जगदलपुर : बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव (Prince Kamalchand Bhanjdev of Bastar) विजयदशमी के मौके पर राजपरिवार के पास मौजूद शस्त्रों और अश्वों की पूजा बड़े ही धूमधाम से करते हैं. इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग बस्तर के राज महल पहुंचते हैं. खासकर शस्त्र पूजा की रस्म में एक खास कहानी जुड़ी हुई है. जिसके तहत मां दंतेश्वरी मंदिर में राजकुमारी मेघावती के कालबान बंदूक और माईजी के निशान (लाट) को ससम्मान मंदिर में स्थापित कर परंपरा अनुसार इस शस्त्र की पूजा की जाती (Story of 200 years old Kalban gun of bastar ) है.
किसने दी है बंदूक : बस्तर के जानकार बताते हैं कि मेघावती पासकंड की राजकुमारी थी और राजकुमारी मेघावती ने लगभग 200 साल पूर्व कालबान बंदूक (Kalban gun of bastar Dussehra 2022 ) बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी (goddess Maa Danteshwari) को भेंट की थी. तब से यह बंदूक मां दंतेश्वरी के मंदिर में रखा हुआ है.बुधवार को विजयदशमी के दिन इसे मंदिर से बाहर निकाला गया और इसकी पूजा की गयी.
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कैसी है बंदूक : यह भरमार बंदूक करीब 8 फीट लंबी और 20 किलो से ज्यादा वजनी हैं. कालबान के साथ ही देवी निशान (लाट) दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित करने वाले तुकाराम यादव बताते हैं कि '' देवी निशान (लाट) राजमहल परिसर में मंदिर निर्माण के मौके पर सन 1894 में राज परिवार ने उनके पूर्वजों को सौंपा था.तब से बस्तर दशहरा के दौरान उनके परिवार के लोग इस लाट को मंदिर में स्थापित करने की परंपरा का निर्वहन करते चले आ रहे हैं. इस कालबान बंदूक और लाट को बस्तर दशहरा की महत्वपूर्ण रस्म भीतर रैनी और बाहर रैनी रस्म के लिए मंदिर से पूजा के लिए बाहर निकाला जाता है और बकायदा इसका पूजा पाठ किया जाता है.