कवर्धा : प्रदेश में नवरात्र के दौरान अष्टमी पर नगर में देवी के खप्पर निकालने की परंपरा सालों से चली आ रही है. ये परंपरा पूरे भारत में सिर्फ दंतेवाड़ा और कवर्धा में ही निभाई जाती है. पहले कोलकाता में भी ये परंपरा निभाई जाती थी, लेकिन पिछले कुछ सालों से प्रदेश के दो जिलों में ही खप्पर की ये परंपरा देखी जाती है. कवर्धा में दो सिद्धपीठ मंदिर और एक देवी मंदिर से खप्पर निकाला जाता है.
इसीलिए निकाले जाते हैं खप्पर
प्रदेश को आपदाओं से मुक्ति दिलाने के लिए माता के मंदिर से खप्पर निकाली जाती है. इस खप्पर यात्रा में नगर में विराजित अन्य देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है और सुख-शांति की कामना की जाती है.
अष्टमी मध्य रात्री में निकलती है माता की खप्पर यात्रा
हर नवरात्र में अष्टमी पर ठीक 12 बजे मंदिर से खप्पर निकाली जाती है. इस यात्रा के लिए रात में सकरी नदी में नहाने के बाद खप्पर उठाने वाले पंडों का श्रृंगार किया जाता है, जिसके बाद माता की सेवा में लगे पंडे परंपरानुसार 7 काल 182 देवी-देवता और 151 वीर बैतालों को मंत्रोच्चारणों के साथ आमंत्रित कर अग्नि से प्रज्जवलित कर मिट्टी के खप्पर में विराजित करते हैं, उसके बाद 108 नीबू काटकर रस्में पूरी की जाती है, जिसके बाद माता का खप्पर मंदिर से निकाला जाता है.
तलवार लेकर निकलता है खप्पर का रक्षक
अगुवान खप्पर की रक्षा के लिए निकलता है, जो दाहिने हाथ में तलवार लेकर खप्पर के लिए रास्ता साफ करता है. ऐसा माना जाता है कि खप्पर का रास्ता अवरुद्ध होने पर अगुवान तलवार से वार करता है. खप्पर के पीछे-पीछे पंडों का एक दल पूजा अर्चना करते हुए साथ चलता है.
यात्रा देखने दूर-दूर से आते हैं लोग
अष्टमी को नगर के दो सिद्धपीठ और एक आदिशक्ति देवी मंदिर से परम्परानुसार खप्पर निकाली जाती है. देवांगन पारा स्थित मां चंडी मंदिर, परमेश्वरी मंदिर और दंतेश्वरी मंदिर से खप्पर निकाली जाती है. ये यात्रा विभिन्न मार्गों से गुरजते हुए मोहल्लों में स्थापित 18 मंदिरों के देवी-देवताओं का विधिवत आह्वान करते हुए निकाली जाती है. यात्रा को देखने के लिए रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, दुर्ग, मुंगेली और मंडला जैसे अन्य जिलों से भी लोग पहुंचते हैं.