कोंडागांव: प्रदेश में कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं, जिनकी बहुत मान्यता है. ऐसा ही है लिंगई माता का मंदिर, जो आलोर ग्राम के झांटीबंध पारा में स्थित है. ये एक गुफानुमा मंदिर है, जिसमें श्रद्धालुओं की बहुत आस्था है. इस मंदिर का द्वार साल में बस एक बार ही खुलता है. वह भी नयाखानी महापर्व के बाद आने वाले पहले बुधवार को.
इस साल कोरोना संक्रमण की वजह से लिंगई माता का दरबार तो खुलेगा, लेकिन श्रद्धालुओं को प्रवेश की अनुमति नहीं मिलेगी. संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए मंदिर समिति के सदस्यों ने पूजा-अनुष्ठान कर पट बंद करने का फैसला लिया है.
बड़े पैमाने पर होता है आयोजन
देश के अलग-अलग राज्यों से श्रद्धालु इस प्राचीन मंदिर के दर्शन करने पहुंचते हैं. माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है. हालांकि इस साल कोरोना के कारण मंदिर प्रांगण सूना पड़ा है. राज्यसभा सांसद फूलोदेवी नेताम ने भी इसे लेकर जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि मंदिर समिति ने इस साल मंदिर को बंद रखने का फैसला लिया है.
स्तूपाकार गुफा है मंदिर की खास पहचान
आलोर के उत्तर-पश्चिम दिशा में एक छोटी सी पहाड़ी है, जिसके ऊपर एक विशाल चट्टान है. बाहर से बिलकुल सामान्य दिखने वाला यह चट्टान अंदर से स्तूपाकार है, मानों जैसे किसी कटोरे को उलट दिया गया हो. इस गुफा का एक ही प्रवेश द्वार है जो सुरंगनुमा है. यहां बैठकर या लेटकर ही प्रवेश किया जा सकता है. वहीं अंदर एक साथ 15 से 20 लोगों के बैठने की ही जगह है.
संतान प्राप्ति की मान्याता होती है पूरी
इस गुफा के अंदर एक पत्थर से लिंग की आकृति बनी हुई है. इस आकृति को स्थानीय लिंगई माता के नाम से पुकारते हैं. यहां मन्नत मांगने की भी अलग ही रीत है. संतान की कामना लेकर आए दंपतियों को यहां खीरा चढ़ाना अनिवार्य है. इसी खीरे को पुजारी पूजा के बाद दंपति को वापस देते हैं, जिसके बाद दंपति खीरे को खुद के नाखून से फाड़कर लिंग के समक्ष ही खाते हैं.
वहीं जिन लोगों को मंदिर के पट बंद होने के बारे में जानकारी नहीं है, उन्हें स्थानीय प्रशासन द्वारा जानकारी दी जा रही है. मंदिर तक पहुंचने वाले सभी रास्तों पर पुलिस बल तैनात किया गया है, ताकि भीड़ इकट्ठा न हो सके.