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SPECIAL: कोरोना संकट और सरकार की अनदेखी से 'कोसा नगरी' के बुनकर बेहाल

जांजगीर-चांपा जिले का कोसा उद्योग देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी विख्यात है. लेकिन कोरोना संकट के कारण उद्योग से जुड़े लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं. वहीं कोसा उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने भी कोई विशेष कार्य योजना नहीं बनाई है.

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जांजगीर-चांपा के बुनकर बेहाल
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Published : Aug 24, 2020, 9:38 PM IST

Updated : Aug 24, 2020, 10:40 PM IST

जांजगीर-चांपा: छत्तीसगढ़ का जांजगीर-चांपा जिला कोसा उद्योग के लिए मशहूर है. यहां का कोसा ना केवल दक्षिण भारत बल्कि विदेशों में निर्यात होता है. लेकिन इन दिनों कोसा उद्योग से जुड़े मजदूर काफी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं. एक तरफ कोरोना वायरस के कारण व्यापार ठप पड़ गया है, तो दूसरी ओर इस उद्योग को बढ़ाने के लिए सरकार के काम नाकाफी दिखाई पड़ते है. राज्य सरकार में हथकरघा के लिए अलग से शासकीय संघ का गठन किया है. लेकिन शासन-प्रशासन की मदद इन मजदूरों तक पहुंची ही नहीं. कोसा उद्योग से जुड़े मजदूरों की ना कार्यकुशलता बढ़ पाई है और ना ही व्यापार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करने का वादा पूरा हुआ.

कोरोना संकट से कोसा बुनकर बेहाल

जांजगीर-चांपा जिले के अलग-अलग गांवों और शहरी क्षेत्रों में करीब 11 हजार परिवार कोसा उद्योग से जुड़े हुए हैं. यह इनका खानदानी पेशा है. ये मजदूर आज जिन हालातों का सामना कर रहे हैं. उन्हे ऐसे स्थिति पहली बार देखने को मिल रही है. कोरोना संकट के कारण पूरा व्यापार चौपट होने से मजदूरों को भूखे मरने की नौबत आ चुकी हैं. काम पूरी तरीके से ठप होने के कारण कुछ लोग दूसरे व्यवसाय से जुड़ रहे हैं, लेकिन ये कभी दूसरे पेशे से जुड़े नहीं थे, इसलिए उन्हें काफी परेशानी हो रही है.

silk Weaver of janjgir champa
मुश्किल में बुनकर

पढ़ें-SPECIAL: 'पढ़ई तुंहर दुआर' और नेटवर्क का रोड़ा, शिक्षक ले रहे ऑफलाइन क्लास

कोसा उद्योग संघ के सचिव ताराचंद देवांगन ने बताया कि कई परिवारों ने फल बेचने और सब्जी बेचने जैसे काम शुरू कर दिए हैं. लोगों को हथकरघा उद्योग के अलावा और दूसरा काम आता ही नहीं. ऐसे में उनके लिए काफी संकट की स्थिति है.

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मुश्किल में बुनकर

शासन ने नहीं की कोई विशेष पहल

एक तरफ हम ग्रामीण कुटीर उद्योगों को अंतरराष्ट्रीय बाजार के समक्ष खड़ा करने और प्रतिस्पर्धी बनाने की बात करते हैं. लेकिन कोसा उद्योग के मजदूरों की कार्यकुशलता में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है. हालांकि पावर लूम आने से जरूर कुछ बुनकर मशीनों का प्रयोग करते हैं, लेकिन अधिकतर आज भी हथकरघा के परंपरागत यंत्र से ही कोसा की बुनाई करते हैं. इन्हें कार्य कुशल बनाने के लिए शासन की ओर से भी कोई विशेष पहल नहीं की गई है. जिसका परिणाम है कि यहां का कोसा उद्योग ज्यादा प्रतिस्पर्धी नहीं है.

नए बाजार विकसित करने के अब तक नहीं हुए प्रयास

जांजगीर-चांपा जिले का कोसा उद्योग दक्षिण भारत और मिडिल ईस्ट के देशों यानी कि खाड़ी देशों में निर्यात पर निर्भर है. लेकिन इन दिनों कोरोना के कारण काफी मुश्किलें सामने आ रही है. दरअसल, दक्षिण भारत के लोग बड़ी संख्या में खाड़ी देशों में रोजगार करते हैं और वहां से कोसा साड़ियों की काफी डिमांड होती है. लेकिन कोरोना वायरस संक्रमण के चलते मिडिल ईस्ट के देशों में काम करने वाले दक्षिण भारतीय लोग बेरोजगार हो चुके हैं. ऐसे में इस व्यापार पर काफी संकट की स्थिति है. इसके अलावा अन्य बाजारों की तलाश नहीं की गई है. ना ही इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय खपत पर ध्यान दिया गया. मार्केटिंग पैकेजिंग को लेकर कोई विशेष कार्य योजना नहीं बनी. यही कारण है कि दक्षिण भारत और खाड़ी देशों में निर्भरता अधिक होने के कारण व्यापार बुरे दौर से गुजर रहा है.

पढ़ें-सरकारें बदली, हालात नहीं: आज भी जर्जर पुल से आवागमन कर रहे लोग, पोस्टमार्टम के लिए भी कंधे पर ले जाना पड़ा शव

चीन और साउथ कोरिया को टक्कर देने की स्थिति में नहीं

कोसा उद्योग के लिए चीन और साउथ कोरिया में तैयार किया गया सस्ता कपड़ा मिलता है उसको टक्कर देने की हालत में जांजगीर-चांपा जिले का कोसा उद्योग अपने आप को कमजोर महसूस करता है. कोसा उद्योग संघ के सचिव ताराचंद देवांगन ने बताया कि साउथ कोरिया और चाइना में बड़े पैमाने पर कोसा उत्पादन होता है और वहां कच्चा माल सस्ता भी पड़ता है. लेकिन इसके लिए जांजगीर-चांपा जिले में कोई कार्य योजना नहीं बनाई गई. ताकि लोग कोसा उत्पादन में आत्मनिर्भर हो सकें और उत्पादन सस्ता हो सके. आज भी कच्चे माल के लिए मजदूर चाइना और साउथ कोरिया पर निर्भर है.

कोसा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए मदद की दरकार

जांजगीर-चांपा जिले के कोसा उद्योग से जुड़े मजदूरों ने यह गुहार लगाई है कि उनकी कार्य कुशलता में वृद्धि के लिए सरकार मदद करें और कुछ ऐसी व्यवस्था सरकार करें ताकि कोसा उत्पादन की स्थिति में सुधार हो. क्योंकि ज्यादातर कोसा उत्पादन का फायदा महाजन ले जाते हैं. महाजन कम रेट पर खरीदारी करता है,फिर खरीदे हुए माल को ज्यादा से ज्यादा रेट पर निर्यात करता है. बता दें कि कच्चा माल उपलब्ध कराने का काम महाजन करते हैं, जिसकी बुनाई करने के बाद मजदूर कपड़े को वापस महाजन को भेजते हैं. यह एक तरह से अनुबंध होता है. जिससे मजदूर इस अनुबंध से उबर नहीं पाते हैं.

जांजगीर-चांपा: छत्तीसगढ़ का जांजगीर-चांपा जिला कोसा उद्योग के लिए मशहूर है. यहां का कोसा ना केवल दक्षिण भारत बल्कि विदेशों में निर्यात होता है. लेकिन इन दिनों कोसा उद्योग से जुड़े मजदूर काफी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं. एक तरफ कोरोना वायरस के कारण व्यापार ठप पड़ गया है, तो दूसरी ओर इस उद्योग को बढ़ाने के लिए सरकार के काम नाकाफी दिखाई पड़ते है. राज्य सरकार में हथकरघा के लिए अलग से शासकीय संघ का गठन किया है. लेकिन शासन-प्रशासन की मदद इन मजदूरों तक पहुंची ही नहीं. कोसा उद्योग से जुड़े मजदूरों की ना कार्यकुशलता बढ़ पाई है और ना ही व्यापार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करने का वादा पूरा हुआ.

कोरोना संकट से कोसा बुनकर बेहाल

जांजगीर-चांपा जिले के अलग-अलग गांवों और शहरी क्षेत्रों में करीब 11 हजार परिवार कोसा उद्योग से जुड़े हुए हैं. यह इनका खानदानी पेशा है. ये मजदूर आज जिन हालातों का सामना कर रहे हैं. उन्हे ऐसे स्थिति पहली बार देखने को मिल रही है. कोरोना संकट के कारण पूरा व्यापार चौपट होने से मजदूरों को भूखे मरने की नौबत आ चुकी हैं. काम पूरी तरीके से ठप होने के कारण कुछ लोग दूसरे व्यवसाय से जुड़ रहे हैं, लेकिन ये कभी दूसरे पेशे से जुड़े नहीं थे, इसलिए उन्हें काफी परेशानी हो रही है.

silk Weaver of janjgir champa
मुश्किल में बुनकर

पढ़ें-SPECIAL: 'पढ़ई तुंहर दुआर' और नेटवर्क का रोड़ा, शिक्षक ले रहे ऑफलाइन क्लास

कोसा उद्योग संघ के सचिव ताराचंद देवांगन ने बताया कि कई परिवारों ने फल बेचने और सब्जी बेचने जैसे काम शुरू कर दिए हैं. लोगों को हथकरघा उद्योग के अलावा और दूसरा काम आता ही नहीं. ऐसे में उनके लिए काफी संकट की स्थिति है.

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मुश्किल में बुनकर

शासन ने नहीं की कोई विशेष पहल

एक तरफ हम ग्रामीण कुटीर उद्योगों को अंतरराष्ट्रीय बाजार के समक्ष खड़ा करने और प्रतिस्पर्धी बनाने की बात करते हैं. लेकिन कोसा उद्योग के मजदूरों की कार्यकुशलता में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है. हालांकि पावर लूम आने से जरूर कुछ बुनकर मशीनों का प्रयोग करते हैं, लेकिन अधिकतर आज भी हथकरघा के परंपरागत यंत्र से ही कोसा की बुनाई करते हैं. इन्हें कार्य कुशल बनाने के लिए शासन की ओर से भी कोई विशेष पहल नहीं की गई है. जिसका परिणाम है कि यहां का कोसा उद्योग ज्यादा प्रतिस्पर्धी नहीं है.

नए बाजार विकसित करने के अब तक नहीं हुए प्रयास

जांजगीर-चांपा जिले का कोसा उद्योग दक्षिण भारत और मिडिल ईस्ट के देशों यानी कि खाड़ी देशों में निर्यात पर निर्भर है. लेकिन इन दिनों कोरोना के कारण काफी मुश्किलें सामने आ रही है. दरअसल, दक्षिण भारत के लोग बड़ी संख्या में खाड़ी देशों में रोजगार करते हैं और वहां से कोसा साड़ियों की काफी डिमांड होती है. लेकिन कोरोना वायरस संक्रमण के चलते मिडिल ईस्ट के देशों में काम करने वाले दक्षिण भारतीय लोग बेरोजगार हो चुके हैं. ऐसे में इस व्यापार पर काफी संकट की स्थिति है. इसके अलावा अन्य बाजारों की तलाश नहीं की गई है. ना ही इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय खपत पर ध्यान दिया गया. मार्केटिंग पैकेजिंग को लेकर कोई विशेष कार्य योजना नहीं बनी. यही कारण है कि दक्षिण भारत और खाड़ी देशों में निर्भरता अधिक होने के कारण व्यापार बुरे दौर से गुजर रहा है.

पढ़ें-सरकारें बदली, हालात नहीं: आज भी जर्जर पुल से आवागमन कर रहे लोग, पोस्टमार्टम के लिए भी कंधे पर ले जाना पड़ा शव

चीन और साउथ कोरिया को टक्कर देने की स्थिति में नहीं

कोसा उद्योग के लिए चीन और साउथ कोरिया में तैयार किया गया सस्ता कपड़ा मिलता है उसको टक्कर देने की हालत में जांजगीर-चांपा जिले का कोसा उद्योग अपने आप को कमजोर महसूस करता है. कोसा उद्योग संघ के सचिव ताराचंद देवांगन ने बताया कि साउथ कोरिया और चाइना में बड़े पैमाने पर कोसा उत्पादन होता है और वहां कच्चा माल सस्ता भी पड़ता है. लेकिन इसके लिए जांजगीर-चांपा जिले में कोई कार्य योजना नहीं बनाई गई. ताकि लोग कोसा उत्पादन में आत्मनिर्भर हो सकें और उत्पादन सस्ता हो सके. आज भी कच्चे माल के लिए मजदूर चाइना और साउथ कोरिया पर निर्भर है.

कोसा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए मदद की दरकार

जांजगीर-चांपा जिले के कोसा उद्योग से जुड़े मजदूरों ने यह गुहार लगाई है कि उनकी कार्य कुशलता में वृद्धि के लिए सरकार मदद करें और कुछ ऐसी व्यवस्था सरकार करें ताकि कोसा उत्पादन की स्थिति में सुधार हो. क्योंकि ज्यादातर कोसा उत्पादन का फायदा महाजन ले जाते हैं. महाजन कम रेट पर खरीदारी करता है,फिर खरीदे हुए माल को ज्यादा से ज्यादा रेट पर निर्यात करता है. बता दें कि कच्चा माल उपलब्ध कराने का काम महाजन करते हैं, जिसकी बुनाई करने के बाद मजदूर कपड़े को वापस महाजन को भेजते हैं. यह एक तरह से अनुबंध होता है. जिससे मजदूर इस अनुबंध से उबर नहीं पाते हैं.

Last Updated : Aug 24, 2020, 10:40 PM IST
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