्तर दशकों से चर्चा का विषय बना रहा है. हाल ही में प्रदूषण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था एनवायरनिक्स ट्रस्ट ने दिल्ली और कोरबा के प्रदूषण का अध्ययन किया है. जिसमें संस्था ने यह पाया है कि कोरबा और दिल्ली में पर्टिकुलर मैटर (पीएम) का स्तर एक जैसा है. जिसका असर पर्यावरण पर पड़ रहा है. कोरबा का एयर क्वालिटी इंडेक्स(AQI) लगातार बिगड़ रहा है. अक्टूबर के अंत में कोरबा का अधिकतम AQI 229 के आसपास दर्ज किया गया है. हालांकि स्थानीय पर्यावरण अधिकारी का कहना है. कोरबा की स्थिति इतनी भी चिंताजनक नहीं है. कुछ क्षेत्रों में इसका स्तर खराब है. जिसपर हम लगातार काम कर रहे हैं.

कोरबा की हवा हुई जहरीली
रिपोर्ट में इस तरह के दावे: एनवायरनिक्स ट्रस्ट की नियमित निगरानी रिपोर्ट पर नजर डालने पर कई चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं. 2022 के अक्टूबर माह के जारी नतीजों में कोरबा में वायु गुणवत्ता सूचकांक या AQI 227 के करीब दर्ज किया गया है. दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स भी कोरबा जैसा ही है. संस्था का दावा है कि कोरबा और दिल्ली में प्रदूषण का स्तर एक जैसा है. अक्सर दिल्ली में प्रदूषण का स्तर और वहां की खराब एयर क्वालिटी इंडेक्स की बात होती है. लेकिन कोरबा की चर्चा उस तरह से नहीं की जाती.एक नजर कोरबा के परिदृश्य पर: कोरबा को प्रदेश की ऊर्जाधानी कहा जाता है. जिसका कारण यहां पैदा किए जाने वाले बिजली और विकराल कोयले की खदानें हैं. कोरबा के प्रदूषण पर चर्चा करने के पहले यहां के पर्यावरणीय परिदृश्य को जान लेना भी जरूरी है. कोरबा जिले में कोयले पर आधारित दर्जनभर पावर प्लांट हैं. जिनसे लगातार बिजली का उत्पादन हो रहा है. पावर प्लांटों से 8400 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. बिजली संयंत्रों को कोल इंडिया की सबसे बड़ी कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड(एसईसीएल) की खदानों से कोयला सप्लाई किया जाता है. जिसकी 14 कोयला खदानें जिले में संचालित हैं. इनसे 1250 लाख टन कोयले का उत्पादन हो रहा है. देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए 20% कोयले का उत्पादन कोरबा जिले में होता है.संस्था ने 17 स्थानों पर फिट किए हैं वायु गुणवत्ता मीटर: एनवायरनिक्स संस्था से जुड़े पर्यावरण एक्टिविस्ट लक्ष्मी चौहान ने बताया "हमारी संस्था ने जिले में सराईश्रृंगार, हरदीबाजार, पाली, दर्री, जमनीपाली, कुसमुंडा समेत 17 स्थानों पर वायु गुणवत्ता को जांचने वाली मशीन लगाई हैं. जिससे हम जिले में पैदा होने वाले प्रदूषण की निगरानी करते रहते हैं. जिले का एयर क्वालिटी इंडेक्स काफी खराब है. जिससे मानव स्वास्थ्य पर कई तरह के विपरीत प्रभाव पड़ते हैं. इससे कई तरह की बीमारियां भी हो सकती हैं. यह एक खतरनाक स्थिति है. जिससे निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे. कोरबा जिले में लगातार दमा के मरीज भी बढ़ रहे हैं. 2021 में 4000 से अधिक दमा के मरीज अपना इलाज करा चुके हैं."सड़कों से उड़ने वाला धूल भी प्रदूषण का बड़ा कारण: कोयला खदान और पावर प्लांट से उत्सर्जित प्रदूषण के साथ ही साथ कोरबा जिले की खराब सड़कें भी प्रदूषण के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं. कोरबा जिले की ज्यादातर सड़कें बेहद जर्जर हालत में हैं. अब इन्हीं सड़कों से कोयला लदे भारी वाहन लगातार कोयले का परिवहन करते हैं. भारी वाहन अपने साथ धूल का गुबार लिए चलते हैं. दोपहिया वाहनों के लिए तो मानो ये भारी वाहन मौत बनकर सड़कों पर दौड़ रहे हैं.

यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ में तुलसी की खेती बन सकती है धान का विकल्प, किसानों को होगा अच्छा मुनाफा


ज्यादातर राखड़ बांध भी फुल, कहीं भी फेंक रहे राख: कोयला आधारित पावर प्लांट से बिजली उत्पादन के दौरान फ्लाई ऐश का उत्सर्जन होता है. जिसमें कई तरह के घातक केमिकल मौजूद होते हैं. इसे नियमानुसार डिस्पोज करना होता है. जिसके लिए पावर प्लांट फ्लाई एश डैम का निर्माण करते हैं. प्लांट से उत्सर्जित राख को पाइपलाइन के जरिए राख डैम में पहुंचाया जाता है. लेकिन वर्तमान में जिले में संचालित ज्यादातर पावर प्लांट के राख डैम फुल हो चुके हैं. वह अपनी क्षमता को पार कर चुके हैं. अब जिले में यह स्थिति आम हो चुकी है. जब पावर प्लांट से निकले राख को नियम विरुद्ध तरीके से कहीं भी डंप कर दिया जाता है. काफी हल्की होने के कारण ये राख हल्की सी हवा चलने पर उड़ने लगती है. हवा के जरिए लोगों के फेफड़ों तक पहुंच रही है. जिससे खतरनाक परिस्थिति निर्मित होने की संभावना है.



स्थिति उतनी गंभीर नहीं, हम लगातार कर रहे काम: इस विषय में कोरबा जिले के पर्यावरण संरक्षण मंडल के रीजनल ऑफिसर शैलेश पिस्दा ने बताया "कोरबा में प्रदूषण का स्तर उतना खराब नहीं है. जितना कि महानगरों में होता है. हालांकि कुछ स्थान जहां सिगड़ी में कोयला जलाकर लोग खाना पकाते हैं. इसके अलावा भी कुछ एक स्थानों में एयर क्वालिटी इंडेक्स थोड़ा खराब है. लेकिन अन्य स्थानों पर स्थिति नियंत्रण में है. जिसमें सुधार लाने का हम लगातार प्रयास कर रहे हैं."

कोरबा: pollution in korba कोरबा जिले में प्रदूषण का बढ़ा हुआ स्तर दशकों से चर्चा का विषय बना रहा है. हाल ही में प्रदूषण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था एनवायरनिक्स ट्रस्ट ने दिल्ली और कोरबा के प्रदूषण का अध्ययन किया है. जिसमें संस्था ने यह पाया है कि कोरबा और दिल्ली में पर्टिकुलर मैटर (पीएम) का स्तर एक जैसा है. जिसका असर पर्यावरण पर पड़ रहा है. कोरबा का एयर क्वालिटी इंडेक्स(AQI) लगातार बिगड़ रहा है. अक्टूबर के अंत में कोरबा का अधिकतम AQI 229 के आसपास दर्ज किया गया है. हालांकि स्थानीय पर्यावरण अधिकारी का कहना है. कोरबा की स्थिति इतनी भी चिंताजनक नहीं है. कुछ क्षेत्रों में इसका स्तर खराब है. जिसपर हम लगातार काम कर रहे हैं.

कोरबा की हवा हुई जहरीली
रिपोर्ट में इस तरह के दावे: एनवायरनिक्स ट्रस्ट की नियमित निगरानी रिपोर्ट पर नजर डालने पर कई चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं. 2022 के अक्टूबर माह के जारी नतीजों में कोरबा में वायु गुणवत्ता सूचकांक या AQI 227 के करीब दर्ज किया गया है. दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स भी कोरबा जैसा ही है. संस्था का दावा है कि कोरबा और दिल्ली में प्रदूषण का स्तर एक जैसा है. अक्सर दिल्ली में प्रदूषण का स्तर और वहां की खराब एयर क्वालिटी इंडेक्स की बात होती है. लेकिन कोरबा की चर्चा उस तरह से नहीं की जाती.एक नजर कोरबा के परिदृश्य पर: कोरबा को प्रदेश की ऊर्जाधानी कहा जाता है. जिसका कारण यहां पैदा किए जाने वाले बिजली और विकराल कोयले की खदानें हैं. कोरबा के प्रदूषण पर चर्चा करने के पहले यहां के पर्यावरणीय परिदृश्य को जान लेना भी जरूरी है. कोरबा जिले में कोयले पर आधारित दर्जनभर पावर प्लांट हैं. जिनसे लगातार बिजली का उत्पादन हो रहा है. पावर प्लांटों से 8400 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. बिजली संयंत्रों को कोल इंडिया की सबसे बड़ी कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड(एसईसीएल) की खदानों से कोयला सप्लाई किया जाता है. जिसकी 14 कोयला खदानें जिले में संचालित हैं. इनसे 1250 लाख टन कोयले का उत्पादन हो रहा है. देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए 20% कोयले का उत्पादन कोरबा जिले में होता है.संस्था ने 17 स्थानों पर फिट किए हैं वायु गुणवत्ता मीटर: एनवायरनिक्स संस्था से जुड़े पर्यावरण एक्टिविस्ट लक्ष्मी चौहान ने बताया "हमारी संस्था ने जिले में सराईश्रृंगार, हरदीबाजार, पाली, दर्री, जमनीपाली, कुसमुंडा समेत 17 स्थानों पर वायु गुणवत्ता को जांचने वाली मशीन लगाई हैं. जिससे हम जिले में पैदा होने वाले प्रदूषण की निगरानी करते रहते हैं. जिले का एयर क्वालिटी इंडेक्स काफी खराब है. जिससे मानव स्वास्थ्य पर कई तरह के विपरीत प्रभाव पड़ते हैं. इससे कई तरह की बीमारियां भी हो सकती हैं. यह एक खतरनाक स्थिति है. जिससे निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे. कोरबा जिले में लगातार दमा के मरीज भी बढ़ रहे हैं. 2021 में 4000 से अधिक दमा के मरीज अपना इलाज करा चुके हैं."सड़कों से उड़ने वाला धूल भी प्रदूषण का बड़ा कारण: कोयला खदान और पावर प्लांट से उत्सर्जित प्रदूषण के साथ ही साथ कोरबा जिले की खराब सड़कें भी प्रदूषण के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं. कोरबा जिले की ज्यादातर सड़कें बेहद जर्जर हालत में हैं. अब इन्हीं सड़कों से कोयला लदे भारी वाहन लगातार कोयले का परिवहन करते हैं. भारी वाहन अपने साथ धूल का गुबार लिए चलते हैं. दोपहिया वाहनों के लिए तो मानो ये भारी वाहन मौत बनकर सड़कों पर दौड़ रहे हैं.

यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ में तुलसी की खेती बन सकती है धान का विकल्प, किसानों को होगा अच्छा मुनाफा


ज्यादातर राखड़ बांध भी फुल, कहीं भी फेंक रहे राख: कोयला आधारित पावर प्लांट से बिजली उत्पादन के दौरान फ्लाई ऐश का उत्सर्जन होता है. जिसमें कई तरह के घातक केमिकल मौजूद होते हैं. इसे नियमानुसार डिस्पोज करना होता है. जिसके लिए पावर प्लांट फ्लाई एश डैम का निर्माण करते हैं. प्लांट से उत्सर्जित राख को पाइपलाइन के जरिए राख डैम में पहुंचाया जाता है. लेकिन वर्तमान में जिले में संचालित ज्यादातर पावर प्लांट के राख डैम फुल हो चुके हैं. वह अपनी क्षमता को पार कर चुके हैं. अब जिले में यह स्थिति आम हो चुकी है. जब पावर प्लांट से निकले राख को नियम विरुद्ध तरीके से कहीं भी डंप कर दिया जाता है. काफी हल्की होने के कारण ये राख हल्की सी हवा चलने पर उड़ने लगती है. हवा के जरिए लोगों के फेफड़ों तक पहुंच रही है. जिससे खतरनाक परिस्थिति निर्मित होने की संभावना है.



स्थिति उतनी गंभीर नहीं, हम लगातार कर रहे काम: इस विषय में कोरबा जिले के पर्यावरण संरक्षण मंडल के रीजनल ऑफिसर शैलेश पिस्दा ने बताया "कोरबा में प्रदूषण का स्तर उतना खराब नहीं है. जितना कि महानगरों में होता है. हालांकि कुछ स्थान जहां सिगड़ी में कोयला जलाकर लोग खाना पकाते हैं. इसके अलावा भी कुछ एक स्थानों में एयर क्वालिटी इंडेक्स थोड़ा खराब है. लेकिन अन्य स्थानों पर स्थिति नियंत्रण में है. जिसमें सुधार लाने का हम लगातार प्रयास कर रहे हैं."

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