जशपुरः छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य है. इतिहास के कई पन्ने यहां के कोने-कोने में छिपे हैं. प्रदेश की ऐसी ही अनसुनी कहानियां हम आपको सुनाते रहते हैं. आज आपको मिलवाते हैं उनसे, जो खुद को महिषासुर का वंशज मानते हैं. जशपुर जिले की खूबसूरत गोद में ऐसे 13 परिवार रहते हैं, जो असुर जनजाति के माने जाते हैं और इतिहासकार भी इन्हें महिषासुर का वंशज मानते हैं.
हरे-भरे जंगलों से घिरे जिले के मनोरा जनपद की ग्राम पंचायत गजमा के आश्रित गांव बुर्जुपाठ में हिषासुर के वंशज माने जाने वाले असुर जनजाति के 13 परिवार निवास करते हैं. यह गांव मुख्य तौर से इन्हीं परिवारों के लिए जाना जाता है. इतिहासकारों के मुताबिक यह जनजाति पाषाण युग में पत्थरों को गलाकर लोहा निकालने का काम करता थी. लेकिन समय के साथ इनकी कला छिनती चली गई.
नहीं मिल रही कोई सुविधाएं
ग्रामीण की शिकायत है कि उनके गांव में आजादी के इतने सालों बाद भी बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं. गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा ऐसी कई समस्याएं हैं जिनसे इन्हें जूझना पड़ रहा है. ताज्जुब की बात ये है कि इनका जिक्र भी बहुत कम मिलता है.
न सड़क, न स्कूल, कहां पढ़ने जाएं बच्चे
ग्राम पंचायत गजमा जिला मुख्यालय से महज 2 किलोमीटर के अंदर ही स्थित है, लेकिन आश्रित गांव बुर्जुपाठ में बिजली छोड़कर कोई दूसरी सुविधा नहीं पहुंची है. गांव में प्राथमिक स्कूल तो छोड़िए आंगनबाड़ी भवन की सुविधा तक नहीं है. आंगनबाड़ी केंद्र आधा-अधूरा बना हुआ है. यहां के बच्चे कई किलोमीटर पैदल चलते हैं तब जाकर कहीं शिक्षा नसीब होती है.
बारिश में टापू बन जाता है गांव
बारिश के दिनों में यह गांव टापू में तब्दील हो जाता है. साधन क्या चलेंगे कीचड़ की वजह से पैदल चलना दूभर हो जाता है. सड़क न होने की वजह से बीमारी से जूझ रहे लोगों को एंबुलेंस की सुविधा भी नहीं मिल पाती है. गांववालों को जरूरत पड़ने पर कंधे पर लाद कर मुख्य सड़क तक पहुंचाना पड़ता है.
इतिहास की किताबों में भी है उल्लेख
वहीं इतिहास के जानकर और समाज सेवी राम प्रकाश पांडे का कहना है कि असुर जनजाति जिले में ही नहीं प्रदेश भर में विलुप्ति की कगार पर है. इनकी संख्या पूरे प्रदेश में लगभग डेढ़ सौ के आसपास ही बची है. पानी, सड़क, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं उन्हें नहीं मिल पा रही हैं. उनके अधिकारों का हनन हो रहा है.
किताब का किया जिक्र
उन्होंने बताया कि इतिहास के मुताबिक इन्हीं लोगों ने ही पाषाण युग में पहली बार आग की खोज की थी. उन्होंने बताया कि बेरियर एल्विन प्रसिद्ध मानव शास्त्री ने अपनी किताब में लिखा है कि जशपुर क्षेत्र में सलेग्स के माउंटेन पाए जाते थे, जो असुर जाति के लोहे निकालने से बने हैं.
सुविधाएं देने और इन्हें सहेजने की जरूरत
समाजसेवी सत्यप्रकाश तिवारी का कहना है कि इस जनजाति की संख्या बहुत ही कम है. इनके पुनर्वास के लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए ताकि इस जनजाति के लोगों को बचाया जा सके.
छत्तीसगढ़ की गोद में कई जनजातियां निवास करती हैं. जिनमें से कुछ विलुप्त होने की कगार पर हैं. इन्हें सुविधाओं के नाम पर सिर्फ योजनाएं ही मिलती रही हैं. अपनी पहचान के लिए ये लोग संघर्ष कर रहे हैं और अभाव में जीने को मजबूर हैं.