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world thalassemia day: जानिए क्यों होता है ये रोग, क्या है इलाज - थैलेसीमिया

थैलेसीमिया बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाला आनुवांशिक रक्त रोग है. इसी कड़ी में बुधवार को जिला अस्पताल में कुछ जिम्मेदार नागरिकों ने रक्तदान किया.

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Published : May 9, 2019, 8:15 AM IST

Updated : May 9, 2019, 11:34 AM IST

कोंडागांव: हर साल 8 मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे के रूप में मनाया जाता है. थैलेसीमिया बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाला आनुवांशिक रक्त रोग है. इसी कड़ी में बुधवार को जिला अस्पताल में कुछ जिम्मेदार नागरिकों ने रक्तदान किया.

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थैलेसीमिया रोग की पहचान बच्चों में 3 महीने के बाद ही हो जाती है. बच्चों में देखी जाने वाली इस बीमारी की वजह से शरीर में रक्त की कमी होने लगती है और उचित उपचार न मिलने पर बच्चे की मृत्यु तक हो सकती है.

क्यों होता है थैलेसीमिया
आम तौर पर हर सामान्य व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है. लेकिन थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र घटकर मात्र 20 दिन ही रह जाती है. इसका सीधा असर व्यक्ति के हीमोग्लोबिन पर पड़ता है, जिसके कम होने पर व्यक्ति एनीमिया का शिकार हो जाता है और हर समय किसी न किसी बीमारी से ग्रसित रहने लगता है.

थैलेसीमिया के प्रकार
इस रोग के बारे में डॉ संजय बसाक ने बताया कि थैलेसीमिया दो तरह का होता है. माइनर थैलेसीमिया और मेजर थैलेसीमिया. किसी महिला या पुरुष के शरीर में मौजूद क्रोमोजोम खराब होने पर बच्चा माइनर थैलेसीमिया का शिकार बनता है. जबकि अगर महिला और पुरुष दोनों व्यक्तियों के क्रोमोजोम खराब हो जाते हैं तो ये मेजर थैलेसीमिया की स्थिति बनाता है. इस वजह से बच्चे के जन्म लेने के 6 महीने के बाद उसके शरीर मे खून बनना बंद हो जाता है और उसे बार-बार खून चढ़वाने की जरूरत पड़ने लगती है.

क्या कहते हैं डोनर
वर्ल्ड थैलेसीमिया डे के अवसर पर रक्तदान करने पहुंचे एक व्यक्ति ने बताया कि वे बीते 20 सालों से लगातार हर 3 महीने में रक्तदान करते आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि इमरजेंसी की स्थिति में वे पीड़ितों को रक्तदान करने पहुंच जाते हैं.

बहरहाल आंकड़ों के मुताबिक जिले में अभी तक थैलेसीमिया के कोई भी मरीज डायग्नोसिस नहीं हुए हैं.

कोंडागांव: हर साल 8 मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे के रूप में मनाया जाता है. थैलेसीमिया बच्चों को उनके माता-पिता से मिलने वाला आनुवांशिक रक्त रोग है. इसी कड़ी में बुधवार को जिला अस्पताल में कुछ जिम्मेदार नागरिकों ने रक्तदान किया.

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थैलेसीमिया रोग की पहचान बच्चों में 3 महीने के बाद ही हो जाती है. बच्चों में देखी जाने वाली इस बीमारी की वजह से शरीर में रक्त की कमी होने लगती है और उचित उपचार न मिलने पर बच्चे की मृत्यु तक हो सकती है.

क्यों होता है थैलेसीमिया
आम तौर पर हर सामान्य व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है. लेकिन थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र घटकर मात्र 20 दिन ही रह जाती है. इसका सीधा असर व्यक्ति के हीमोग्लोबिन पर पड़ता है, जिसके कम होने पर व्यक्ति एनीमिया का शिकार हो जाता है और हर समय किसी न किसी बीमारी से ग्रसित रहने लगता है.

थैलेसीमिया के प्रकार
इस रोग के बारे में डॉ संजय बसाक ने बताया कि थैलेसीमिया दो तरह का होता है. माइनर थैलेसीमिया और मेजर थैलेसीमिया. किसी महिला या पुरुष के शरीर में मौजूद क्रोमोजोम खराब होने पर बच्चा माइनर थैलेसीमिया का शिकार बनता है. जबकि अगर महिला और पुरुष दोनों व्यक्तियों के क्रोमोजोम खराब हो जाते हैं तो ये मेजर थैलेसीमिया की स्थिति बनाता है. इस वजह से बच्चे के जन्म लेने के 6 महीने के बाद उसके शरीर मे खून बनना बंद हो जाता है और उसे बार-बार खून चढ़वाने की जरूरत पड़ने लगती है.

क्या कहते हैं डोनर
वर्ल्ड थैलेसीमिया डे के अवसर पर रक्तदान करने पहुंचे एक व्यक्ति ने बताया कि वे बीते 20 सालों से लगातार हर 3 महीने में रक्तदान करते आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि इमरजेंसी की स्थिति में वे पीड़ितों को रक्तदान करने पहुंच जाते हैं.

बहरहाल आंकड़ों के मुताबिक जिले में अभी तक थैलेसीमिया के कोई भी मरीज डायग्नोसिस नहीं हुए हैं.

Intro:आज दुनियाभर में वर्ल्ड थैलेसीमिया डे मनाया गया, कोण्डागाँव जिला अस्पताल में भी कुछ जिम्मेदार नागरिकों ने इस दिवस पर रक्तदान किया....







Body:आज दुनियाभर में वर्ल्ड थैलेसीमिया डे मनाया गया,कोण्डागाँव में भी जागरूक रक्तदाताओं ने रक्तदान कर इस वर्ल्ड थैलेसीमिया डे को मनाया,
थैलेसीमिया बच्चों को उनके माता पिता से मिलने वाला आनुवांशिक रक्त रोग है , इस रोग की पहचान बच्चे में 3 महीने के बाद ही हो जाती है।
ज्यादातर बच्चों में देखी जाने वाली इस बीमारी की वजह से शरीर मे रक्त की कमी होने लगती है और उचित उपचार न मिलने पर बच्चे की मृत्यु तक हो सकती है

आमतौर पर हर सामान्य व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है, लेकिन थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी के शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र घटकर मात्र 20 दिन ही रह जाती है, इसका सीधा असर व्यक्ति के हीमोग्लोबिन पर पड़ता है, जिसके कम होने पर व्यक्ति एनीमिया का शिकार हो जाता है और हर समय किसी न किसी बीमारी से ग्रसित रहने लगता है।

वर्ल्ड थैलेसीमिया डे पर कोण्डागाँव के कई नागरिकों ने आज जिला अस्पताल पहुंच रक्तदान किया,
इन्हीं में से कोण्डागाँव मेथोडिस्ट चर्च के पास्टर विक्टर डेनियल भी रक्तदान पहुँचे और वे केवल आज विशेष दिन ही नहीं बल्कि वे पिछले 20 सालों से लगातार हर 3 महीने में रक्तदान करते आ रहे हैं और कभी कभी तो इमरजेंसी की स्थिति में भी वे पीडितों को रक्तदान करने पहुंच जाते हैं।
उन्होंने बताया कि ऐसा करके उन्हें अच्छा महसूस होता है , बल्कि उन्होंने सभी से अपील भी की कि हर किसी को हमेशा कम से कम हर 3 से 6 माह में रक्तदान करने चाहिए।
बाइट - रक्तदाता विक्टर डेनियल
बाइट - डॉ संजय बसाक, जिला अस्पताल कोण्डागाँव
Conclusion:डॉ संजय बसाक ने बताया कि थैलेसीमिया 2 तरह का होता है, माइनर थैलेसीमिया और मेजर थैलेसीमिया, किसी महिला या पुरूष के शरीर मे मौजूद क्रोमोजोम खराब होने पर बच्चा माइनर थैलेसीमिया का शिकार बनता है, जबकि अगर महिला और पुरूष दोनों व्यक्तिओं के क्रोमोजोम खराब हो जाते हैं तो यह मेजर थैलेसीमिया की स्थिति बनाता है जिसकी वजह से बच्चे के जन्म लेने के 6 महीने के बाद उसके शरीर मे खून बनना बन्द हो जाता है और उसे बार-बार खून चढ़वाने की जरूरत पड़ने लगती है।
आँकड़ों के अनुसार कोण्डागाँव जिले में अभी तक थैलेसीमिया के कोई भी मरीज डायग्नोसिस नहीं हुए हैं।
Last Updated : May 9, 2019, 11:34 AM IST
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