कांकेर: जिले में अब धान की खेती के साथ-साथ महिला स्व सहायता समूह हल्दी और जिमी कन्द की भी खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रही है. वैसे तो बस्तर धान की खेती के लिए जाना जाता है, लेकिन अब यहां हल्दी और जिमी कन्द की खेती कर महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं.
कोरोना महामारी के दौरान अधिकांश किसान कृषि उपज से अच्छा लाभ नहीं कमा सके, लेकिन हल्दी की खेती करने वाले इन किसानों की कहानी पूरी तरह अलग है. पिछले साल तक जो कच्ची हल्दी 15-20 रुपए किलो बिक रही थी. इस बार 50-60 रुपए प्रति किलो बिक रही है. जिला मुख्यालय से 10 किमी की दूरी पर स्थित डुमाली गांव में सरस्वती महिला समूह ने 10 डिसमिल एकड़ में मई-जून माह में हल्दी उगाई थी. समूह को कृषि विभाग के आत्मा योजना अंतर्गत निःशुल्क बीज वितरित किया गया था.
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आत्मा योजना की डायरेक्टर संगीता रॉय बताती हैं, पहले बस्तर सिर्फ धान की खेती से जाना जाता था, लेकिन यहां कि महिलाएं अब जिमी कन्द और हल्दी की खेती कर रही हैं. उसके लिए हमने महिला समूहों को निःशुल्क बीज वितरित किया है. साथ ही वर्मी कम्पोस्ट खाद भी दिया गया है. संगीता बताती हैं, जिले भर में 34 समूहों को हल्दी और जिमी कन्द का बीज वितरित किया गया है. जिसका फायदा अब यहां के किसानों को मिल रहा है.
50 हजार के मुनाफा की उम्मीद
डुमाली गांव में सरस्वती स्व-सहायता महिला समूह से जुड़ी लक्ष्मी शोरी बताती हैं कि समूह में 10 महिलाएं शामिल हैं. जून महीने में महिलाओं ने हल्दी की फसल लगाई थी. अब यह फसल पूरी तरह से तैयार है. जिमी कन्द की फसल करीब 3 क्विंटल खुदाई करके निकाली गई है तो वहीं हल्दी की फसल भी करीब 1 क्विंटल है. बाजार में यह फसल 50 हजार तक मुनाफा दे सकती है.
लाभ मिलने से बढ़ाएंगे फसल का क्षेत्रफल
दरअसल, औषधीय गुुणों वाली हल्दी को लोग दैनिक जीवन में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करते हैं. डुमाली गांव के महिला किसान सुलोचना मंडावी ने बताया कि हल्दी की खेती की शुरुआत की गई है. इससे अच्छा लाभ मिलने का अनुमान है. इसी तरह लाभ मिलता रहा तो आने वाले साल में क्षेत्रफल बढ़ाएंगे.
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नक्सल प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीण कर रहे खेती
कृषि विभाग के अधिकारी की मानें तो हल्दी गुणकारी होती है. चोट, मोच, कटने और जलने पर औषधि के रूप में इसका लोग इस्तेमाल करते हैं. सब्जी कोई भी हो उसमें इसका इस्तेमाल होता है. इसको देखते हुए हल्दी की खेती करने की योजना बनाई गई थी. क्षेत्र के किसानों को भी इससे जोड़ा गया है. कांकेर में नक्सल ग्रस्त क्षेत्र कोयलीबेड़ा, अंतागढ़, भानुप्रतापपुर ब्लाक के गांवों में किसान इसकी खेती कर रहे हैं.