कोंडागांव: कोंडागांव का पारंपरिक मेला सालभर में एक बार मनाया जाने वाला एक सामूहिक उत्सव है, जिसे सभी गांव के लोग अपने-अपने इष्ट देवी-देवताओं के समागम समारोह के रूप में मनाते हैं. इस मेले का इतिहास बड़े बुजुर्गों के अनुसार तकरीबन 700 साल पुराना है. कोंडागांव का साप्ताहिक बाजार पहले मंगलवार को ही लगता था, जिसे ग्राम देवी माता मावली के नाम से मंगलवार के दिन लगाया जाता था, लेकिन बदलते परिवेश और परंपराओं ने इस बाजार को मंगलवार को निरस्त कर रविवार को लगाने का निर्णय लिया गया.
हिंदू पंचांग और चंद्र स्थिति के कारण माघ शुक्ल पक्ष में प्रथम मंगलवार को ही कोंडागांव मेला का आयोजन किया जाता है. इसके लिए ग्राम प्रमुख बुजुर्ग मंदिर समिति के पदाधिकारी, अधिकारीगण, तहसीलदार एक बैठक आयोजित कर मेला आयोजन का फैसला लेते हैं. बैठक में माता पुजारी और गायता के यहां समस्त ग्रामवासी माता का छतर, डंगई लॉट, बैरक आदि सहित उपस्थित होते हैं. जहां बड़े माटी, डोकरा सियान देव, सोनकुंवर देव, देसमातरा, डोकरा देव को पूजते हैं.
इष्ट देवी-देवताओं के जतरा का आयोजन
लोगों का मानना है कि आगामी वर्षों तक किसी भी प्रकार का रोग-दोष गांव में न हो, सुख-समृद्धि बनी रहे, अन्न-धन की वृद्धि हो इन कामनाओं के साथ पूजा अर्चना किया जाता है. वहीं तिथि के अनुसार ग्रामवासी अपने-अपने इष्ट देवी-देवताओं के जतरा का आयोजन वर्ग अनुसार करते हैं, जिसमें गांडा जाति, पटेल जाति, देवांगन जाति, कलार जाति, निषाद जाति और आदिवासी समुदाय के लोग जतरा करते हैं.
24 परगना के देवी-देवताओं का आगमन
मेले में आए लोगों ने बताया कि पूर्व में मेला 24 परगना के देवी-देवताओं का आगमन से होता था, अभी तहसील, विकासखंड, जिला विभाजन होने से कुछ ही परगनाओं से देवी-देवता मेला में सम्मिलित होते हैं. मेले में गांव से आए ग्रामवासी, सिरहा, गायता, पुजारी, मांझी, मुखिया एकत्रित होकर मंदिर के पुजारी से विशेष अनुमति लेकर जतरा संपन्न किया जाता है.
पलारी गांव की पूरला देवी माता की पूजा
पहले यह मेला परिक्रमा से पूर्ण होती थी. अब इसका स्वरूप में थोड़ा सा बदलाव दिखता है. मेला के दिन सबसे पहले पलारी गांव की पूरला देवी माता की पूजा कर फूल डोबला (फूल दोना) का आदान-प्रदान करते हैं. साथ ही विधिवत रूप से भेंट कर स्वागत करते हुए मेला परिसर तक आने का आग्रह किया जाता है. इस देवी के आगमन के बाद ही मेला परिक्रमा का कार्यक्रम प्रारंभ होता है. मुख्य देवी-देवताओं का समागम होने के कारण इसे मेला का रूप दिया गया है.