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इस गांव के हाल हैं बेहाल, झिरिया के पानी से बुझती है प्यास

मुल्क को आजाद हुए सात दशक से ज्यादा का वक्त बीत गया. मुल्क ने तरक्की के नए-नए आयाम गढ़े. भले ही देश आज डिजिटल युग में पहुंच चुका है, लेकिन छत्तीसगढ़ में कुछ ऐसे भी इलाके हैं, जहां आज भी लोगों को पेयजल के लिए झिरिया पर निर्भर रहना पड़ता है.

गांव में पानी की किल्लत
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Published : Apr 20, 2019, 12:03 AM IST

कोंडागांव: जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद ग्राम जोबा में रहने वाले लोग मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं और तो और यहां रहने वाले ग्रामीणों को झिरिया का गंदा पानी पीकर अपनी प्यास बुझानी पड़ती है.

स्टोरी पैकेज


नीचे पहुंचा जल स्तर
पथरीला इलाका होने की वजह से यहां का जलस्तर काफी नीचे जा चुका है. सरपंच का कहना है कि वो कई बार पीएचई के अधिकारियों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन उनका रटा-रटाया जवाब रहता है. गांव में हैंडपंप तो मौजूद हैं लेकिन, मेंटिनेंस नहीं होने की वजह से वो महज शो-पीस बनकर रह गया है. ग्रामीणों ने ईटीवी भारत की टीम को बताया कि पेयजल से लेकर निस्तारी के लिए उन्हें लंबा सफर करना पड़ता है.


सूख गए बोरवेल
ग्रामीणों ने बताया कि गांव के करीब 20 घरों में वोरिंग तो है, लेकिन जलस्तर नीचे जाने की वजह से ये सूख चुके हैं. प्राथमिक विद्यालय बड़े उसरी की शिक्षिका एसआर बघेल ने बताया स्कूल में पानी की भारी समस्या है, यहां एक हैंडपंप था, जो पिछले चार साल से बंद है. बच्चों को पेयजल के लिए आधा किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है.


प्रशासन नहीं ले रहा सुध
जब हमने इस मामले में पीएचई विभाग के एग्जिक्यूटिव इंजीनियर से बात की तो, उन्होंने क्या कहा यह आप हमारे संवाददाता से सुन लीजिए. एक ओर जहां मुल्क लगातार तरक्की कर रहा है. वहीं दूसरी ओर ग्रामीण इलाके के लोग जिस तरह से नाले का गंदा पानी पीकर जिंदगी जीने को मजबूर हैं, यह यकीनन इंडिया और भारत के बीच का फर्क बयां करता है.

कोंडागांव: जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद ग्राम जोबा में रहने वाले लोग मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं और तो और यहां रहने वाले ग्रामीणों को झिरिया का गंदा पानी पीकर अपनी प्यास बुझानी पड़ती है.

स्टोरी पैकेज


नीचे पहुंचा जल स्तर
पथरीला इलाका होने की वजह से यहां का जलस्तर काफी नीचे जा चुका है. सरपंच का कहना है कि वो कई बार पीएचई के अधिकारियों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन उनका रटा-रटाया जवाब रहता है. गांव में हैंडपंप तो मौजूद हैं लेकिन, मेंटिनेंस नहीं होने की वजह से वो महज शो-पीस बनकर रह गया है. ग्रामीणों ने ईटीवी भारत की टीम को बताया कि पेयजल से लेकर निस्तारी के लिए उन्हें लंबा सफर करना पड़ता है.


सूख गए बोरवेल
ग्रामीणों ने बताया कि गांव के करीब 20 घरों में वोरिंग तो है, लेकिन जलस्तर नीचे जाने की वजह से ये सूख चुके हैं. प्राथमिक विद्यालय बड़े उसरी की शिक्षिका एसआर बघेल ने बताया स्कूल में पानी की भारी समस्या है, यहां एक हैंडपंप था, जो पिछले चार साल से बंद है. बच्चों को पेयजल के लिए आधा किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है.


प्रशासन नहीं ले रहा सुध
जब हमने इस मामले में पीएचई विभाग के एग्जिक्यूटिव इंजीनियर से बात की तो, उन्होंने क्या कहा यह आप हमारे संवाददाता से सुन लीजिए. एक ओर जहां मुल्क लगातार तरक्की कर रहा है. वहीं दूसरी ओर ग्रामीण इलाके के लोग जिस तरह से नाले का गंदा पानी पीकर जिंदगी जीने को मजबूर हैं, यह यकीनन इंडिया और भारत के बीच का फर्क बयां करता है.

Intro:संसदीय क्षेत्र बस्तर के कोंडागांव विधानसभा में कई ग्राम ऐसे भी हैं जो आज भी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर हैं,
सब्जबाग न दिखाओ साहब ... शौचालय तो बनवा दिए, यहाँ पीने को पानी नसीब नहीं, शौचालय का इस्तेमाल कैसे करें....


Body:मुख्य मार्ग NH 30 से सटा , जिला मुख्यालय कोंडागांव से महज 20 किलोमीटर ग्राम पंचायत जोबा और उसके आश्रित ग्राम बड़े उसरी के ग्रामीण आज डिजिटल इंडिया के जमाने में भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे , सरकार, शासन-प्रशासन विकास के दावे तो करती है, पर यहां मुख्य मार्ग से सटे ग्राम की जमीनी हकीकत कुछ और ही है,
ऐसा नहीं है कि यहाँ की भौगोलिक स्थिति से अधिकारी-नेता- जनप्रतिनिधि अवगत नहीं हैं, पथरीला क्षेत्र है, भूजल स्तर भी बहोत नीचे है पर कहीं-कहीं,
जिम्मेदार अधिकारी यदि जवाबदारी से कार्य करें तो यहाँ के ग्रामीणों को यूँ पानी का मोहताज नहीं होना पड़ता।
सरपंच सुदरू कश्यप के द्वारा पानी के लिए PHE विभाग के अधिकारियों को बार-बार गुहार लगाने पर अधिकारी कहते हैं "जब पता है पथरीला क्षेत्र है, पानी नहीं है तो वहाँ घर ही क्यों बनाये"

आज भी जोबा व बड़े उसरी विकास के नक्शे से गायब है, जहाँ प्रशासन के द्वारा किये गए विकास के सारे दावे खोखले साबित हो रहे।
गांव के निवासी आज भी सड़क पानी जैसी तमाम मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं , जिन्हें पीने के पानी के लिए बरसाती नाले पर निर्भर रहना पड़ता है,, ग्राम पंचायत जोबा के आश्रित ग्राम बड़े उसरी में पीने की पानी की भारी किल्लत है, गांव में बने चार हैंडपंप मात्र शोपीस बनकर रह गए हैं ।
डोंगरीगुड़ापारा की शामबती ,सुकयारीन, रमली, चैतू राम आदि ने ईटीवी को बताया कि गांव में पानी की सुविधा नहीं रहने से निस्तारि व पीने के पानी के लिए गांव के किनारे बहने वाली बरसाती "भूमका नाला" पर निर्भर रहना पड़ता है ।
बार बार बताने पर भी हमारी बातें अधिकारी व नेता नहीं सुनते।
गांव के किनारे बहने वाली बरसाती नाला है , सूखे नाले में गड्ढा करके "झिरिया पानी" निकालते हैं उसी पानी को पीने , भोजन पकाने का उपयोग करते हैं , नाले में मवेशी आदमी भी नहाते हैं।
बजबजाती नाले के गंदे पानी से बीमारी होता है पर क्या करें दूसरा विकल्प ही नहीं है हमारे पास

गंगाधर बघेल, समलु बघेल मुंडीगुड़ापारा जोबा ने बताया पारा में 20 घर है पंप है पर पानी नहीं। दो-तीन किलोमीटर दूर खेत में एक कुआं है वहीं से पानी लाते हैं दो-तीन बार पानी लाते लाते दिन का 12:00 बज जाता है ।पंचायत में कई बार आवेदन दिए पर अधिकारी नहीं सुनते। चुनाव के समय नेता गांव में पानी की समस्या निदान की बात कहते हैं पर चुनाव जीतते ही भूल जाते हैं।

प्राथमिक विद्यालय बड़े उसरी की शिक्षिका एसआर बघेल ने बताया विद्यालय में कक्षा 1 से 5 तक कुल 48 बच्चे हैं , विद्यालय में पानी की भारी समस्या है विद्यालय के सामने बोरिंग था जो तीन-चार साल से बंद पड़ा है अधिकारियों को बताने के बाद भी अभी तक नहीं बना।
स्कूल में बच्चों के पीने हेतु पानी आधा किलोमीटर दूर मुख्य मार्ग 30 पर स्थित ढाबा से लाते हैं।


Conclusion:गांव के सरपंच सूदरू कश्यप का कहना है कि गांव में पानी की समस्या है अप्रैल महीने से पंचायत द्वारा टैंकर के माध्यम से गांव में पानी की सप्लाई की जाती है अधिकारियों को अवगत कराने के पश्चात भी अभी तक समस्या यथावत बना हुआ है। ग्राम पंचायत में महत्वाकांक्षी नल जल योजना की आवश्यकता है।

वहीं ईई हरिमंगल सिंह व डीसी नानोले एसडीओ जल संसाधन विभाग कोंडा गांव कहना है कि जोबा में नल-जल योजना चालू है खेत में बोर है ,बोर से गांव में पानी की सप्लाई होती है जिसके चलते ग्राम पंचायत जोबा में व आश्रित ग्राम बड़े उसरी में पानी की समस्या नहीं है।
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