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सरकार के दावों की खुली पोल, 550 आंगनबाड़ी केंद्र किराए के भवन में संचालित

महिला एवं बाल विकास विभाग पर सरकार सालाना अरबों रुपए खर्च करती है. लेकिन कुपोषण की समस्या जस की तस है. जिले में 550 आंगबाड़ी केंद्र किराए के भवन में चल रहे हैं.

Bad condition of Women and Child Development_janjgir champa
महिला बाल विकास विभाग का बुरा हाल
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Published : Dec 10, 2019, 4:42 PM IST

Updated : Dec 10, 2019, 6:04 PM IST

जांजगीर-चांपा : जिले के लिए शासन 20 से 25 करोड़ का सालाना बजट देती है. मगर लगभग 550 से भी ज्यादा आंगनबाड़ी केंद्र जुगाड़ के भवन में संचालित हो रहे हैं. कहीं भवन नहीं हैं, तो कहीं बिजली पानी की व्यवस्था नहीं है. इन तमाम विपरीत परिस्थितियों में आंगनबाड़ी केंद्र में किस तरह काम होता होगा ये आप समझ सकते हैं.

महिला बाल विकास विभाग की बड़ी लापरवाही

आंगनबाड़ी केंद्रों में आने वाले बच्चों को न सिर्फ समुचित पोषण आहार दिया जाना है बल्कि बच्चों के शारीरिक विकास के लिए खेलकूद जैसे क्रिया-कलाप भी करने हैं. इसके लिए शासन हर साल आंगनबाड़ी केंद्रों में लाखों रुपए के खिलौने बंटता है. लेकिन खेलकूद के लिए मैदान की व्यवस्था नहीं हैं. जब भवन भी नसीब नहीं हो रहा है.

सैकड़ो आंगनबाड़ी केंद्र किराए के भवनों में संचालित हो रहे हैं या तो कहीं सामुदायिक भवन या मंगल भवनों में संचालित किए जा रहे हैं. आंगनबाड़ी केंद्रों में काम करने वाले कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मजबूरी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो खुलकर शिकायत भी नहीं कर सकते हैं. इसी का नतीजा है कि जिला बनने के 21 साल बाद भी लगभग 550 आंगनबाड़ी केंद्रों को खुद का भवन नसीब नहीं हुआ है.

आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 200 रुपये मासिक किराया दिया जाता है. अब ऐसे में कैसी व्यवस्थाएं इन केंद्रों में होगी इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है.

जांजगीर-चांपा : जिले के लिए शासन 20 से 25 करोड़ का सालाना बजट देती है. मगर लगभग 550 से भी ज्यादा आंगनबाड़ी केंद्र जुगाड़ के भवन में संचालित हो रहे हैं. कहीं भवन नहीं हैं, तो कहीं बिजली पानी की व्यवस्था नहीं है. इन तमाम विपरीत परिस्थितियों में आंगनबाड़ी केंद्र में किस तरह काम होता होगा ये आप समझ सकते हैं.

महिला बाल विकास विभाग की बड़ी लापरवाही

आंगनबाड़ी केंद्रों में आने वाले बच्चों को न सिर्फ समुचित पोषण आहार दिया जाना है बल्कि बच्चों के शारीरिक विकास के लिए खेलकूद जैसे क्रिया-कलाप भी करने हैं. इसके लिए शासन हर साल आंगनबाड़ी केंद्रों में लाखों रुपए के खिलौने बंटता है. लेकिन खेलकूद के लिए मैदान की व्यवस्था नहीं हैं. जब भवन भी नसीब नहीं हो रहा है.

सैकड़ो आंगनबाड़ी केंद्र किराए के भवनों में संचालित हो रहे हैं या तो कहीं सामुदायिक भवन या मंगल भवनों में संचालित किए जा रहे हैं. आंगनबाड़ी केंद्रों में काम करने वाले कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मजबूरी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो खुलकर शिकायत भी नहीं कर सकते हैं. इसी का नतीजा है कि जिला बनने के 21 साल बाद भी लगभग 550 आंगनबाड़ी केंद्रों को खुद का भवन नसीब नहीं हुआ है.

आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 200 रुपये मासिक किराया दिया जाता है. अब ऐसे में कैसी व्यवस्थाएं इन केंद्रों में होगी इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है.

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महिला बाल विकास विभाग का बुरा हाल,

550 आंगनबाड़ी केन्द्र किराये के भवन मे हो रहे संचालित,

जिला स्थापना के 21 साल बाद भी नही बन सके भवनजिले के महिला बाल विकास विभाग का सालाना बजट है 20 से 25 करोड़

एंकर- महिला एवं बाल विकास विभाग पर सरकार सालाना अरबों रुपए खर्च करती है... मगर कुपोषण की समस्या दूर क्यों नहीं होती इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता।  जांजगीर-चांपा जिले की बात करें तो यहां के 20 से 25 करोड़ का सालाना बजट शासन देता है.... मगर लगभग साढ़े 5 सौ से भी ज्यादा आंगनबाड़ी केंद्र जुगाड़ के भवन में संचालित हो रहे हैं, यानी जहां स्वयं का भवन नहीं है। कहीं तंग कमरा है तो   कहीं बिजली पानी की व्यवस्था नहीं है।  इन तमाम विपरीत परिस्थितियों में बाल विकास किस तरह से होता होगा इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं। गौरतलब है कि आंगनबाड़ी केंद्रों में आने वाले बच्चों को न सिर्फ समुचित पोषण आहार दिया जाना है बल्कि बच्चों का शारीरिक विकास के लिए खेलकूद जैसे क्रिया-कलाप भी करानी है।  इसके लिए शासन हर साल आंगनबाड़ी केंद्रों में लाखों रुपए के खिलौने बंटता है... मगर खेलकूद के लिए मैदान की उपलब्धता तो दूर की बात है ...यहॉ खुद का भवन भी नसीब नहीं हो रहा है। सैकड़ों आंगनबाड़ी केंद्र किराए के भवनों में संचालित हो रहे हैं या तो कहीं सामुदायिक भवन या मंगल भवनों में संचालित किए जा रहे हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों में काम करने वाले कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की मजबूरी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह खुलकर शिकायत भी नहीं कर सकते और इसी का परिणाम है कि जिला बनने के 21 साल बाद भी लगभग साढ़े 5 सौ आंगनबाड़ी केंद्रों को खुद का भवन नसीब नहीं हुआ है। विडंबना की बात यह भी है कि आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 200 रुपये मासिक किराया दिया जाता है अब ऐसे में कैसी व्यवस्थाएं इन केंद्रों में होंगी इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

बाईट-1 पुष्पलता सिदार आगनबाड़ी कार्यकर्ता  
बाईट-2 मितानिन 
बाईट-3 प्रीती खोखर चखियार जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारीBody:........Conclusion:.........
Last Updated : Dec 10, 2019, 6:04 PM IST
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