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कांकेर के इस गांव की हालत बद से बदतर, मूलभूत सुविधाओं की ताक में ग्रामीण

छत्तीसगढ़(Chhattisgarh) बने दो दशक से अधिक बीत चुका है, लेकिन कांकेर (Kanker) जिले के इरक बुट्टा (Iraq butta) गांव (Village) की न तो तस्वीर बदली और न ही यहां के बसे लोगों की तकदीर. गांव में बसे आदिवासी समुदाय (Tribal community) के लोगों के लोगों का कहना है कि हमने सोचा था कि अब इलाके का तेजी से विकास होगा. लेकिन ये सपना सपना ही रह गया, हकीकत में तब्दील न हो सका.

Villagers in search of basic amenities
मूलभूत सुविधाओं की ताक में ग्रामीण
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Published : Nov 24, 2021, 5:10 PM IST

Updated : Nov 24, 2021, 7:56 PM IST

कांकेर: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के कांकेर (Kanker) जिले के कोयलीबेड़ा विकासखण्ड (Koylibeda Block) ग्राम पंचायत इरकबूटा (Iraq butta) का आश्रित गांव बणडा (Banda) अब भी बुनियादी सुविधाओं की ताक में है. राज्य बने भी दो दशक से अधिक बीत चुके हैं लेकिन इरक बुट्टा गांव की न तो तस्वीर बदली और न ही यहां बसे लोगों की तकदीर. गांव में बसे आदिवासी समुदाय के लोगों के लोगों का कहना है कि हमने सोचा था कि अब इलाके का तेजी से विकास होगा. लेकिन ये सपना सपना ही रह गया, हकीकत में तब्दील न हो सका.

कांकेर के इस गांव की हालत बद से बदतर

अंधेरे में है ग्रामीणों और बच्चों की भविष्य

लगभग 95 की आबादी वाले इस गांव में आज तक स्कूल(School), आंगनबाड़ी (Anganwadi) की स्थापना नहीं हो पाई है. स्कूल न होने के कारण 19 बच्चों के भविष्य अंधेरे में है. आजादी के इतने साल बाद भी इस गांव के लोग खुद को आजाद महसूस नहीं करते है. गांव में स्कूल न होने के कारण बेटी पढाओ-बेटी बचाओ की आवाज यहां पर खोखला साबित होता दिखाई देता है. वहीं, अगर बात विकास की करें तो इस गांव की स्थिति विकास से अछूता है.

बुनियादी और मूलभूत सुविधाओं का अंबार

गांव में सड़क, बिजली, पानी, दवा जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीना पड़ रहा है. अगर गांव में कोई गंभीर रूप से बीमार पड़ जाता है तो उसे बाइक या साइकिल की सहारे ही 10 किलोमीटर दूर पक्की सड़क तक ले जाना पड़ता है. यहां सड़क न होने के कारण एंबुलेंस समय से नहीं पहुंच पाती है.

कोरोना की तीसरी लहर को देखते हुए बुजुर्गों और डॉक्टरों को लगाया जा रहा बूस्टर डोज

आदिवासियों को विकास के नाम पर किया जा रहा खोखला

विडंबना यह है कि आदिवासियों के तेजी से विकास और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के नाम पर ही सरकार कई प्रकार की योजनाएं चलाती है. लेकिन दुर्भाग्य से इन आदिवासियों की दिक्कतों का कोई अंत नजर नहीं आता.

हैंडपंप पी रहे है झरिया का पानी

बंडा गांव में 22 घर हैं. करीब 95 लोगों की आबादी वाला ये छोटा सा गांव राजनांदगांव की सीमा पर बसा हुआ है. यहां 3 हैण्डपम्प लगा है. लेकिन तीनों हैण्ड पम्प से आयरन युक्त पानी निकलने के कारण कई ये कई सालो से बंद पड़ी है. ये अब झिरिया के पानी पर ही निर्भर है. गांव के लोग लंबे समय से सड़क, बिजली, पानी और दवा जैसी बुनियादी सुविधाओं की गुहार लगा रहे हैं. लेकिन शासन-प्रशासन की ओर से सुनवाई नहीं की जा रही है.

आखिर क्यों हुए ग्रामीण इकट्ठे

इस विषय में ईटीवी भारत से कई ग्रामीणों ने कहा कि अभावों के बीच आदिवासी छात्र युवा संगठन सामने आए हैं. अब छात्र संगठन और हम ग्रामीण चंदा इकट्ठा कर गांव के युवक को पढ़ाने के लिए रखें है. अब तीन घंटे सुबह इन्हें पढ़ाया जा रहा है.

शिक्षा के प्रति आगे आये आदिवासी छात्र संगठन

छात्र युवा संगठन के प्रमुख राजेश नूरूटी, राकेश पोटाई , निखलेश नाग, सुनील सलाम,ने बताया की बंडा गांव की स्तिथि बहुत ही खस्ता हाल है यह अभी तक मूलभूत सुविधाएं नही पहुंची है स्कूल नही होने की जानकारी ग्रामीणों के द्वारा दी गई थी जिससे छात्र संगठन ने निर्णय लिया की शिक्षा की जर्जर स्तिथि दूर हो इसलिए यहां के बच्चो को सुबह तीन घंटे ट्यूशन पढ़ाया जा रहा है.

कांकेर: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के कांकेर (Kanker) जिले के कोयलीबेड़ा विकासखण्ड (Koylibeda Block) ग्राम पंचायत इरकबूटा (Iraq butta) का आश्रित गांव बणडा (Banda) अब भी बुनियादी सुविधाओं की ताक में है. राज्य बने भी दो दशक से अधिक बीत चुके हैं लेकिन इरक बुट्टा गांव की न तो तस्वीर बदली और न ही यहां बसे लोगों की तकदीर. गांव में बसे आदिवासी समुदाय के लोगों के लोगों का कहना है कि हमने सोचा था कि अब इलाके का तेजी से विकास होगा. लेकिन ये सपना सपना ही रह गया, हकीकत में तब्दील न हो सका.

कांकेर के इस गांव की हालत बद से बदतर

अंधेरे में है ग्रामीणों और बच्चों की भविष्य

लगभग 95 की आबादी वाले इस गांव में आज तक स्कूल(School), आंगनबाड़ी (Anganwadi) की स्थापना नहीं हो पाई है. स्कूल न होने के कारण 19 बच्चों के भविष्य अंधेरे में है. आजादी के इतने साल बाद भी इस गांव के लोग खुद को आजाद महसूस नहीं करते है. गांव में स्कूल न होने के कारण बेटी पढाओ-बेटी बचाओ की आवाज यहां पर खोखला साबित होता दिखाई देता है. वहीं, अगर बात विकास की करें तो इस गांव की स्थिति विकास से अछूता है.

बुनियादी और मूलभूत सुविधाओं का अंबार

गांव में सड़क, बिजली, पानी, दवा जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीना पड़ रहा है. अगर गांव में कोई गंभीर रूप से बीमार पड़ जाता है तो उसे बाइक या साइकिल की सहारे ही 10 किलोमीटर दूर पक्की सड़क तक ले जाना पड़ता है. यहां सड़क न होने के कारण एंबुलेंस समय से नहीं पहुंच पाती है.

कोरोना की तीसरी लहर को देखते हुए बुजुर्गों और डॉक्टरों को लगाया जा रहा बूस्टर डोज

आदिवासियों को विकास के नाम पर किया जा रहा खोखला

विडंबना यह है कि आदिवासियों के तेजी से विकास और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के नाम पर ही सरकार कई प्रकार की योजनाएं चलाती है. लेकिन दुर्भाग्य से इन आदिवासियों की दिक्कतों का कोई अंत नजर नहीं आता.

हैंडपंप पी रहे है झरिया का पानी

बंडा गांव में 22 घर हैं. करीब 95 लोगों की आबादी वाला ये छोटा सा गांव राजनांदगांव की सीमा पर बसा हुआ है. यहां 3 हैण्डपम्प लगा है. लेकिन तीनों हैण्ड पम्प से आयरन युक्त पानी निकलने के कारण कई ये कई सालो से बंद पड़ी है. ये अब झिरिया के पानी पर ही निर्भर है. गांव के लोग लंबे समय से सड़क, बिजली, पानी और दवा जैसी बुनियादी सुविधाओं की गुहार लगा रहे हैं. लेकिन शासन-प्रशासन की ओर से सुनवाई नहीं की जा रही है.

आखिर क्यों हुए ग्रामीण इकट्ठे

इस विषय में ईटीवी भारत से कई ग्रामीणों ने कहा कि अभावों के बीच आदिवासी छात्र युवा संगठन सामने आए हैं. अब छात्र संगठन और हम ग्रामीण चंदा इकट्ठा कर गांव के युवक को पढ़ाने के लिए रखें है. अब तीन घंटे सुबह इन्हें पढ़ाया जा रहा है.

शिक्षा के प्रति आगे आये आदिवासी छात्र संगठन

छात्र युवा संगठन के प्रमुख राजेश नूरूटी, राकेश पोटाई , निखलेश नाग, सुनील सलाम,ने बताया की बंडा गांव की स्तिथि बहुत ही खस्ता हाल है यह अभी तक मूलभूत सुविधाएं नही पहुंची है स्कूल नही होने की जानकारी ग्रामीणों के द्वारा दी गई थी जिससे छात्र संगठन ने निर्णय लिया की शिक्षा की जर्जर स्तिथि दूर हो इसलिए यहां के बच्चो को सुबह तीन घंटे ट्यूशन पढ़ाया जा रहा है.

Last Updated : Nov 24, 2021, 7:56 PM IST
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