कांकेर: जिले में बीएसएफ के एक जवान ने अपनी सर्विस राइफल से खुद को गोली मारकर खुदकुशी कर ली. मौके पर ही जवान की मौत हो गई. जवान ने आत्महत्या को लेकर कदम क्यों उठाया इस बात का खुलासा अभी नहीं हो पाया है. फिलहाल जवान के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया है और जांच शुरू कर दी गई है.
सर्विस राइफल से खुद को मारी गोली
मृतक जवान का प्रदीप शुक्ला है. जो उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. अंतागढ़ एसडीओपी कौशलेंद्र पटेल ने घटना की पुष्टि करते हुए बताया है कि बीएसएफ के चौथी बटालियन का जवान प्रदीप शुक्ला ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली है. जवान के आत्महत्या करने की वजह सामने नहीं आई है. इस मामले में पुलिस फिलहाल जांच में जुटी है.
कैंप में अफरा-तफरी का माहौल
घटना कांकेर जिले के धुर नक्सल प्रभावित इलाका कोयलीबेड़ा की है. घटना के बाद से बीएसएफ कैंप में अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है. घटना के हालात पर आला-अधिकारी नजर बनाए हुए हैं.
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लगातार बढ़ रहे हैं जवानों की खुदकुशी के मामले
- साल 2007 से साल 2019 तक की स्थिति के मुताबिक सुरक्षा बल के 201 जवानों ने आत्महत्या की है. इसमें राज्य पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवान भी शामिल हैं.
- साल 2020 में करीब 7 से ज्यादा जवानों ने खुदकुशी की.
- 9 दिसंबर 2020: अंतागढ़ में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवान ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. जवान स्वराज पीएल नाम केरल के वायनाड का रहने वाला था.
- 30 नवंबर 2020: बीजापुर जिले के कुटरु थाना इलाके में पुलिसकर्मी ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली थी.
- 29 नवंबर 2020: धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र पामेड़ थाना में पदस्थ एक आरक्षक ने अपनी सर्विस रायफल से खुद को गोली मारकर खुदकुशी कर ली थी.
- 29 नवंबर 2020: कांकेर के पुसपाल थाने में तैनात सीएएफ के जवान दिनेश वर्मा ने खुद को गोली मार आत्महत्या कर ली. दिनेश वर्मा पुसपाल थाने में तैनात था और दुर्ग जिले के भिलाई का रहने वाला था.
क्यों टेंशन में हैं रखवाले ?
जानकारों के मुताबिक नक्सल क्षेत्रों में ड्यूटी पर तैनात जवानों के ऊपर काफी प्रेशर होता है. वे काफी प्रेशर में काम करते है. उनकी शिफ्ट भी अलग-अलग होती है. इससे नींद पूरी नहीं होती. एक लंबे समय से अपने घर से दूर रहते हैं, ऐसे में फैमिली का प्रेशर भी उनके ऊपर होता है. जवानों को 3 तरीके से प्रेशर रहता है. पहला परिवार का प्रेशर रहता है. दूसरा सामाजिक प्रेशर रहता है और तीसरा काम को लेकर प्रेशर रहता है.
साइकेट्रिस्ट का मानना है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जवानों को मजबूत बने रहने के लिए नियमित छुट्टियां, अटेंशन के साथ ही लगातार मनोचिकित्सक के संपर्क में भी रहने की जरूरत है.