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भारतीय हस्तशिल्प सप्ताहः रंग-बिरंगी है यहां की कला, संस्कृति की धरोहर

8 दिसंबर से 14 दिसंबर तक भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह मनाया जा रहा है. इसी कड़ी में ETV भारत आपको सरगुजा के प्रमुख हस्त शिल्प और कलाओं से रूबरू करवाएंगा.

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Published : Dec 13, 2019, 3:41 PM IST

Updated : Dec 13, 2019, 6:50 PM IST

भारतीय हस्तशिल्प सप्ताहः
भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह

सरगुजा : हस्तशिल्प हमेशा से ही भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक अहम हिस्सा रहा है. छत्तीसगढ़ में ऐसे कई जिले हैं जो आदिवासी परंपरा और कला में समृद्ध हैं. हस्तशिल्प सप्ताह के मौके पर ETV भारत आपको ऐसे ही एक आदिवासी बहुल जिले सरगुजा के प्रमुख हस्त शिल्प और कलाओं से रूबरू करवाएंगा.

भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह

सरगुजा मानव निर्मित वस्तुओं के लिए जाना जाता है, ऐसी कलाकृतियां जिन्हें इंसानी हाथों से आकार दिया जाता है, लेकिन इनकी खूबसूरती को देख ऐसा लगता है, जैसे किसी सांचे में डाल कर या मशीनरी के उपयोग ये इनको आकार दिया गया हो. सरगुजा में मुख्य रूप से भित्ति चित्र, गोदना आर्ट, बम्बू आर्ट और काष्ठ कला के लिए जाना जाता है.

भित्ति चित्र
भित्ति चित्र कला सबसे पुरानी चित्रकला है. आदिवासी जाति की महिलाएं कच्ची मिट्टी से बनी झोपड़ियों की दीवारों पर गोबर, चाक मिट्टी और पैरा की मदद से कलाकृतियां बनाती थी जिन्हें भित्तिचित्र कहा जाता है. इन कलाकृतियों ने सरगुजा को देश विदेश में पहचान दिलाई है. यहां के भित्ती चित्र न सिर्फ देश के अलग-अलग स्थानों में बल्कि देश के बाहर भी सराहना का विषय बन चुके हैं. स्थानीय बोली में उसे रजवार भित्ति भी कहा जाता है. दरअसल, सरगुजा में बड़ी संख्या में रजवार समाज के लोग भित्ति चित्र बनाते हैं, जिसमें सोना बाई और सुंदरी बाई का नाम प्रसिद्ध है.

गोदना आर्ट
गोदना आर्ट सरगुजा में प्राचीन समय से चला आ रहा है, यहां महिलाएं अपने पूरे शरीर में जेवर के स्थान पर गोदना गोदवाती थी जो अब भी चलन में है, इसे धार्मिक मान्यताओं से शुभ माना जाता है. महिलाओं के नाक, कान, हाथ और गले मे जेवर के डिजाइन से गोदना आर्ट देखा जाता है, लेकिन इसे बनवाना काफी पीड़ादायक होता था. लिहाजा आधुनिकता के दौर में गोदना का चलन लगभग समाप्ति की ओर है. अब गोदना की जगह टैटू ने ले ली, लेकिन पारंपरिक गोदना आर्ट के संरक्षण के लिए इस कला को कपड़ों में उकेरने का काम शुरू किया गया और अब बड़ी संख्या में महिलाएं गोदना आर्ट की डिजाइन कपड़ों में उकेर के स्वरोजगार से जुड़ चुकी हैं.

काष्ठ कला
लकड़ी से बनने वाली कलाकृतियों की भी अपनी अलग पहचान है, लकड़ी के उपयोग के बाद पेड़ की जड़ का जो हिस्सा बेकार हो जाता है उस पर यहां के लोग अपने हाथों का जादू दिखाते हैं और फिर पेड़ की सूखी हुई जड़ में विभिन्न कलाकृतियों को उकेरा जाता है. ज्यादातर आदिवासी समुदाय के लोग अपने देवी-देवताओं की आकृतियां इसमें बनाते हैं और वह इतना आकर्षक होता है कि बाजार में महंगे दामों में इसकी मांग होती है.

मैनपाट का कालीन
हस्तकला के क्षेत्र में बंद पड़ी कालीन की कारीगरी को हस्तशिल्प बोर्ड के अधिकारियों ने दोबारा जीवित किया है और सरगुजा के मैनपाट में बनने वाली कालीन की कारीगिरी को दोबारा शुरू कराया है. हाथ से बनी यह कालीन जहां बेहद खूबसूरत होती है तो वहीं काफी मजबूत और ज्यादा समय तक टिकने वाली होती है. यह बाजार में बिकने वाली आम कालीन के ज्यादा महंगी और टिकाऊ होती है.

हस्तशिल्प बोर्ड इन कलाकारों के प्रोत्साहन के लिए लगातार कार्य कर रहा है और अंबिकापुर स्थित शबरी एम्पोरियम में सरगुजा ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ की खूबसूरत कलाकृतियां यहां रखी जाती हैं, जिन्हें कला प्रेमी यहां से खरीद सकते हैं.

सरगुजा : हस्तशिल्प हमेशा से ही भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक अहम हिस्सा रहा है. छत्तीसगढ़ में ऐसे कई जिले हैं जो आदिवासी परंपरा और कला में समृद्ध हैं. हस्तशिल्प सप्ताह के मौके पर ETV भारत आपको ऐसे ही एक आदिवासी बहुल जिले सरगुजा के प्रमुख हस्त शिल्प और कलाओं से रूबरू करवाएंगा.

भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह

सरगुजा मानव निर्मित वस्तुओं के लिए जाना जाता है, ऐसी कलाकृतियां जिन्हें इंसानी हाथों से आकार दिया जाता है, लेकिन इनकी खूबसूरती को देख ऐसा लगता है, जैसे किसी सांचे में डाल कर या मशीनरी के उपयोग ये इनको आकार दिया गया हो. सरगुजा में मुख्य रूप से भित्ति चित्र, गोदना आर्ट, बम्बू आर्ट और काष्ठ कला के लिए जाना जाता है.

भित्ति चित्र
भित्ति चित्र कला सबसे पुरानी चित्रकला है. आदिवासी जाति की महिलाएं कच्ची मिट्टी से बनी झोपड़ियों की दीवारों पर गोबर, चाक मिट्टी और पैरा की मदद से कलाकृतियां बनाती थी जिन्हें भित्तिचित्र कहा जाता है. इन कलाकृतियों ने सरगुजा को देश विदेश में पहचान दिलाई है. यहां के भित्ती चित्र न सिर्फ देश के अलग-अलग स्थानों में बल्कि देश के बाहर भी सराहना का विषय बन चुके हैं. स्थानीय बोली में उसे रजवार भित्ति भी कहा जाता है. दरअसल, सरगुजा में बड़ी संख्या में रजवार समाज के लोग भित्ति चित्र बनाते हैं, जिसमें सोना बाई और सुंदरी बाई का नाम प्रसिद्ध है.

गोदना आर्ट
गोदना आर्ट सरगुजा में प्राचीन समय से चला आ रहा है, यहां महिलाएं अपने पूरे शरीर में जेवर के स्थान पर गोदना गोदवाती थी जो अब भी चलन में है, इसे धार्मिक मान्यताओं से शुभ माना जाता है. महिलाओं के नाक, कान, हाथ और गले मे जेवर के डिजाइन से गोदना आर्ट देखा जाता है, लेकिन इसे बनवाना काफी पीड़ादायक होता था. लिहाजा आधुनिकता के दौर में गोदना का चलन लगभग समाप्ति की ओर है. अब गोदना की जगह टैटू ने ले ली, लेकिन पारंपरिक गोदना आर्ट के संरक्षण के लिए इस कला को कपड़ों में उकेरने का काम शुरू किया गया और अब बड़ी संख्या में महिलाएं गोदना आर्ट की डिजाइन कपड़ों में उकेर के स्वरोजगार से जुड़ चुकी हैं.

काष्ठ कला
लकड़ी से बनने वाली कलाकृतियों की भी अपनी अलग पहचान है, लकड़ी के उपयोग के बाद पेड़ की जड़ का जो हिस्सा बेकार हो जाता है उस पर यहां के लोग अपने हाथों का जादू दिखाते हैं और फिर पेड़ की सूखी हुई जड़ में विभिन्न कलाकृतियों को उकेरा जाता है. ज्यादातर आदिवासी समुदाय के लोग अपने देवी-देवताओं की आकृतियां इसमें बनाते हैं और वह इतना आकर्षक होता है कि बाजार में महंगे दामों में इसकी मांग होती है.

मैनपाट का कालीन
हस्तकला के क्षेत्र में बंद पड़ी कालीन की कारीगरी को हस्तशिल्प बोर्ड के अधिकारियों ने दोबारा जीवित किया है और सरगुजा के मैनपाट में बनने वाली कालीन की कारीगिरी को दोबारा शुरू कराया है. हाथ से बनी यह कालीन जहां बेहद खूबसूरत होती है तो वहीं काफी मजबूत और ज्यादा समय तक टिकने वाली होती है. यह बाजार में बिकने वाली आम कालीन के ज्यादा महंगी और टिकाऊ होती है.

हस्तशिल्प बोर्ड इन कलाकारों के प्रोत्साहन के लिए लगातार कार्य कर रहा है और अंबिकापुर स्थित शबरी एम्पोरियम में सरगुजा ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ की खूबसूरत कलाकृतियां यहां रखी जाती हैं, जिन्हें कला प्रेमी यहां से खरीद सकते हैं.

Intro:सरगुज़ा : आदिवासी परंपराओं और साहित्य के लिए प्रसिद्ध सरगुज़ा मानव निर्मित वस्तुओं के लिए भी जाना जाता है, ऐसी कलाकृतियां जिन्हें इंसानी हाथों से आकर दिया जाता है, लेकिन इनकी खूबसूरती को देख ऐसा लगता है, जैसे किसी सांचे में ढाल कर या मशीनरी के उपयोग ये इनके आकार दिया गया हो, लेकिन ये कलाकरियाँ है सरगुज़ा में रहने वाले लोगो की परंपरागत रूप से की जाने वाली ये कलाएं वक्त के साथ विलुप्ति की कगार पर थी, लेकिन सरकार के हस्त शिल्प बोर्ड के द्वारा इन कलाओं को जीवीत रखने जो प्रयास किये गए उसने आज सरगुज़ा के हस्त शिल्प विश्व स्तर पर पहचान बना चुके हैं।

हस्तशिल्प सप्ताह के अवसर पर ईटीवी भारत आपको बताने जा रहा है सरगुज़ा के प्रमुख हस्त शिल्प के विषय मे सरगुज़ा में मुख्य रूप से भित्ति चित्र, गोदना आर्ट, बम्बू आर्ट और काष्ठ कला देखने को मिलती है।




Body:भित्ति चित्र-

दीवारों में मिट्टी और पैरा की मदद से बनाई जाने वाली इन कलाकृतियों ने सरगुज़ा को देश विदेश में पहचान दिलाई है, यहां के भित्ती चित्र ना सिर्फ देश के अलग अलग स्थानों में बल्कि देश के बाहर भी सराहाना का विषय बन चुके हैं, स्थानीय बोली में उसे रजवार भित्ति भी कहा जाता है, दरअसल सरगुज़ा में बड़ी संख्या में रजवार समाज के लोग भित्ति चित्र बनाते हैं, जिसमे सोना बाई और सुंदरी बाई का नाम प्रसिद्ध हुआ।

गोदना आर्ट-

गोदना आर्ट दरअसल सरगुज़ा में प्राचीन समय से चला आ रहा है, यहां महिलाएं अपने पूरे शरीर मे जेवर के स्थान पर गोदना गोदवाती थी यह अब भी चलन में हैं, इसे धार्मिक मान्यताओं से शुभ माना जाता है, महिलाओं के नाक, कान, हाथ और गले मे जेवर के डिजाइन से गोदना आर्ट देखा जाता था, लेकिन इसे बनवाना काफी पीड़ादायक होता था, लिहाजा आधुनिकता के दौर में गोदना का चलन लगभग समाप्ति की ओर है, अब गोदना की जगज टैटू ने ले ली, लेकिन पारंपरिक गोदना आर्ट के संरक्षण के लिए इस कला को कपड़ो में उकेरने का काम शुरू किया गया और अब बड़ी संख्या में महिलाएं गोदना आर्ट की डिजाइन कपड़ो में उकेर के स्वरोजगार से जुड़ चुकी हैं।

काष्ठ कला-

लड़की से बनने वाली कलाकृतियों की भी अपनी अलग पहचान है, लकड़ी के उपयोग के बाद पेड़ की जड़ का जो हिस्सा बेकार हो जाता है उस पर यहां के लोग अपने हाथों का जादू दिखाते हैं और फिर पेड़ की सूखी हुई जड़ में विभिन्न कलाकृतियों को उकेरा जाता है, ज्यादातर आदिवासी समुदाय के लोग अपने देवी देवताओं की आकृतियां इसमें बनाती हैं, और वह इतना आकर्षक होता है की बाजार में महंगे दामो में इसकी मांग होती है।

मैनपाट का कालीन-

हस्तकला के क्षेत्र में बंद पड़ी कालीन की कारीगरी को हस्तशिल्प बोर्ड के अधिकारियों ने दोबारा जीवित किया है, और सरगुज़ा के मैनपाट बनने वाली कालीन की कारीगिरी को दोबारा शुरू कराया है, हाथ से बनी यह कालीन जहां बेहद खूबसूरत होती है तो वहीं काफी मजबूत और ज्यादा समय तक टिकने वाली होती है, हालाकी यह बाजार में बिकने वाली आम कालीन के ज्यादा महंगी और टिकाऊ होती है।


Conclusion:बहरहाल हस्तशिल्प बोर्ड इनके प्रोत्साहन के लिए लगातार कार्य कर रहा है और अम्बिकापुर में स्थित शबरी एम्पोरियम में सरगुज़ा ही नही बल्कि सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ की स्थानीय हस्तकला की वस्तुओं का स्टॉक उपलब्ध है, स्थानीय कलाकृतियों के इन नायाब सामानों को यहां से खरीदा जा सकता है।

बाईट01_पार्वती राजवाड़े (भित्ति चित्र कलाकार)

बाईट02_सखाराम राजवाड़े (कालीन कलाकार)

बाईट03_कहकसा परवीन (ट्रेनर गोदना आर्ट)

बाईट04_एम सिद्दीकी (निदेशक जे एस एस सरगुज़ा)

बाईट05_राजेन्द्र राजवाड़े (प्रबंधक हस्त शिल्प विकास बोर्ड)
Last Updated : Dec 13, 2019, 6:50 PM IST
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