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24 दिसंबर पेसा कानून दिवस पर विशेष, कितना कारगर हुआ एक्ट ?

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Published : Dec 24, 2020, 6:50 PM IST

24 दिसंबर को पेसा कानून दिवस है. 1996 से पेसा कानून देश के सभी अनुसूचित क्षेत्रों में लागू है, लेकिन आज भी इस कानून का क्रियान्वयन सही तरीके से नहीं हो पा रहा है, जिसकी वजह से आज भी आदिवासी आए दिन सड़क पर जाम लगा रहे हैं.

PESA Law Day on 24 December
24 दिसंबर पेसा दिवस पर विशेष

कांकेर: दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में 90 के दशक में दो बड़े बदलाव हुए. एक उदारीकरण की नीति लाई गयी और दूसरा ग्राम स्वराज की परिकल्पना को साकार करने का प्रयास हुआ.

PESA Law Day on 24 December
24 दिसंबर पेसा कानून दिवस पर विशेष
उदारीकरण की नीति के तहत देश के कई कानूनों में शिथिलता लाते हुए उद्योग धंधों को बढ़ावा देने के नाम पर कठोर नियमों में बदलाव किए गए. साथ ही सत्ता का विकेंद्रीकरण कर ग्राम स्वराज की स्थापना के हेतु संविधान में संशोधन करते हुए पंचायती राज व्यवस्था को पूरे देश में लागू किया गया.

गांधी जी के ग्राम स्वराज की परिकल्पना के अनुसार सशक्त ग्राम सभा की स्थापना हेतु सन 1992 में 73वें संविधान संशोधन अधिनियम से जैसे केंद्र में लोकसभा, राज्य में विधान सभा/विधान परिषद का प्रावधान है, उसी प्रकार गांव में ग्राम सभा को जगह दी गई. संशोधन में संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची भी जोड़ी गयी जिसमे 29 विषयों पर कार्य करने के अधिकार ग्राम सभा और पंचायतों को सौंप दिए गए, लेकिन जिस तरह आर्थिक उदारीकरण के लिए कानूनों में बदलाव किये गए वैसे इन 29 विषयों के अधिकार पंचायतों को स्थानांतरित करने के लिए जितने कानूनों में बदलाव की आवश्यकता थी वह नहीं हो सकी.

पांचवी अनुसूची क्षेत्रों के लिए अलग संवैधानिक व्यवस्था

ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए जब ऐसा प्रावधान किया जा रहा था, उस समय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 (ड.) में यह कहा गया कि यह पंचायती राज व्यवस्था पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में लागू नहीं होगी. इसी प्रकार नगरीय निकाय की व्यवस्था, जिसके तहत नगर पालिका, नगर निगम, नगर पंचायत इत्यादि व्यवस्था शामिल है, वह भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243(य)(ग) के अनुसार पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में लागू नहीं करने का प्रावधान रखा गया.

अपवादों और उपन्तारणों के साथ पंचायती राज व्यवस्था को पांचवी अनुसूची क्षेत्र में लागू करना

1993 की पंचायती राज व्यवस्था को पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में भी विस्तार करने की बात संविधान के अनुच्छेद 243(ड.) के पैरा 4 के उप पैरा (ख) में कही गई है. इसके अनुसार भारत की संसद को पंचायती राज व्यवस्था को अपवादों और उपन्तारणों के साथ पांचवी अनुसूची क्षेत्र में विस्तारित करने की शक्ति दी गयी है. इसका मतलब यह है कि पंचायती राज व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्रों में सशर्त लागू होगी और यह शर्ते भारत की संसद तय करेगी. इन्ही शर्तों को संसद ने पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 बना कर तय किया जिसे हम आज पेसा कानून के नाम से जानते हैं, इसके कारण ही सामान्य क्षेत्रों की पंचायती राज व्यवस्था और अनुसूचित क्षेत्रों की पंचायती राज व्यवस्था में काफी अन्तर है.

पेसा के तहत ग्राम सभा और पंचायतों को प्रशासन और नियंत्रण की शक्ति

संविधान की पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के सम्बन्ध में पेसा कानून में प्रावधान किया गया है. अनुसूचित जनजातियाँ प्राचीन रीति-रिवाजों और प्रथाओं की एक सुव्यवस्थित प्रणाली के माध्यम से अपने प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करते रहे हैं और अपने निवास स्थान में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन को संचालित करते रहे हैं. इस अभूतपूर्व सामाजिक परिवर्तन के युग में आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक-आर्थिक परिवेश को छेड़े या नष्ट किए बिना उन्हें विकास के प्रयासों की मुख्य धारा में शामिल करने की अनिवार्य आवश्यकता भारत की संसद द्वारा महसूस की गई और अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा कानून के द्वारा ग्राम सभाओं और पंचायतों को लोगों की परंपराओं और रीति-रिवाजों को सुरक्षित रखने और संरक्षित करने के अधिकार दिए गए. साथ ही उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संसाधन और विवाद समाधान और स्वामित्व के प्रथागत तौर-तरीके, गौण खनिज, लघु वन उपज का स्वामित्व, आदि को भी मान्यता पेसा में दी गयी.

पेसा से असंगत कोई नया कानून नहीं

पेसा कानून में स्पष्ट रूप से लिखा है कि राज्य का विधान मंडल ऐसा कोई भी कानून नहीं बनाएगा जो धारा 4 के (क) से (ण) तक के प्रावधानों से असंगत हो. जब ऐसा है तो विधानसभा में बनने वाले सभी कानून, जो अनुसूचित क्षेत्र में लागू होने वाले होंगे, उन को बनाने के लिए या बनाने से पहले अनुसूचित क्षेत्रों की ग्राम सभाओं से परामर्श करना / सहमति लेना अनिवार्य है.

पेसा अनुरूप अन्य कानूनों में बदलाव

पेसा कानून की धारा पांच के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में जो प्रवृत विद्यमान कानून थे उन सारे कानूनों को पेसा में दिए गए प्रावधानों के अनुसार संशोधित करना था. जो भी कानून के प्रावधान पेसा से असंगत थे उन्हें भी एक साल के भीतर बदल कर पेसा अनुरूप परिवर्तन व संशोधन के साथ लागू किया जाना चाहिए था. ऐसा संशोधन करते समय वहां के रहने वाले जनजातीय समूहों की परम्परा और व्यवहारों को भी ध्यान में रखना था.

ग्राम सभा सर्वोच्च

पिछले 27 सालों में अभी तक ग्राम/जनपद/जिला पंचायत को ग्रामसभा से बड़ा माना जाता रहा है, जबकि ऐसा है नहीं. ग्राम सभा सर्वोपरी है.ग्राम पंचायत सिर्फ उसके द्वारा लिए गए निर्णय का क्रियान्वयन करने वाली कार्यकारी समिति है.

पेसा और वन अधिकार

ग्राम स्वराज की स्थापना और ग्राम सभा के सशक्तीकरण में पेसा और रोफरा - जिसे वन अधिकार मान्यता कानून 2006 के नाम से जाना जाता है - ऐसे कानून है जो गांव की पारंपरिक व्यवस्थाओं को सुदृढ़ करते है. जहां भारत की अधिकांश जनसंख्या गांव में बसती है वहां पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामीण विकास को ध्यान में रखते हुए यह दो कानून आने वाले समय में बहुत अहम भूमिका निभाने वाले हैं. दोनों जल, जंगल और जमीन का प्रबंधन ग्राम सभा को देने की बात करते है. इन दोनों का साथ में पालन होने से ग्राम सभा सही मायने में स्वराज प्राप्त कर सकती है.

पढ़ें: ग्राम सभा की मजबूती के लिए बनाएंगे मजबूत पेसा कानून- टीएस सिंहदेव

पेसा लागू नहीं करने के नुक्सान

आदिवासी इलाकों में स्थानीय परंपरागत आर्थिक- सामाजिक व्यवस्था और राज्य औपचारिक तंत्र के बीच की खाई गहराती जा रही है. एक तरह से दोनों के बीच टकराव जैसी स्थिति बनती जा रही है. विगत 27 सालों में पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से जो विकास अनुसूचित क्षेत्रों में होना था वह नहीं हुआ है. जिसका नतीजा है कि यहां के निवासी आए दिन मूलभूत मांगों को लेकर रैली, धरना, प्रदर्शन या अन्य माध्यमों से अपना विरोध दर्ज करवाते रहे हैं विशेष कर अपनी परंपरा और रीति रिवाज को सम्मान दिलवाने के लिए आए दिन आंदोलन हो रहे है. बीते दिनों राम वन गमन पथ पर्यटन रथ यात्रा के दौरान बस्तर संभाग में ये बात देखने को भी मिली थी.

पेसा के क्रियान्वयन में बाधा

24 दिसंबर 1996 से पेसा कानून देश के सभी अनुसूचित क्षेत्रों में लागू है, लेकिन आज भी इस कानून का क्रियान्वयन सही तरीके से नहीं हो पा रहा है. ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए महती भूमिका निभाने वाले इस कानून को जमीन पर उतारने के लिए छत्तीसगढ़ में अब तक नियम नहीं बन सके है. बिना नियम के इसका क्रियान्वयन कैसे होगा यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है.छत्तीसगढ़ सरकार आने वाले बजट सत्र तक इसके नियम बनाने की बात कह रही है पर क्या वह कर पायेगी यह अभी देखना बाकी है.

पेसा का प्रभावी क्रियान्वयन के फायदे

पेसा का प्रभावी क्रियान्वयन न केवल विकास लाएगा, बल्कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में लोकतंत्र को भी और गहरा व मजबूत करेगा. इससे निर्णय लेने में लोगों की भागीदारी में वृद्धि होगी. पेसा आदिवासी क्षेत्रों में अलगाव की भावना को भी कम करेगा. पेसा से जनजातीय आबादी में गरीबी और अन्यत्र स्थानों पर पलायन कम हो जाएगा क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण और प्रबंधन से उनकी आजीविका और आय में सुधार होगा. पेसा जनजातीय आबादी के शोषण को कम करेगा, क्योंकि वे ऋण देने, शराब की बिक्री और खपत तथा गांव बाजारों का प्रबंधन करने में सक्षम होंगे. पेसा के प्रभावी क्रियान्वयन से भूमि के अवैध हस्तान्तरण पर रोक लगेगी और आदिवासियों की अवैध रूप से हस्तान्तरित भूमि को उन्हें वापस किया जा सकेगा. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि पेसा परंपराओं, रीति-रिवाजों और जनजातीय आबादी की सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण के माध्यम से सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देगा.

बीते दिनों टीएस सिंहदेव ने रायपुर में जन संगठनों और आदिवासी नेताओं से चर्चा भी की थी. सरकार की कोशिश है कि पेसा कानून के नियम जल्द बनाकर छत्तीसगढ़ के प्रत्याशित आदिवासी ब्लॉकों में इसे लागू करा लिया जाए.

स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि 19 ब्लॉक के आदिवासी समाज के लोगों से खुलकर विचार विमर्श किया गया है. उसी के आधार पर पेसा एक्ट में कौन-कौन सी बातें प्रावधान के लायक हैं, उसे सम्मिलित किया जाएगा. सिंहदेव ने कहा कि पेसा कानून पर परिचर्चा से पंचायतों के विचार सामने आएंगे. पेसा कानून से ग्राम सभा सशक्त होगा.

कांकेर: दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में 90 के दशक में दो बड़े बदलाव हुए. एक उदारीकरण की नीति लाई गयी और दूसरा ग्राम स्वराज की परिकल्पना को साकार करने का प्रयास हुआ.

PESA Law Day on 24 December
24 दिसंबर पेसा कानून दिवस पर विशेष
उदारीकरण की नीति के तहत देश के कई कानूनों में शिथिलता लाते हुए उद्योग धंधों को बढ़ावा देने के नाम पर कठोर नियमों में बदलाव किए गए. साथ ही सत्ता का विकेंद्रीकरण कर ग्राम स्वराज की स्थापना के हेतु संविधान में संशोधन करते हुए पंचायती राज व्यवस्था को पूरे देश में लागू किया गया.

गांधी जी के ग्राम स्वराज की परिकल्पना के अनुसार सशक्त ग्राम सभा की स्थापना हेतु सन 1992 में 73वें संविधान संशोधन अधिनियम से जैसे केंद्र में लोकसभा, राज्य में विधान सभा/विधान परिषद का प्रावधान है, उसी प्रकार गांव में ग्राम सभा को जगह दी गई. संशोधन में संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची भी जोड़ी गयी जिसमे 29 विषयों पर कार्य करने के अधिकार ग्राम सभा और पंचायतों को सौंप दिए गए, लेकिन जिस तरह आर्थिक उदारीकरण के लिए कानूनों में बदलाव किये गए वैसे इन 29 विषयों के अधिकार पंचायतों को स्थानांतरित करने के लिए जितने कानूनों में बदलाव की आवश्यकता थी वह नहीं हो सकी.

पांचवी अनुसूची क्षेत्रों के लिए अलग संवैधानिक व्यवस्था

ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए जब ऐसा प्रावधान किया जा रहा था, उस समय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 (ड.) में यह कहा गया कि यह पंचायती राज व्यवस्था पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में लागू नहीं होगी. इसी प्रकार नगरीय निकाय की व्यवस्था, जिसके तहत नगर पालिका, नगर निगम, नगर पंचायत इत्यादि व्यवस्था शामिल है, वह भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243(य)(ग) के अनुसार पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में लागू नहीं करने का प्रावधान रखा गया.

अपवादों और उपन्तारणों के साथ पंचायती राज व्यवस्था को पांचवी अनुसूची क्षेत्र में लागू करना

1993 की पंचायती राज व्यवस्था को पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में भी विस्तार करने की बात संविधान के अनुच्छेद 243(ड.) के पैरा 4 के उप पैरा (ख) में कही गई है. इसके अनुसार भारत की संसद को पंचायती राज व्यवस्था को अपवादों और उपन्तारणों के साथ पांचवी अनुसूची क्षेत्र में विस्तारित करने की शक्ति दी गयी है. इसका मतलब यह है कि पंचायती राज व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्रों में सशर्त लागू होगी और यह शर्ते भारत की संसद तय करेगी. इन्ही शर्तों को संसद ने पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 बना कर तय किया जिसे हम आज पेसा कानून के नाम से जानते हैं, इसके कारण ही सामान्य क्षेत्रों की पंचायती राज व्यवस्था और अनुसूचित क्षेत्रों की पंचायती राज व्यवस्था में काफी अन्तर है.

पेसा के तहत ग्राम सभा और पंचायतों को प्रशासन और नियंत्रण की शक्ति

संविधान की पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के सम्बन्ध में पेसा कानून में प्रावधान किया गया है. अनुसूचित जनजातियाँ प्राचीन रीति-रिवाजों और प्रथाओं की एक सुव्यवस्थित प्रणाली के माध्यम से अपने प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करते रहे हैं और अपने निवास स्थान में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन को संचालित करते रहे हैं. इस अभूतपूर्व सामाजिक परिवर्तन के युग में आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक-आर्थिक परिवेश को छेड़े या नष्ट किए बिना उन्हें विकास के प्रयासों की मुख्य धारा में शामिल करने की अनिवार्य आवश्यकता भारत की संसद द्वारा महसूस की गई और अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा कानून के द्वारा ग्राम सभाओं और पंचायतों को लोगों की परंपराओं और रीति-रिवाजों को सुरक्षित रखने और संरक्षित करने के अधिकार दिए गए. साथ ही उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संसाधन और विवाद समाधान और स्वामित्व के प्रथागत तौर-तरीके, गौण खनिज, लघु वन उपज का स्वामित्व, आदि को भी मान्यता पेसा में दी गयी.

पेसा से असंगत कोई नया कानून नहीं

पेसा कानून में स्पष्ट रूप से लिखा है कि राज्य का विधान मंडल ऐसा कोई भी कानून नहीं बनाएगा जो धारा 4 के (क) से (ण) तक के प्रावधानों से असंगत हो. जब ऐसा है तो विधानसभा में बनने वाले सभी कानून, जो अनुसूचित क्षेत्र में लागू होने वाले होंगे, उन को बनाने के लिए या बनाने से पहले अनुसूचित क्षेत्रों की ग्राम सभाओं से परामर्श करना / सहमति लेना अनिवार्य है.

पेसा अनुरूप अन्य कानूनों में बदलाव

पेसा कानून की धारा पांच के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में जो प्रवृत विद्यमान कानून थे उन सारे कानूनों को पेसा में दिए गए प्रावधानों के अनुसार संशोधित करना था. जो भी कानून के प्रावधान पेसा से असंगत थे उन्हें भी एक साल के भीतर बदल कर पेसा अनुरूप परिवर्तन व संशोधन के साथ लागू किया जाना चाहिए था. ऐसा संशोधन करते समय वहां के रहने वाले जनजातीय समूहों की परम्परा और व्यवहारों को भी ध्यान में रखना था.

ग्राम सभा सर्वोच्च

पिछले 27 सालों में अभी तक ग्राम/जनपद/जिला पंचायत को ग्रामसभा से बड़ा माना जाता रहा है, जबकि ऐसा है नहीं. ग्राम सभा सर्वोपरी है.ग्राम पंचायत सिर्फ उसके द्वारा लिए गए निर्णय का क्रियान्वयन करने वाली कार्यकारी समिति है.

पेसा और वन अधिकार

ग्राम स्वराज की स्थापना और ग्राम सभा के सशक्तीकरण में पेसा और रोफरा - जिसे वन अधिकार मान्यता कानून 2006 के नाम से जाना जाता है - ऐसे कानून है जो गांव की पारंपरिक व्यवस्थाओं को सुदृढ़ करते है. जहां भारत की अधिकांश जनसंख्या गांव में बसती है वहां पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामीण विकास को ध्यान में रखते हुए यह दो कानून आने वाले समय में बहुत अहम भूमिका निभाने वाले हैं. दोनों जल, जंगल और जमीन का प्रबंधन ग्राम सभा को देने की बात करते है. इन दोनों का साथ में पालन होने से ग्राम सभा सही मायने में स्वराज प्राप्त कर सकती है.

पढ़ें: ग्राम सभा की मजबूती के लिए बनाएंगे मजबूत पेसा कानून- टीएस सिंहदेव

पेसा लागू नहीं करने के नुक्सान

आदिवासी इलाकों में स्थानीय परंपरागत आर्थिक- सामाजिक व्यवस्था और राज्य औपचारिक तंत्र के बीच की खाई गहराती जा रही है. एक तरह से दोनों के बीच टकराव जैसी स्थिति बनती जा रही है. विगत 27 सालों में पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से जो विकास अनुसूचित क्षेत्रों में होना था वह नहीं हुआ है. जिसका नतीजा है कि यहां के निवासी आए दिन मूलभूत मांगों को लेकर रैली, धरना, प्रदर्शन या अन्य माध्यमों से अपना विरोध दर्ज करवाते रहे हैं विशेष कर अपनी परंपरा और रीति रिवाज को सम्मान दिलवाने के लिए आए दिन आंदोलन हो रहे है. बीते दिनों राम वन गमन पथ पर्यटन रथ यात्रा के दौरान बस्तर संभाग में ये बात देखने को भी मिली थी.

पेसा के क्रियान्वयन में बाधा

24 दिसंबर 1996 से पेसा कानून देश के सभी अनुसूचित क्षेत्रों में लागू है, लेकिन आज भी इस कानून का क्रियान्वयन सही तरीके से नहीं हो पा रहा है. ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए महती भूमिका निभाने वाले इस कानून को जमीन पर उतारने के लिए छत्तीसगढ़ में अब तक नियम नहीं बन सके है. बिना नियम के इसका क्रियान्वयन कैसे होगा यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है.छत्तीसगढ़ सरकार आने वाले बजट सत्र तक इसके नियम बनाने की बात कह रही है पर क्या वह कर पायेगी यह अभी देखना बाकी है.

पेसा का प्रभावी क्रियान्वयन के फायदे

पेसा का प्रभावी क्रियान्वयन न केवल विकास लाएगा, बल्कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में लोकतंत्र को भी और गहरा व मजबूत करेगा. इससे निर्णय लेने में लोगों की भागीदारी में वृद्धि होगी. पेसा आदिवासी क्षेत्रों में अलगाव की भावना को भी कम करेगा. पेसा से जनजातीय आबादी में गरीबी और अन्यत्र स्थानों पर पलायन कम हो जाएगा क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण और प्रबंधन से उनकी आजीविका और आय में सुधार होगा. पेसा जनजातीय आबादी के शोषण को कम करेगा, क्योंकि वे ऋण देने, शराब की बिक्री और खपत तथा गांव बाजारों का प्रबंधन करने में सक्षम होंगे. पेसा के प्रभावी क्रियान्वयन से भूमि के अवैध हस्तान्तरण पर रोक लगेगी और आदिवासियों की अवैध रूप से हस्तान्तरित भूमि को उन्हें वापस किया जा सकेगा. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि पेसा परंपराओं, रीति-रिवाजों और जनजातीय आबादी की सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण के माध्यम से सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देगा.

बीते दिनों टीएस सिंहदेव ने रायपुर में जन संगठनों और आदिवासी नेताओं से चर्चा भी की थी. सरकार की कोशिश है कि पेसा कानून के नियम जल्द बनाकर छत्तीसगढ़ के प्रत्याशित आदिवासी ब्लॉकों में इसे लागू करा लिया जाए.

स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि 19 ब्लॉक के आदिवासी समाज के लोगों से खुलकर विचार विमर्श किया गया है. उसी के आधार पर पेसा एक्ट में कौन-कौन सी बातें प्रावधान के लायक हैं, उसे सम्मिलित किया जाएगा. सिंहदेव ने कहा कि पेसा कानून पर परिचर्चा से पंचायतों के विचार सामने आएंगे. पेसा कानून से ग्राम सभा सशक्त होगा.

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