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सबसे बड़े लोकतंत्र का हाल: वोटर्स ही नहीं जानते कि प्रत्याशी कौन है - baster seat candidate

जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर स्थि मरापी गांव के लोगों को अब तक यह नहीं पता कि लोकसभा चुनाव में कौन-कौन प्रत्याशी मैदान में हैं. यहां के ग्रामीण किसी भी प्रत्याशी का नाम तक नहीं जानते, तो ये सोचिए कि वो किस आधार पर मतदान करने जाएंगे

मरापी गांव के ग्रामीण
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Published : Apr 10, 2019, 5:23 PM IST

कांकेर : लोकसभा चुनाव को लेकर पूरे देश में प्रचार अभियान जोर-शोर से चल रहा है. चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे प्रत्याशी लोगों को रिझाने के लिए प्रचार में जुटे हुए हैं. कांकेर लोकसभा में भी दूसरे चरण में यानी कि 18 अप्रैल को वोटिंग होनी है, जिसमें महज अब एक हफ्ते का समय बचा है. लेकिन कुछ गांव के लोग ऐसे भी हैं, जो ये जानते कि उनका प्रत्याशी कौन है.

वोटर्स ही नहीं जानते कि प्रत्याशी कौन है

इस बीच एक हैरान करने वाली बात सामने आई है. जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर स्थि मरापी गांव के लोगों को अब तक यह नहीं पता कि लोकसभा चुनाव में कौन-कौन प्रत्याशी मैदान में हैं. यहां के ग्रामीण किसी भी प्रत्याशी का नाम तक नहीं जानते, तो ये सोचिए कि वो किस आधार पर मतदान करने जाएंगे. ये हाल जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर बसे गांव का है.

यहां के लोग नहीं जानते प्रत्याशियों का नाम
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मतदाताओं का ये हाल है. जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर में ऐसा कैसे हो सकता है कि यहां के लोग प्रत्याशियों के नाम तक नहीं जानते हों लेकिन यह सच है. ग्रामीणों के अनुसार इनके गांव मरापी में कभी कोई नेता प्रचार के लिए पहुंचता ही नहीं तो वो कैसे प्रत्याशियों के बारे में जान सकेंगे.

मरापी गांव
मरापी गांव

बीते साल बनाई गई थी सड़क
यह वही मरापी गांव है जहां बीते साल पुलिस विभाग ने पहाड़ियों को काटकर सड़क निर्माण किया था. नक्सलियों की दहशत के चलते यहां बीते साल तक सड़क निर्माण तक नहीं हो सका था और ग्रामीण पहाड़ी रास्तों के बीच से ही आना-जाना करते थे. जब पुलिस विभाग ने सड़क बनाई तो इसके बाद इस गांव में एक दिन मेले जैसा माहौल था और जिले के तमाम बड़े अधिकारी, हर पार्टी के नेता यहां पहुंचे थे. लेकिन वो दिन था और आज का दिन है. उस दिन के बाद यहां न तो कोई अधिकारी पहुंचे न ही कोई नेता कभी ग्रामीणों का सुख दुख सुनने पहुंचे.

मरापी गांव
मरापी गांव

गांव नहीं आता कोई भी नेता
ग्रामीण बताते हैं कि उनके गांव में किसी भी चुनाव में नेता प्रचार करने नहीं पहुंचते हैं. पहले तो यहां सड़क नहीं थी पर अब कच्ची सड़क बन चुकी है. इसके बाद भी इस इलाके को जनप्रतिनिधियों ने भुला दिया है.

गांव में एक झंडे, बैनर तक नहीं आये नजर
मरापी गांव में जब हम पहुंचे तो ऐसा बिल्कुल भी लगा ही नहीं कि लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व का कोई असर इस गांव में हो. पूरे गांव में चुनाव प्रचार से संबंधित न तो कोई बाते लिखी नजर आई न ही किसी पार्टियों के झंडे या बैनर कहीं नजर आए.

मरापी गांव
मरापी गांव

ग्रामीणों ने कहा- 'यहां कोई आता नहीं'
इसके बाद हमने ग्रामीणों से चुनावी मैदान में खड़े प्रत्यशियों के बारे में पूछा तो ग्रामीणों का एक ही जवाब था कि जब यहां कोई आता ही नहीं साहब तो हम कैसे जानेंगे कि कौन सा प्रत्याशी मैदान में है और किस पार्टी का है. ग्रामीण कहते हैं हम मतदान करना चाहते हैं पर हमें ये पता ही नहीं कि हमें किसे चुनना है कौन हमारी समस्याओं का समाधान करने वाला नेता कौन है.

एक तरफ राजनीतिक पार्टियां प्रचार अभियान में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं और स्टार प्रचारक दिल्ली रायपुर से पहुंचकर अपने-अपने पार्टियों के प्रत्याशियों को जीत दर्ज करवाने लोगों से अपील करते नजर आ रहे हैं, तो वहीं कुछ ग्रामीणों क्षेत्रों के हालत ऐसे हैं कि वो लोकतंत्र के इस पर्व में शामिल होने आतुर हैं लेकिन उन्हें यह ही नहीं पता कि इस पर्व में उन्हें किसे चुनना है. प्रत्याशियों के चेहरे तो दूर उनका नाम तक इन्हें नहीं पता हैं.

कांकेर : लोकसभा चुनाव को लेकर पूरे देश में प्रचार अभियान जोर-शोर से चल रहा है. चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे प्रत्याशी लोगों को रिझाने के लिए प्रचार में जुटे हुए हैं. कांकेर लोकसभा में भी दूसरे चरण में यानी कि 18 अप्रैल को वोटिंग होनी है, जिसमें महज अब एक हफ्ते का समय बचा है. लेकिन कुछ गांव के लोग ऐसे भी हैं, जो ये जानते कि उनका प्रत्याशी कौन है.

वोटर्स ही नहीं जानते कि प्रत्याशी कौन है

इस बीच एक हैरान करने वाली बात सामने आई है. जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर स्थि मरापी गांव के लोगों को अब तक यह नहीं पता कि लोकसभा चुनाव में कौन-कौन प्रत्याशी मैदान में हैं. यहां के ग्रामीण किसी भी प्रत्याशी का नाम तक नहीं जानते, तो ये सोचिए कि वो किस आधार पर मतदान करने जाएंगे. ये हाल जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर बसे गांव का है.

यहां के लोग नहीं जानते प्रत्याशियों का नाम
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मतदाताओं का ये हाल है. जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर में ऐसा कैसे हो सकता है कि यहां के लोग प्रत्याशियों के नाम तक नहीं जानते हों लेकिन यह सच है. ग्रामीणों के अनुसार इनके गांव मरापी में कभी कोई नेता प्रचार के लिए पहुंचता ही नहीं तो वो कैसे प्रत्याशियों के बारे में जान सकेंगे.

मरापी गांव
मरापी गांव

बीते साल बनाई गई थी सड़क
यह वही मरापी गांव है जहां बीते साल पुलिस विभाग ने पहाड़ियों को काटकर सड़क निर्माण किया था. नक्सलियों की दहशत के चलते यहां बीते साल तक सड़क निर्माण तक नहीं हो सका था और ग्रामीण पहाड़ी रास्तों के बीच से ही आना-जाना करते थे. जब पुलिस विभाग ने सड़क बनाई तो इसके बाद इस गांव में एक दिन मेले जैसा माहौल था और जिले के तमाम बड़े अधिकारी, हर पार्टी के नेता यहां पहुंचे थे. लेकिन वो दिन था और आज का दिन है. उस दिन के बाद यहां न तो कोई अधिकारी पहुंचे न ही कोई नेता कभी ग्रामीणों का सुख दुख सुनने पहुंचे.

मरापी गांव
मरापी गांव

गांव नहीं आता कोई भी नेता
ग्रामीण बताते हैं कि उनके गांव में किसी भी चुनाव में नेता प्रचार करने नहीं पहुंचते हैं. पहले तो यहां सड़क नहीं थी पर अब कच्ची सड़क बन चुकी है. इसके बाद भी इस इलाके को जनप्रतिनिधियों ने भुला दिया है.

गांव में एक झंडे, बैनर तक नहीं आये नजर
मरापी गांव में जब हम पहुंचे तो ऐसा बिल्कुल भी लगा ही नहीं कि लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व का कोई असर इस गांव में हो. पूरे गांव में चुनाव प्रचार से संबंधित न तो कोई बाते लिखी नजर आई न ही किसी पार्टियों के झंडे या बैनर कहीं नजर आए.

मरापी गांव
मरापी गांव

ग्रामीणों ने कहा- 'यहां कोई आता नहीं'
इसके बाद हमने ग्रामीणों से चुनावी मैदान में खड़े प्रत्यशियों के बारे में पूछा तो ग्रामीणों का एक ही जवाब था कि जब यहां कोई आता ही नहीं साहब तो हम कैसे जानेंगे कि कौन सा प्रत्याशी मैदान में है और किस पार्टी का है. ग्रामीण कहते हैं हम मतदान करना चाहते हैं पर हमें ये पता ही नहीं कि हमें किसे चुनना है कौन हमारी समस्याओं का समाधान करने वाला नेता कौन है.

एक तरफ राजनीतिक पार्टियां प्रचार अभियान में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं और स्टार प्रचारक दिल्ली रायपुर से पहुंचकर अपने-अपने पार्टियों के प्रत्याशियों को जीत दर्ज करवाने लोगों से अपील करते नजर आ रहे हैं, तो वहीं कुछ ग्रामीणों क्षेत्रों के हालत ऐसे हैं कि वो लोकतंत्र के इस पर्व में शामिल होने आतुर हैं लेकिन उन्हें यह ही नहीं पता कि इस पर्व में उन्हें किसे चुनना है. प्रत्याशियों के चेहरे तो दूर उनका नाम तक इन्हें नहीं पता हैं.

Intro:कांकेर - लोकसभा चुनाव को लेकर पूरे देश मे प्रचार अभियान जोर शोर से चल रहा है , चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे प्रत्याशी लोगो को रिझाने प्रचार में जुटे हुए है , कांकेर लोकसभा में भी दूसरे चरण में 18 अप्रैल को वोटिंग होनी है जिसमे महज अब एक हफ्ते का समय बचा है , लेकिन इस बीच एक हैरान करने वाली बात सामने आई है , जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर स्तिथ मारापी गांव के लोगो को अब तक यह नही पता कि लोकसभा चुनाव में कौन कौन प्रत्याशी मैदान में है ,यहां के ग्रामीण किसी भी प्रत्याशी का नाम तक नही जानते , तो ये सोचिए कि वो किस आधार पर मतदान करने जाएंगे।


Body:सुनने में यह बात अजीब जरूर लग रही है कि जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर में ऐसा कैसे हो सकता है कि यहां के लोग प्रत्याशियों के नाम तक नही जानते हो , पर यह सत्य है। ग्रामीणों के अनुसार इनके गांव मरापी में कभी कोई नेता प्रचार के लिए पहुचता ही नही तो वो कैसे प्रत्याशियों के बारे में जान सकेंगे। यह वही मरापी गांव है जहां बीते साल पुलिस विभाग ने पहाड़ियों को काटकर सड़क निर्माण किया था , नक्सलियों की दहशत के चलते यहां बीते साल तक सड़क निर्माण तक नही हो सका था , और ग्रामीण पहाड़ी रास्तो के बीच से ही आना जाना करते थे । जब पुलिस विभाग ने सड़क बनाई तो इसके बाद इस गांव में एक दिन मेले जैसा माहौल था और जिले के तमाम बड़े अधिकारी , हर पार्टी के नेता यहां पहुँचे थे , लेकिन वो दिन था और आज का दिन है , उस दिन के बाद यहां न तो कोई अधिकारी पहुचे ना ही कोई नेता कभी ग्रामीणों का सुख दुख सुनने पहुचे। ग्रामीण बताते है उनके गांव में किसी भी चुनाव में नेता प्रचार करने नही पहुचते है , पहले तो यहां सड़क नही थी पर अब कच्ची सड़क बन चुकी है , इसके बाद भी इस इलाके को जनप्रतिनिधियों ने भुला दिया है ।

गांव में एक झंडे ,बैनर तक नही आये नज़र
मरापी गांव में जब हम पहुचे तो ऐसा बिल्कुल भी लगा ही नही कि लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व का कोई असर इस गांव में हो , पूरे गांव में चुनाव प्रचार से संबंधित न तो कोई बाते लिखी नज़र आई , ना ही किसी पार्टियों के झंडे या बैनर कहि नज़र आये। इसके बाद हमने ग्रामीणों से चुनावी मैदान में खड़े प्रत्यशियों के बारे में पूछा तो ग्रामीणों का एक ही जवाब था कि जब यहां कोई आता ही नही साहब तो हम कैसे जानेंगे कि कौनसा प्रत्याशी मैदान में है और किस पार्टी का है। ग्रामीण कहते है हम मतदान करना चाहते है पर हमें ये पता ही नही कि हमे किसे चुनना है कौन हमारी समस्याओं का समाधान करने वाला नेता कौन है ।


Conclusion:एक तरफ राजनीतिक पार्टियां प्रचार अभियान में कोई कसर नही छोड़ रही है और स्टार प्रचारक दिल्ली रायपुर से पहुचकर अपने अपने पार्टियों के प्रत्याशियों को जीत दर्ज करवाने लोगो से अपील करते नज़र आ रहे है तो वही कुछ ग्रामीणों क्षेत्रो के हालत ऐसे है कि वो लोकतंत्र के इस पर्व में शामिल होने आतुर है लेकिन उन्हें यह ही नही पता कि इस पर्व में उन्हें किसे चुनना है । प्रत्याशियों के चेहरे तो दूर उनका नाम तक इन्हें नही पता है।
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