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गांव से कोसों दूर है 'शिक्षा का मंदिर', ज्ञान से महरूम हैं सैकड़ों नौनिहाल

कलेक्टर पिता अपनी बेटी का दाखिला सरकारी स्कूल में कराते हैं, ताकि दूसरों को प्रेरणा मिलने के साथ ही शिक्षा के स्तर को सुधारा जा सके. वहीं दूसरी तस्वीर उसी जिले की है जहां फिरहाल अवनीश शरण डीएम के तौर पर तैनात हैं. बता दें कि सूबे के वनांचल में बच्चे आज भी शिक्षा के लिए तरस रहे हैं.

बर्तन धोते छात्र
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Published : Aug 11, 2019, 2:53 PM IST

कवर्धा: सूबे में सत्ता बदली सरकार बदली. नए निजाम ने रियासत संभाली, लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो यहां रहने वाले आदिवासियों के बच्चों की किस्मत. वे कल भी शिक्षा से महरूम थे और आज भी ज्ञान की रोशनी से कोसों दूर हैं. सत्ता में आते ही कांग्रेस की सरकार ने स्लोगन दिया था कि स्कूल जा बढ़े बर, जिंदगी ला गढ़े बर, लेकिन अफसोस यह स्लोगन सरकार की ब्रांडिंग का महज हथियार बन कर रह गया और स्कूल जाकर जिंदगी को गढ़ने का जो सपना नौनिहालों ने देखा था वो आज भी अधूरा रह गया.

वीडियो

हम बात कर रहे हैं. कवर्धा के पंडरिया विकासखंड के महिडबरा के आश्रित गांव खैरा में तीस से चालीस परिवार रहते हैं. न तो इन परिवारों के पास जिवन यापन के लिए कुछ खास इंतजाम हैं और न ही इस इलाके में कोई विद्यालय मौजूद हैं, जहां जाकर ये नौनिहाल ज्ञान की घुट्टी पी सकें.

जंगल के रास्ते जाते है स्कूल
जो स्कूल है भी वो गांव के सात किलोमीटर की दूरी पर है. यहां तक पहुंचने के लिए न तो सड़क है और की कोई दूसरे साधन हैं, नतीजतन नौनिहालों को घने जंगल से गुजरते हुए जंगली जानवरों का खतरा मोल लेना पड़ता है, तब जाकर वो स्कूल पहुंच पाते हैं.

शिक्षा से महरूम हैं छात्र
ऐसा नहीं है महज एक गांव के लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है, बल्कि ढेबरापानी, नवापार,कुआडार, ढेढापानी जैसे कई गांव हैं जहां हालात कमोवेश ऐसे ही हैं और यहां के 100 से ज्यादा बच्चे शिक्षा से महरूम हैं.

कलेक्टर ने दिया आश्वासन
हलांकि कलेक्टर अवनीश शरण ने आश्वासन दिया है कि राज्य शासन से बात कर जल्द ही इन गांवों में स्कूल की व्यवस्था करा दी जाएगी. अब देखना यह होगा कि कलेक्टर साहब की ओर के किया गया वादा कब पूरा होगा और कब ये नौनिहाल विद्या के मंदिर में जाकर ज्ञान का पाठ पढ़ेंगे.

कवर्धा: सूबे में सत्ता बदली सरकार बदली. नए निजाम ने रियासत संभाली, लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो यहां रहने वाले आदिवासियों के बच्चों की किस्मत. वे कल भी शिक्षा से महरूम थे और आज भी ज्ञान की रोशनी से कोसों दूर हैं. सत्ता में आते ही कांग्रेस की सरकार ने स्लोगन दिया था कि स्कूल जा बढ़े बर, जिंदगी ला गढ़े बर, लेकिन अफसोस यह स्लोगन सरकार की ब्रांडिंग का महज हथियार बन कर रह गया और स्कूल जाकर जिंदगी को गढ़ने का जो सपना नौनिहालों ने देखा था वो आज भी अधूरा रह गया.

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हम बात कर रहे हैं. कवर्धा के पंडरिया विकासखंड के महिडबरा के आश्रित गांव खैरा में तीस से चालीस परिवार रहते हैं. न तो इन परिवारों के पास जिवन यापन के लिए कुछ खास इंतजाम हैं और न ही इस इलाके में कोई विद्यालय मौजूद हैं, जहां जाकर ये नौनिहाल ज्ञान की घुट्टी पी सकें.

जंगल के रास्ते जाते है स्कूल
जो स्कूल है भी वो गांव के सात किलोमीटर की दूरी पर है. यहां तक पहुंचने के लिए न तो सड़क है और की कोई दूसरे साधन हैं, नतीजतन नौनिहालों को घने जंगल से गुजरते हुए जंगली जानवरों का खतरा मोल लेना पड़ता है, तब जाकर वो स्कूल पहुंच पाते हैं.

शिक्षा से महरूम हैं छात्र
ऐसा नहीं है महज एक गांव के लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है, बल्कि ढेबरापानी, नवापार,कुआडार, ढेढापानी जैसे कई गांव हैं जहां हालात कमोवेश ऐसे ही हैं और यहां के 100 से ज्यादा बच्चे शिक्षा से महरूम हैं.

कलेक्टर ने दिया आश्वासन
हलांकि कलेक्टर अवनीश शरण ने आश्वासन दिया है कि राज्य शासन से बात कर जल्द ही इन गांवों में स्कूल की व्यवस्था करा दी जाएगी. अब देखना यह होगा कि कलेक्टर साहब की ओर के किया गया वादा कब पूरा होगा और कब ये नौनिहाल विद्या के मंदिर में जाकर ज्ञान का पाठ पढ़ेंगे.

Intro:अपने वाले भविष्य की नही कर रहा जिला प्रशासन कोई चिंता स्कूल के अभाव मे सौकड़ों बच्चे शिक्षा से वंचित।
वनांचल मे बच्चों के सपने हुऐ गुम शिक्षा के लिए तरस रहे आदिवासी बैगा बच्चे ना शासन और ना प्रशासन को है इनकी भविष्य की चिंता।क्या फिर अपने पुर्वजों की तरहा इन्हें वनांचल के कामों मे ही बितेगी जिंदगी ।


Body:एंकर- आखिर कैसे गढहेंगे नया छत्तीसगढ़ जब शिक्षा व सुविधाओं के लिए आज भी तरस रहे आदिवासी बैगा परिवार।विधानसभा चुनाव के बाद जहां सरकार बदल गई वहीं गडबो नया छत्तीसगढ़ के स्लोगन के साथ राज्य सरकार ने नई पहल करते हुए हर क्षेत्र मे सुविधा देने का विश्वास दिलाया और उस पर काम सुरु भी कर दिया गया लेकिन धरातल मे जब जाकर देखा गया तो तश्वीर कुछ और ही बया करता नजर आई।

कवर्धा जिले वनांचल क्षेत्रों के बैगा आदिवासी परिवार के बच्चे स्कूल के अभाव मे शिक्षा ग्रहण नही कर पा रहे है। दरअसल इस वनांचल ग्रामों मे शासन व प्रशासन ने ना तो सड़कें मुहैया कराई है ना मुलभुत सुविधा अब तक यहां पहुंच पाई है

जी हा हम बात कर रहे है कवर्धा जिले के पंडरिया विकासखंड मे वनांचल मे पढने वाले ग्राम पंचायत महिडबरा के आश्रित ग्राम ग्राम खैरा की जहा लगभग तीस से चालीस परिवार निवासरत है बैगा परिवारों के पास जीवन यापन करने के लिए व्यवस्था के कोई साधन उपलब्ध नही है इसके साथ ही जिन्हें हम आने वाला भविष्य कहते है ऐसे बच्चों के लिए स्कूल की सुविधा भी नही हो पाई है। इस ग्राम से लगभग 07 किलोमीटर एक सरकारी स्कूल है अब दूरी इतनी है जादा है और आवागमन के लिए सड़क भी नही है ऐसी स्तिथि मे यह बच्चे आखिर कैसे अपना भविष्य बनाऐंगे जिन्हें हम आने वाला कल का भविष्य कहते है। आपको बता दे की परसाटोला के आश्रित ग्राम खैरा मे 30 से 40 आदिवासी बैगा बच्चे आज भी शिक्षा के मुख्य धारा से काफी दुर है कारण यहां है की ग्राम से 7 किलोमीटर दूर मे स्कूल है और आवागमन के लिए सड़क नही है इस गाँव से सड़क तक का सफर तै करने के लिए जंगल से होकर गुजरना पडता है। साथ ही यहां जंगली जानवरों का भी खतरा बना रहता है। ऐसा नही है की इन बच्चों को शिक्षा के प्रति लगाव नही है बच्चे पढना चाहते है और पढ लिख कर कुछ बनना भी चाहते है और अपने परिवार को संचालित करना चाहते है मगर स्कूल की दूरी ने मानो भविष्य से दूरी बना ली हो। और यहां बच्चे अपने पुर्वजों की तरहा वनांचल से मिलने वाली औषधियों पर ही निर्भर है पर अपना जीवन यापन करेंगे । जिला प्रशासन सहित राज्य शासन को भी इस ओर ध्यान देने कि काफी आवश्यकता है ताकि इन बच्चों का भविष्य अंधकार मे कही गुम ना हो और पढ लिखकर अपना और देश का नाम रोशन कर सके इस जब हमने गाँव एक बच्चे से पुछा स्कूल नही जाते तो उसने बताया की हम पुरे गाँव के बच्चे पहले स्कूल जाते थे मगर अब कोई भी नही जाता जब हमने कारण जानना चाहा तो बच्चों ने बताया की पहले गाँव के आस-पास ही स्कूल था जिसे पिछली सरकार ने बंद करदी है। और अब स्कूल बहुत दूर महिडबरा या नेऊन गाँव मे है। और जाने के लिए सड़क नही है जंगलों से होकर जाना पडता है इसलिए स्कूल नही जाते है। पढना लिखना चाहते है जरुर मगर क्या करे स्कूल की दूरी 7 किलोमीटर है छुट्टी के बाद आने मे अंधेरा हो जाता है। इस लिए नही जाते है स्कूल ।
ऐसा नही कि सिर्फ इसी ग्राम भे यहां स्तिथि है हमने तो कुछ गाँव तक ही पहुंच पाऐ जैसे की ढेबरापानी,नवापार, कुआडार, ढेढापानी, इन सभी गाँव मे लगभग 100 की संख्या मे बच्चे शिक्षा से वंचित है। यहां स्तिथि सिर्फ हमने कुछ गाँव मे घुमने से पता चला अगर पुरे जिले मे अगर इस की सही पडताल की जाऐ तो हजारों की संख्या कहा कोई बड़ी बात नही होगी।




Conclusion:जब हमने इन सभी समस्याओं के बारे मे जिला कलेक्टर अवनीश कुमर शरण से बात की तो उन्होंने बताया की 2015 ,16 के करिब राज्य शासन ने बहुत से स्कूलों को बंद कराया था जिससे कारण स्कूलों की दूरी और सड़क के अभाव मे वनांचल के बच्चों को शिक्षा के लिए काफी समस्या आई है मगर अब हमने कमिश्नर से मिटिंग मे बात की है और जितने स्कूलों को बंद किया गया था उन स्कूलों को फिर से चालू करने प्रस्ताव भेजा जाऐगा।

अब देखना होगा कि जिला प्रशासन और राज्य शासन इन बच्चों के भविष्य को सुधारने के लिए क्या ठोस कदम उठाती है या इन आदिवासी बच्चों का भविष्य अंधकार मे ही गुम हो जाऐगा।

बाईट01 अवनीश कुमार शरण, कलेक्टर कवर्धा।
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