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कांकेर में बुलेट पर भारी बैलेट, 72% से अधिक मतदान कर लोगों ने नक्सलियों को दिया करारा जवाब

जिले में 72% से हुई अधिक वोटिंग ने नक्सलियों की दहशत को करारा जवाब दिया है. जवानों की मुस्तैदी के कारण न सिर्फ चुनाव शांतिपूर्ण हुए बल्कि इलाके में बम्पर वोटिंग भी हुई.

कांकेर में बुलेट पर भारी बैलेट, 72% से अधिक मतदान कर लोगों ने नक्सलियों को दिया करारा जवाब
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Published : Apr 22, 2019, 7:41 PM IST

कांकेरः प्रदेश के कांकेर लोकसभा क्षेत्र में शांतिपूर्ण तरीके से मतदान संपन्न कराना एक बड़ी चुनौती मानी जा रही थी, लेकिन जिले में 72% से हुई अधिक वोटिंग ने नक्सलियों की दहशत को करारा जवाब दिया है. जवानों की मुस्तैदी के कारण न सिर्फ चुनाव शांतिपूर्ण हुए बल्कि इलाके में बम्पर वोटिंग भी हुई.

कांकेर में बुलेट पर भारी बैलेट

कांकेर में 18 अप्रैल को हुए मतदान से कुछ दिन पहले ही महला गांव के पास नक्सलियों ने जवानों पर हमला किया था, जिसमें 4 जवान शहीद हुए थे. वहां भी ग्रामीणों ने मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेकर नक्सलियों को कड़ा संदेश दिया है.

सुरक्षा के थे पुख्ता इंतजाम
कांकेर लोकसभा के अंतर्गत अन्तागढ़ विधानसभा के सभी मतदान केंद्रों को संवेदनशील केंद्रों के दायरे में रखा गया था. इस विधानसभा में 22 अतिसंवेदनशील मतदान केंद्र भी थे, जहां साल 2013 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नक्सली घटनाएं हुई थी. इन इलाकों में नक्सलियों ने बैनर-पोस्टर लगाकर कई बार चुनाव बहिष्कार की धमकी भी दी थी. इसके कारण ऐसे इलाकों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे.

जवानों पर भरोसा जता रहे ग्रामीण
बता दें कि कांकेर लोकसभा क्षेत्र के 8 में से 5 विधानसभा नक्सल प्रभावित हैं. बावजूद कांकेर में मतदान का प्रतिशत 72 से अधिक रहा. मतदान के प्रति लोगों में विश्वास देखकर यह बात साफ है कि इलाके में ग्रामीण नक्सलियों के खौफ से ज्यादा अब जवानों पर भरोसा करने लगे हैं.

पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान कई गांव ऐसे भी थे, जहां मात्र एक या दो वोट ही पड़े थे. कुछ गांव में तो खाता भी नहीं खुल सका था. इसमें विकासपल्ली गांव शामिल था, लेकिन इस बार की वोटिंग से यहां बुलेट पर बैलेट भारी पड़ा है.

अति नक्सल प्रभावित गांव जहां हुई बम्पर वोटिंग
जिले के अति नक्सल प्रभावित गांवों के मतदान केंद्र दूसरे गांव में शिफ्ट किये गए थे. इसके बावजूद ग्रामीण 4 से 5 किलोमीटर चलकर वोट डालने पहुंचे थे. बता दें कि माड़ पखांजुर में 70 प्रतिशत, कोडरुज में 71 .18 प्रतिशत, भैंस गांव में 77.91 प्रतिशत, बदरंगी में 79.88 प्रतिशत, गोड़पाल में 60 प्रतिशत, नागहूर में 70 प्रतिशत, धनेली में 68 प्रतिशत मतदान कर लोगों ने लोकतंत्र को मजबूत बनाया है.

15 किलोमीटर चलकर पहुंचे ग्रामीण
इसके अलावा सितरम में 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नक्सलियों ने पुलिस पार्टी पर हमला किया था. इस बार यहां का मतदान केंद्र 15 किलोमीटर दूर शिफ्ट किया गया था. उसके बाद भी यहां 44 लोग मतदान करने पहुंचे थे. वहीं मातलाबा गांव का मतदान केंद्र भी 12 किलोमीटर दूर शिफ्ट किया गया था. यहां भी 12 प्रतिशत प्रतिशत हुआ.

कांकेरः प्रदेश के कांकेर लोकसभा क्षेत्र में शांतिपूर्ण तरीके से मतदान संपन्न कराना एक बड़ी चुनौती मानी जा रही थी, लेकिन जिले में 72% से हुई अधिक वोटिंग ने नक्सलियों की दहशत को करारा जवाब दिया है. जवानों की मुस्तैदी के कारण न सिर्फ चुनाव शांतिपूर्ण हुए बल्कि इलाके में बम्पर वोटिंग भी हुई.

कांकेर में बुलेट पर भारी बैलेट

कांकेर में 18 अप्रैल को हुए मतदान से कुछ दिन पहले ही महला गांव के पास नक्सलियों ने जवानों पर हमला किया था, जिसमें 4 जवान शहीद हुए थे. वहां भी ग्रामीणों ने मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेकर नक्सलियों को कड़ा संदेश दिया है.

सुरक्षा के थे पुख्ता इंतजाम
कांकेर लोकसभा के अंतर्गत अन्तागढ़ विधानसभा के सभी मतदान केंद्रों को संवेदनशील केंद्रों के दायरे में रखा गया था. इस विधानसभा में 22 अतिसंवेदनशील मतदान केंद्र भी थे, जहां साल 2013 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नक्सली घटनाएं हुई थी. इन इलाकों में नक्सलियों ने बैनर-पोस्टर लगाकर कई बार चुनाव बहिष्कार की धमकी भी दी थी. इसके कारण ऐसे इलाकों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे.

जवानों पर भरोसा जता रहे ग्रामीण
बता दें कि कांकेर लोकसभा क्षेत्र के 8 में से 5 विधानसभा नक्सल प्रभावित हैं. बावजूद कांकेर में मतदान का प्रतिशत 72 से अधिक रहा. मतदान के प्रति लोगों में विश्वास देखकर यह बात साफ है कि इलाके में ग्रामीण नक्सलियों के खौफ से ज्यादा अब जवानों पर भरोसा करने लगे हैं.

पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान कई गांव ऐसे भी थे, जहां मात्र एक या दो वोट ही पड़े थे. कुछ गांव में तो खाता भी नहीं खुल सका था. इसमें विकासपल्ली गांव शामिल था, लेकिन इस बार की वोटिंग से यहां बुलेट पर बैलेट भारी पड़ा है.

अति नक्सल प्रभावित गांव जहां हुई बम्पर वोटिंग
जिले के अति नक्सल प्रभावित गांवों के मतदान केंद्र दूसरे गांव में शिफ्ट किये गए थे. इसके बावजूद ग्रामीण 4 से 5 किलोमीटर चलकर वोट डालने पहुंचे थे. बता दें कि माड़ पखांजुर में 70 प्रतिशत, कोडरुज में 71 .18 प्रतिशत, भैंस गांव में 77.91 प्रतिशत, बदरंगी में 79.88 प्रतिशत, गोड़पाल में 60 प्रतिशत, नागहूर में 70 प्रतिशत, धनेली में 68 प्रतिशत मतदान कर लोगों ने लोकतंत्र को मजबूत बनाया है.

15 किलोमीटर चलकर पहुंचे ग्रामीण
इसके अलावा सितरम में 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नक्सलियों ने पुलिस पार्टी पर हमला किया था. इस बार यहां का मतदान केंद्र 15 किलोमीटर दूर शिफ्ट किया गया था. उसके बाद भी यहां 44 लोग मतदान करने पहुंचे थे. वहीं मातलाबा गांव का मतदान केंद्र भी 12 किलोमीटर दूर शिफ्ट किया गया था. यहां भी 12 प्रतिशत प्रतिशत हुआ.

Intro:कांकेर - लोकसभा चुनाव के दौरान बस्तर के बाद कांकेर लोकसभा में चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न करवाना बड़ी चुनौती मानी जा रही थी , लेकिन जवानों की मुस्तेदी से ना केवल यहां पूरी तरह शांति से चुनाव सम्पन्न हुए बल्कि उन इलाकों में भी बम्पर वोटिंग हुई जहा कभी नक्सली दहशत से ग्रामीण घरों से नही निकलते थे। कांकेर लोकसभा के लिए 17 अप्रैल को हुए मतदान में उन इलाकों के ग्रामीणों ने भी बढ़ चढ़कर वोटिंग की जिस इलाके को नक्सलियों का गढ़ माना जाता है । चंद दिनों पहले ही जिस महला गांव के पास नक्सलियों ने जवानों पर हमला कर बढ़ी घटना को अंजाम दिया था , जिसमे हमारे 4 जवान शहीद हो गए थे , वहां भी ग्रामीणों ने मतदान में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेकर नक्सलियों को कड़ा संदेश दिया है की अब वो आतंक से डरने वाले नही है।


Body:कांकेर लोकसभा के अंतर्गत अन्तागढ़ विधानसभा के सभी मतदान केंद्रों को संवेदनशील के दायरे में रखा गया था , और इसी विधानसभा से 22 ऐसे मतदान केंद्र भी थे जिन्हें अतिसंवेदनशील के दायरे में रखा गया था और ये वो मतदान केंद्र थे , जहा 2013 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नक्सली घटनाएं हुई थी , उम्मीद कम ही थी कि इन इलाकों में वोटिंग को लेकर ग्रामीणों में कोई खास दिलचस्पी होगी , लेकिन 17 अप्रैल को जब मतदान की बारी आई तो तस्वीरे अलग ही थी , जिन इलाकों में नक्सलियों ने बेनर पोस्टर लगाकर बार बार चुनाव बहिष्कार की धमकी दी थी , जो इलाके नक्सलियों का गढ़ माने जाते है वहा भारी संख्या में ग्रामीण वोट करने घर से बाहर निकले थे। ग्रामीणों का मतदान के प्रति यह विश्वास देखकर यह बात तो साफ थी कि इन इलाकों में नक्सलियों के खौफ से ज्यादा अब जवानों पर भरोसा ग्रामीणों को होने लगा है और जवानों की बदौलत ही नक्सलियों से बिना डरे ग्रामीण वोट करने आगे आ रहे थे , बता दे कि कांकेर लोकसभा के 8 में से 5 विधानसभा नक्सल प्रभावित है , अंदरूनी इलाकों के ग्रामीणों ने मतदान में जिस तरह बढ़चढ़कर हिस्सा लिया उससे कांकेर लोकसभा के मतदान का प्रतिशत 72 से अधिक रहा ।

जहा हुए थे नक्सली हमले वहां बेझिझक वोट करने आये ग्रामीण

2013 और 2014 के चुनाव के दौरान नक्सलियों ने जिले में काफी उत्पात मचाया था , और कई इलाकों में पुलिस पार्टियों , मतदान दल पर हमला किया था , इन इलाकों को इस बार अति संवेदनशील के दायरे में रखा गया था और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे । इस क्षेत्र में पिछले लोकसभा के दौरान कई गांव ऐसे भी थे जहां एक या दो वोट ही पड़े थे , जबकि कुछ गांव में तो खाता भी नही खुला था ,जिसमे विकासपल्ली गांव शामिल था , लेकिन इस बार इन इलाकों में ग्रामीणों ने मतदान के प्रति जो दिलचस्पी दिखाई है वो नक्सलियों को जवाब देने काफी है , और इसे लोकतंत्र की जीत बिल्कुल कहा जा सकता है ।क्योंकि इस बार यहां बुलेट पर बैलेट भारी पड़ा है ।

अति नक्सल प्रभावित गांव जहा हुए बम्पर वोटिंग
जिले के अति नक्सल प्रभावित गांव जहा के मतदान केंद्र दूसरे गांव में शिफ्ट किये गए थे उसके बाद भी ग्रामीण 4 से 5 किलोमीटर चलकर वोट डालने पहुचे थे , माड़ पखांजुर में 70 प्रतिशत , कोडरुज में 71 .18 प्रतिशत , भैंस गांव में 77.91 प्रतिशत , बदरंगी में 79.88 प्रतिशत , गोड़पाल में 60 प्रतिशत ,नागहूर में 70 प्रतिशत , धनेली में 68 प्रतिशत मतदान हुए है , इसके अलावा सितरम जहा 2014 चुनाव के दौरान नक्सलियों ने पुलिस पार्टी पर हमला भी किया था इस बार यहां का मतदान केंद्र 15 किलोमीटर दूर शिफ्ट किया गया था उसके बाद भी 44 लोग मतदान करने पहुचे थे , वही मातला बा गांव का मतदान केंद्र भी 12 किलोमीटर दूर शिफ्ट किया गया था , यहां के ग्रामीणों ने भी वोटिंग में हिस्सा लिया और यहां लगभग 12 प्रतिशत मतदान हुआ है ।


Conclusion:दूरी ज्यादा रही नही तो और बढ़ता प्रतिशत
कई मतदान केंद्रों को जिन्हें दूसरे मतदान केंद्रों में शिफ्ट किया गया था , उसकी दूरी काफी ज्यादा थी जिसके चलते ग्रामीण वोट डालने नही पहुच सके नही तो इन इलाको से मतदान का प्रतिशत और बढ़ सकता था , क्योकि इस बार ग्रामीणों का वोटिंग के प्रति अच्छा रुझान देखने को मिला है ।
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