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SPECIAL: छत्तीसगढ़ के इस गांव में रहते हैं महिषासुर के वंशज

जशपुर में निवास करने वाली महिषासुर के वंशज असुर जनजाति विलुप्ति के कगार पर हैं. असुर जनजाति के लोग सड़क, पानी, मकान जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवन यापन करने को मजबूर हैं.

महिषासुर के वंशज विलुप्ति की कगार पर
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Published : Oct 25, 2019, 10:08 PM IST

जशपुरः छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य है. इतिहास के कई पन्ने यहां के कोने-कोने में छिपे हैं. प्रदेश की ऐसी ही अनसुनी कहानियां हम आपको सुनाते रहते हैं. आज आपको मिलवाते हैं उनसे, जो खुद को महिषासुर का वंशज मानते हैं. जशपुर जिले की खूबसूरत गोद में ऐसे 13 परिवार रहते हैं, जो असुर जनजाति के माने जाते हैं और इतिहासकार भी इन्हें महिषासुर का वंशज मानते हैं.

पैकेज.

हरे-भरे जंगलों से घिरे जिले के मनोरा जनपद की ग्राम पंचायत गजमा के आश्रित गांव बुर्जुपाठ में हिषासुर के वंशज माने जाने वाले असुर जनजाति के 13 परिवार निवास करते हैं. यह गांव मुख्य तौर से इन्हीं परिवारों के लिए जाना जाता है. इतिहासकारों के मुताबिक यह जनजाति पाषाण युग में पत्थरों को गलाकर लोहा निकालने का काम करता थी. लेकिन समय के साथ इनकी कला छिनती चली गई.

नहीं मिल रही कोई सुविधाएं
ग्रामीण की शिकायत है कि उनके गांव में आजादी के इतने सालों बाद भी बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं. गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा ऐसी कई समस्याएं हैं जिनसे इन्हें जूझना पड़ रहा है. ताज्जुब की बात ये है कि इनका जिक्र भी बहुत कम मिलता है.

न सड़क, न स्कूल, कहां पढ़ने जाएं बच्चे
ग्राम पंचायत गजमा जिला मुख्यालय से महज 2 किलोमीटर के अंदर ही स्थित है, लेकिन आश्रित गांव बुर्जुपाठ में बिजली छोड़कर कोई दूसरी सुविधा नहीं पहुंची है. गांव में प्राथमिक स्कूल तो छोड़िए आंगनबाड़ी भवन की सुविधा तक नहीं है. आंगनबाड़ी केंद्र आधा-अधूरा बना हुआ है. यहां के बच्चे कई किलोमीटर पैदल चलते हैं तब जाकर कहीं शिक्षा नसीब होती है.

बारिश में टापू बन जाता है गांव
बारिश के दिनों में यह गांव टापू में तब्दील हो जाता है. साधन क्या चलेंगे कीचड़ की वजह से पैदल चलना दूभर हो जाता है. सड़क न होने की वजह से बीमारी से जूझ रहे लोगों को एंबुलेंस की सुविधा भी नहीं मिल पाती है. गांववालों को जरूरत पड़ने पर कंधे पर लाद कर मुख्य सड़क तक पहुंचाना पड़ता है.

इतिहास की किताबों में भी है उल्लेख
वहीं इतिहास के जानकर और समाज सेवी राम प्रकाश पांडे का कहना है कि असुर जनजाति जिले में ही नहीं प्रदेश भर में विलुप्ति की कगार पर है. इनकी संख्या पूरे प्रदेश में लगभग डेढ़ सौ के आसपास ही बची है. पानी, सड़क, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं उन्हें नहीं मिल पा रही हैं. उनके अधिकारों का हनन हो रहा है.

किताब का किया जिक्र
उन्होंने बताया कि इतिहास के मुताबिक इन्हीं लोगों ने ही पाषाण युग में पहली बार आग की खोज की थी. उन्होंने बताया कि बेरियर एल्विन प्रसिद्ध मानव शास्त्री ने अपनी किताब में लिखा है कि जशपुर क्षेत्र में सलेग्स के माउंटेन पाए जाते थे, जो असुर जाति के लोहे निकालने से बने हैं.

सुविधाएं देने और इन्हें सहेजने की जरूरत
समाजसेवी सत्यप्रकाश तिवारी का कहना है कि इस जनजाति की संख्या बहुत ही कम है. इनके पुनर्वास के लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए ताकि इस जनजाति के लोगों को बचाया जा सके.
छत्तीसगढ़ की गोद में कई जनजातियां निवास करती हैं. जिनमें से कुछ विलुप्त होने की कगार पर हैं. इन्हें सुविधाओं के नाम पर सिर्फ योजनाएं ही मिलती रही हैं. अपनी पहचान के लिए ये लोग संघर्ष कर रहे हैं और अभाव में जीने को मजबूर हैं.

जशपुरः छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य है. इतिहास के कई पन्ने यहां के कोने-कोने में छिपे हैं. प्रदेश की ऐसी ही अनसुनी कहानियां हम आपको सुनाते रहते हैं. आज आपको मिलवाते हैं उनसे, जो खुद को महिषासुर का वंशज मानते हैं. जशपुर जिले की खूबसूरत गोद में ऐसे 13 परिवार रहते हैं, जो असुर जनजाति के माने जाते हैं और इतिहासकार भी इन्हें महिषासुर का वंशज मानते हैं.

पैकेज.

हरे-भरे जंगलों से घिरे जिले के मनोरा जनपद की ग्राम पंचायत गजमा के आश्रित गांव बुर्जुपाठ में हिषासुर के वंशज माने जाने वाले असुर जनजाति के 13 परिवार निवास करते हैं. यह गांव मुख्य तौर से इन्हीं परिवारों के लिए जाना जाता है. इतिहासकारों के मुताबिक यह जनजाति पाषाण युग में पत्थरों को गलाकर लोहा निकालने का काम करता थी. लेकिन समय के साथ इनकी कला छिनती चली गई.

नहीं मिल रही कोई सुविधाएं
ग्रामीण की शिकायत है कि उनके गांव में आजादी के इतने सालों बाद भी बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं. गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा ऐसी कई समस्याएं हैं जिनसे इन्हें जूझना पड़ रहा है. ताज्जुब की बात ये है कि इनका जिक्र भी बहुत कम मिलता है.

न सड़क, न स्कूल, कहां पढ़ने जाएं बच्चे
ग्राम पंचायत गजमा जिला मुख्यालय से महज 2 किलोमीटर के अंदर ही स्थित है, लेकिन आश्रित गांव बुर्जुपाठ में बिजली छोड़कर कोई दूसरी सुविधा नहीं पहुंची है. गांव में प्राथमिक स्कूल तो छोड़िए आंगनबाड़ी भवन की सुविधा तक नहीं है. आंगनबाड़ी केंद्र आधा-अधूरा बना हुआ है. यहां के बच्चे कई किलोमीटर पैदल चलते हैं तब जाकर कहीं शिक्षा नसीब होती है.

बारिश में टापू बन जाता है गांव
बारिश के दिनों में यह गांव टापू में तब्दील हो जाता है. साधन क्या चलेंगे कीचड़ की वजह से पैदल चलना दूभर हो जाता है. सड़क न होने की वजह से बीमारी से जूझ रहे लोगों को एंबुलेंस की सुविधा भी नहीं मिल पाती है. गांववालों को जरूरत पड़ने पर कंधे पर लाद कर मुख्य सड़क तक पहुंचाना पड़ता है.

इतिहास की किताबों में भी है उल्लेख
वहीं इतिहास के जानकर और समाज सेवी राम प्रकाश पांडे का कहना है कि असुर जनजाति जिले में ही नहीं प्रदेश भर में विलुप्ति की कगार पर है. इनकी संख्या पूरे प्रदेश में लगभग डेढ़ सौ के आसपास ही बची है. पानी, सड़क, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं उन्हें नहीं मिल पा रही हैं. उनके अधिकारों का हनन हो रहा है.

किताब का किया जिक्र
उन्होंने बताया कि इतिहास के मुताबिक इन्हीं लोगों ने ही पाषाण युग में पहली बार आग की खोज की थी. उन्होंने बताया कि बेरियर एल्विन प्रसिद्ध मानव शास्त्री ने अपनी किताब में लिखा है कि जशपुर क्षेत्र में सलेग्स के माउंटेन पाए जाते थे, जो असुर जाति के लोहे निकालने से बने हैं.

सुविधाएं देने और इन्हें सहेजने की जरूरत
समाजसेवी सत्यप्रकाश तिवारी का कहना है कि इस जनजाति की संख्या बहुत ही कम है. इनके पुनर्वास के लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए ताकि इस जनजाति के लोगों को बचाया जा सके.
छत्तीसगढ़ की गोद में कई जनजातियां निवास करती हैं. जिनमें से कुछ विलुप्त होने की कगार पर हैं. इन्हें सुविधाओं के नाम पर सिर्फ योजनाएं ही मिलती रही हैं. अपनी पहचान के लिए ये लोग संघर्ष कर रहे हैं और अभाव में जीने को मजबूर हैं.

Intro:जशपुर अपनी प्राकृतिक सौन्दर्यता ओर हरियाली से भरपूर जशपुर जिले में निवास करने वाली असुर जनजाति विलुम्पति के कगार पर है मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जी रहे इस जनजाति के लोग आज भी सड़क, पानी मकान जैसी सुविधाओं के अभाव में जीवन यापन करने को मजबूर है।

Body:हरेभरे जंगलों से घिरे जिले के मनोरा जनपद के ग्राम पंचायत का गजमा का छोटा सा आश्रित ग्राम बुर्जुपाठ इस गाँव में 13 परिवार निवास करते है, यह छोटा सा गांव अपने इन्ही 13 परिवारों के लिए जाना जाता है इन परिवारों का सम्बन्ध असुर जनजाति से है यह समुदाय स्वंय को महिषासुर का वंसज मानता है, कालांतर में इस विशेष जनजाति की पहचान पत्थर को गला कर लोहा निकालने की विशेष महारत के कारण होती थी। लेकिन समय की मार ने इस जाति से इस कला को लगभग छीन लिया है। गरीबी,बेरोजगारी से जूझता यह जनजाति किसी राजनीतिक दल के प्राथमिकता की सूची में अपना स्थान नहीं बना सका है। नतीजन बुर्जुपाठ तक पहुंचने के लिए अब तक एक अदद सड़क भी नहीं बन पाई है। अगर आप इन प्राकृतिक पुत्रों तक पहुंचने की कोशिश करेगें तो आपको खेतों के मेढ़ों से होकर गुजरना पड़ेगा। इन सारी विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए यह जनजाति स्वयं का अस्तित्व बनाए रखने की कोशिश में जुटा हुआ है।


असुर जनजाति के इन छोटे से गाँव में महज 13 परिवार रहते है लेकिन इस परिवार को अब तक बिजली को छोड़कर कोई भी बुनियादी सुविधा नहीं मिल पाई है। पंचायत मुख्यालय से तकरीबन दो किलोमीटर दूर स्थित इस बस्ती तक शिक्षा की रोशनी भी नहीं पहुंच पाई है। प्राथमिक से लेकर मिडिल स्कूल के छात्रों को इस दूरी तक पदयात्रा करनी पड़ती है। शिक्षा सुविधा के नाम पर एक आंगनबाड़ी केन्द्र मौजूद है। लेकिन इस आंगनबाडी के लिए एक भवन की सुविधा अब तक यहां के निवासियों को नहीं मिल पाई है। गांव तक पहुंचने वाली सड़क की भी है। सड़क के नाम पर पगडंडी ही इस असुर परिवारों का सहारा है। बारिश में यह गांव टापू में तब्दील हो जाता है। बाइक तो दूर कीचड़ और फिसलन की वजह से पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है। सड़क ना होने की वजह से बीमारी से जूझ रहे लोगों को एंबुलेंस की सुविधा भी नहीं मिल पाती है। जरूरत पड़ने पर कंधें पर लाद कर मुख्य सड़क तक पहुंचाना पड़ता है।

समाजसेवी सत्यप्रकाश तिवारी का कहना है की इस जनजाति की सख्या काफी कम है इनके पुनर्वास के लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए ताकि इस जनजाति के लोगो को बचाया जा सके

वही इतिहास के जानकर ओर समाज सेवी राम प्रकाश पाण्डे का कहना है कि असुर जनजाति जिले में ही नही प्रदेश भर में विलुम्पति की कगार पर है पानी, सकड़, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधा उन्हें नही मिल पा रही उनके मानवाधिकार का हनन हो रहा उन्होंने बताया कि माना जाता है कि आग की उत्तपत्ति असुर जनजाति के लोगो ने की थी क्यों की शिष्टि की रचना के समय से यहाँ रह रहे है, क्यों कि पासणा युग में लोग आग का प्रयोग नही किया करते है पहली बार असुर जनजाति के लोगो ने आग की उत्तपत्ति की ओर आग से पत्थरों को चूर कर गला कर के लोहा निकालने के काम सुरु किये थे,। उन्होंने बताया कि बेरियर एल्विन प्रसिद्ध मानव शास्त्री ने अपनी किताब में लिखा है की जशपुर क्षेत्र में सलेग्स के माउंटेन पाए जाते थे,

Conclusion:बहरहाल इस विशेष जनजाति पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है अपनी पहचान खोती इस जनजाति को जीवन यापन करने को भी संघर्ष करना पड़ रहा है आज भी इस समुदाय के लोग मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जी रही है।


बाइट फिरन राम
बाइट लुन्दरू असुर
बाइट फुलेश्वरी बाई
बाइट सत्य प्रकाश तिवारी समाज सेवी
बाइट राम प्रकाश पाण्डे इतिहास के जानकर समाज सेवी

तरुण प्रकाश शर्मा
जशपुर


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