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कोंडागांव: ऐसे सभी सरकारी स्कूल हो जाएं, तो भारत का हर बच्चा कमाल करे - आदर्श स्कूल की मिसाल पेश कर रहा है

कोंडागांव में ऐसा स्कूल है जो छात्रों, शिक्षक और पालकों ने मिलकर स्कूलों की दशा ही बदल दी है. बनजुगानी संकुल के 24 स्कूल आदर्श स्कूल की मिसाल पेश कर रहे हैं.

भारत का हर बच्चा कमाल करे
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Published : Apr 16, 2019, 12:13 AM IST

Updated : Apr 16, 2019, 12:24 AM IST

कोंडागांव : ये प्रवत्ति बन गई है कि सरकारी स्कूलों का नाम सुनते ही जेहन में अव्यवस्थाओं की तस्वीर उभर आती है. लेकिन आज भी कहीं-कहीं प्रशासन ने ऐसे इंतजाम किए हैं कि सरकारी स्कूलों की व्यवस्थाएं और बच्चे निजी स्कूलों को पीछे छोड़ दें. ऐसा ही एक स्कूल है कोंडागांव में.

भारत का हर बच्चा कमाल करे

यहां छात्रों, शिक्षक और पालकों ने मिलकर स्कूलों की दशा ही बदल दी है. स्कूल भवन और वहां के बदतर हालात किसी से छिपे नहीं होते, कहीं भवनों की हालत जर्जर तो कहीं पढ़ाई स्तर हीन होती जा रही है. लेकिन बनजुगानी संकुल के 24 स्कूल इन सब बातों को दरकिनार करते हुए आदर्श स्कूल की मिसाल पेश कर रहे हैं.

यहां के नियम हैं खास
कोंडागांव कलेक्टर की पहल के वजह से बनजुगानी संकुल के स्कूलों में बालक-पालक सम्मेलन का आयोजन हर महीने के अंतिम शनिवार को रखना अनिवार्य किया गया है, जिससे बच्चों के पालक भी स्कूल और पढ़ाई का जायजा ले सकें और यदि कोई समस्या बच्चों की हो या स्कूल की हो तो उसे प्रबंधन के सामने रखकर उसका निराकरण कर सकें. यह पालक-बालक सम्मेलन इस संकुल के हर स्कूल में किया जा रहा है.

सबके लिए बना ड्रेस कोड
ऐसा अभी तक निजी स्कूलों में पैरंट्स मीटिंग के नाम से होता दिखता था. पर अब यह जिले के बनजुगानी संकुल के स्कूलों में कलेक्टर की पहल से हो रहा है. यही नहीं इस संकुल के सभी स्कूलों के शिक्षकों ने पालक-बालक सम्मेलन के दौरान यह भी निर्णय लिया कि, जिस तरह स्कूली बच्चे शालेय गणवेश में रोजाना आते हैं उसी तर्ज पर अब शिक्षक- शिक्षिकायें भी विशेष शालेय-गणवेश में सप्ताह में दो बार सोमवार और शुक्रवार को स्कूल आएंगे. जिसमें शिक्षकों के लिए सफेद शर्ट और ब्लैक पैंट और शिक्षिकाओं के लिए विशेष प्रिंट की साड़ी निर्धारित की गई है.

कड़ाई से हो रहा है पालन
जिसे अब इस संकुल के शिक्षक शिक्षिकाएं कड़ाई से पालन भी कर रहे हैं. बनजुगानी संकुल समन्वयक रोशन सहारे ने बताया कि यह व्यवस्था अभी हफ्ते में 2 दिन निर्धारित की गई है. लेकिन धीरे-धीरे इसे प्रतिदिन अनिवार्य किया जाएगा. इससे विद्यार्थियों और पालकों में शिक्षकों के प्रति अच्छा संदेश भी जाता दिख रहा है.

पालक-बालक सम्मेलन के दौरान यहां सभी ने बच्चों में पढ़ाई के प्रति और अधिक रुचि लाने तरह-तरह के प्रयास किए जा रहे हैं. जिससे बच्चे खेलते-खेलते भी पढ़ सकें और यदि स्कूल के क्लास रूम से यदि वे ऊब जाएं तो शाला प्रांगण में बनाए गए कुटीर में भी वे मुस्कान पुस्तकालय से रोचक कथाएं, कहानियां कविताएं की किताबें भी पढ़ सकते हैं.

यहां पालकों ने पारंपरिक झूले, लकड़ी से बने हुए झूलों का भी निर्माण कराया है. ताकि बच्चे झूला झूलते हुए गिनती और पढ़ाई का अभ्यास कर सकें. संकुल के हर स्कूल में गेड़ी पर नृत्य करते बच्चे भी नजर आए, गेड़ी नृत्य बस्तर की पारंपरिक संस्कृति का एक हिस्सा है, जो अब विलुप्ति की कगार पर है, पर बनजुगानी संकुल के स्कूलों में बच्चों ने इस गेड़ी नृत्य का अभ्यास पढ़ाई और गिनती करते हुए किया जा रहा है.
पालकों से बात करने पर उन्होंने बताया कि सब ने आपसी सहयोग से क्लास के प्रांगण में कुटीर, झूलों का निर्माण करवाया है. वहीं शिक्षिकाओं ने बताया कि इन कुटीरों को बनाने की प्रेरणा उन्हें पास में ही बने ITBP कैम्प से मिली.

कोंडागांव : ये प्रवत्ति बन गई है कि सरकारी स्कूलों का नाम सुनते ही जेहन में अव्यवस्थाओं की तस्वीर उभर आती है. लेकिन आज भी कहीं-कहीं प्रशासन ने ऐसे इंतजाम किए हैं कि सरकारी स्कूलों की व्यवस्थाएं और बच्चे निजी स्कूलों को पीछे छोड़ दें. ऐसा ही एक स्कूल है कोंडागांव में.

भारत का हर बच्चा कमाल करे

यहां छात्रों, शिक्षक और पालकों ने मिलकर स्कूलों की दशा ही बदल दी है. स्कूल भवन और वहां के बदतर हालात किसी से छिपे नहीं होते, कहीं भवनों की हालत जर्जर तो कहीं पढ़ाई स्तर हीन होती जा रही है. लेकिन बनजुगानी संकुल के 24 स्कूल इन सब बातों को दरकिनार करते हुए आदर्श स्कूल की मिसाल पेश कर रहे हैं.

यहां के नियम हैं खास
कोंडागांव कलेक्टर की पहल के वजह से बनजुगानी संकुल के स्कूलों में बालक-पालक सम्मेलन का आयोजन हर महीने के अंतिम शनिवार को रखना अनिवार्य किया गया है, जिससे बच्चों के पालक भी स्कूल और पढ़ाई का जायजा ले सकें और यदि कोई समस्या बच्चों की हो या स्कूल की हो तो उसे प्रबंधन के सामने रखकर उसका निराकरण कर सकें. यह पालक-बालक सम्मेलन इस संकुल के हर स्कूल में किया जा रहा है.

सबके लिए बना ड्रेस कोड
ऐसा अभी तक निजी स्कूलों में पैरंट्स मीटिंग के नाम से होता दिखता था. पर अब यह जिले के बनजुगानी संकुल के स्कूलों में कलेक्टर की पहल से हो रहा है. यही नहीं इस संकुल के सभी स्कूलों के शिक्षकों ने पालक-बालक सम्मेलन के दौरान यह भी निर्णय लिया कि, जिस तरह स्कूली बच्चे शालेय गणवेश में रोजाना आते हैं उसी तर्ज पर अब शिक्षक- शिक्षिकायें भी विशेष शालेय-गणवेश में सप्ताह में दो बार सोमवार और शुक्रवार को स्कूल आएंगे. जिसमें शिक्षकों के लिए सफेद शर्ट और ब्लैक पैंट और शिक्षिकाओं के लिए विशेष प्रिंट की साड़ी निर्धारित की गई है.

कड़ाई से हो रहा है पालन
जिसे अब इस संकुल के शिक्षक शिक्षिकाएं कड़ाई से पालन भी कर रहे हैं. बनजुगानी संकुल समन्वयक रोशन सहारे ने बताया कि यह व्यवस्था अभी हफ्ते में 2 दिन निर्धारित की गई है. लेकिन धीरे-धीरे इसे प्रतिदिन अनिवार्य किया जाएगा. इससे विद्यार्थियों और पालकों में शिक्षकों के प्रति अच्छा संदेश भी जाता दिख रहा है.

पालक-बालक सम्मेलन के दौरान यहां सभी ने बच्चों में पढ़ाई के प्रति और अधिक रुचि लाने तरह-तरह के प्रयास किए जा रहे हैं. जिससे बच्चे खेलते-खेलते भी पढ़ सकें और यदि स्कूल के क्लास रूम से यदि वे ऊब जाएं तो शाला प्रांगण में बनाए गए कुटीर में भी वे मुस्कान पुस्तकालय से रोचक कथाएं, कहानियां कविताएं की किताबें भी पढ़ सकते हैं.

यहां पालकों ने पारंपरिक झूले, लकड़ी से बने हुए झूलों का भी निर्माण कराया है. ताकि बच्चे झूला झूलते हुए गिनती और पढ़ाई का अभ्यास कर सकें. संकुल के हर स्कूल में गेड़ी पर नृत्य करते बच्चे भी नजर आए, गेड़ी नृत्य बस्तर की पारंपरिक संस्कृति का एक हिस्सा है, जो अब विलुप्ति की कगार पर है, पर बनजुगानी संकुल के स्कूलों में बच्चों ने इस गेड़ी नृत्य का अभ्यास पढ़ाई और गिनती करते हुए किया जा रहा है.
पालकों से बात करने पर उन्होंने बताया कि सब ने आपसी सहयोग से क्लास के प्रांगण में कुटीर, झूलों का निर्माण करवाया है. वहीं शिक्षिकाओं ने बताया कि इन कुटीरों को बनाने की प्रेरणा उन्हें पास में ही बने ITBP कैम्प से मिली.

Intro:जिला कोंडागांव के ग्राम पंचायत बनजुगानी के ये स्कूल हैं अनोखे और यहाँ के शिक्षक- शिक्षिकाएं करते हैं ड्रेस कोड का इस्तेमाल...


Body:यूँ तो सरकारी स्कूलों के नाम सुनते ही स्कूलों में अव्यवस्थाओं के चित्र आंखों के सामने उभरने लगते हैं, पर हम यहाँ आपको कोंडागांव जिले के ऐसे स्कूलों के बारे में बता रहे हैं जहां विद्यार्थी शिक्षक और पालकों ने मिलकर स्कूलों की दशा ही बदल डाली। स्कूल भवनों और वहां के बदतर हालात किसी से छिपे नहीं होते, कहीं भवनों की हालत जर्जर तो कहीं पढ़ाई स्तर हीन,
पर बनजुगानी संकुल के 24 स्कूल इन सब बातों को दरकिनार करते हुए आदर्श स्कूल की मिसाल पेश कर रहे हैं । कलेक्टर कोंडागांव की पहल के वजह से बनजुगानी संकुल के स्कूलों में बालक-पालक सम्मेलन का आयोजन हर महीने के अंतिम शनिवार को रखना अनिवार्य किया गया है , ताकि बच्चों के पालक भी स्कूल और पढ़ाई का जायजा ले सकें और यदि कोई समस्या बच्चों की या स्कूल की हो तो उसे प्रबंधन के सामने रख उसका निराकरण कर सकें। यह पालक- बालक सम्मेलन इस संकुल के हर स्कूल में किया जा रहा है । ऐसा अभी तक निजी स्कूलों में पैरंट्स मीटिंग के नाम से होता दिखता था पर अब यह जिले के बनजुगानी संकुल के स्कूलों में कलेक्टर कोंडा गांव की पहल से हो रहा है , यही नहीं इस संकुल के सभी स्कूलों के शिक्षकों ने पालक-बालक सम्मेलन के दौरान यह भी निर्णय लिया कि जिस तरह स्कूली बच्चे शालेय गणवेश में रोजाना आते हैं उसी तर्ज पर अब शिक्षक- शिक्षिकायें भी विशेष शालेय गणवेश में सप्ताह में दो बार सोमवार और शुक्रवार को स्कूल आएंगे , जिसमें शिक्षकों के लिए सफेद शर्ट और ब्लैक पैंट व शिक्षिकाओं के लिए विशेष प्रिंट की साड़ी निर्धारित की गई है । जिसे अब इस संकुल के शिक्षक शिक्षिकायें कड़ाई से पालन भी कर रहे हैं । बनजुगानी संकुल समन्वयक रोशन सहारे ने बताया की यह व्यवस्था अभी हफ्ते में 2 दिन निर्धारित की गई है पर धीरे धीरे इसे प्रतिदिन अनिवार्य किया जाएगा जिससे विद्यार्थियों और पालकों में शिक्षकों के प्रति अच्छा संदेश भी जाता दिख रहा है।
पालक -बालक सम्मेलन के दौरान यहां सभी ने बच्चों में पढ़ाई के प्रति और अधिक रुचि लाने तरह-तरह के प्रयास किए जा रहे हैं जिससे बच्चे खेलते -खेलते भी पढ़ सकें और यदि स्कूल के क्लास रूम से यदि वे ऊब जाएं तो शाला प्रांगण में बनाए गए कुटीर में भी वे मुस्कान पुस्तकालय से रोचक कथाएं , कहानियां कविताएं की किताबें भी पढ़ सकते हैं।

यहां पालकों द्वारा पारंपरिक झूले, लकड़ी से बने हुए झूलों का भी निर्माण संकुल के हर स्कूल के प्रांगण में किया गया है ताकि बच्चे झूला झूलते हुए गिनती और पढ़ाई का अभ्यास कर सकें संकुल के हर स्कूल में गेड़ी पर नृत्य करते बच्चे भी नज़र आये, गेड़ी नृत्य बस्तर की पारंपरिक संस्कृति का एक हिस्सा है जो अब विलुप्ति की कगार पर है , पर बनजुगानी संकुल के स्कूलों में बच्चों द्वारा इस गेड़ी नृत्य का अभ्यास पढ़ाई व गिनती करते हुए किया जा रहा है,
पालकों से बात करने पर उन्होंने बताया कि उन्होने आपसी सहयोग से शालाओं के प्रांगण में कुटीर, झूलों का निर्माण करवाया है,
किवई बालेंगा आश्रम की शिक्षिकाओं ने बताया कि इन कुटीरों को बनाने की प्रेरणा उन्हें पास में ही बने ITBP कैम्प से मिली।


Conclusion:जिला कोंडागाँव के बनजुगानी संकुल के समन्वयक और पालकों के अथक प्रयासों का ही नतीजा है कि इन स्कूलों में बच्चों को केवल स्वस्थ माहौल ही नहीं, खेलते-कूदते पढ़ाई का अभ्यास कराया जाता है।
उनके लिए यहाँ मितव्यय वातावरण का परिवेश यहाँ निर्मित किया गया, ताकि बच्चे अधिक से अधिक स्कूल का रुख कर सकें, पढ़ सकें।
जिला शिक्षा अधिकारी कोंडागाँव राजेश मिश्रा ने बताया कि कलेक्टर कोंडागाँव की पहल से ही यह संभव हो पाया है और बनजुगानी संकुल के स्कूलों से उन्हें प्रेरणा मिलती है कि जिले के और भी संकुल के स्कूलों को भी वे इसी तरह आदर्श स्कूल बना सकें, ताकि अधिक से अधिक बच्चे स्कूलों का रुख कर सकें और अच्छी तरह पढ़-लिखकर अपना उज्ज्वल भविष्य गढ़ सकें
Last Updated : Apr 16, 2019, 12:24 AM IST
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