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EXCLUSIVE: बस्तर जिले में घटा कुपोषण, 3 साल में खत्म करने का लक्ष्य, महुआ लड्डू कारगर

बस्तर में 2 अक्टूबर 2018 से शुरू किया गया सुपोषण अभियान काफी कारगर साबित हो रहा है. कुपोषण अभियान की हकीकत जानने ETV भारत ने जिले की महिला एवं बाल विकास अधिकारी शैल ठाकुर से खास बातचीत की.

malnutrition decreasing in Bastar
बस्तर में घट रहा कुपोषण का प्रतिशत
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Published : Dec 22, 2020, 7:47 AM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर: बस्तर में नक्सल समस्या के साथ-साथ कुपोषण भी एक गंभीर समस्या है. कुपोषण की वजह से बस्तर में कई बीमार महिलाएं और बच्चे मौत के मुंह में समा गए हैं. बस्तर में यह समस्या काफी लंबे समय से है. हर साल बस्तर को कुपोषण से निजात दिलाने के लिए करोड़ों रुपए की राशि खर्च करने के दावे विभाग के द्वारा किए जाते हैं. इस बार प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के साथ ही कांग्रेस सरकार ने 2 अक्टूबर 2018 से सुपोषण अभियान की शुरुआत भी बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा जिले से की है. अब यह अभियान संभाग के पूरे सातों जिलों में चलाया जा रहा है. कुपोषण की समस्या को लेकर ETV भारत ने बस्तर जिले की महिला एवं बाल विकास अधिकारी शैल ठाकुर से खास बातचीत की. हमने उनसे जाना कि बस्तर में इस समस्या से निपटने के लिए या कुपोषण की दर को कम करने के लिए किस तरह के प्रयास किए जा रहे हैं.

महिला बाल विकास अधिकारी शैल ठाकुर से खास बातचीत-1

जिले में कुपोषण 21% प्रतिशत पहुंचा

महिला एवं बाल विकास अधिकारी शैल ठाकुर ने बताया कि बस्तर में कुपोषण एक गंभीर समस्या है. यह कोविड-19 महामारी से भी काफी गंभीर समस्या है, पिछले 5 सालों की बात की जाए, तो बस्तर जिले में 50% बच्चे कुपोषण से पीड़ित थे, लेकिन विभाग की ओर से लगातार किए गए प्रयास के बाद अब वर्तमान में जिले में कुपोषण का प्रतिशत 21 प्रतिशत पर आ गया है. विभाग के प्रयास से अब लगातार प्रतिशत में कमी आ रही है.

ग्रामीण हुए जागरूक

ग्रामीणों में जागरूकता के अभाव के सवाल पर अधिकारी ने बताया कि बस्तर में अधिकतर महिलाएं अशिक्षित हैं. इसकी वजह निश्चित रूप से जागरूकता की कमी है. लेकिन विभाग की ओर से ग्रामीण महिलाओं को उनके स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जा रहा है. इसके लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताएं और सहायिकाएं समय-समय पर महिलाओं की काउंसलिंग करती हैं. इसके अलावा पहले ग्रामीण अंचलों में किशोरी बालिकाओं की शादी कर दी जाती थी, उसकी वजह से भी कुपोषण की समस्या बढ़ी थी, लेकिन अब धीरे-धीरे इसे लेकर जागरूकता आई है. अब ग्रामीण इलाकों में 18 साल के बाद ही उनका विवाह किया जा रहा है. बाल विवाह काफी हद तक कम हुआ है, महिलाएं अब खानपान पर भी ज्यादा ध्यान दे रही हैं.

महिला बाल विकास अधिकारी शैल ठाकुर से खास बातचीत-2

जिले में 23 हजार से घट कर 17 हजार से ज्यादा कुपोषित बच्चे

जिले में वर्तमान में गंभीर कुपोषित बच्चों के आंकड़े के सवाल पर अधिकारी ने बताया कि साल 2019 में पूरे जिले में 23 हजार बच्चे कुपोषित पाए गए थे, लेकिन सुपोषण अभियान चलाए जाने के बाद अब वर्तमान में गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या 17 हजार 700 है. इस अभियान से 1 साल में करीब 5 हजार 500 बच्चे कुपोषण से निजात पा चुके हैं.

पढ़ें: दंतेवाड़ा: मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान को सफल बनाने की पहल, गांव-गांव में दी जाएगी जानकारी

बांटा गया सूखा राशन

अधिकारी ने बताया कि कोरोना की वजह से मार्च महीने से आंगनबाड़ी केंद्रों को बंद करने के आदेश के बावजूद लगातार विभाग ने हितग्राहियों को सूखा राशन उनके घर तक पहुंचाया है. उन्होंने बताया कि करीब 12 हजार से ज्यादा गर्भवती महिलाओं को कोरोनाकाल के दौरान रेडी टू ईट खाना पहुंचाया गया. इसके अलावा 90 हजार से ज्यादा लोगों को सूखा राशन भी घर तक पहुंचाया गया.

पोषण आहार में महुआ लड्डू को किया जाएगा शामिल

अधिकारी ने बताया कि आने वाले समय में बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्रों में महुआ के बने लड्डू भी दिए जाएंगे. उन्होंने टेस्टिंग में पाया कि बच्चों को महुआ लड्डू खिलाये जाने से उनका वजन काफी तेजी से बढ़ा है. 1 से 3 साल के बच्चे का वजन लगभग 10 दिन में एक से डेढ़ किलो बढ़ा है. ऐसे में इसे पोषण आहार में शामिल करने की भी प्लानिंग चल रही है.

malnutrition decreasing in Bastar
खाने में दिए जा रहे महुआ के लड्डू

एनीमिया के इलाज के लिए किया जा रहा काम

अधिकारी ने बताया कि बस्तर में ग्रामीण महिलाओं में एनीमिया की काफी बड़ी समस्या है और जिससे निजात दिलाने के लिए, स्वास्थ विभाग महिला एवं बाल विकास विभाग और जिला प्रशासन तीनों सयुंक्त रूप से मिलकर काम कर रहे हैं. हाल ही में ग्रामीण महिलाओं की जांच पाया गया कि 40 हजार महिलाओं के जांच में 4 हजार महिलाएं एनीमिक पाई गई. उन्हें विभाग की ओर से गर्म भोजन और सभी दवाइयां, पोषण आहार दिया गया. जिसके बाद जांच में अब केवल 700 महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं.

NRC सेंटरों में दिया जा रहा अतिरिक्त पोषण आहार

इसके अलावा उन्होंने बताया कि जिले में कुल 7 एनआरसी सेंटर हैं. जहां गंभीर कुपोषित बच्चों को रखकर इलाज किया जाता है. कोरोना महामारी के वजह से मार्च महीने के बाद कई परिजन अपने बच्चों को एनआरसी सेंटर में भेजने से हिचक रहे थे. लेकिन पिछले 2 महीने से इन एनआरसी सेंटरों को खोल दिए जाने से इनमें पूरे 100 बिस्तर में 100 बच्चों को रखकर इनका खाने पीने का ध्यान रखा जा रहा है. साथ ही अभिभावक की भी काउंसलिंग की जा रही है. इस NRC सेंटर में बच्चों को अतिरिक्त पोषण आहार भी दिया जा रहा है . दरअसल 15 दिन के कोर्स में एनआरसी सेंटर में भरपूर मात्रा में पोषण आहार दिया जाता है. जिससे कुपोषण की दर काफी तेजी से घटती है. ऐसे में 7 एनआरसी सेंटरो के 100-100 बिस्तर में पूरी तरह से बच्चों को रखा गया है.

पिछले 5 सालों में कुपोषण का प्रतिशत घटा

अधिकारी ने बताया कि पिछले 5 सालों में कुपोषण का प्रतिशत बस्तर जिले में काफी तेजी से कम हुआ है. साल 2015 में बस्तर में कुपोषण का प्रतिशत 52 था, जिसके बाद 2016 में यह प्रतिशत 48% पहुंचा. 2017 में कुपोषण का प्रतिशत 34% पहुंचा , उसके बाद 2018 में 34% था और 2019 में बस्तर जिले में कुपोषण का प्रतिशत ते 33 प्रतिशत था. लेकिन अब विभाग के प्रयास से कुपोषण का प्रतिशत 23%, तक पहुंच गया है.

पढ़ें: बस्तर: 8 महीने में 300 नवजातों ने तोड़ा दम, कुपोषण और मांओं की कमजोर सेहत बड़ी वजह

विभाग में स्टाफ की कमी

स्टाफ की कमी के सवाल पर अधिकारी ने बताया कि उनके विभाग में स्टाफ की कमी बनी हुई है. अगर विभाग में उन्हें पर्याप्त संख्या में स्टाफ मिल जाती है तो निश्चित तौर पर तेजी से बस्तर में कुपोषण की समस्या से निजात पाया जा सकता है. इसे जड़ से खत्म किया जा सकता है. फिलहाल कम स्टाफ के बावजूद भी विभाग पूरी कोशिश में लगा हुआ है.

मुख्यमंत्री का विशेष ध्यान

अधिकारी ने कहा कि सुपोषण अभियान के तहत मुख्यमंत्री ने बस्तर में खास फोकस किया है. 3 साल का टारगेट विभाग की ओर से भी रखा गया है. इन 3 सालों में कुपोषण को जड़ से खत्म करने के लिए पूरी तरह से विभाग जुटा हुआ है. विभाग के अधिकारियों का मानना है कि आने वाले 2 सालों में बस्तर जिले में कुपोषण का प्रतिशत 15% या 10 % तक पहुंच जाएगा.

कारगर साबित हो रहा सुपोषण अभियान

बस्तर में 2 अक्टूबर 2018 से शुरू किए गए सुपोषण अभियान काफी कारगर साबित हो रहा है. दरअसल पहले विभाग की ओर से विभिन्न योजनाएं जरूर चलाई जाती थी और गर्भवती महिलाओं को रेड-टू-ईट खाना दिया जाता था, लेकिन इस सुपोषण अभियान के तहत पोषण आहार में कई खाने पीने के वस्तुओं को शामिल किया गया है. जिससे कि अब बच्चे तेजी से ग्रोथ कर रहे हैं और कुपोषण की दर भी अब कम हो रही है. सुपोषण अभियान के तहत अंडा, रागी बिस्किट, मूंगफली लड्डू, गरम भोजन और पोषण आहार दिए जाने से यह अभियान कुपोषण की दर को कम करने में काफी सफल साबित हो रहा है.

जगदलपुर: बस्तर में नक्सल समस्या के साथ-साथ कुपोषण भी एक गंभीर समस्या है. कुपोषण की वजह से बस्तर में कई बीमार महिलाएं और बच्चे मौत के मुंह में समा गए हैं. बस्तर में यह समस्या काफी लंबे समय से है. हर साल बस्तर को कुपोषण से निजात दिलाने के लिए करोड़ों रुपए की राशि खर्च करने के दावे विभाग के द्वारा किए जाते हैं. इस बार प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के साथ ही कांग्रेस सरकार ने 2 अक्टूबर 2018 से सुपोषण अभियान की शुरुआत भी बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा जिले से की है. अब यह अभियान संभाग के पूरे सातों जिलों में चलाया जा रहा है. कुपोषण की समस्या को लेकर ETV भारत ने बस्तर जिले की महिला एवं बाल विकास अधिकारी शैल ठाकुर से खास बातचीत की. हमने उनसे जाना कि बस्तर में इस समस्या से निपटने के लिए या कुपोषण की दर को कम करने के लिए किस तरह के प्रयास किए जा रहे हैं.

महिला बाल विकास अधिकारी शैल ठाकुर से खास बातचीत-1

जिले में कुपोषण 21% प्रतिशत पहुंचा

महिला एवं बाल विकास अधिकारी शैल ठाकुर ने बताया कि बस्तर में कुपोषण एक गंभीर समस्या है. यह कोविड-19 महामारी से भी काफी गंभीर समस्या है, पिछले 5 सालों की बात की जाए, तो बस्तर जिले में 50% बच्चे कुपोषण से पीड़ित थे, लेकिन विभाग की ओर से लगातार किए गए प्रयास के बाद अब वर्तमान में जिले में कुपोषण का प्रतिशत 21 प्रतिशत पर आ गया है. विभाग के प्रयास से अब लगातार प्रतिशत में कमी आ रही है.

ग्रामीण हुए जागरूक

ग्रामीणों में जागरूकता के अभाव के सवाल पर अधिकारी ने बताया कि बस्तर में अधिकतर महिलाएं अशिक्षित हैं. इसकी वजह निश्चित रूप से जागरूकता की कमी है. लेकिन विभाग की ओर से ग्रामीण महिलाओं को उनके स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जा रहा है. इसके लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताएं और सहायिकाएं समय-समय पर महिलाओं की काउंसलिंग करती हैं. इसके अलावा पहले ग्रामीण अंचलों में किशोरी बालिकाओं की शादी कर दी जाती थी, उसकी वजह से भी कुपोषण की समस्या बढ़ी थी, लेकिन अब धीरे-धीरे इसे लेकर जागरूकता आई है. अब ग्रामीण इलाकों में 18 साल के बाद ही उनका विवाह किया जा रहा है. बाल विवाह काफी हद तक कम हुआ है, महिलाएं अब खानपान पर भी ज्यादा ध्यान दे रही हैं.

महिला बाल विकास अधिकारी शैल ठाकुर से खास बातचीत-2

जिले में 23 हजार से घट कर 17 हजार से ज्यादा कुपोषित बच्चे

जिले में वर्तमान में गंभीर कुपोषित बच्चों के आंकड़े के सवाल पर अधिकारी ने बताया कि साल 2019 में पूरे जिले में 23 हजार बच्चे कुपोषित पाए गए थे, लेकिन सुपोषण अभियान चलाए जाने के बाद अब वर्तमान में गंभीर कुपोषित बच्चों की संख्या 17 हजार 700 है. इस अभियान से 1 साल में करीब 5 हजार 500 बच्चे कुपोषण से निजात पा चुके हैं.

पढ़ें: दंतेवाड़ा: मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान को सफल बनाने की पहल, गांव-गांव में दी जाएगी जानकारी

बांटा गया सूखा राशन

अधिकारी ने बताया कि कोरोना की वजह से मार्च महीने से आंगनबाड़ी केंद्रों को बंद करने के आदेश के बावजूद लगातार विभाग ने हितग्राहियों को सूखा राशन उनके घर तक पहुंचाया है. उन्होंने बताया कि करीब 12 हजार से ज्यादा गर्भवती महिलाओं को कोरोनाकाल के दौरान रेडी टू ईट खाना पहुंचाया गया. इसके अलावा 90 हजार से ज्यादा लोगों को सूखा राशन भी घर तक पहुंचाया गया.

पोषण आहार में महुआ लड्डू को किया जाएगा शामिल

अधिकारी ने बताया कि आने वाले समय में बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्रों में महुआ के बने लड्डू भी दिए जाएंगे. उन्होंने टेस्टिंग में पाया कि बच्चों को महुआ लड्डू खिलाये जाने से उनका वजन काफी तेजी से बढ़ा है. 1 से 3 साल के बच्चे का वजन लगभग 10 दिन में एक से डेढ़ किलो बढ़ा है. ऐसे में इसे पोषण आहार में शामिल करने की भी प्लानिंग चल रही है.

malnutrition decreasing in Bastar
खाने में दिए जा रहे महुआ के लड्डू

एनीमिया के इलाज के लिए किया जा रहा काम

अधिकारी ने बताया कि बस्तर में ग्रामीण महिलाओं में एनीमिया की काफी बड़ी समस्या है और जिससे निजात दिलाने के लिए, स्वास्थ विभाग महिला एवं बाल विकास विभाग और जिला प्रशासन तीनों सयुंक्त रूप से मिलकर काम कर रहे हैं. हाल ही में ग्रामीण महिलाओं की जांच पाया गया कि 40 हजार महिलाओं के जांच में 4 हजार महिलाएं एनीमिक पाई गई. उन्हें विभाग की ओर से गर्म भोजन और सभी दवाइयां, पोषण आहार दिया गया. जिसके बाद जांच में अब केवल 700 महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं.

NRC सेंटरों में दिया जा रहा अतिरिक्त पोषण आहार

इसके अलावा उन्होंने बताया कि जिले में कुल 7 एनआरसी सेंटर हैं. जहां गंभीर कुपोषित बच्चों को रखकर इलाज किया जाता है. कोरोना महामारी के वजह से मार्च महीने के बाद कई परिजन अपने बच्चों को एनआरसी सेंटर में भेजने से हिचक रहे थे. लेकिन पिछले 2 महीने से इन एनआरसी सेंटरों को खोल दिए जाने से इनमें पूरे 100 बिस्तर में 100 बच्चों को रखकर इनका खाने पीने का ध्यान रखा जा रहा है. साथ ही अभिभावक की भी काउंसलिंग की जा रही है. इस NRC सेंटर में बच्चों को अतिरिक्त पोषण आहार भी दिया जा रहा है . दरअसल 15 दिन के कोर्स में एनआरसी सेंटर में भरपूर मात्रा में पोषण आहार दिया जाता है. जिससे कुपोषण की दर काफी तेजी से घटती है. ऐसे में 7 एनआरसी सेंटरो के 100-100 बिस्तर में पूरी तरह से बच्चों को रखा गया है.

पिछले 5 सालों में कुपोषण का प्रतिशत घटा

अधिकारी ने बताया कि पिछले 5 सालों में कुपोषण का प्रतिशत बस्तर जिले में काफी तेजी से कम हुआ है. साल 2015 में बस्तर में कुपोषण का प्रतिशत 52 था, जिसके बाद 2016 में यह प्रतिशत 48% पहुंचा. 2017 में कुपोषण का प्रतिशत 34% पहुंचा , उसके बाद 2018 में 34% था और 2019 में बस्तर जिले में कुपोषण का प्रतिशत ते 33 प्रतिशत था. लेकिन अब विभाग के प्रयास से कुपोषण का प्रतिशत 23%, तक पहुंच गया है.

पढ़ें: बस्तर: 8 महीने में 300 नवजातों ने तोड़ा दम, कुपोषण और मांओं की कमजोर सेहत बड़ी वजह

विभाग में स्टाफ की कमी

स्टाफ की कमी के सवाल पर अधिकारी ने बताया कि उनके विभाग में स्टाफ की कमी बनी हुई है. अगर विभाग में उन्हें पर्याप्त संख्या में स्टाफ मिल जाती है तो निश्चित तौर पर तेजी से बस्तर में कुपोषण की समस्या से निजात पाया जा सकता है. इसे जड़ से खत्म किया जा सकता है. फिलहाल कम स्टाफ के बावजूद भी विभाग पूरी कोशिश में लगा हुआ है.

मुख्यमंत्री का विशेष ध्यान

अधिकारी ने कहा कि सुपोषण अभियान के तहत मुख्यमंत्री ने बस्तर में खास फोकस किया है. 3 साल का टारगेट विभाग की ओर से भी रखा गया है. इन 3 सालों में कुपोषण को जड़ से खत्म करने के लिए पूरी तरह से विभाग जुटा हुआ है. विभाग के अधिकारियों का मानना है कि आने वाले 2 सालों में बस्तर जिले में कुपोषण का प्रतिशत 15% या 10 % तक पहुंच जाएगा.

कारगर साबित हो रहा सुपोषण अभियान

बस्तर में 2 अक्टूबर 2018 से शुरू किए गए सुपोषण अभियान काफी कारगर साबित हो रहा है. दरअसल पहले विभाग की ओर से विभिन्न योजनाएं जरूर चलाई जाती थी और गर्भवती महिलाओं को रेड-टू-ईट खाना दिया जाता था, लेकिन इस सुपोषण अभियान के तहत पोषण आहार में कई खाने पीने के वस्तुओं को शामिल किया गया है. जिससे कि अब बच्चे तेजी से ग्रोथ कर रहे हैं और कुपोषण की दर भी अब कम हो रही है. सुपोषण अभियान के तहत अंडा, रागी बिस्किट, मूंगफली लड्डू, गरम भोजन और पोषण आहार दिए जाने से यह अभियान कुपोषण की दर को कम करने में काफी सफल साबित हो रहा है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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