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दो साल में अपना गांव-घर छोड़ कब-कब आंंदोलन पर उतरे बस्तर के आदिवासी ?

छत्तीसगढ़ में कई बार आदिवासी जल, जंगल और जमीन को लेकर आंदोलन का रुख अख्तियार कर चुके हैं. कभी पहाड़ियों पर माइनिंग, कभी देवी-देवताओं के स्थल, कभी कैंप के विरोध में बस्तर के आदिवासियों ने मुखर होकर प्रदर्शन किया. वे कभी कैंप का विरोध करते हैं, तो कभी गांव में विकास कार्यों के मांग. आइए नजर डालते हैं कि पिछले दो साल में कब-कब आदिवासियों ने आंदोलन की राह पकड़ ली.

last two year trib
आदिवासी
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Published : Dec 19, 2020, 6:57 PM IST

कांकेर: आदिवासी जितने भोले होते हैं, उतने ही परंपराओं, रीति-रिवाजों और देवी-देवताओं के लिए भावुक. पिछले दो साल में ऐसे कई मौके आए जब जल, जंगल और जमीन के लिए आदिवासियों को आंदोलन का रुख करना पड़ा. कभी पहाड़ियों पर माइनिंग, कभी देवी-देवताओं के स्थल, कभी कैंप के विरोध में बस्तर के आदिवासियों ने मुखर होकर प्रदर्शन का रास्ता अख्तियार कर लिया. पैसा कानून लागू करने की मांग भी ग्रामीण कर रहे हैं. कांग्रेस ने अपने जनघोषणा पत्र में पेसा कानून लागू करने का वादा किया था. सरकार बनने के बाद पहली मीटिंग में भी इसकी चर्चा हुई थी. आदिवासी समाज के साथ सरकार दो बार इस मुद्दे पर बातचीत भी कर चुकीहै. अभी तक ये देखने को मिला है कि कभी सरकार को उनके आगे झुकना पड़ा, तो कभी वे समझाने से मान गए.

last two year tribal protest in bastar
आदिवासियों की लड़ाई

कब-कब विरोध पर उतरे आदिवासी ?

बैलाडीला के नंदराज पर्वत पर माइनिंग के विरोध में आदिवासियों ने 2019 में आंदोलन किया था. हफ्तेभर चले इस शांतिपूर्ण आंदोलन में 20 हजार आदिवासी शामिल हुए थे. सरकार ने इस पहाड़ को लौह अयस्क के खनन के लिए अडाणी समूह को लीज पर दिया था. ग्रामीण इसका विरोध कर रहे थे. उनका कहना था कि इस पहाड़ी पर उनके देवता रहते हैं. 15 दिन के अल्टीमेटम के बाद आंदोलन खत्म हुआ और सरकार ने लीज खत्म कर दिया था. इस पहाड़ को खनन के लिए लीज पर देने से पहले फर्जी ग्राम सभा आयोजन कराने का आरोप भी लगा था. जांच में इस बात की पुष्टि भी हुई थी.


पढ़ें : नारायणपुर आदिवासी आंदोलन: आश्वासन के बाद घर लौट रहे ग्रामीण, प्रशासन को 15 दिन का अल्टीमेटम


नारायणपुर आमदेई पहाड़ की लड़ाई
छोटेडोंगर क्षेत्र में स्थित अमादाई पहाड़ी को बचाने के लिए आदिवासी पिछले सालभर से आंदोलन कर रहे हैं. हाल ही में हफ्तेभर से अधिक समय तक आदिवासियों ने नारायणपुर-ओरछा मार्ग जाम कर प्रदर्शन किया था. आश्वासन के बाद आदिवासियों ने अपना प्रदर्शन खत्म किया था. उनका आरोप था कि जबरन ग्राम सभा कर अमादाई पहाड़ी को खनन के लिए निक्को कंपनी को दिया गया है. आदिवासी समाज के नेता बीसल नाग कहते हैं कि, 'अमादाई पहाड़ी में हमारी धर्मिक आस्था है, जहां क्षेत्र के लोग एकजुट होकर हर साल पूजा पाठ करते हैं. हमारे पूजा-पाठ का प्रतीक कोई मूर्ति नहीं है. उस पहाड़ पर सालों से आदिवासी इकट्ठा होते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं'.

last two year tribal protest in bastar
आदिवासियों की लड़ाई

पढ़ें: EXCLUSIVE: 'विश्वास, विकास और सुरक्षा' की त्रिवेणी से होगा नक्सल समस्या का समाधान

रावघाट में जमीन की लड़ाई लड़ रहे आदिवासी
कांकेर जिले के अंतागढ़ ब्लॉक के रावघाट पहाड़ी में आदिवासी जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं. यह क्षेत्र लौह अयस्क के खनन के लिए जाना जाता है. बैलाडिला पहाड़ी के बाद रावघाट के पहाड़ों में ही सबसे ज्यादा लौह भंडार है. यह पूरा क्षेत्र आदिवासियों के धार्मिक आस्था का केंद्र है. आदिवासी रामकुमार दर्रो कहते हैं कि, 'जब से लौह अयस्क के खनन का प्रोजेक्ट आया है, तब से आदिवासी अपने जमीन के देवताओं को बचाने के लिए आंदोलन की राह पर हैं.

पढ़ें : SPECIAL: बस्तर पुलिस का 'लोन वर्राटू' अभियान, घर वापसी की ओर बढ़ रहे नक्सली

क्यों लगाए जाते हैं कैंप ?
बस्तर में नक्सल उन्मूलन के लिए बस्तर के गांवो में हर 5 किलोमीटर के दायरे में सुरक्षा बलों के कैंप तैनात किए गए हैं. जिसमे सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय सुरक्षा बल, भारत तिब्बत सीमा पुलिस, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल से लेकर छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल स्थानीय पुलिस के मदद से नक्सल उन्मूलन का कार्य करती है. स्थानीय स्तर पर डीआरजी के जवान जो भूतपूर्व नक्सली थे, अब आत्मसमर्पण के बाद वे घने जंगलो में नक्सल अभियान के खात्में के लिए पुलिस के साथ जुड़कर कार्य कर रहे हैं. हाल ही में ग्रामीणों ने ये कहकर कैंप का विरोध किया कि जहां कैंप है, वहां उनके देवता निवास करते हैं.

कब-कब कैंप का विरोध हुआ ?

  • जून 2019 में कोंडागांव में हजारों आदिवासियों ने सुरक्षा बल के कैंप का विरोध किया था. उनका कहना था कि क्षेत्र में विकास किया जाए. ग्रामीणों ने गांवों में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग की थी.
  • नंवबर 2019 में दंतेवाड़ा के पोटाली गांव में नए पुलिस कैंप खोले गए, जिसके खिलाफ आदिवासियों ने प्रदर्शन किया था.
  • जनवरी 2020 में बीजापुर के गंगालूर क्षेत्र के आदिवासी नए सुरक्षा कैंप की स्थापना के विरोध में सड़कों पर उतर आए थे. विरोध-प्रदर्शन के दौरान ग्रामीणों की सुरक्षा बल के जवानों के साथ जमकर झड़प भी हुई थी. प्रदर्शन कर रहे ग्रामीण आदिवासियों का कहना था कि इलाके में पुलिस कैंप की नहीं बल्कि स्कूल और अस्पताल की जरूरत है.
  • सितंबर 2020 में दंतेवाड़ा के अंतर्गत गुमियापाल अलनार में हजारों आदिवासी एकजुट होकर नए कैम्प का विरोध किया था. ग्रामीणों का आरोप था कि पुलिस कैम्प के नाम पर उनकी जमीन का अधिग्रहण करेगी. आलनार की लौह अयस्क खदान निजी कम्पनी के लिए शुरू कराएगी.
  • 17 दिसम्बर 2020 से कांकेर के कोयलीबेड़ा ब्लॉक के परतापुर में आदिवासी अनिश्चितकालीन प्रदर्शन पर बैठ गए. उनका कहना है कि जिस जगह कैंप खोला गया है वह उनके देवताओं का स्थान है.
    last two year tribal protest in bastar
    आदिवासियों की जंगल की लड़ाई

'आदिवासी देवताओं के स्थान पर BSF कैंप'

आदिवासी नेता प्रकाश ठाकुर ने बैलाडीला के पिटोड़मेटा पहाड़, राव घाट पहाड़, आमदेई पहाड़ अबूझमाड़ कोटूमसार बोधघाट को देव धाम बताया. उनका कहना था कि इन प्राकृतिक चीजों को ही वह हजारों साल से पीढ़ी दर पीढ़ी पेन (देवता) मानते आ रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि, 'जनजाति समुदाय के देव धामी को खनिज उत्खनन के लिए जबरन खनन किया जाता है, तोड़फोड़ किया जाता है. हमारी आस्था के लिए कोई सामने नहीं आता. यही हमारी आस्था है. प्रकृति ही हमारी सर्वोच्च शक्ति है. इसलिए इसकी रक्षा के लिए जनजाति समुदाय हमेशा से ही लड़ते आया है और आज भी लड़ रहा है. इन दो सालों में तेंदूपत्ता भुगतान, निर्दोष आदिवासियों की जेल से रिहाई, मूलभूत सुविधाओं को लेकर बस्तर संभाग के सातों जिलो में लगातार प्रदर्शन हो रहा है.'

सरकार और पुलिस की दलील

आदिवासियों के इस विरोध प्रदर्शन पर पुलिस का कहना है कि यह प्रदर्शन नक्सलियों के इशारे पर होता है. क्योंकि कैंप लगने के बाद नक्सलियों की वहां मौजूदगी कम हो जाती है. क्षेत्र में सड़क-बिजली-पानी जैसी सुविधाएं आसानी से पहुंचाई जा सकती हैं. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी कैंप का विरोध करने वालों पर सवाल उठाए थे. सीएम ने इशारों में कहा था कि सब जानते हैं, कैंप का विरोध कौन करता है. हालांकि कई बार आदिवासियों ने इस बात की शिकायत भी दर्ज कराई है कि वे पुलिस और नक्सलियों के बीच पिस रहे हैं.

कांकेर: आदिवासी जितने भोले होते हैं, उतने ही परंपराओं, रीति-रिवाजों और देवी-देवताओं के लिए भावुक. पिछले दो साल में ऐसे कई मौके आए जब जल, जंगल और जमीन के लिए आदिवासियों को आंदोलन का रुख करना पड़ा. कभी पहाड़ियों पर माइनिंग, कभी देवी-देवताओं के स्थल, कभी कैंप के विरोध में बस्तर के आदिवासियों ने मुखर होकर प्रदर्शन का रास्ता अख्तियार कर लिया. पैसा कानून लागू करने की मांग भी ग्रामीण कर रहे हैं. कांग्रेस ने अपने जनघोषणा पत्र में पेसा कानून लागू करने का वादा किया था. सरकार बनने के बाद पहली मीटिंग में भी इसकी चर्चा हुई थी. आदिवासी समाज के साथ सरकार दो बार इस मुद्दे पर बातचीत भी कर चुकीहै. अभी तक ये देखने को मिला है कि कभी सरकार को उनके आगे झुकना पड़ा, तो कभी वे समझाने से मान गए.

last two year tribal protest in bastar
आदिवासियों की लड़ाई

कब-कब विरोध पर उतरे आदिवासी ?

बैलाडीला के नंदराज पर्वत पर माइनिंग के विरोध में आदिवासियों ने 2019 में आंदोलन किया था. हफ्तेभर चले इस शांतिपूर्ण आंदोलन में 20 हजार आदिवासी शामिल हुए थे. सरकार ने इस पहाड़ को लौह अयस्क के खनन के लिए अडाणी समूह को लीज पर दिया था. ग्रामीण इसका विरोध कर रहे थे. उनका कहना था कि इस पहाड़ी पर उनके देवता रहते हैं. 15 दिन के अल्टीमेटम के बाद आंदोलन खत्म हुआ और सरकार ने लीज खत्म कर दिया था. इस पहाड़ को खनन के लिए लीज पर देने से पहले फर्जी ग्राम सभा आयोजन कराने का आरोप भी लगा था. जांच में इस बात की पुष्टि भी हुई थी.


पढ़ें : नारायणपुर आदिवासी आंदोलन: आश्वासन के बाद घर लौट रहे ग्रामीण, प्रशासन को 15 दिन का अल्टीमेटम


नारायणपुर आमदेई पहाड़ की लड़ाई
छोटेडोंगर क्षेत्र में स्थित अमादाई पहाड़ी को बचाने के लिए आदिवासी पिछले सालभर से आंदोलन कर रहे हैं. हाल ही में हफ्तेभर से अधिक समय तक आदिवासियों ने नारायणपुर-ओरछा मार्ग जाम कर प्रदर्शन किया था. आश्वासन के बाद आदिवासियों ने अपना प्रदर्शन खत्म किया था. उनका आरोप था कि जबरन ग्राम सभा कर अमादाई पहाड़ी को खनन के लिए निक्को कंपनी को दिया गया है. आदिवासी समाज के नेता बीसल नाग कहते हैं कि, 'अमादाई पहाड़ी में हमारी धर्मिक आस्था है, जहां क्षेत्र के लोग एकजुट होकर हर साल पूजा पाठ करते हैं. हमारे पूजा-पाठ का प्रतीक कोई मूर्ति नहीं है. उस पहाड़ पर सालों से आदिवासी इकट्ठा होते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं'.

last two year tribal protest in bastar
आदिवासियों की लड़ाई

पढ़ें: EXCLUSIVE: 'विश्वास, विकास और सुरक्षा' की त्रिवेणी से होगा नक्सल समस्या का समाधान

रावघाट में जमीन की लड़ाई लड़ रहे आदिवासी
कांकेर जिले के अंतागढ़ ब्लॉक के रावघाट पहाड़ी में आदिवासी जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं. यह क्षेत्र लौह अयस्क के खनन के लिए जाना जाता है. बैलाडिला पहाड़ी के बाद रावघाट के पहाड़ों में ही सबसे ज्यादा लौह भंडार है. यह पूरा क्षेत्र आदिवासियों के धार्मिक आस्था का केंद्र है. आदिवासी रामकुमार दर्रो कहते हैं कि, 'जब से लौह अयस्क के खनन का प्रोजेक्ट आया है, तब से आदिवासी अपने जमीन के देवताओं को बचाने के लिए आंदोलन की राह पर हैं.

पढ़ें : SPECIAL: बस्तर पुलिस का 'लोन वर्राटू' अभियान, घर वापसी की ओर बढ़ रहे नक्सली

क्यों लगाए जाते हैं कैंप ?
बस्तर में नक्सल उन्मूलन के लिए बस्तर के गांवो में हर 5 किलोमीटर के दायरे में सुरक्षा बलों के कैंप तैनात किए गए हैं. जिसमे सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय सुरक्षा बल, भारत तिब्बत सीमा पुलिस, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल से लेकर छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल स्थानीय पुलिस के मदद से नक्सल उन्मूलन का कार्य करती है. स्थानीय स्तर पर डीआरजी के जवान जो भूतपूर्व नक्सली थे, अब आत्मसमर्पण के बाद वे घने जंगलो में नक्सल अभियान के खात्में के लिए पुलिस के साथ जुड़कर कार्य कर रहे हैं. हाल ही में ग्रामीणों ने ये कहकर कैंप का विरोध किया कि जहां कैंप है, वहां उनके देवता निवास करते हैं.

कब-कब कैंप का विरोध हुआ ?

  • जून 2019 में कोंडागांव में हजारों आदिवासियों ने सुरक्षा बल के कैंप का विरोध किया था. उनका कहना था कि क्षेत्र में विकास किया जाए. ग्रामीणों ने गांवों में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग की थी.
  • नंवबर 2019 में दंतेवाड़ा के पोटाली गांव में नए पुलिस कैंप खोले गए, जिसके खिलाफ आदिवासियों ने प्रदर्शन किया था.
  • जनवरी 2020 में बीजापुर के गंगालूर क्षेत्र के आदिवासी नए सुरक्षा कैंप की स्थापना के विरोध में सड़कों पर उतर आए थे. विरोध-प्रदर्शन के दौरान ग्रामीणों की सुरक्षा बल के जवानों के साथ जमकर झड़प भी हुई थी. प्रदर्शन कर रहे ग्रामीण आदिवासियों का कहना था कि इलाके में पुलिस कैंप की नहीं बल्कि स्कूल और अस्पताल की जरूरत है.
  • सितंबर 2020 में दंतेवाड़ा के अंतर्गत गुमियापाल अलनार में हजारों आदिवासी एकजुट होकर नए कैम्प का विरोध किया था. ग्रामीणों का आरोप था कि पुलिस कैम्प के नाम पर उनकी जमीन का अधिग्रहण करेगी. आलनार की लौह अयस्क खदान निजी कम्पनी के लिए शुरू कराएगी.
  • 17 दिसम्बर 2020 से कांकेर के कोयलीबेड़ा ब्लॉक के परतापुर में आदिवासी अनिश्चितकालीन प्रदर्शन पर बैठ गए. उनका कहना है कि जिस जगह कैंप खोला गया है वह उनके देवताओं का स्थान है.
    last two year tribal protest in bastar
    आदिवासियों की जंगल की लड़ाई

'आदिवासी देवताओं के स्थान पर BSF कैंप'

आदिवासी नेता प्रकाश ठाकुर ने बैलाडीला के पिटोड़मेटा पहाड़, राव घाट पहाड़, आमदेई पहाड़ अबूझमाड़ कोटूमसार बोधघाट को देव धाम बताया. उनका कहना था कि इन प्राकृतिक चीजों को ही वह हजारों साल से पीढ़ी दर पीढ़ी पेन (देवता) मानते आ रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि, 'जनजाति समुदाय के देव धामी को खनिज उत्खनन के लिए जबरन खनन किया जाता है, तोड़फोड़ किया जाता है. हमारी आस्था के लिए कोई सामने नहीं आता. यही हमारी आस्था है. प्रकृति ही हमारी सर्वोच्च शक्ति है. इसलिए इसकी रक्षा के लिए जनजाति समुदाय हमेशा से ही लड़ते आया है और आज भी लड़ रहा है. इन दो सालों में तेंदूपत्ता भुगतान, निर्दोष आदिवासियों की जेल से रिहाई, मूलभूत सुविधाओं को लेकर बस्तर संभाग के सातों जिलो में लगातार प्रदर्शन हो रहा है.'

सरकार और पुलिस की दलील

आदिवासियों के इस विरोध प्रदर्शन पर पुलिस का कहना है कि यह प्रदर्शन नक्सलियों के इशारे पर होता है. क्योंकि कैंप लगने के बाद नक्सलियों की वहां मौजूदगी कम हो जाती है. क्षेत्र में सड़क-बिजली-पानी जैसी सुविधाएं आसानी से पहुंचाई जा सकती हैं. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी कैंप का विरोध करने वालों पर सवाल उठाए थे. सीएम ने इशारों में कहा था कि सब जानते हैं, कैंप का विरोध कौन करता है. हालांकि कई बार आदिवासियों ने इस बात की शिकायत भी दर्ज कराई है कि वे पुलिस और नक्सलियों के बीच पिस रहे हैं.

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