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SPECIAL: लॉकडाउन में इमली बनी ग्रामीणों की रोजी-रोटी का सहारा

लॉकडाउन की इस घड़ी में लोगों के सामने आजीविका चलाने की चुनौती खड़ी हो गई है. ग्रामीण वनोपज के सहारे अपना गुजारा कर रहे हैं.

villagers selling tamarind
इमली बनी ग्रामीणों का सहारा
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Published : Apr 17, 2020, 8:49 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर: इमली का नाम सुनते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है. खट्टी और चटपटी इमली का स्वाद तो सभी लेना चाहते हैं. एशिया की सबसे बड़ी इमली मंडी कहे जाने वाले बस्तर में ग्रामीण अब इसी इमली के सहारे हैं. जगदलपुर के जामवाड़ा गांव में लॉकडाउन के कारण ग्रामीणों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में इन ग्रामीणों के लिए एक ही सहारा है और वो है बस्तर का वनोपज इमली.

इमली बनी ग्रामीणों का सहारा

वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से पूरे देश को लॉकडाउन करने के साथ ही सभी जिलों में धारा 144 लागू है. जिस वजह से शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी और खेती-किसानी के साथ-साथ दिहाड़ी मजदूरों के काम भी बंद हो जाने से इसका सीधा असर उनकी आजीविका पर पड़ा है.

villagers selling tamarind
बीज निकालती बच्ची

आय का साधन बनी इमली

लॉकडाउन में हाट बाजार बंद होने से व्यापारियों पर आश्रित वनोपज संग्राहकों के हाथ भी तंग हैं. ऐसे में अभी बस्तरवासियों के लिए यहां की वनोपज इमली आय का साधन बनी हुई है. इससे ग्रामीणों को थोड़ी बहुत राहत मिल पा रही है.

villagers selling tamarind
बीज निकालते परिवार के लोग

10 किलो के मिलते हैं 50 रुपए

ग्रामीणों का कहना है कि वे थोक में इमली खरीद कर लाते हैं. उन्हें 10 किलो इमली के बीज निकालने का 50 रुपए मिलता है. इस 10 किलो इमली से बीज निकालने में उन्हें 2 दिन का समय लगता है और इमली की आवक के मुताबिक उन्हें महीने में 500 से 600 रुपए की आय होती है.

villagers selling tamarind
इमली से निकाल रहे बीज

जरूरी सामानों के लिए जूझते हैं ग्रामीण

बिना किसी रोजगार के ग्रामीण असहाय होने के साथ आर्थिक तंगी से भी जूझ रहे हैं. हालांकि राज्य सरकार की ओर से इन्हें 2 महीने का राशन तो मुफ्त दिया गया है. लेकिन राशन के अलावा घर में लगने वाले हर जरूरत के सामानों के लिए उन्हें जूझना पड़ रहा है. ऐसे में इमली फोड़ना उनके ऐसे आपदा के समय में आजीविका का साधन बना हुआ है. इससे इन्हें थोड़ी बहुत आय हो रही है.

जगदलपुर: इमली का नाम सुनते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है. खट्टी और चटपटी इमली का स्वाद तो सभी लेना चाहते हैं. एशिया की सबसे बड़ी इमली मंडी कहे जाने वाले बस्तर में ग्रामीण अब इसी इमली के सहारे हैं. जगदलपुर के जामवाड़ा गांव में लॉकडाउन के कारण ग्रामीणों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में इन ग्रामीणों के लिए एक ही सहारा है और वो है बस्तर का वनोपज इमली.

इमली बनी ग्रामीणों का सहारा

वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से पूरे देश को लॉकडाउन करने के साथ ही सभी जिलों में धारा 144 लागू है. जिस वजह से शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी और खेती-किसानी के साथ-साथ दिहाड़ी मजदूरों के काम भी बंद हो जाने से इसका सीधा असर उनकी आजीविका पर पड़ा है.

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बीज निकालती बच्ची

आय का साधन बनी इमली

लॉकडाउन में हाट बाजार बंद होने से व्यापारियों पर आश्रित वनोपज संग्राहकों के हाथ भी तंग हैं. ऐसे में अभी बस्तरवासियों के लिए यहां की वनोपज इमली आय का साधन बनी हुई है. इससे ग्रामीणों को थोड़ी बहुत राहत मिल पा रही है.

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बीज निकालते परिवार के लोग

10 किलो के मिलते हैं 50 रुपए

ग्रामीणों का कहना है कि वे थोक में इमली खरीद कर लाते हैं. उन्हें 10 किलो इमली के बीज निकालने का 50 रुपए मिलता है. इस 10 किलो इमली से बीज निकालने में उन्हें 2 दिन का समय लगता है और इमली की आवक के मुताबिक उन्हें महीने में 500 से 600 रुपए की आय होती है.

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इमली से निकाल रहे बीज

जरूरी सामानों के लिए जूझते हैं ग्रामीण

बिना किसी रोजगार के ग्रामीण असहाय होने के साथ आर्थिक तंगी से भी जूझ रहे हैं. हालांकि राज्य सरकार की ओर से इन्हें 2 महीने का राशन तो मुफ्त दिया गया है. लेकिन राशन के अलावा घर में लगने वाले हर जरूरत के सामानों के लिए उन्हें जूझना पड़ रहा है. ऐसे में इमली फोड़ना उनके ऐसे आपदा के समय में आजीविका का साधन बना हुआ है. इससे इन्हें थोड़ी बहुत आय हो रही है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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