कांकेर: कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने देश के हर राज्य में हाहाकार मचाया. अस्पतालों के अंदर से चीख-पुकार सुनी तो बाहर मरीजों की लंबी कतार भी देखी. ऐसे वक्त में हमारे स्वास्थ्य कर्मियों अपनी जान की परवाह किए बगैर लोगों का इलाज किया. अस्पतालों में क्षमता से अधिक लोगों को रखकर, बिना संसाधनों के भी उन्होंने सेवा को कभी न नहीं कहा. ऐसी स्थिति में निस्वार्थ सेवा करने वाले डॉक्टरों और नर्सों को खूब सराहा गया. लेकिन एक तबका ऐसा भी है जिसने खूब सेवा की लेकिन उन्हें इतनी सराहना नहीं मिली. कोरोना काल में इनकी ड्यूटी महत्वपूर्ण थी. इन्होंने ही मरीजों को अस्पतालों तक सुरक्षित पहुंचाया है. हम बात कर रहे हैं एम्बुलेंस कर्मियों के किए गए कार्यों की.
कांकेर एक नक्सल प्रभावित जिला है. यहां अन्य शहरों की तरह विकास नहीं हो सका है. आज भी कई इलाकों में सड़कें नहीं हैं. कई गांव वनांचल में बसे हैं. कई गांव नक्सलियों के कोर इलाके में हैं. ऐसे इलाकों में भी सेवा देने वाले 108 और 102 एम्बुलेंस कर्मियों से ईटीवी भारत ने बात की. हमने जानने की कोशिश की है कि कोरोना काल के दौरान नक्सल प्रभावित इलाकों में उनके एक्सपीरियंस कैसे थे ? उन्हें किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा. कांकेर में सालों से निरंतर सेवा देने वाले इन एम्बुलेंस कर्मियों ने हमें कई घटनाओं और स्थितियों के बारे में बताया.
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हर हालातों को पार कर पहुंचते हैं मरीजों तक
चालक विष्णु राम कमेटी ने बताया कि उन्हें हर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. दुर्गम रास्तों, नदी-नालों के साथ कांकेर के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में जाकर काम करते हैं. कई बार जब नक्सली पेड़ गिरा देते हैं, तो वे दूसरे रास्तों से मरीजों के पास पहुंचते हैं. मरीजों को किसी भी हाल में अस्पताल पहुंचाना उनकी जिम्मेदारी है.
लॉकडाउन के दौरान बढ़ी थी परेशानियां
चालक मनीष कुमार साहू कहते हैं लॉकडाउन के चलते गांव वाले रास्तों को बाधित कर के रखते थे. गांव वालों से मदद मंगाते थे. जब वे नहीं आते थे तो खुद ही रास्ता साफ कर गांव में जाते थे. जहां गाड़ी नहीं जा पाती थी वहां स्ट्रेटर के माध्यम से मरीज को एंबुलेंस और अस्पताल तक पहुंचाते थे. कोरोना काल में मनीष और उनके साथी करीब 6 महीनों से घर नहीं गए थे. कोरोना काल की दूसरी लहर में भी वे 1 महीने से घर नहीं गए हैं. लगातार अपनी सेवाएं दे रहे हैं. हमारे कारण घर में कोई संक्रमित न हो इसका भी ख्याल रखते हैं.
एम्बुलेंस में सुरक्षित प्रसव
108 में कार्यरत एमटी (इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन) सविता यादव ने अप्रैल महीने में एम्बुलेंस में ही सुरक्षित प्रसव कराने की घटना का जिक्र किया. उन्होंने कहा 'मैंने कोविड पॉजिटिव महिला का पिछले महीने सुरक्षित प्रसव कराया है. पीपीटी किट पहन कर हमने सुरक्षित प्रसव कराया. बच्चे और मां दोनों स्वस्थ थे. कोरोनाकाल में ये मेरा पहला कोविड पॉजिटिव गर्भवती का प्रसव था. अबतक मैंने 10 से 15 सुरक्षित प्रसव कराए हैं. कोरोना संक्रमण के दौरान हमारे साथी घर नहीं जा पाते हैं. यही जिला मुख्यालय में किराए का घर लेकर रहते हैं.'
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'महीनों बाद परिवार से मिलना भावनात्मक'
संजीवनी वाहन 108 के प्रबंधक धनेश श्रवन ने बताया कि जिले में 30 पायलट और 30 एमटी (इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन) एम्बुलेंस कर्मी हैं. सभी का अपना परिवार है, लेकिन ड्यूटी के खातिर सबकुछ छोड़कर मरीजों की सेवा में जुटे हैं. कोरोना की दूसरी लहर में 1340 से ज्यादा लोगों को अस्पताल पहुंचाया गया है. बीते 2 महीनों में लगभग 50 से ज्यादा गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाया गया है. दूसरी लहर में हमारे 6 एम्बुलेंस कर्मी भी कोविड पॉजिटिव हुए. कई महीनों के बाद जब हमारे कर्मी घर जाते हैं तो वो पल भावनात्मक हो जाता है.
- जिले में 108 एम्बुलेंस की संख्या 13 और 102 एम्बुलेंस की संख्या 14 है.
- 108 की 4 एम्बुलेंस जिला अस्पताल में हैं.
- 102 की 2 एम्बुलेंस जिला अस्पताल में है. बाकी 108 की एम्बुलेंस नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सेवाएं दे रही हैं.
- 102 की 12 एम्बुलेंस भी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे रही है.
कोरोना संक्रमण काल में एंबुलेंस कर्मचारी देवदूत बनकर मरीजों को समय में अस्पताल पहुंचाने की सेवाएं दे रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग और फ्रंट लाइन हेल्थ वर्करों के साथ एंबुलेंस और मुक्तांजलि वाहन के कर्मचारी भी लगातार महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. रात हो चाहे दिन हर पल एंबुलेंस कर्मी ड्यूटी पर तैनात रहते हैं. खुद की परवाह न कर संक्रमित मरीजों को अस्पताल पहुंचा रहे हैं.