कोरबा: 25 जून 1975 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी. इस दौरान विपक्षी नेताओं के साथ ही समाजसेवियों को रातों-रात जेल में डाल दिया गया था. मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट (मीसा) कानून के तहत हजारों की तादाद में लोगों को जेल भेज दिया गया है. इस आवधि में जेल जाने वाले लोगों को मीसाबंदी कहा जाता है.
छत्तीसगढ़ में कोरबा के एल एन कड़वे ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्हें मीसा के तहत जेल में कैद किया गया था. कड़वे आपातकाल की पूरी अवधि यानी कि 19 माह तक जेल में रहे थे. वर्तमान में वह 87 साल के हैं, जिनकी नजर भी अब कमजोर हो चुकी है.
कांग्रेस सरकार ने बंद की पेंशन
सरकार ने मीसा बंदियों की पेंशन को भी बंद कर दिया है. गणतंत्र दिवस के 1 दिन पहले ही आपातकाल के साथ ही आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी के साथ किए गए कार्यों के अनुभव को उन्होंने ETV भारत के साथ साझा किया. कड़वे बताते हैं कि, मीसाबंदियों के पेंशन को वर्तमान कांग्रेस सरकार ने बंद कर दिया है. वे कहते हैं कि, 'यह ऐसे लोगों को दिया जाता था जिन्होंने आपातकाल को झेला है, जिन्होंने घर से उपर देश को रखा है. उन्होंने बताया कि ऐसा कोई कारण नहीं हैं, जिससे कि मीसाबंदियों को पेंशन से महरूम रखा जाए . इस राशि को पेंशन कहना भी ठीक नहीं है. इसे मानधन और सम्मान निधि कहा जाना चाहिए. वे बताते हैं कि, 'यह कोई भीख नहीं है, यह मीसाबंदियों का अधिकार है. इससे कि उन्हें वंचित नहीं किया जाना चाहिए'.
सेवाग्राम आश्रम में गांधी जी के साथ किया काम
महात्मा गांधी के साथ अपने अनुभव साझा करते हुए कड़वे बताते हैं कि, 'आजादी के आंदोलन में वे भी छोटा सा योगदान दिए थे'. गांधी जब साउथ अफ्रीका से वापस आए तब उन्होंने वर्धा में सेवाग्राम आश्रम की स्थापना की थी. जहां दुनियाभर से लोग आते है'. उन्होंने कहा कि, 'यहीं से क्रांति की शुरुआत हुई, उस समय वे बहुत कम उम्र के थे'.
'सुभाष चंद्र बोस के भी कायल'
वैसे तो कड़वे गांधी जी के विचारों पर चलते हैं, लेकिन वह सुभाष चंद्र बोस के भी कायल हैं. उन्हीं के प्रयास से कोरबा के निहारिका क्षेत्र में सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा की स्थापना की गई थी. अब इस चौक पर सुभाष चौक के नाम से ही जाना जाता है. वह रोज सुबह घर से निकल कर चौराहे पर लगी सुभाष चंद्र बोस के प्रतिमा की परिक्रमा करते हैं. उन्हें प्रणाम करते हैं और फिर अपने बेटे की कपड़ों की दुकान में समय बिताते हैं'.
क्या है मीसाबंदी
25 जून 1975 की आधी रात देशभर में एक अध्यादेश के बाद आपातकाल लगा दिया गया था. इस दौरान संविधान के अनुसार दिए गए नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था. बंदी प्रत्यक्षीकरण कानून खत्म हो गया था. इसके बाद गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अदालत में 24 घंटे के भीतर प्रस्तुत करने का नियम शिथिल कर दिया गया था. कांग्रेस शासित राज्यों के मीसा कानून में एक लाख सत्ता विरोधी लोगों को जेल भेज दिया गया था. उन दिनों छत्तीसगढ़ अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा था और यहां कांग्रेस की ही सरकार थी.
पेंशन के तौर पर मिलते थे 25 हजार रुपये
इस दौरान जो भी बंदी जेल में रहे वह मीसाबंदी कहलाते हैं. जहां भी भाजपा की सरकार रहती है, मीसाबंदियों को एक तरह से स्वतंत्रता सेनानी या लोकतंत्र सेनानी का नाम देकर पेंशन दिया जाता है. लेकिन पूरे भारत के कांग्रेस प्रशासित प्रदेशों में मीसाबंदी की पेंशन को बंद कर दिया गया. वर्तमान में छत्तीसगढ़ में भी मीसाबंदियों को दिए जाने वाले 25 हजार प्रति माह का पेंशन बंद कर दिया गया है. हाल ही में हाईकोर्ट ने भी फैसला दे दिया है कि, मीसाबंदियों को ससम्मान पेंशन दिया जाए.