कवर्धा: सूबे में सत्ता बदली सरकार बदली. नए निजाम ने रियासत संभाली, लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो यहां रहने वाले आदिवासियों के बच्चों की किस्मत. वे कल भी शिक्षा से महरूम थे और आज भी ज्ञान की रोशनी से कोसों दूर हैं. सत्ता में आते ही कांग्रेस की सरकार ने स्लोगन दिया था कि स्कूल जा बढ़े बर, जिंदगी ला गढ़े बर, लेकिन अफसोस यह स्लोगन सरकार की ब्रांडिंग का महज हथियार बन कर रह गया और स्कूल जाकर जिंदगी को गढ़ने का जो सपना नौनिहालों ने देखा था वो आज भी अधूरा रह गया.
हम बात कर रहे हैं. कवर्धा के पंडरिया विकासखंड के महिडबरा के आश्रित गांव खैरा में तीस से चालीस परिवार रहते हैं. न तो इन परिवारों के पास जिवन यापन के लिए कुछ खास इंतजाम हैं और न ही इस इलाके में कोई विद्यालय मौजूद हैं, जहां जाकर ये नौनिहाल ज्ञान की घुट्टी पी सकें.
जंगल के रास्ते जाते है स्कूल
जो स्कूल है भी वो गांव के सात किलोमीटर की दूरी पर है. यहां तक पहुंचने के लिए न तो सड़क है और की कोई दूसरे साधन हैं, नतीजतन नौनिहालों को घने जंगल से गुजरते हुए जंगली जानवरों का खतरा मोल लेना पड़ता है, तब जाकर वो स्कूल पहुंच पाते हैं.
शिक्षा से महरूम हैं छात्र
ऐसा नहीं है महज एक गांव के लोगों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है, बल्कि ढेबरापानी, नवापार,कुआडार, ढेढापानी जैसे कई गांव हैं जहां हालात कमोवेश ऐसे ही हैं और यहां के 100 से ज्यादा बच्चे शिक्षा से महरूम हैं.
कलेक्टर ने दिया आश्वासन
हलांकि कलेक्टर अवनीश शरण ने आश्वासन दिया है कि राज्य शासन से बात कर जल्द ही इन गांवों में स्कूल की व्यवस्था करा दी जाएगी. अब देखना यह होगा कि कलेक्टर साहब की ओर के किया गया वादा कब पूरा होगा और कब ये नौनिहाल विद्या के मंदिर में जाकर ज्ञान का पाठ पढ़ेंगे.