जशपुर: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दो दिवसीय जशपुर प्रवास पर हैं. इस दौरान उन्होंने गम्हरिया गौठान का निरीक्षण किया. साथ ही ग्राम बालछापर में बने एथनिक रिसॉर्ट के बगल में समेकित चाय बागान में चाय के पौधे रोपे. सीएम ने गौठनों में खुद चारा काट कर मवेशियों को खिलाया. साथ ही स्व-सहायता समूह की महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे साबुन को भी खरीदा.
मुख्यमंत्री ने गौठान में विभिन्न महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा संचालित मुर्गी पालन, बकरी पालन, वर्मी कम्पोस्ट, दोना, पत्तल कार्य का जायजा लिया. इसके अलावा सीएम बघेल ने चप्पल निर्माण और गोवर्धन योजना अंतर्गत प्री-फेब्रीकेडेट बायो गैस प्लांट का अवलोकन किया. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रौशनी स्व-सहायता समूह द्वारा निर्मित अणुसा संग्रहण केन्द्र से अणुसा पाउडर भी खरीदा. साथ ही एक अन्य महिला समूह द्वारा बनाया गए साबुन को भी खरीदा.
सीएम ने खुद ही घास काटकर पशुओं को खिलाया चारा
मुख्यमंत्री ने कहा कि आने वाले समय में इन औषधीय पौधों के छाल और फल को विभिन्न बीमारियों के इलाज के उपयोग में लाया जाएगा. गौठान में सीएम ने पैरादान और चारा काटने की मशीन का भी अवलोकन किया. वहीं खुद मशीन की मदद से घास काटकर पशुओं को खिलाया. उन्होंने कहा कि शासन की महत्वाकांक्षी सुराजी ग्राम योजना और स्व-सहायता समूहों के सामूहिक प्रयास से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार होगा और महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज का सपना पूरा होगा.
चाय की खेती है फायदेमंद
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने समेकित चाय बागान में मंत्री, विधायक और अधिकारियों के साथ मिलकर चाय के पौधे रोपे. इस दौरान उन्होंने कहा कि चाय की खेती वास्तव में एक फायदेमंद खेती है. इसे बढ़ावा देने से यहां के किसानों को काफी फायदा होगा. सीएम ने वन विभाग के अधिकारियों को निर्देशित किया कि चाय की खेती के लिए किसानों का समूह बनाए और उन्हें प्रोत्साहित करें. साथ ही ये भी कहा कि मार्केटिंग के लिए बेहतर उपाय करें. इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने अपनी निजी जमीन में चाय की खेती करने वाले किसानों से मुलाकात कर उन्हें चाय की खेती अपनाने के लिए बधाई दी.
7 एकड़ में चाय के पौधों का रोपण
बता दें कि बालछापर एथेनिक रिसॉर्ट के बगल में करीब 7 एकड़ में चाय का रोपण वन विभाग, डीएमएफ और नरेगा के माध्यम से किया जा रहा है. इसमे 6 हजार 300 पौधे का रोपण किया जाएगा. चाय के पौधे करीब 2 से ढाई साल में तैयार हो जाते हैं और 5 सालों में नियमित पत्ती की तोड़ाई की जाती है.