कांकेर : बरसात और नक्सल ये दो ऐसे शब्द हैं जो बारिश के मौसम में एक दूसरे से जुड़कर कांकेरवासियों के लिए मुसीबत बन जाते हैं. यहां के लोगों को बारिश के तीन महीने काला पानी की सजा की तरह काटनी पड़ती है. इसकी वजह नक्सल के कारण बंद पड़ा विकास का अधूरा काम है जो बारिश में 38 गांवों को टापू में तब्दील कर देता है.
दरअसल, मानसून के आने में लगभग 15 दिन शेष बचे हैं. ऐसे में नक्सल प्रभावित 38 गांव ऐसे हैं जो बारिश के मौसम में टापू में तब्दील हो जाते हैं और जिला मुख्यालय से कट जाते हैं. ऐसे में इन स्थानों के लिए प्रशासन ने पहले से ही अपनी कमर कस ली है. साथ ही उन गांवों में 3 महीने का राशन पहुंचाने में जुट गई है.
38 ग्राम पंचयतों की सूची तैयार
जिले के अंतागढ़, कोयलीबेड़ा, दुर्गुकोंदल क्षेत्र के कई गांव ऐसे हैं जहां नक्सल के कारण पुल पुलिया और सड़क का निर्माण नहीं हुआ है. खाद्य विभाग ने ऐसे 38 ग्राम पंचायतों की सूची तैयार की है, जहां राशन भेजने का काम शुरू किया गया है. खाद्य विभाग के अनुसार अब तक 7 ग्राम पंचायतों में राशन का भंडारण किया गया है जबकि शेष भंडारण 31 मई तक किया जाएगा.
नारायणपुर के भी 4 गांव की जिम्मेदारी मिली
खाद्य विभाग के अधिकारी जीआर ठाकुर ने बताया कि जिले के 38 गांव और नारायणपुर के 4 गांव में बारिश के पूर्व राशन पहुंचाने का लक्ष्य है, अभी तक 7 गांव में राशन पहुंचाया जा चुका है. वहीं शेष गांवों में 31 मई के पहले पहुंचा दिया जाएगा ताकि ग्रामीणों को दिक्कते न हो.
नक्सली दहशत के चलते विकास कार्य में दिक्कतें
बता दें कि इन इलाके में नक्सल दहशत के चलते विकास कार्य काफी धीमी गति से हो रहा है. यहां आज भी पुल-पुलिया का निर्माण नहीं हो सका है. ऐसे में मानसून के आते ही ग्रामीणों को 3 महीने काफी दिक्कते होती हैं.
कोटरी नदी में पुल निर्माण सबसे जरूरी
बात करें, तो कोटरी नदी की तो यहां पुल निर्माण का कार्य सबसे अधिक जरूरी है, क्योंकि इस नदी में पुल नहीं होने के कारण 15 से 20 गांव बारिश के मौसम में टापू बन जाते हैं. इस नदी पर पुल निर्माण का भूमिपूजन विधानसभा चुनाव के ठीक पहले सासंद विक्रम उसेंडी ने किया था. अब देखना यह होगा कि पुल का निर्माण कब तक पूरा हो पाता है.