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संकट में नट समाज: जमूरों पर रोक, बंदर-भालू सरकार ने ले लिए, दाल-भात कोरोना ने छीन लिया - लॉकडाउन में नट समाज

जांजगीर चांपा में रह रहे नट समाज के लोग कई तरह की समस्या से जूझ रहे हैं. रहने को घर नहीं है, खाने को खाना नहीं है. करतब देखने के लिए दर्शक नहीं, रोजगार के साधन नहीं है. तमाम समस्याओं के बीच नट समाज दाने-दाने के लिए जिंदगी की जद्दोजहद में लगे हैं.

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नट समाज का कटा 'नेटवर्क'
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Published : Sep 2, 2020, 5:46 PM IST

Updated : Sep 2, 2020, 7:00 PM IST

जांजगीर-चांपा: बारगांव और उसके आसपास बड़ी संख्या में नट समाज के लोग रहते हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं. बारगांव में 3 लाख रुपये की राशि खर्च कर सांस्कृतिक मंच नट तैयार किया गया था, लेकिन इसका सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है. करीब 500 नट समाज के लोग बेरोजगार हैं. हालांकि कई लोगों पेट पालने के लिए आय का जरिया भी बदल लिया है.

कठिन समय में कलाकार

जिले के विभिन्न गांव में बसने वाले नट समाज दूसरे प्रदेशों में जाकर खेल तमाशा दिखाकर अपना भरण-पोषण करते हैं, लेकिन आज लॉकडाउन की स्थिति में पिछले चार-पांच महीनों से यह समाज बेरोजगारी से जूझ रहा है. मुसीबतों का पहाड़ झेल रहा समाज आज दाने-दाने को मोहताज है. बच्चे से लेकर बूढ़े तक भूखे मरने की स्थिति है. क्योंकि न तो उनके पास राशन कार्ड है, न ही मनरेगा रोजगार सूची में उनका नाम है. इस स्थिति में नट समाज के लिए जीवन यापन करना मुसीबत से कम नहीं है.

nat society
सूखा चावल खाने को मजबूर

दुकान खोलकर सामान बेचने को मजबूर

ETV भारत ने जब नट समाज से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि वे पिछले चार-पांच महीनों से बेरोजगारी झेल रहे हैं और लॉकडाउन की स्थिति में वह कहीं भी नहीं जा पा रहे हैं. ऐसी स्थिति में उन्हें भीख मांगकर गुजारा करना पड़ रहा है, जबकि दूसरे प्रदेशों में जाकर खेल तमाशा दिखाने में उन्हें काफी कमाई हो जाती थी. वहीं उनका ये भी कहना था कि कभी ये शहरों में बसते थे, अपने करतब से लोगों का मनोरंजन करते थे. अब ये दुकान खोलकर सामान बेचने को मजबूर हैं. सरकस का काम करते थे अब दुकान डालकर घर चला रहे हैं. उससे भी पेट पालना मुश्किल हो रहा है.

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करतब दिखाता बच्चा

पढ़ें : SPECIAL : ''टच मी नॉट पानी पूरी'', साफ-सफाई से बेफिक्र हो उठाइए गुपचुप का लुत्फ

मदद की जरूरत

समाज के अन्य लोगों का कहना है कि बारिश ने रहने का सहारा छीन लिया. अब मांग कर बच्चों का पेट भर रहे हैं. इससे पहले बाहर जाकर कमाते-खाते थे. राशन कार्ड भी नहीं है कि कुछ मदद मिल सके. उनका कहना है कि दिल्ली-मुंबई गए काफी समय हो गया है. जिससे उनके सामने आर्थिक परेशानियों का पहाड़ खड़ा हो गया है.

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नट समाज में खाने की समस्या

नट समाज का इतिहास

नट उत्तर भारत में हिंदू धर्म को मानने वाली एक जाति है, जिसमें पुरुष बाजीगर और गाने-बजाने का काम करते हैं. उनकी महिलाएं नाचने और गाने का काम करती हैं. इस जाति को भारत सरकार ने अनुसूचित जाति के तहत रखा है. अंग-प्रत्यंग को लचीला बनाकर भिन्न मुद्राओं में प्रदर्शित करते हुए जनता का मनोरंजन करना ही इनका मुख्य पेशा है. नटों में प्रमुख रूप से दो उपजातियां हैं, बजनिया नट और ब्रजवासी नट.

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नट समाज में खाने की समस्या

पढ़ें : ब्रिटिश काल के दौरान पड़े बंगाल में भीषण अकाल, मरे थे 30 लाख लोग

नट समाज की मांग

नट समाज ने मांग की है कि जल्द से जल्द लॉकडाउन हटाया जाए या फिर उन्हें रोजगार के अवसर मुहैया कराया जाए. क्योंकि उनके पास न तो रहने को घर है, न करने को काम.

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नट समाज की महिलाएं

जांजगीर-चांपा: बारगांव और उसके आसपास बड़ी संख्या में नट समाज के लोग रहते हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं. बारगांव में 3 लाख रुपये की राशि खर्च कर सांस्कृतिक मंच नट तैयार किया गया था, लेकिन इसका सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है. करीब 500 नट समाज के लोग बेरोजगार हैं. हालांकि कई लोगों पेट पालने के लिए आय का जरिया भी बदल लिया है.

कठिन समय में कलाकार

जिले के विभिन्न गांव में बसने वाले नट समाज दूसरे प्रदेशों में जाकर खेल तमाशा दिखाकर अपना भरण-पोषण करते हैं, लेकिन आज लॉकडाउन की स्थिति में पिछले चार-पांच महीनों से यह समाज बेरोजगारी से जूझ रहा है. मुसीबतों का पहाड़ झेल रहा समाज आज दाने-दाने को मोहताज है. बच्चे से लेकर बूढ़े तक भूखे मरने की स्थिति है. क्योंकि न तो उनके पास राशन कार्ड है, न ही मनरेगा रोजगार सूची में उनका नाम है. इस स्थिति में नट समाज के लिए जीवन यापन करना मुसीबत से कम नहीं है.

nat society
सूखा चावल खाने को मजबूर

दुकान खोलकर सामान बेचने को मजबूर

ETV भारत ने जब नट समाज से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि वे पिछले चार-पांच महीनों से बेरोजगारी झेल रहे हैं और लॉकडाउन की स्थिति में वह कहीं भी नहीं जा पा रहे हैं. ऐसी स्थिति में उन्हें भीख मांगकर गुजारा करना पड़ रहा है, जबकि दूसरे प्रदेशों में जाकर खेल तमाशा दिखाने में उन्हें काफी कमाई हो जाती थी. वहीं उनका ये भी कहना था कि कभी ये शहरों में बसते थे, अपने करतब से लोगों का मनोरंजन करते थे. अब ये दुकान खोलकर सामान बेचने को मजबूर हैं. सरकस का काम करते थे अब दुकान डालकर घर चला रहे हैं. उससे भी पेट पालना मुश्किल हो रहा है.

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करतब दिखाता बच्चा

पढ़ें : SPECIAL : ''टच मी नॉट पानी पूरी'', साफ-सफाई से बेफिक्र हो उठाइए गुपचुप का लुत्फ

मदद की जरूरत

समाज के अन्य लोगों का कहना है कि बारिश ने रहने का सहारा छीन लिया. अब मांग कर बच्चों का पेट भर रहे हैं. इससे पहले बाहर जाकर कमाते-खाते थे. राशन कार्ड भी नहीं है कि कुछ मदद मिल सके. उनका कहना है कि दिल्ली-मुंबई गए काफी समय हो गया है. जिससे उनके सामने आर्थिक परेशानियों का पहाड़ खड़ा हो गया है.

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नट समाज में खाने की समस्या

नट समाज का इतिहास

नट उत्तर भारत में हिंदू धर्म को मानने वाली एक जाति है, जिसमें पुरुष बाजीगर और गाने-बजाने का काम करते हैं. उनकी महिलाएं नाचने और गाने का काम करती हैं. इस जाति को भारत सरकार ने अनुसूचित जाति के तहत रखा है. अंग-प्रत्यंग को लचीला बनाकर भिन्न मुद्राओं में प्रदर्शित करते हुए जनता का मनोरंजन करना ही इनका मुख्य पेशा है. नटों में प्रमुख रूप से दो उपजातियां हैं, बजनिया नट और ब्रजवासी नट.

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नट समाज में खाने की समस्या

पढ़ें : ब्रिटिश काल के दौरान पड़े बंगाल में भीषण अकाल, मरे थे 30 लाख लोग

नट समाज की मांग

नट समाज ने मांग की है कि जल्द से जल्द लॉकडाउन हटाया जाए या फिर उन्हें रोजगार के अवसर मुहैया कराया जाए. क्योंकि उनके पास न तो रहने को घर है, न करने को काम.

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नट समाज की महिलाएं
Last Updated : Sep 2, 2020, 7:00 PM IST
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