कांकेर: अगर हमें और आपको ऐसा लगता है कि कठिन वक्त से गुजर रहे हैं तो हमें छत्तीसगढ़ के अंदरूनी इलाकों के गांव का हाल जानना चाहिए. लॉक डाउन तो हमारे और आपके लिए होगा, यहां के लोगों की जिंदगी हमेशा संघर्षों में ही कट रही है. यहां विकास की गंगा उल्टी बहती है. कई गांव के लोगों को राशन तक लाने के लिए 12 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है. इतना ही नदी रास्ते में पड़ने वाले नदी को पार कर ये लोग राशन लाने को मजबूर हैं.
जिले के 12 से ज्यादा गांव के ग्रामीण नदी पार कर राशन लाने को मजबूर हैं. उनके पास इसके अलावा कोई भी दूसरा उपाय नहीं है, जिससे राशन का इंतजाम हो जाए. लॉकडाउन की वजह से भले ही शासन-प्रशासन गरीबी रेखा से नीचे आने वाले लोगों को दो महीने का राशन मुफ्त में दे रही है, लेकिन उसका फायदा उठाने के लिए भी इन गांवों को लोगों को बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है.
जिम्मेदारों ने नहीं ली सुध
ग्रामीण राशन के साथ-साथ रोजमर्रा के सामान भी इसी तरह पीठ पर लाद कर या कंधे पर रख कर लाते हैं. वह सुबह से घर से निकलते हैं और शाम को सामान लेकर घर पहुंचते हैं. सोचने वाली बात ये है कि इतने दिनों से किसी भी जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारी या नेता-मंत्री की नजर इन ग्रामीणों की परेशानी पर नहीं पड़ी. इन ग्रामीणों के पास आवागमन करने का कोई साधन भी नहीं हैं, इस वजह से भी यह पैदल इतनी दूर आने-जाने को मजबूर हैं.
हालात ये हैं कि गांव के लोगों को जिंदगी जीने और दो वक्त की रोटी खाने के लिए ये सफर तय करना मजबूरी बन चुका है. नदी पार करना, 12 किलोमीटर पैदल आना-जाना और कंधों पर बोझ रखकर फिर इसी सफर को तय करना बड़ा कठिन सा है. जरूरत है कि जिला प्रशासन ऐसे नाजुक समय में इनके लिए कुछ राहत की व्यवस्था करे.