10 फरवरी को उसको इस बहादुरी के लिए विधानसभा में सम्मानित भी किया गया है और उन्हें नौकरी भी मिल गई है. राजेश्वरी, छतीसगढ़ की एक ऐसी बहादुर बेटी जिसने शासन-प्रशासन की अनदेखी के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और मानव तस्करों के चंगुल में फ़ंसी 60 युवतियों को वापस उनके घर पहुंचा कर ही दम लिया. उनपर एक किताब भी लिखी गई है. छत्तीसगढ़ की महिला पत्रकार ने उनका जीवन पन्नों पर उकेर दिया.
आइए सलाम करें राजेश्वरी सलाम को और जानें कैसे रहे थे मानव तस्करों के बीच उसके 2 महीने के दिन.
ईटीवी भारत से खास बात
राजेश्वरी सलाम से ईटीवी भारत ने खास बात की, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे वो गलती से तिरुपति बालाजी के दर्शन के लिए गईं और फिर ट्रैप में फंस गईं.
6 साल पहले की घटना
आज से लगभग 6 साल पहले 2012 में वो अपनी दीदी-जीजा से मिलने नारायणपुर के पास एक गांव में गई हुई थी, जहां से वापस लौटते समय कुछ लड़कियों से उनकी मुलाकात हुई और उन लड़कियों ने बातों-बातों में उन्हें बताया कि उनके गांव के पास के एक भैया है जो उन्हें तिरुपति बालाजी घुमाने लेकर जा रहे हैं. लड़कियों ने राजेश्वरी से भी साथ चलने को कहा. राजेश्वरी उन लड़कियों को पहले से जानती थी और कम खर्च में बालाजी घूमने का मौका सामने देख वो तैयार हो गई.
निजी कंपनी में कराई गई मजदूरी
इन लड़कियों ने उस युवक के साथ मिलकर राजेश्वरी से धोखा किया. ये लड़कियां जानती थी कि ये ट्रिप तिरुपति बालाजी नहीं बल्कि आंध्र प्रदेश के एक कंपनी में जाकर खत्म होगी, जहां इन्हें काम के लिए ले जाया जा रहा था. आंध्रप्रदेश में राजेश्वरी से एक कंपनी में मजदूरी कराई जाने लगी. बाकी लड़कियों को देखकर वे समझ गईं कि उन्हें पहले से पता था कि वे तिरुपति घूमने नहीं बल्कि काम कराने के लिए लाई जा रही थीं.
दलाल ने कंपनी के हाथ बेच दिया
राजेश्वरी ने कंपनी के कर्मचारी से जब यहां काम नहीं करने और वापस घर जाने की बात कही, तो उसे मालूम पड़ा कि जिसे अपना भाई समझ वो आई थी वो एक दलाल था और उन्हें बेच कर चला गया है. यह बात पता चलने के बाद राजेश्वरी के पास कंपनी में काम करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता बचा नहीं था. वो चंगुल से निकलने की सोचती लेकिन इतनी सुरक्षा थी कि निकलना संभव नहीं था.
बिगड़ने लगी तबीयत
इसी बीच कई दिनों तक कंपनी में काम करने के दौरान और गन्दगी के कारण राजेश्वरी की तबीयत बिगड़ने लगी और उनके पूरे शरीर में खुजली के कारण दाग होने लगे. जब राजेश्वरी कंपनी के लोगों से इलाज के लिए अस्पताल ले जाने कहती, तो उसे वहीं से ही दवाइयां दी जाती थी और बाद में अस्पताल ले जाने की बात कहकर टाल दिया जाता था. लेकिन राजेश्वरी की तबीयत ज्यादा बिगड़ने और उसके बार-बार बोलने पर आखिर वो मौका मिल ही गया जिसका राजेश्वरी को इंतजार था.
राजेश्वरी को अस्पताल ले जाया गया और राजेश्वरी ने इस मौके का फायदा उठाकर इस अनजान जगह के रास्तों को आस पास के मन्दिरों, अस्पताल के माध्यम से पहचान बना ली कि कंपनी से निकलने के बाद किस रास्ते से वो बाहर आ सकती है. जिसके बाद उन्होंने कई बार भागने की कोशिश की पर वो कामयाब नहीं हो सकी.
कंपनी से कहा, मुझे जाने दो मैं आपके पैसे लौटा दूंगी
इस बीच राजेश्वरी की तबrयत में भी कुछ खास सुधार नहीं हो रहा था. जिसके बाद उन्होंने कंपनी से बात करने की ठानी और उन्हें अपनी बीमारी का जिक्र करते हुए वापस छतीसगढ़ भेजने की बात कही. कंपनी ने कहा कि क्योंकि उसे बेचा गया है तो वापस नहीं भेजेंगे. इस पर उसने पैसे लौटाने का बहाना कर भी मनाया. लेकिन कंपनी जब तैयार नहीं हुई तो उसने दिमाग से काम लिया और कंपनी को भरोसा दिलाया कि वो अपने गांव के आस पास से और लड़कियां कम्पनी में लेकर आएगी.
कंपनी ने उस पर खर्च हुए पर रकम की लिस्ट बनाकर उसे सौंपी और सारे पैसे वापस करने और अन्य लड़कियों को लाने पर 5 हजार रुपये देने की बात कहकर उसे जगदलपुर तक लाकर छोड़ दिया. अपनी सूझबूझ से तस्करों के चंगुल से निकलने के बाद राजेश्वरी अपनी बहन के पास पहुंची लेकिन उसकी हालत देख उसकी बहन भी उसे पहचान न सकी.
इस दौरान अपनी बहन की ही एक सहेली जब राजेश्वरी मिली तब उसने उसे पूरी बात बताई, जिसके बाद कोंडागांव में महिला एवं बाल विकास विभाग में पदस्थ एक महिला से राजेश्वरी को उस महिला ने मिलाया. उस महिला के साथ राजेश्वरी ने कोंडागांव के कलेक्टर, एसपी को घटना से अवगत करवाया लेकिन राजेश्वरी के साथ जो लड़कियां गईं थी और जो युवक उन्हें लेकर गया था वो नारायणपुर जिले के थे जिसके चलते कोंडागांव प्रशासन ने मदद करने से इंकार कर दिया. जिसके बाद राजेश्वरी नारायणपुर कलेक्टर के पास भी पहुंची जहा उन्हें यह कहकर अनदेखा कर दिया कि इस क्षेत्र से लड़किया अपनी मर्ज़ी से काम करने दूसरे राज्यो में जाती है और पैसे नहीं मिलने पर वापस आकर लोकल प्रशासन को परेशान करती हैं.
प्रशासन से नहीं मिली मदद
प्रशासन से कोई मदद नहीं मिलने के बाद भी राजेश्वरी ने हिम्मत नहीं हारी और वो एक एनजीओ की शरण में पहुंची. एनजीओ के सदस्यों ने उनकी पूरी बात सुनने के बाद उनकी मदद करने की ठानी और तस्करों के चंगुल में फंसी अन्य लड़कियों को बचाने आंध्र प्रदेश के नामकल जिले के प्रशासन से संपर्क किया. जिसके बाद राजेश्वरी एनजीओ के सदस्यों और कुछ पुलिस वालों के साथ वापस उस कंपनी तक पहुंची और लोकल प्रशासन और पुलिस के सहयोग से अन्य 60 लड़कियों को तस्करों के चंगुल से छुड़ा कर वापस उनके घर तक पहुंचाया. यही नहीं कंपनी के मालिक समेत कई लोगों की गिरफ्तारी भी हुई और भोली-भाली लड़कियों को फंसाकर बेचने वाले दलाल को भी पुलिस ने धर दबोचा.
'विधायक जैसी सुविधा बाद में भुला दिया गया'
राजेश्वरी को इस बात की खुशी है कि अब इस वाकये के 5 साल बाद उन्हें विधानसभा में सम्मानित किया गया और उन्हें नौकरी भी दी जा रही है , लेकिन उन्हें इस बात का मलाल भी है कि जब उसने 60 लड़कियों को बचाया तो उसे एक विधायक की तरह सुविधा दी जाती थी उसकी सुरक्षा के लिए गनमैन भी थे. लेकिन समय के साथ उसे भुला दिया गया और अब वो अपने गांव जनकपुर में जब भी आती है तो अकेले ही आती है. इस दौरान उसे डर भी लगा रहता है कि कहीं वो दलाल जिसने उसे बेचा था वो लौट ना आए और उसे मार ना दें. इस डर की वजह से वो अपने गांव कम ही आती है.
जिनके लिए लड़ी थी उन्होंने ही नहीं दिया था साथ
राजेश्वरी ने बताया कि जब वो लड़कियों को छुड़ाने पहुंची थी तो जिन लड़कियों ने उसे झूठ बोलकर वहां फंसाया था, उन्हें भी वापस चलने को कहा लेकिन उन लड़कियों ने जाने से इंकार कर दिया और राजेश्वरी से ही सवाल करने लगी कि दो महीने जो उन्होंने काम किया है उसका पैसा क्या उन्हें वो देगी. राजेश्वरी के समझाने पर वो लड़कियां मानीं.
ढाई साल की उम्र में खो दिए थे माँ- बाप
राजेश्वरी जब मात्र ढाई साल की थी तब एक साल के अंतराल में उनके माता पिता का निधन हो गया था. तबसे ही वो अपने भाई के साथ रिश्तेदारों के यहां कभी यहां तो कभी वहां घूमती है. गांव में एक घर है लेकिन ढह गया. लेकिन उसकी जिंदगी नहीं रुकी.
राजेश्वरी ने जिन मुसीबतों को सहा और लड़कियों को तस्करों के चंगुल से बचा कर लाई वो सच में लोगो के लिए एक प्रेरणा है. वो चाहती तो खुद बचकर निकल आई थी अपनी जिंदगी जीती लेकिन उसने 60 जिंदगियां बचाकर इंसानियत का फर्ज अदा किया और हिम्मत की मिसाल बनी.