जगदलपुरः पचहत्तर दिनों तक चलने वाला विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व (World Famous Bastar Dussehra Festival) की शुरुआत हो चुकी है. आज शाम को इस बस्तर दशहरा की सबसे महत्वपूर्ण रस्मों में से एक काछनगादी रस्म की अदायगी की जाएगी. इस रस्म के तहत 12 साल की कन्या अनुराधा एक कांटों के झूले (Thorn Swing) पर लेट कर इस पर्व को मनाने की अनुमति देगी.
दरअसल, इस काछनगादी पूजा-विधान को बस्तर दशहरे का शुभारंभ माना जाता है. पितृपक्ष अमावस्या के दिन ही बस्तर के राजा काछन देवी से दशहरा मनाने की अनुमति लेते आ रहे हैं और आज बुधवार की शाम इस परंपरा का निर्वहन (Carry On Tradition) करते हुए बस्तर दशहरा मनाने की अनुमति लेने बस्तर महाराजा कमलचंद भंजदेव पथरागुड़ा में स्थित काछनगुड़ी पहुचेंगे. पूजा-विधान (Ritual) में शामिल होकर पर्व को मनाने की अनुमति (Permission To Celebrate) मांगेंगे.
दशहरा की शुरूआत के लिए मांगी जाती है अनुमति
कालांतर में 247 साल पहले अक्षय तृतीया वर्ष 1774 जगदलपुर दलपत देव की नई राजधानी बनी थी. तब दलपत देव ने पितृपक्ष अमावस्या (Pitru Paksha Amavasya) के दिन ही (जगतुगुड़ा) जगदलपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया था. माना जाता है कि इसलिए पितृ पक्ष अमावस्या की शाम को काछन देवी से दशहरा मनाने की अनुमति मांगी जाती है. इसके अलावा दलपत देव से पहले महाराजा पुरुषोत्तम देव ने वर्ष 1408 के बाद दशहरा मनाने की शुरुआत की थी.
जब काकतीय राजाओं की राजधानी बस्तर से जगदलपुर परिवर्तित हुई तो स्थानीय प्रमुख देवी-देवताओं से अनुमति लेकर दशहरा मनाने की परंपरा यहां भी शुरू हुई. इसलिए लगभग 247 वर्षों से काछनदेवी से अनुमति लेकर बस्तर दशहरा मनाने की परंपरा जगदलपुर में चली आ रही है. इस परंपरा का निर्वहन (carry on tradition) करते हुए बुधवार आज पितृ पक्ष अमावस्या की शाम बस्तर राज परिवार (Royal Family) के वर्तमान के मुखिया कमलचंद भंजदेव एक भव्य जुलूस (Grand Procession) के साथ देवी से अनुमति लेने काछनगुड़ी पहुंचेंगे.
पनका जाति की एक नाबालिग बालिका पर होंगी 'आरुढ़'
काछन देवी को पशुधन और अन्नधन का रक्षक माना जाता है. हर साल पनका जाति की एक नाबालिग बालिका पर काछन देवी आरुढ़ होती हैं. परंपरा अनुसार एक भैरव भक्त सिरहा पुजारी (Bhairav Bhakt Sirha Pujari) देवी का आह्वान (invocation of the goddess) करता है और उस कन्या पर काछन देवी का प्रभाव गहराने लगता है. काछन देवी कन्या के उपर आने पर कन्या को एक कांटेदार झूले पर लिटा कर सिरहा पुजारी झुलाता है और देवी की पूजा-अर्चना की जाती है. इसके बाद बस्तर महाराजा को दशहरा पर्व मनाने की अनुमति के रूप में कन्या से प्रसाद मिलने के बाद बस्तर दशहरा पर्व धूमधाम से प्रारंभ (Dussehra Festival Begins With Pomp) हो जाता है.
परम्परा अनुसार हर साल बस्तर के विशेष पनका जाति के ही परिवार की कन्या इस महत्वपूर्ण रस्म का निर्वहन करती आ रही हैं. इस जाति की प्रत्येक कन्या द्वारा 6 वर्षों तक इस रस्म का निर्वहन किया जाता है और इस बार लगातार छठवीं बार सातवीं कक्षा में अध्ययनरत बड़े मारेगा गांव की अनुराधा दास पर काछन देवी (Kachan Devi) आरुढ़ होंगी. देवी का प्रतिरूप बनने वाली यह कन्या इस रस्म से पहले पूरे 10 दिन तक उपवास रखती है और उसके बाद आज इस रस्म को अदा करने के बाद उपवास तोड़ती है. पनका जाति के उपाध्यक्ष और अनुराधा के परिजन नीलेश्वर पनका का कहना है कि बस्तर दशहरा में काछन गादी रस्म का काफी महत्व (Great Importance Of Kachan Gadi Ceremony) है.
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दशकों से चली आ रही परंपरा
सालों से यह परंपरा चली आ रही है और पनका जाति की कन्यायों द्वारा बस्तर दशहरा की इस रस्म को निभाने के लिए राजा के द्वारा अनुमति ली जाती है. हालांकि शासन-प्रशासन ने पिछले कुछ सालों की तुलना में इस रस्म को अदा करने की जगह का कायाकल्प तो बदला है. लेकिन पनका जाति को आदिवासी अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए लंबे समय से मांग करने के बावजूद भी आज तक राज्य शासन ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है. हर वर्ष केवल बस्तर दशहरा (Bastar Dussehra) शुरू होने से पूर्व कन्या के परिजनों को पूछा जाता है और इतनी बड़ी रस्म की अदायगी करने वाले इन कन्यायों की उच्च शिक्षा (Higher Education Of Girls) को लेकर शासन कोई मदद नही करता.
उन्होंने कहा कि रस्म अदा करने वाली पनका जाति के इन कन्यायों को उच्च शिक्षा के लिए शासन पूरी मदद करे. ताकि वह बीच में ही अपनी पढ़ाई ना छोड़े और अपना भविष्य उज्ज्वल कर सके. फिलहाल इस मांग को लेकर अब तक शासन-प्रशासन से कोई विशेष पहल नहीं की गई है.