जांजगीर चांपा : 'शबरी के जूठे बेर' ये कहानी हम सबने बचपन से सुनी है कि किस तरह से माता शबरी ने भगवान राम को अपने जूठे बेर खिलाए थे. जूठे बेर खिलाने के पीछे वजह भगवान राम को गलती से भी खट्टे बेर न खाने पड़े इस कारण माता शबरी ने हर बेर को भगवान राम को खिलाने से पहले खुद खाकर उसका स्वाद परखा था, इसके बाद ही भगवान राम को खिलाया था. भगवान राम भी इस बेर को बड़ी प्रसन्नता के साथ खा रहे थे. तब से शबरी के जूठे बेर की कहानी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई. लेकिन जब आज अयोध्या में राम जन्मभूमि का भूमि पूजन हो रहा तो माता शबरी के वंशज यानी सबर जनजाति के लोग डेढ़ हजार साल पुराना शबरी मंदिर के उत्थान के मांग राज्य सरकार से कर रहे हैं. उनका कहना है कि पूरे भारत का इकलौता शबरी मंदिर जांजगीर चांपा में है जिसपर राज्य सरकार ध्यान नहीं दे रही है.
जिले के खरौद में माता शबरी का प्राचीन मंदिर है. देश की एक बड़ी जनसंख्या वाली सबर जनजाति अपने आपको माता शबरी के वंशज मानते हैं. इनकी उत्पत्ति खरौद से हुई है, जहां पर प्राचीन शबरी मंदिर है. ऐसे समय में जब अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण हो रहा है, तो यह जनजाति काफी खुश है.
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इकलौता प्राचीन शबरी मंदिर
महानदी के तट पर स्थित खरौद में देश का इकलौता प्राचीन शबरी मंदिर है. यहां बड़ी संख्या में सबर जनजाति के लोग रहते हैं. झारखंड, ओडिसा और छत्तीसगढ़ की सबर जनजाति की उत्पत्ति यहीं से मानी जाती है. सबर जनजाति अपने आपको माता शबरी का वंशज मानते हैं और माता शबरी को प्रभु श्रीराम की अनन्य भक्ति प्राप्त है. अब जबकि लगभग 500 वर्ष बाद अयोध्या श्री राम जन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण होने जा रहा है तो यहां की सबर जनजाति काफी खुश नजर आ रही है. ये सबर जनजाति के तीन भाग है झरिया, ओरिया और फुल झरिया.
सबर जनजाति की कुलदेवी शबरी माता
उन्होंने बताया कि सबर जनजाति की कुलदेवी शबरी माता है. साथ ही शबरी माता को प्रभु श्री राम के साथ जूठे बेर खिलाते हुई फोटो की पूजा करते हैं. सबर जनजाति में कुछ ऐसे भी समाज हैं, जो सांप पकड़ने का काम करते हैं. खरौद स्थित सबर जनजाति पहले से काफी उन्नति कर चुके हैं. व्यवसाय के तौर पर वह अन्य समाज की तरह खेती, किसानी भी करते हैं. लेकिन झारखंड और ओडिशा सहित राज्य के अन्य जिलों में फैले सबर जनजाति की उत्पत्ति इस नगरी को ही माना जाता है. समाज के लोग यही खरौद के प्राचीन शबरी मंदिर में आकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं.