कांकेर: डिलिस्टिंग की मांग की चिंगारी अब कांकेर तक पहुंच गई है. हजारों की संख्या में जनजाति सुरक्षा मंच के बैनर तले कांकेर जिला मुख्यालय में रैली निकाली गई. रविवार दोपहर को जनजातिय सुरक्षा मंच के बैनर तले, शहर में हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग सड़क में उतर आए. अपनी मांग के समर्थन में आदिवासियों ने जमकर नारेबाजी की. कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच दोपहर लगभग 1 बजे कांकेर मेला ग्राउंड से नगर के भीतर गुजरते हुए पुराने कम्युनिस्ट हॉल तक रैली निकाली गई.
क्यों डिलिस्टिंग की मांग कर रहा जनजाति सुरक्षा मंच: रविवार को कांकेर शहर में हजारों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोगों ने ऐसे लोगों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. जो धर्मांतरण करने के बाद भी आदिवासी वर्ग के तहत आरक्षण का लाभ ले रहे हैं. आदिवासी समाज ने ऐसे लोगों को आरक्षण की सूची से बाहर करने की मांग की है.
डिलिस्टिंग के विरोध में एकजुट हुआ ईसाई आदिवासी समाज
धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को न दिया जाए आरक्षण: पूर्व बीजेपी नेता और जनजाति सुरक्षा मंच से जुड़े भोजराज नाग ने कहा कि "जिन लोगों ने अपनी पूजा पद्धति मत विश्वास को त्याग दिया है. आदिवासी परंपराओं को त्याग दिया है, उन्हें अब आदिवासी आरक्षण के बाहर किया जाए. मिशनरियों और जिहादी संगठनों की तरफ से आर्थिक रूप से कमजोर आदिवासी परिवारों का धर्मांतरण जोरों पर किया जा रहा है. ऐसे मतातंरित परिवार अल्पसंख्यक और जनजाति समुदाय को मिलने वाले दोहरा लाभ ले रहे हैं जो कि अनुचित है. इसके कारण वास्तविक जनजातीय परिवारों को संवैधानिक संरक्षण, आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है. प्रकृति पूजक जनजातीय समाज की प्राचीन संस्कृति को बचाने के लिए मतांतरित आदिवासियों की डीलिस्टिंग जरूरी है.
यह से शुरू हुई डिलिस्टिंग की मांग: मतांतरण कर चुके आदिवासियों को आरक्षण की सूची से बाहर निकालने की मांग सबसे पहले जनजातीय समाज के सबसे बड़े जननायक कार्तिक उरांव ने उठाई थी. उन्होंने इसके लिए 1967-68 में लोकसभा के पटल पर नीजि विधेयक भी प्रस्तुत किया था लेकिन इस पर चर्चा नहीं हो सकी. इसके बाद अल्पायु में निधन हो जाने के कारण कार्तिक उरांव का सपना पूरा नहीं हो पाया. अब